Motivational Kahani Single Mother : नीतू की उम्र भी केवल दस साल थी। कानपुर के एक छोटे से मौहल्ले में वह एक पुराने हवेली जैसे मकान में अपनी मां दुलारी के साथ रहती थी।
कानपुर में आज से करीब तीस साल पहले दुलारी की शादी हुई थी। गांव की होने के कारण शहर के तौर तरीके उसे समझ नहीं आते थे। दुलारी के पति भगतराम बाजार में एक दुकान में नौकरी करते थे।
आज से करीब पांच साल पहले उनके सिर में तेज दर्द उठा। अस्पताल ले गये। वहां सारे टेस्ट हुए तो डॉक्टर ने बताया इन्हें ब्रेन ट्यूमर है।
दुलारी की तो जैसे जिन्दगी ही बदल गई घर में रहने वाली देहाती लड़की, जिसे बाहर का कुछ पता नहीं था। उसके सिर पर पूरी गृहस्थी का बोझ आ गया। साथ ही पति के इलाज के लिये पैसों का इंतजाम भी करना था।
दुलारी ने किसी तरह हिम्मत करके घर से बाहर जाकर काम ढूंढा एक दो घरों में उसे साफ-सफाई और खाना बनाने का काम मिल गया।
दुलारी सुबह जल्दी से खाना बना कर और नीतू को भगतजी के पास छोड़ कर काम पर निकल जाती थी। घरों में काम करके दोपहर को वह घर आती और पति और बच्ची को खाना खिला कर, जल्दी जल्दी दो निवाले खाकर वापस शाम के काम के लिये चली जाती थी।
इसी बीच भगतजी की तबियत बिगड़ती चली जा रही थी। एक दिन जब दुलारी अस्पताल में भगतजी के पास बैठी तो उन्होंने कहा – ‘‘दुलारी मुझे लगता है मेरे जाने का समय आ गया है। तू नीतू का ध्यान रखना और जिस हवेली में हम रहते हैं। वो मेरे पिताजी के नाम थी। कभी भी उसे मत छोड़ना।
बहुत मजबूरी हो तभी मकान बेचने के बारे में सोचना। नीतू को उन्होंने बहुत प्यार किया।
दुलारी बिना कुछ बोले बस रोये जा रही थी। अगले दिन सुबह भगत जी चल बसे। दुलारी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। आस पड़ोस के कुछ लोगों ने उनका अंतिम संस्कार कराया। किसी तरह तेरहवीं की गई।
तेरहवीं के दो दिन बाद ही भगतजी के रिश्तेदार मकान पर हिस्से का दावा करने लगे। लेकिन इन तेरह दिनों में और भगतजी के आखिरी शब्दों ने दुलारी को मजबूत कर दिया।
दुलारी सारी बात सुनकर सबके सामने आकर खड़ी हो गई और बोली – ‘‘यह हवेली मेरे ससुर जी के नाम थी और मेरे पति उनके इकलौते बेटे थे। इस पर अब मेरा और मेरी बेटी का हक है आप सब लोग चले जाईये यहां से।’’
दुलारी की बात सुनकर जो रिशतेदार उसे सीधा समझ कर हवेली लेना चाहते थे। चुपचाप वापस लौट गये।
दुलारी सुबह ही नीतू को लेकर काम पर निकल जाती और शाम तक काम करे घर आती थी। वह सारी जिम्मेदारी संभाल रही थी। उसका एक ही मकसद रह गया था नीतू को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाना।
कुछ दिन बाद दुलारी पैसे इकट्ठे करके नीतू का एक स्कूल में दाखिला करा दिया। धीरे धीरे समय बीत रहा था। आज नीतू दस साल की हो गई थी।
एक दिन दुलारी जब शाम को घर आई तो नीतू ने उससे कहा – ‘‘मम्मी आज एक आदमी आया था। यह खत दे गया है।’’
दुलारी ने कहा – ‘‘बेटा जरा इसे पढ़ कर सुना मुझे तो पढ़ना नहीं आता है।’’
नीतू ने लिफाफा खोला और बोली – ‘‘अरे मां ये तो इंग्लिश में है। इतनी इंग्लिश तो मैं भी नहीं जानती हूं।’’
दुलारी ने उससे खत ले लिया और अपने पास संभाल कर रख लिया अगले दिन वह जिस घर में काम करती थी। उसकी मालकिन से खत पढ़वाया। उन्होंने बताया, कि तुम्हारी हवेली बहुत पुरानी है। सरकार वहां उसे एक स्मारक बनाना चाहती है।
यह सुनकर दुलारी के होश उड़ गये – ‘‘नहीं नहीं मालकिन आप इसका जबाब लिख दो। हमें नहीं बेचना अपना घर हम कहां जायेंगे।’’
यह सुनकर उसकी मालकिन ने कहा – ‘‘दुलारी चिंता मत करो मैं इसके बारे में पता करूंगी, लेकिन जहां तक मुझे पता है। तुम्हें इसके बदले में सरकार बहुत सारा पैसा देगी।’’
दुलारी ने कहा – ‘‘मालकिन हम पैसा लेकर क्या करेंगे। हमारा गुजारा तो हो ही जाता है।’’
मालकिन ने उससे कहा – ‘‘अच्छा एक दो दिन रुक जा मैं सब पता करके बताती हूं।’’
दुलारी काम खत्म करके घर आ गई उसे आज बहुत चिंता हो रही थी। न जाने सरकार कब उसका घर छीन ले। वह कहां जायेगी? नीतू का क्या होगा?
