Tailor Story in Hindi : एक गांव में एक दर्जी अपनी दुकान चलाता था। दर्जी के पास गांव के लोग कपड़े सिलवाने के लिये कपड़ा दे जाते थे।
दर्जी जब भी महंगे कपड़े देखता उसे लालच आ जाता था। वह उस कपड़े में से आधा कपड़ा बचा लेता था और दुकान पर पड़ी पुरानी कतरन में से जोड़ लगा कर नया कपड़ा सिल देता था।
एक दिन गांव का एक नौजवान मनीष उसकी दुकान पर आया और बोला – ‘‘मास्टरजी ये कपड़ा मैंने शहर से मंगवाया है आप एक बढ़िया सी कमीज सिल दो।’’
दर्जी ने उसका नाप ले लिया। फिर उसने कपड़े को देखा। देखने में कपड़ा बहुत महंगा लग रहा था। दर्जी बोला – ‘‘भाई ये तो तुम्हें किसी ने बेवकूफ बना दिया। इसमें एक तो क्या आधी कमीज भी नहीं बन पायेगी।’’
यह सुनकर मनीष ने कहा – ‘‘यह क्या कह रहे हो मास्टर जी मैंने तो पूरे पैसे दिये हैं इस कपड़े के।’’
दर्जी बोला – ‘‘भाई देख लो इसमें कमीज नहीं बन पायेगी। अगर तुम कहो तो मैं अपने पास से कुछ कपड़ा लगा दूंगा। इससे नया डिजाईन भी बन जायेगा और तुम्हारा कपड़ा भी बेकार नहीं जायेगा। लेकिन उस कपड़े के पैसे अलग से देने होंगे।’’
मनीष हां कर देता है। दर्जी पुरानी कतरनों से डिजाईन बना कर आधा कपड़ा बचा लेता है। वह कमीज को इतना सुन्दर बना देता है। कि जब मनीष अपनी कमीज लेने आता है, तो वह अपना कपड़ा भूल जाता है और कमीज लेकर चला जाता है।
दर्जी उस बचे कपड़े में से छोटे बच्चे की कमीज बना देता है उसे दुकान पर टांग देता है बिकने के लिये। दो दिन में ही वह कमीज बिक जाती है।
इधर मनीष अपनी कमीज लेकर घर पहुंचता है। वह नहा धोकर नई कमीज पहन कर घूमने निकल जाता है।
वह एक गली से गुजर रहा होता है तभी वहां कुछ लोग उसे देख कर हसने लगते हैं। यह देख कर मनीष को बहुत गुस्सा आ जाता है।
मनीष गुस्से में कहता है – ‘‘तुम लोग गांव के अनपढ़, गंवार लोग हो तुम्हें क्या पता फैशन क्या होता है?’’
यह सुनकर उनमें से एक आदमी कहता है – ‘‘भैया इसे फैशन नहीं बेवकूफ बनना कहते है। लगता है तुमने हमारे गांव के दर्जी से ही ये कमीज सिलवाई है।’’
मनीष हां में सिर हिलाता है। तो दूसरा आदमी कहता है – ‘‘भाई जी उसने तुम्हें यह बताया होगा कि कपड़ा कम है। इस तरह उसने आधा कपड़ा बचा कर ये कतरनों से बनी कमीज तुम्हें दे दी। उधर वह बाकी बचे कपड़े से छोटे बच्चे की कमीज बना कर बेच चुका होगा।’’
मनीष ने कहा – ‘‘लेकिन यह सब आपको कैसे पता?’’
