Moral Story Old Father : रामनाथ जी को शहर में आये अभी दो साल हुए थे। उनका बेटा सचिन शहर मैं नौकरी करता था। इसलिये वह अपने पिता को भी शहर ले आया था।
सचिन की पत्नी राधिका को रामनाथ जी का उनके साथ रहना पसंद नहीं था। वह चाहती थी, कि हम अकेले में मजे से रहें। इसी बात को लेकर अक्सर घर में कहा सुनी होती रहती थी।
एक दिन राधिका घर का काम निबटा रही थी, तभी रामनाथ जी के हाथ से एक शीशे का गिलास गिर कर टूट गया।
राधिका को बहुत गुस्सा आया वह बोली – ‘‘बाबूजी आपको दिखाई नहीं देता कि मैं सारा दिन घर का काम करती रहती हूं और आप नुकसान करते रहते हैं। अब कौन यह समेटेगा।’’
राधिका की बात सुनकर रामनाथ जी बोले – ‘‘बेटी मैं साफ कर देता हूं। ’’
यह कहकर रामनाथ जी कांच के टुकड़े समेटने लगे। तभी एक कांच उनके पैर में चुभ गया। खून की धार फूट पड़ी। रामनाथ जी ने किसी तरह कांच का टुकड़ा पैर से निकाला और बहु को आवज दी।
राधिका आई और खून देख कर चिल्लाने लगी – ‘‘ये क्या किया सारा फर्श गंदा कर दिया। दवा लगाईये इस पर जाईये अपने कमरे में। मेरा काम और बढ़ा दिया।’’
रामनाथ जी लंगड़ाते हुए अपने कमरे में पहुंच गये। सामने टेबल पर उनकी पत्नी की फोटो रखी हुई थी। उसे देख कर उनकी आंखों में आंसू आ गये। जब वह जिन्दा थी, तो रामनाथ जी को कभी एक गिलास पानी नहीं लेने देती थी। उनका बहुत ख्याल रखती थी।
शाम को जब सचिन घर आया तो, राधिका ने उसे सारी बात बता दी। सचिन पापा के कमरे में गया और बोला – ‘‘पापा मुझे लगता है आपको यहां लाना ही नहीं चाहिये था। आप एक जगह चैन से बैठ नहीं सकते क्या?’’
रामनाथ जी कुछ नहीं बोले बस चुपचाप बैठे रहे। कुछ देर बड़बड़ा कर सचिन बाहर चला गया।
रामनाथ जी कहीं अतीत में खो गये। जब सचिन पैदा हुआ था। उन्होंने पूरे गांव को दावत दी थी। उनकी पत्नी यशोदा ने बहुत लाड़ प्यार से सचिन को पाला। सचिन जब थोड़ा बड़ा हुआ तो रामनाथ जी उसे अपनी साईकिल पर बैठा कर स्कूल छोड़ने जाते थे।
गांव से दूर बड़े से स्कूल में उसका दाखिला करवाया था। दोपहर को खेत में काम करते करते हमेशा घड़ी देखते रहते थे। जैसे ही सचिन की छुट्टी का समय होता उससे पहले ही स्कूल के गेट पर पहुंच जाते थे।
सचिन को घर पर छोड़ कर फिर साईकिल उठा कर भरी दोपहरी में खेत पर जाते और रात तक मेहनत करते थे।
सचिन जब पांचवी आठवीं क्लास में आया तो एक दिन अपने पिता से बोला – ‘‘पिताजी आप मुझे स्कूल छोड़ने मत जाया करो। मेरे सारे दोस्त मजाक उड़ाते हैं। आप मुझे एक साईकिल दिलवा दो।’’
यशोदा जी ने बोला – ‘‘अच्छा अपने बाप के साथ जाने में शर्म आती है। कोई साईकिल नहीं मिलेगी। जाना है तो पैदल जा।’’
रामनाथ जी ने सचिन की बात को समझ कर उसे साईकिल दिलवा दी। धीरे धीरे वह पढ़ लिख गया और शहर जाकर नौकरी करने लगा। रामनाथ जी से अब काम नहीं होता था। सचिन हर महीने कुछ पैसे भेज देता था।
एक दिन सचिन गांव आया और उसने बताया कि उसने एक लड़की पसंद कर ली है। वो दोंनो शादी करना चाहते हैं, लेकिन वह आप लोगों को शादी में नहीं बुला सकता। शहर की शादी में आप लोग सही नहीं रहोगे।
