नया बसेरा | Kids Story Moral of Girl

Kids Story Moral for Girl

Kids Story Moral of Girl : रजनी तुमने फिर से जूते रैक में नहीं रखे – कृष्णा जी की आवाज कानों में पड़ते ही रचनी सहम जाती है। वह जल्दी से जूते रैक में रख देती है।

लेकिन कृष्णा जी का गुस्सा शांत नहीं होता वो उसे और ज्यादा खरी खोटी सुना देती हैं।

रजनी रोते हुए अपने कमरे में जाती है और गेट बंद कर पलंग पर लेट जाती है।

‘‘काश मेरी मां न मरी होती। काश पापा ने दूसरी शादी न की होती। काश मैं भी मर जाती।’’ – ऐसी ही बातें सोच कर रजनी रो रही थी।

कुछ देर तक रोते रोते वह सो गई। दो घंटे बाद उसकी आंख खुली। बहुत भूख लग रही थी। संजना की मां राधिका तो जिद करके भी उसे खाना खिलाती थीं, लेकिन कृष्णा जी को उससे कोई मतलब नहीं थी।

रजनी जल्दी से किचन में गई। वहां जाकर देखा तो खाना था ही नहीं फ्रिज में दो केले पड़े थे। उन्हें ही खाकर वह पानी पीकर अपने कमरे में आ गई। होम वर्क करके ट्यूशन का काम निबटाया।

उसके ट्यूशन जाने का टाईम हुआ, तो वह कृष्णा जी के कमरे में गई। कृष्णा जी टी.वी. देख रहीं थीं।

‘‘मम्मी गेट बंद कर लीजिये मैं ट्यूशन जा रही हूं।’’ – रजनी ने डरते डरते कहा।

‘‘हां हां क्यों नहीं मैं तो तेरी नौकर लग रही हूं। मुझे समझ नहीं आता तेरी पढ़ाई पर ही सारी कमाई लुटा देते हैं। पता नहीं कहां की कलैक्टरनी बनेगी। जा यहां से मैं बंद कर लूंगी।’’ – कृष्णा जी को बोलता छोड़ कर रजनी चुपचाप निकल गई। उसे पता था वापस आकर डोर बेल बजाना उसे कितना भारी पड़ेगा।

शाम को उसके पापा जगदीश जी घर आये – ‘‘कहां है मेरी लाडो, देख मैं तेरे लिये क्या लाया हूं।’’ यह कहकर जगदीश जी ने एक बड़ी सी डॉल रजनी के हाथ में पकड़ा दी।

उसे देख कर रजनी के चहरे पर मुस्कान आ गई। उसे खुशी डॉल से नहीं थी। बल्कि इस बात से थी, कि उसके पापा उसे अभी भी इतना प्यार करते हैं। भले ही वो कृष्णा जी से डरते थे।

तभी किचन से कृष्णा जी पानी लेकर आईं – ‘‘क्या जरूरत थी इस फिजूल खर्ची की। आपको पता है न इसकी पढ़ाई पर कितना खर्च हो रहा है।’’

जगदीश जी ने उन्हें समझाते हुए कहा – ‘‘अरे भाई कोई बात नहीं बच्ची है। उसका भी मन करता होगा खेलने का वह तो बेचारी किसी चीज की जिद नहीं करती आज बाजार में यह डॉल देखी तो मैं अपने आप ले आया।’’

कृष्णा जी चुप रह गईं और चाय बनाने किचन में चली गईं। कृष्णा जी ने अपने पति के मरने के बाद जगदीश जी से यह सोच कर दूसरी शादी कर ली थी, कि मजे से रहेंगी। लेकिन जब से रजनी की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आई है। तब से वो उसे परेशान करने लगी थीं। वो चाहती थीं अपनी मां की तरह वह भी मर जाये या कहीं चली जाये।

बस जगदीश जी के कारण उनको चुप रहना पड़ता था। स्कूल की छुटट्ी वाले दिन जगदीश जी के ऑफिस जाते ही सारा काम रजनी के सिर पर डाल कर वो सोने चली जाती थीं।

रजनी की उम्र आठ साल थी, लेकिन ऐसा लगता है, कि मां के मरते ही वह अपनी उम्र से काफी बड़ी हो गई है। घर का सारा काम करती। अपनी पढ़ाई करती और मां से झिड़कियां भी खाती थी। कभी कभी उसकी पिटाई भी होती थी।

एक दिन रजनी बरतन साफ कर रही थी, तभी उसके हाथ से एक कांच का गिलास गिर कर टूट जाता है।

यह देख कर कृष्णा जी उसे बहुत मारती हैं और उसे खाना भी नहीं देती। रात तक रजनी रोती रहती है। वह अपने कमरे में पलंग पर लेटी हुई रो रही थी। तभी उसके पापा जगदीश जी कमरे में आये।

कृष्णा जी ने उन्हें पहले ही बता रखा था कि रजनी खाना खाकर सो गई है। जब से किसी काम से रजनी के कमरे में गये तो देखा वह सुबक सुबक कर रो रही थी।

