मेरे पापा को छोड़ दो | Brave Girl Story in Hindi

Brave Girl Story in Hindi
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Brave Girl Story in Hindi : सड़क के किनारे छोटी सी छुग्गी के बाहर छुटकी खेल रही थी। शाम होने को आई थी। वह अपने पापा का इंतजार कर रही थी। छुटकी मां दो साल पहले बीमारी में चल बसी। उस समय छुटकी छः साल की थी।

तब से पापा थोड़ा बहुत कमाते थे। उससे ज्यादा शराब में उड़ा देते थे। सुबह देर से उठते थे। फिर रेहड़ी पर थोड़े से फल लेकर गली गली बेचने निकल जाते थे।

आज बहुत देर हो चली थी। छुटकी को खाना भी बनाना था। वह अन्दर गई मिट्टी के तेल से जलने वाले लैंप को साफ किया उसका शीशा निकाल कर साफ किया फिर उसमें मिट्टी का तेल डाल कर रख दिया। पास ही माचिस रख दी जिससे अंधेरा होते समय उसे जला कर खाना बना ले।

सुबह ही तो उसने अपने पापा से कहा था – ‘‘बापू घर में खाने को कुछ ना है। शाम को राशन लेता आईयो।’’

लाखन ने गुस्से देखा – ‘‘अपनी मां को खा गई अब मुझे भी खा जा जब देखो खाना खाना करती रहती है।’’

छुटकी चुप रह गई। इसी तरह शाम तक वह भूखी रही कुछ खाने को जो नहीं था। शाम को अगर उसके पापा कुछ ले आये तो वह पका लेगी नहीं तो उनके सोने के बाद उनकी रेहड़ी में से एक फल चुरा कर खा लेगी। पिछली बार ऐसा करते देख कर लाखन ने उसे बहुत मारा था।

लेकिन पेट की भूख के आगे कहां कुछ दिखता है।

आज पापा को देर हो गई थी। अब तक तो आ जाते थे। कई आशंकाएं छुटकी के मन में उठ रहीं थी। कहीं पी कर किसी से झगड़ा तो नहीं कर लिया? कहीं पीने बैठे हों घर आने का होश ही नहीं हो?

बहुत देर हो जाने पर छुटकी झुग्गी का पर्दा लगा कर पास वाले बनवारी चाचा के पास गई। उसने बोला – ‘‘चाचा बापू अभी तक नहीं आया।’’

बनवारी बोला – ‘‘अरे बेटी उसका तो रोज का काम है कहीं पीकर पड़ा होगा। तू चिन्ता मत कर मैं अभी दुकान बढ़ा कर उसे देखने जाता हूं। तू घर जा। ऐसे अंधेरे में अकेले मत घूम।’’

बनवारी का एक छोटा सा पान का खोखा था। वह लाखन का बचपन का दोस्त था।

छुटकी अपनी झुग्गी में वापस आ जाती है। अंधेरा होने लगा था। उसने लैंप जला कर रख दिया और पापा का इंतजार करने लगी। भूख के मारे बुरा हाल था। लेकिन खाने के लिये कुछ नहीं था।

कुछ देर बाद बनवारी चाचा दौड़ते हुए आये और बोले – ‘‘छुटकी, छुटकी।’’

‘‘क्या हुआ चाचा बापू कहां है?’’ छुटकी ने जल्दी से पूछा।

बनवारी चाचा ने जो बताया उसे सुनकर छुटकी के होश उड़ गये उन्होंने बताया – ‘‘बेटी दोपहर को पुलिस वाले बाजार से सारी रेहड़ी उठा कर ले गये। जिसमें तेरे बापू की भी थी। दो घंटे बाद तेरा बापू शराब पीकर थाने जाकर हंगामा करने लगा। दरोगा को गुस्सा आ गया उसने उसे बंद कर दिया।’’