यह सुनकर रामनाथ जी और यशोदा का दिल टूट गया। यशोदा ने तो कुछ ही दिन बाद बिस्तर पकड़ लिया। दो महीने बाद सचिन राधिका को लेकर गांव आया। लेकिन एक ही दिन रुक कर वापस जाने लगा।
रामनाथ जी ने उससे कहा – ‘‘बेटा कुछ दिन रुक जा शायद तेरी मां की अंतिम घड़ियां आने वाली हैं। कुछ दिन तुम लोग साथ रहोगे तो उसे अच्छा लगेगा।’’
सचिन ने कहा – ‘‘पिताजी, राधिका नहीं रुकेगी उसे गांव पसंद नहीं आ रहा है।’’
दोंनो चले जाते हैं। कुछ दिन बाद यशोदा जी अपने बेटे को याद करते करते दम तोड़ देती हैं। उस समय सचिन और राधिका दोंनो तेहरवीं तक रुके थे। फिर रिश्तेदारों के कहने पर सचिन अपने पिता को शहर ले आया, लेकिन अब दोंनो उनसे परेशान हो चुके थे।
रामनाथ जी को अब कोई ठिकाना भी नहीं था। गांव का मकान और खेत सचिन ने बेच दिये थे। उसी पैसे से उसने एक फ्लेट खरीदा और किराये के मकान से उसमें आ गया था।
एक दिन शाम के समय रामनाथ जी उदास एक पार्क में बैंच पर बैठे थे। उनके जीवन का अब कोई मकसद नहीं था। तभी उन्होंने देखा तीन चार उनकी उम्र के लोग वहीं पार्क में बैठे हस रहे थे, सभी एक दूसरे से मजाक कर रहे थे।
रामनाथ जी को यह देख कर अपने गांव की याद आ गयी। गांव की चौपाल पर वे भी गांव वालों के साथ अपने सुख दुःख बांटते थे।
इसी बीच किसी की आवाज से उनका ध्यान भटका। उन्होंने नजर उठा कर देखा तो उनमें से एक सज्जन उनके सामने खड़े थे।
वे रामनाथ जी से बात करने लगे उन्होंने अपना नाम राजेन्द्र बताया। उन्होंने कहा – ‘‘आप भी बहु बेटे से परेशान हो?’’
रामनाथ जी ने कहा – ‘‘नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।’’
यह सुनकर राजेन्द्र जी हसने लगे – ‘‘अरे भाई हमसे कुछ छिपा नहीं है। हम सब भी अपने घरवालों से परेशान थे। लेकिन आज देखो हम कितने मजे में हैं। यहीं पास में एक आश्रम है। वहीं रहते हैं। जो मन में आये वो करते हैं। जहां जाना हो जाते हैं। वहां बड़े प्यार से नौजवान हमारी सेवा करते हैं। समय पर खाना मिलता है। साथ ही हसी खुशी का माहौल रहता है।
छोड़े इस उम्र में अपनी बेज्जती करवाना आ जाओ हमारे संग। यह सुनकर रामनाथ जी की आंखों से आंसू बहने लगे।
राजेन्द्र जी ने बाकी सबको भी बुला लिया। फिर वे रामनाथ जी को आश्रम दिखाने ले गये। वहां सब खुशी खुशी रह रहे थे। वहां उन्हें कुछ लड़के लड़कियां मिले जो वहां सेवा करते थे। उन्होंने बहुत प्यार से रामनाथ जी की सारी बात सुनी और उनसे कहा – ‘‘दादाजी आप हमारे आश्रम में आ जाईये यहां हम आपकी इतनी सेवा करेंगे, कि आप अपना दर्द भूल जायेंगे।’’
रामनाथ जी के लिये यह सब बिल्कुल अलग था। गांव में तो ऐसा कुछ नहीं था। अगले दिन वे अपना सामान लेकर घर से चल दिये। उन्होंने सचिन और राधिका को कुछ नहीं बताया और आश्रम पहुंच गये।
वहां जाते ही उनका स्वागत हुआ। अब वे वहीं रहते हैं। वहां उन्हें बहुत आदर सम्मान के साथ नाश्ता, खाना और पैसे भी मिलते थे। अब वे भी उस ग्रुप का हिस्सा थे, जहां केवल खुशियां बांटी जाती थीं।
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