जगदीश जी ने उससे पूछा – ‘‘बेटी क्या बात है आज खाना अच्छा नहीं बना क्या तू रो क्यों रही है।’’

यह सुनकर रजनी को जोर से रोना आ गया। वह बोली – ‘‘पापा मुझे मर जाना चाहिये।’’ रजनी की बात सुनकर जगदीश जी चौंक जाते हैं वे उससे पूछते हैं तो रजनी डरते डरते सारी बात बता देती है।

जगदीश जी सोच में पड़ जाते हैं – ‘‘हे भगवान ये क्या हो गया मैंने दूसरी शादी इसलिये की थी कि मेरी बच्ची को संभालने के लिये उसे मां मिल जायेगी। आज तो यही उसकी दुश्मन बन गई है।’’

जगदीश जी ने रजनी से कहा – ‘‘बेटी तू चिंता मत कर मैं सब ठीक कर दूंगा। चल तू खाना खा ले।’’

रजनी ने खाना खाया और सो गई, लेकिन जगदीश जी गहरी चिंता में डूब गये। उन्हें रजनी के भविष्य की चिंता होने लगी साथ ही उन्हें ऐसा भी लगने लगा कि कहीं कृष्णा जी उसे मार ही न दें।

दो दिन तक सब कुछ सामान्य चलता रहा। तीसरे दिन जगदीश जी ने कृष्णा जी से कहा – ‘‘मुझे ऑफिस के काम से बाहर जाना है। तुम घर का ध्यान रखना।’’

रजनी को पता था कि ये दो दिन काटने उसके लिये भारी पड़ जायेंगे। अकेले में जगदीश जी ने रजनी से कहा – ‘‘बेटी बस हिम्मत करके ये दो दिन काट ले मैं तेरे लिये ही इंतजाम करने जा रहा हूं। तुझे इस सबसे बाहर निकाल कर अच्छी जिन्दगी देने के लिये जा रहा हूं। बस तू किसी तरह दो दिन यह सब सह ले।’’

यह कहकर जगदीश जी चले गये। रजनी चुपचाप घर का काम करती रही। दो दिन बाद जगदीश जी वापस आये। जगदीश जी जानते थे कृष्णा जी के मायके में शादी है वो जरूर जायेगी।

बस उसी दिन का इंतजार था। कृष्णा जी के जाते ही जगदीश जी ने जल्दी से अपना और रजनी का सामान पैक किया और दोंनो निकल गये। जगदीश जी रजनी को लेकर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने मुम्बई की दो टिकट खरीदीं और रजनी को लेकर ट्रेन में चढ़ गये।

रजनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बोली – ‘‘पापा हम कहां जा रहे हैं।’’

यह सुनकर जगदीश जी बोले – ‘‘बेटा बहुत दूर जा रहे हैं। अपना सब कुछ छोड़ कर जो गलती मैंने की थी उसका प्रायश्चित कर रहा हूं। मैं तेरे लिये मां लाना चाहता था, लेकिन मुझे क्या पता था, कि वही तेरी दुश्मन बन जायेगी।’’

यह सुनकर रजनी बहुत खुश हुई। लेकिन दूसरे ही पल वह बोली – ‘‘पापा मम्मी का क्या होगा? वो अकेले कैसे रहेंगी।’’

बेटी की बात सुनकर जगदीश जी की आंखों से आंसू छलक गये वो बोले – ‘‘बेटा तुझे उसका ख्याल है जिसने कभी तुझे बेटी नहीं माना। उसकी चिंता मत कर मैंने उसके बैंक में कुछ पैसे जमा करा दिये हैं।’’

दोंनो मुंबई पहुंच जाते हैं। वहां एक मकान किराये पर लेकर रहने लगते हैं। थोड़ी भाग दौड़ करके जगदीश जी को एक नौकरी भी मिल जाती है। मकान मालकिन बहुत भली थी। वह जगदीश जी के जाने के बाद रजनी का ध्यान रखती थी।

इधर जब कृष्णा जी घर वापिस आईं तो उन्होंने देखा ताला लगा हुआ है – ‘‘बस यही होना था पापा के जाते ही महारानी खेलने निकल जाती है। वो तो अच्छा है दूसरी चाबी है मेरे पास आज आने दे उसे ऐसा सबक सिखाउंगी, कि कभी घर से बाहर कदम नहीं रखेगी।’’

कृष्णा जी अपने बेडरूम में जाकर सो जाती हैं। दोपहर से शाम और शाम से रात हो जाती है। न जगदीश जी आये न रजनी। उन्हें चिन्ता होने लगी। वह घर में इधर उधर घूम रही थीं। तभी उनकी नजर सामने मेज पर पड़े कुछ सामान पर गई। सामान के साथ एक चिट्ठी भी थी।

कृष्णा जी ने चिट्ठी पढ़ी और उनका रो रो कर बुरा हाल हो गया। सामने बैंक की पास बुक, जगदीश जी का मोबाईल पड़ा था। अब तो वे उनसे संपर्क भी नहीं कर सकती थीं।

बेटी की खातिर अपना सब कुछ छोड़ कर जगदीश जी एक नई दुनिया बसाने चल दिये थे।