यह सुनकर छुटकी रोने लगी। बनवारी चाचा ने कहा – ‘‘बेटी एक काम कर मेरे साथ मेरे घर चल यहां अकेली कैसे रहेगी। वहीं चाची के पास सो जाना। हो सकता है कल तक तेरे बापू को छोड़ दें।’’

छुटकी ने आंसू पौंछते हुए कहा – ‘‘नहीं चाचा मैं पुलिस चौकी जाती हूं। पता नहीं पुलिसवाले, बापू के साथ क्या सलूक करें।’’

यह कहकर छुटकी तेरी से लैंप बुझा कर छुग्गी का पर्दा डालने लगी और फिर तेजी से पुलिस चौकी की ओर चल दी।

बनवारी चाचा उस आठ साल की बच्ची को देखते रह गये। बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं। तभी उन्होंने आवाज लगाई – ‘‘रुक छुटकी मैं भी आ रहा हूं।’’

लेकिन छुटकी ने कुछ नहीं सुना वह तेज कदमों से पुलिस चौंकी की ओर चल दी। बनवारी चाचा उसके पीछे पीछे तेजी से जा रहे थे।

पुलिस चौकी पहुंच कर छुटकी ने देखा बहुत से पुलिसवाले वर्दी पहने इधर से उधर जा रहे थे। तभी उसे पुलिस चौकी के गेट के पास कई रेहड़ियां दिखाई दीं। उनमें से उसने देखा एक रेहड़ी उसके बापू की भी थी।

वह तेजी से अन्दर की ओर चल दी। चौकी के गेट के पास जाकर उसने देखा सामने कुर्सी पर एक रौबीला थानेदार बैठा कुछ काम कर रहा था। उसे देखकर छुटकी डर गई।

वह वहीं खड़ी रही उसकी हिम्मत अंदर जाने की नहीं हो रही थी। तभी पीछे से बनवारी चाचा आ गये। वो उसके पास ही खड़े हो गये। वहीं से उन्होंने कहा – ‘‘साहब ये लड़की बहुत गरीब है इसकी मां नहीं है इसके बापू को छोड़ दीजिये।’’

तभी एक हवलदार उनके पास आया और बोला – ‘‘तू फिर आ गया अभी थोड़ी देर पहले ही तो तुझे भगाया था। उस शराबी को छोड़ दें जिसने पूरा थाना सर पर उठा लिया था। भाग यहां से नहीं तो तुझे भी अंदर कर दूंगा।’’

बनवारी चाचा ने बेबस नजरों से छुटकी की ओर देखा और हवलदार के सामने हाथ जोड़ कर पीछे हट गये चौकी के गेट के बाहर खड़े होकर छुटकी का इंतजार करने लगे।

थानेदार अपने काम में लगा था। जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं। हवलदार वहां से चला गया। छुटकी की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसे लाखन कहीं नजर नहीं आ रहा था। वहीं ठिठक कर डर के मारे वहीं खड़ी रही।

कुछ देर में थानेदार ने काम करते करते हवलदार से कहा – ‘‘अरे जा चाय बोल कर आ।’’ तभी उसकी नजर छुटकी पर गई वह चिल्लाया – ‘‘अरे ये लड़की इतनी रात को यहां क्या कर रही है? कौन है ये?’’

उसकी तेज आवाज सुनकर छुटकी और डर गई।

हवलदार ने कहा – ‘‘साहब वो शराबी जिसे हमने अंदर कर दिया है उसकी बेटी है।’’

थानेदान ने इशारे से छुटकी को अंदर बुलाया। छुटकी डरते डरते अंदर गई – ‘‘जा अपने घरवालों को भेज कल सुबह इसकी जमानत करा कर ले जायेंगे।’’

छुटकी ने डरते हुए बोला – ‘‘साहब हमारा कोई नहीं है। मेरी मां मर गई बस बापू और मैं ही नहर वाली सड़क के किनारे झुग्गी में रहते हैं।’’

