कोमल मन | Moral Story Orphan Child

Moral Story Orphan Child
Moral Story Orphan Child

Moral Story Orphan Child : कविता अपनी मम्मी सुनीता के साथ सुबह स्कूल जा रही थी। स्कूल पास ही में था। इसलिये मां बेटी पैदल ही जा रही थीं।

रास्ते में कविता ने देखा एक छोटा सा बच्चा सड़क पर खेल रहा था। पास ही में उसकी मां भीख मांग रही थी।

कविता का मन था उसके साथ खेलने का। कविता ने अपनी मम्मी से कहा – ‘‘मम्मी मुझे भी इसके साथ खेलना है।’’

सुनीता जी ने कहा – ‘‘बेटा नहीं ये गंदे लोग हैं देख वो ठीक से नहाया भी नहीं है। चल स्कूल के लिये देर हो रही है।’’

सुनीता कविता को लेकर आगे चल दी। कुछ दूर जाने पर कविता ने पूछा – मम्मी वो इतना गंदा क्यों था।’’

सुनीता जी ने कहा – ‘‘बेटी वो भीख मांगने वाले गरीब लोग हैं उनके पास न घर है न कोई नहाने की जगह यहीं पास में झुग्गी में रहते होंगे।’’

बातें करते करते स्कूल आ गया। कविता को स्कूल छोड़ कर सुनीता जी वापस घर आ गईं।

इधर कविता अपनी क्लास में बैठी कुछ और ही सोच रही थी – ‘‘वो बेचारा तो स्कूल भी नहीं जाता होगा। जब वह पढ़ेगा नहीं तो उसे भी भीख मांगनी पड़ेगी।’’

स्कूल खत्म होने के बाद सुनीता जी कविता को लेकर घर चल दीं। कविता ने रास्ते में देखा अब वह बच्चा वहां नहीं था। उसकी मां भी नहीं थी। कविता बोली – ‘‘मम्मी वो बच्चा और उसकी मां कहां चले गये।’’

‘‘अरे मुझे क्या पता चल पता नहीं कहां कहां तेरा दिमाग चलता रहता है।’’ सुनीता जी ने कविता को डाटते हुए कहा।

घर आकर भी कविता उस बच्चे के बारे में सोचती रही। अगले दिन सुबह कविता अपनी मम्मी के साथ स्कूल जा रही थी, तभी उसे एक जगह भीड़ दिखाई दी।

सुनीता जी ने पूछा तो किसी ने बताया – ‘‘बेचारी भिखारिन सुबह भीख मांग रही थी। तभी दूसरी ओर से आ रही तेज गाड़ी ने उसे उड़ा दिया वहीं खत्म हो गई। अब पता नहीं इस बच्चे का क्या होगा।’’

कविता ने देखा वही बच्चा अपनी मां के पास बैठा रो रहा था।

सुनीता जी और कविता आगे स्कूल के लिये चल दिये। कविता ने पूछा – ‘‘मम्मी अब इस बच्चे का क्या होगा?’’

सुनीता जी ने कहा – ‘‘बेटा अभी पुलिस वाले आयेंगे उसे ले जायेंगे बाद में उसे किसी अनाथ आश्रम में छोड़ देंगे।’’

कविता को कुछ समझ नहीं आया वह बहुत कुछ जानना चाह रही थी, लेकिन तभी स्कूल आ गया।

दोपहर को स्कूल से आते समय कविता ने देखा वहां कोई नहीं था। घर आकर कविता ने खाना भी नहीं खाया। शाम को उसके पापा राकेश जी आये तो कविता ने कहा – ‘‘पापा वह जिस लड़के के बारे में मैंने आपको कल बताया था। आज उसकी मां मर गई। पापा क्या हम उसे अपने साथ नहीं रख सकते? वह बेचारा तो स्कूल भी नहीं जाता है।’’

राकेश जी ने कहा – ‘‘नहीं बेटा ऐसा कैसे हो सकता है? हम उसे अपने साथ नहीं रख सकते। पता नहीं कौन है?’’

कविता के मन पर उस बच्चे ने गहरी छाप छोड़ी थी। उसने खाना भी नहीं खाया। सुनीता जी और राकेश जी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसका मन उस बच्चे को अपने साथ रखने के लिये बैचेन था।

रात के समय कविता को बुखार हो गया। उसका कोमल मन बहुत विचलित था। समाज की उंच नीच से बेखबर वह उस बच्चे के बारे में सोच रही थी।

अगले दिन वह बहुत कमजोर लग रही थी। राकेश जी और कविता जी बहुत परेशान हो गये। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर की दवा से बुखार तो उतर गया, लेकिन घर में हर समय चहकने वाली कविता अब किसी से बात नहीं कर रही थी। वह गुमसुम सी खिड़की के पास बैठी बाहर देखती रहती थी।

राकेश जी ने सुनीता से बात की – ‘‘ऐसा कब तक चलेगा, कविता बहुत कमजोर हो गई है।’’

सुनीता जी ने कहा – ‘‘मैं उसे बहुत समझाती हूं। लेकिन वह एक ही बात कर रही है, कि अब उस बच्चे का क्या होगा।’’

राकेश जी ने सुनीता से कहा – ‘‘हम अपनी बच्ची की खुशी के लिए उस बच्चे को गोद ले सकते हैं क्या?’’

सुनीता जी चुप रह गईं। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद उन्होंने कहा – ‘‘यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हमें बहुत सोचना होगा।’’

राकेश जी ने कहा – ‘‘मेरे लिये इस समय मेरी बेटी की खुशी से ज्यादा कुछ नहीं है।’’

बहुत देर बाद करने के बाद दोंनो उस अनाथ बच्चे को गोद लेने के लिये तैयार हो गये।

राकेश जी कविता के पास गये और बोले – ‘‘बेटी अगर तू मेरी एक बात माने तो हम उस बच्चे को अपने घर ला सकते हैं।’’

कविता का चेहरा खुशी से चमकने लगा। वह बोली – ‘‘हां पापा मैं आपकी सारी बात मानूंगी। बस एक बार उसे घर ले आईये।’’

तभी सुनीता जी नाश्ता लेकर आईं और बोली – ‘‘बेटी पहले नाश्ता कर ले फिर अपने भाई को लेने चलना।’’

कविता ने खुशी खुशी नाश्ता खत्म किया। तीनों गाड़ी में बैठ कर पुलिस स्टेशन पहुंच गये। राकेश जी ने इंस्पेक्टर से बात कर अनाथ आश्रम का पता लिया और वहां पहुंच गये।

अनाथ आश्रम से उन्होंने उस बच्चे को गोद ले लिया और उसे लेकर घर आ गये।

नये घर में आकर उस बच्चे को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कविता ने उससे उसका नाम पूछा तो उसने मोनू बताया।

सुनीता जी ने उसे नहला धुला कर अच्छे से तैयार कर दिया। उसे नये कपड़े पहना दिये अब वह किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।

कविता और मोनू दोंनो खेलने लगे। कविता उसे अपने सारे खिलौने दिखा रही थी।

कविता को खुश देख कर राकेश जी ने कहा – ‘‘आज मुझे अपनी बेटी पर गर्व महसूस हो रहा है। वरना लोग ऐसे बच्चों को देख कर मुंह बनाते हैं और अलग हो जाते हैं।’’

इस तरह एक अनाथ बच्चे को एक घर मिल गया, और माता पिता भी।

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