तब पहला वाला आदमी बोला – ‘‘भाई हम तो कई सालों तक उससे बेवकूफ बनते रहे। अब हममें से कोई भी उसके पास नहीं जाता। तुम दो चार दिन गांव में घूम लो कोई न कोई बच्चा तुम्हारे जैसी कमीज पहने मिल जायेगा।’’
मनीष को बहुत गुस्सा आया वह बोला – ‘‘आपने कभी उससे शिकायत नहीं की।’’
दूसरा आदमी बोला – ‘‘भाई कहां शिकायत करते? वह चालाकी से कपड़ा बचा रहा है। किसी को जबरदस्ती लूट नहीं रहा है। हमने उसके पास जाना बंद कर दिया।’’
मनीष यह सुनकर बोला – ‘‘लेकिन भाईयों उसे सबक तो सिखाना चाहिये, जिससे वह आगे से ऐसा न करे।’’
सभी ने सहमति में सिर हिला दिया। अब मनीष ने उसे सबक सिखाने के लिये योजना बनाना शुरू कर दिया।
अगले दिन मनीष उसी दर्जी के पास गया और बोला – ‘‘भाई मैं शहर से आ रहा हूं। यह कमीज जो तुमने बनाई है। वहां सबको बहुत पसंद आई। वहां के लोग तुमसे कपड़े सिलवाना चाहते हैं।’’
यह सुनकर दर्जी बहुत खुश हुआ वह बोला – ‘‘भाई तुम उनके कपड़े ले आओ मैं सिल दूंगा। तुम भी अपनी कमीशन रख लेना।’’
तब मनीष ने कहा – ‘‘भाई शहर में यह सब नहीं चलता। वहां तो लोग बनी बनाई कमीज खरीद कर पहनते हैं। तुम ऐसा करो ऐसे ही डिजाईन में तीन सो कमीज बना दो। सौ एक साईज की, सौ दूसरे साईज की, सौ तीसरे साईज की।
मैं उन्हें शहर में बेच आउंगा। तुम्हें भी अच्छा मुनाफा बच जायेगा। साथ ही मैं भी कुछ पैसे कमा लूंगा।’’
दर्जी को यह बात समझ में आ गई। उसने पन्द्रह दिन का समय लिया और कपड़े के कई थान मंगा कर कमीजे सिलने लगा।
पन्द्रह दिन, दिन रात मेहनत करके उसने शानदार तीन सौ कमीजें तैयार कर लीं। अब वह मनीष के आने का इंतजार कर रहा था। एक दिन बीता, दो दिन बीते, जब तीसरे दिन भी मनीष नहीं आया तो वह उसे ढूढने गांव में गया।
मनीष का कहीं अता पता नहीं था। फिर भी वह उसका इंतजार करता रहा। एक दिन उसे दुकान के बाहर मनीष दिखाई दिया। वह दौड़ कर उसके पास गया और बोला – ‘‘मालिक कहां चले गये थे आप। आपकी कमीजें तैयार हैं।’’
मनीष ने कहा – ‘‘भाई कौन सी कमीजें, मैं तो आपको जानता भी नहीं हूं।’’
यह सुनकर दर्जी के पैरों तले जमीन खिसक गई वह बोला – ‘‘मालिक ऐसे न बोलो। मैंने आज तक जितना पैसा कमाया था। वह सब इन कमीजों में लग गया। मैं बर्बाद हो जाउंगा।’’
मनीष ने कहा – ‘‘चोरी का पैसा किसी काम का नहीं होता। तुमने भी तो लोगों के कपड़ों में से कपड़ा बचा कर चोरी की है अब भुगतो।’’
दर्जी गुस्सा हो जाता है वह मनीष को मारने के लिये हाथ उठा लेता है। तभी कुछ लोग बीच बचाव कर देते हैं। मामला पंचायत में पहुंच जाता है।
पंच मनीष से कमीज के बारे में पूछते हैं तो वह मना कर देता है।
पंच दर्जी से पूछते हैं तो वह कहता है – ‘‘माई बाप आप को पंच परमेश्वर हैं। इसने ही मुझे तीन सौ कमीजें बनाने के लिये कहा था।’’
पंच ने पूछा – ‘‘तुमने कोई राशि पहले इससे ली थी।’’
दर्जी बोला – ‘‘नहीं साहब मैंने तो इस पर विश्वास करके सारी कमीजें बना दिये।’’
पंच ने कहा – ‘‘हमारा फैसला यह है कि मनीष निर्दोष है। लगता है तुम झूठ बोल रहे हो। वैसे भी तुम्हारी बेईमानी की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं। अब अपने घर जाओ।’’
दर्जी बोला – ‘‘मालिक मैं उन कमीजों का क्या करूंगा?’’
पंच ने कहा – ‘‘उन्हें आधे दामों पर पंचायत में दे दो। यहां से जिसे चाहिये होगी वह खरीद लेगा।’’
दर्जी ने कहा – ‘‘ठीक है साहब, मनीष भैया और गांव वालों मुझे माफ कर दो आगे से कभी मैं बेईमानी नहीं करूंगा।
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