थानेदार ने झुझलाते हुए कहा – ‘‘अरे कोई तो होगा किसी बड़े को लेकर आ रात हो गई घर जा।’’

छुटकी बोली – ‘‘साहब मेरे बापू को छोड़ दो उनके सिवा मेरा कोई नहीं है। कोई नहीं आयेगा उन्हें छुड़ाने।’’

लेकिन थानेदार को ये सब बातें समझ में कहां आने वाली थी। उसने अकड़ते हुए कहा – ‘‘मैं सब जानता हूं ये ड्रामेबाजी। खुद घरवाले छुप जाते हैं और छोटे बच्चों को भेज देते हैं। चल भाग किसी बड़े को बुला कर ला।’’

छुटकी ने थानेदार के पैर पकड़ लिये – ‘‘साहब हम पर रहम करो कोई नहीं है हमारा। मैं अकेले झुग्गी में कैसे रहूंगी। मुझे भी बापू के पास रहने दो या उन्हें छोड़ दो।’’

थानेदार ने उसे बाजू से पकड़ कर धकेल दिया। मजबूत बाजुओं के जोर से वह दूर जा गिरी।

छुटकी वहीं पड़े पड़े रोने लगी वह थोड़ा सा उठी तो देखा उसकी कोहनी पर खरोंच लग गई गई जिससे खून की रेखाएं दिखने लगी थीं।

‘‘वाह इंस्पेक्टर साहब वाह छोटी सी बच्ची पर बहुत जोर आइमाईश हो रही है।’’ अनजानी आवाज सुनकर थानेदार ने देखा। सामने निरूपमा जी जो कि समाज सेविका हैं और एक एन.जी.ओ. चलाती हैं। खड़ी होकर ताली बजा रही थीं।

उन्हें देख कर थानेदार एकदम खड़ा हो गया। निरूपमा जी की पहुंच बहुत उपर तक थी।

उन्होंने आगे बड़ कर छुटकी को उठाया। उसके कपड़े अपने हाथ से साफ किये फिर उसके जख्म को देखा। उसके बाद उनके साथ आये चार-पांच लोगों में से एक को उन्होंने छुटकी को सम्हालने के लिये कहा।

उसके बाद निरूपमा जी थानेदार के सामने जाकर खड़ी हो गईं – ‘‘हां तो इंस्पेक्टर साहब किस बात की सजा मिल रही है इस बच्ची को।’’

थानेदार थोड़ा सा सकपकाया – ‘‘कुछ नहीं मेडम वो इसे बहुत देर से कह रहा हूं घर जा और किसी बड़े को भेज लेकिन यह मान ही नहीं रही इसके बाप ने शराब पीकर हंगामा किया है इसलिये उसे अंदर कर दिया।’’

निरूपमा जी बोली – ‘‘मैंने सब सुन लिया बाहर इसके पड़ोसी बनवारी चाचा खड़े हैं वो ही मुझे यहां लाये हैं। ये बेचारी सच बोल रही है। इसकी मां नहीं है केवल इसका बाप है।

इसके बाप को तो आपने शराब के लिये अंदर कर दिया लेकिन बाकी रेहड़ी वालों का क्या जिनकी रेहड़ी आपने थाने में लाकर खड़ी कर दी हैं।’’

थानेदार बोला – ‘‘हमें उपर से ऑडर थे रास्ता खाली कराना था।’’

निरूपमा जी ने कहा – ‘‘जब आपके हवलदार इन गरीबों से उगाही करते हैं तब भी उपर से ऑडर लेते हो। पहले आप लोग रेहड़ी लगने देते हो बाद में हटा देते हो। एक रेहड़ी से एक परिवार पलता है। जानते हैं आप इस बच्ची के घर में आज चूल्हा नहीं जला।’’

निरूपमा जी ने आगे कहा – ‘‘चलिये दिखाईये क्या रिर्पोट लिखी है इसके बाप के खिलाफ आपने।’’