दो दिन में दुलारी बहुत परेशान हो गई। दो दिन बाद उसकी मालकिन ने बताया – ‘‘दुलारी तेरी तो किस्मत खुल गई। जानती है इस घर के बदले तुझे करोड़ों रुपये मिलेंगे। इससे तू हमारे से भी बड़ा घर ले सकती है। उसके बाद भी इतना पैसा बचेगा, कि तुझे कभी काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’’
दुलारी को कुछ समझ नहीं आया। उसकी मालकिन बहुत अच्छी थीं। उन्होंने सारा काम करवा दिया। दुलारी को बहुत सा पैसा मिला। उसने अपनी मालकिन की मदद से एक घर भी ले लिया। बाकी पैसे उन्होंने बैंक में जमा करवा दिये। जिसका हर महीने ब्याज आता था।
दुलारी का सारा काम पूरा हो गया, वह अब अपने नये घर में पहुंच गई। एक दिन वह भगतजी की फोटो के सामने खड़े होकर रो रही थी। नीतू के पूछने पर उसने बताया कि – ‘‘देख बेटी तेरे पिता के साथ मैं केवल पांच साल रही। लेकिन उन्होंने आखिरी वक्त में अपनी सूझबूझ से मुझे मकाने के लिये डटे रहने को कहा। जिससे आज हम यहां तक पहुंच पाये। अपने आखिरी समय में भी उन्होंने केवल हमारे बारे में सोचा। उस समय मैं कुछ नहीं जानती थी। हमारी हवेली पर तो रिश्तेदार ही कब्जा कर लेते।’’
यह सुनकर नीतू की आंखों से भी आंसू बहने लगे वो बोली – ‘‘काश आज पापा जिन्दा होते तो कितने खुश होते।’’
यह सुनकर दुलारी ने कहा – ‘‘बेटी वो तो अपना काम कर गये। मैंने भी उनका कहना मान कर हवेली को बचा लिया। बस अब उनकी एक और आखिरी इच्छा थी। वो तुझे पूरी करनी है। वे चाहते थे, कि उनकी बेटी बहुत लायक बन जाये।’’
नीतू ने कहा – ‘‘मां तुम चिंता मत करो मैं एक दिन जरूर पापा का नाम रोशन करूंगी।’’
दुलारी अब भी सभी घरों में काम करती थी। उसने नीतू का दाखिला एक बड़े स्कूल में करा दिया और अच्छी सी ट्यूशन भी लगवा दी थी।
नीतू पढ़ाई करते हुए एक दिन आई एस आफिसर बन गई। वह उस दिन घर आई और बोली – ‘‘मां देखो पापा का सपना पूरा हो गया। तुम्हारी बेटी कलैक्टर बन गई। मां अब तुम्हें काम पर जाने की कोई जरूरत नहीं है अब आप आराम करो। वैसे भी हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है।’’
दुलारी बहुत खुश हुई – ‘‘बेटी आज तूने अपने पिता की आखिरी इच्छा भी पूरी कर दी। जानती है पैसों की जरूरत तो बहुत पहले खत्म हो गई थी। लेकिन मैं काम इसलिये करती थी, जिस काम से तेरा पालन पोषण हुआ। उस काम की मैं बहुत इज्जत करती हूं।’’
दुलारी और नीतू दोंनो भगत जी की फोटो के सामने खड़ी थीं। दुलारी ने कुछ देर उनसे बात की फिर आकर पलंग पर बैठ गई। वह बोली – ‘‘बस बेटी अब मेरा काम पूरा हो गया। अब मुझे मुक्ति मिल जायेगी।’’
यह कहकर दुलारी एक ओर लुढ़क गई। नीतू ने भाग कर उसे उठाया लेकिन वह अब कहां वह तो मुक्त हो चुकी थी। नीतू रोते रोते यही सोच रही थी। आखिर मेरी मां ने क्यों कभी सुख नहीं उठा पाया। आज अब उनके सुख उठाने का समय आया तो। भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया।
Leave a Reply
View Comments