थानेदार गिड़गिड़ाते हुए बोला – ‘‘नहीं मेडम कोई केस नहीं बनाया न ही कहीं रिर्पोट लिखी है। वो तो बस ऐसे ही सबक सिखाने के लिये बंद कर दिया है।’’

निरूपमा जी बोली – ‘‘पाटिल जी एस.एच.ओ. साहब को फोन लगा कर कहो यहां पहुंचे मैंने बुलाया है।’’

थानेदार बोला – ‘‘मेडम उन्हें क्यों परेशान करती हैं मैं अभी उसे छोड़ देता हूं। हवलदार लाखन को ले आ।’’

लाखान को थानेदार के सामने लाया गया। अब तक उसका नशा भी उतर चुका था।

निरूपमा जी बोली – ‘‘शर्म नहीं आती तुझे देख इस बच्ची की हालत, भूखी-प्यासी तुझे छुड़ाने के लिये थानेदार के पैरों में पड़ी थी।’’

लाखन बोला – ‘‘मेडम एक ही तो हमारी रोजी रोटी थी उसे भी ये उठा लाये आपको पता है। सारे फल भी इन्होंने फेंक दिये।’’

निरूपमा जी बोली – ‘‘शराब पीने के लिये तेरे पास पैसे हैं इस भूखी बच्ची के लिये नहीं हैं।’’

लाखन बोला – ‘‘मेडम मुझे माफ कर दीजिये आगे से ऐसा नहीं होगा।’’

निरूपमा जी – ‘‘हां तो इंस्पेक्टर साहब इनका जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा।’’

थानेदार कोई जबाब न दे सका।

निरूपमा जी ने कहा – ‘‘सबका जब्त किया सामान वापस करो। लेकिन मैं आपको छोड़ूंगी नहीं आगे आपको इसका जबाब देना होगा।’’

यह कहकर वह छुटकी को लेकर थाने से बाहर आ गई। उन्होंने बाहर बैंच पर छुटकी को बिठा दिया। फिर अपने एक कार्यकर्ता को कुछ समझाया।

निरूपमा जी छुटकी के बराबर बैठ गईं -‘‘बेटा स्कूल जाते हो।’’

छुटकी ने न में सर हिलाया।

निरूपमा जी ने कहा – ‘‘सुन लाखन कल से छुटकी पढ़ने जायेगी इसका सारा खर्चा हमारी संस्था उठायेगी। तुझे राशन दे रही हूं और कुछ पैसे भी कल से ढंग से फल लाकर बेचना। मेरे कार्यकर्ता और मैं समय समय पर आते रहेगे। तूने शराब पी तो तुझे अंदर करा दूंगी।’’

तभी उनका कार्यकर्ता राशन और छुटकी के लिये खाना लाया। निरूपमा जी ने छुटकी को खाना खिलाया। उसके बाद लाखन और छुटकी राशन रेहड़ी पर रख कर अपनी छुग्गी की ओर चल दिये। बनवारी चाचा जो बाहर खड़े ये सब देख रहे थे। वो भी साथ में चल दिये।

घर आकर लाखन ने कहा – ‘‘बेटी मुझे माफ कर दे आज के बाद कभी शराब नहीं पिउुगा। तूने मेरे लिये बहुत कष्ट उठाया।’’

छुटकी फूट-फूट कर रोने लगी। उसका डर अब उसकी आंखों से बह रहा था। बनवारी चाचा बोले – ‘‘इसे ढंग से पाल ले लाखन बहुत हिम्मतवाली है तेरी बच्ची। अकेले थानेदार से भिड़ गई मेरी हो सिटटीपिटी गुम हो गई थी।’’

लाखन ने छुटकी के आंसू पौंछे और उसे गले लगा लिया।

अगले दिन से लाखन ढंग से काम करने लगा। इधर निरूपमा जी की मदद से छुटकी स्कूल जाने लगी।

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Image Source : Playground

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.