Family Relationship Story : नीलम एक गांव के गरीब परिवार मैं पैदा हुई। उसके माता पिता गांव में एक खेत में मजदूरी करते थे। बहुत ही मुश्किल से गुजर बसर होती थी।
नीलम दो साल की थी। तभी गांव में बाढ़ आ गई। नीलम के पिता उस बाढ़ में बह गये। नीलम और उसकी मां किसी तरह बच गई। नीलम की मां को भी गहरी चोंटे आईं थी।
अस्पताल में नीलम को अपनी बहन बबीता को देते हुए नीलम की मां ने कहा – ‘‘बहन इसे अपनी बेटी बना कर पालना।’’
यह सुनकर बबीता ने कहा – ‘‘ऐसा क्यों बोलती हों दीदी आप ठीक हो जाओंगी।’’
यह सुनकर नीलम की मां के आंसू बहने लगे और कुछ ही देर में उसने अपने प्राण त्याग दिये।
बबीता ने अपने पति मोहनलाल जी की मदद से किसी तरह नीलम की मां का अंतिम संस्कार किया और फिर वह नीलमक को लेकर शहर चली आई। शहर में उनका छोटा सा फ्लेट था जो कि किराये पर था। मोहनलाल जी एक छोटी सी नौकरी कर शहर में गुजर बसर कर रहे थे।
इस पर नीलम के आने के बाद खर्च और बढ़ गया था। दो साल की बच्ची को पालना भी आसान नहीं था। मोहनलाल जी को यह सब पसंद नहीं आ रहा था। बबीता किसी तरह नीलम को पाल रही थी।
कुछ दिन बाद एक दिन बबीता अपने पड़ोस में रहने वाली सहेली सुजाता से बात कर रही थी – ‘‘बहन समझ नहीं आ रहा क्या करूं इनकी थोड़ी सी तन्ख्वाह में हमारा ही गुजारा बहुत मुश्किल से होता है अब नीलम के आ जाने से बहुत परेशानी हो रही है।’’
सुजाता ने कहा – ‘‘एक काम कर इसे किसी अनाथ आश्रम में छोड़ आ। वहां अपने आप पल जायेगी।’’
बबीता बोली – ‘‘ये क्या कह रही है तू। मेरी बहन की अमानत है। मेरा अपना बच्चा होता तो क्या मैं उसे अनाथ आश्रम में छोड़ देती?’’
यह सुनकर सुजाता ने कहा – ‘‘मुझे माफ कर दे न जाने मैं भी क्या बोल गई एक काम कर न मैं इसे कुछ घंटे सम्हाल लूंगी तू कोई काम ढूंढ ले मेरा मतलब है कुछ घरों में काम करना शुरू कर ले। सुबह साफ सफाई करने का काम मिल जायेगा। उससे इसका खर्च तो निकल ही जायेगा।’’
बबीता ने बोला – ‘‘तू ठीक कह रही है अगर तू इसे कुछ देर संभाल लेगी तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी।’’
सुजाता ने कहा – ‘‘अरे ये तो पुण्य का काम है तू चिन्ता मत कर।’’
बबीता को एक रास्ता नजर आ रहा था। शाम को उसने मोहनलाल जी से बात की। उन्होंने कहा – ‘‘जैसा तुम चाहो करके देख लो नहीं तो इसे किसी को देना पड़ेगा।’’
अगले दिन से बबीता काम ढूंढने लगती है। कुछ लोगों से बात करके उसे दो घरों में काम मिल जाता है।
धीरे धीरे समय बीतने लगता है। नीलम अब पांच साल की हो गई थी। बबीता अब घरों में पूरे दिन काम करती थी। नीलम अब घर में अकेले रह सकती थी। बीच बीच में सुजाता उसकी देखभाल करने के लिये आ जाती थी।
बबीता को मेहनत करके भी एक खुशी मिलती थी। नीलम को वह बहुत प्यार करती थी।
धीरे धीरे मोहनलालजी का स्वभाव भी बदलने लगा था। वो भी नीलम को अपनी बेटी मानने लगे थे।
बबीता ने नीलम का एक स्कूल में दाखिला करा दिया।
दोंनो नीलम को बेटी की तरह पाल रहे थे। नीलम जब चौदह साल की हुई तो उसे पता लग गया था। कि वह अपनी मौसी के घर में पल रही है।
बबीता दिन भर काम करती थी। शाम को थक हार कर जब वह घर आती थी। तो वह नीलम से कुछ काम करने के लिये कह देती थी। जिससे नीलम को लगने लगा था। कि उसकी मौसी खुद तो सारा दिन घूमती रहती है और सारा काम उस पर डाल देती है। नीलम के मन में मौसी के प्रति नफरत सी भरने लगी थी।
नीलम अब सुजाता से भी बात नहीं करती थी। इसलिये सुजाता ने भी आना छोड़ दिया था।
इसी तरह समय बीत रहा था। समय के साथ नीलम के मन में बबीता के प्रति नफरत बढ़ती जा रही थी। कुछ दिन बात तो उसने बबीता को उल्टे जबाब देना भी शुरू कर दिया था।
नीलम के मन में एक बात घर कर गई थी। कि उसकी मौसी उसे नौकरानी बनाकर काम करवाने के लिये लाई है। पता नहीं उसके माता पिता मरे भी हैं या मौसी ने झूठ बोल दिया।
मोहनलाल जी और बबीता को नीलम के इस व्यवहार से बहुत दुःख होता था। वे दोंनो नीलम को समझाने की कोशिश करते थे लेकिन वह उन्हें उल्टा ही बोल देती थी।
नीलम की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। उसने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी। एक दिन उसने घर आकर बबीता को बताया कि उसे एक कंपनी में नौकरी मिल गई है।
बबीता बहुत खुश हुई, कि उसने अपनी बहन से किया वादा पूरा किया।
नीलम को अभी नौकरी करते हुए कुछ ही दिन हुए थे कि उसने अलग फ्लेट किराये पर ले लिया और वह अलग रहने लगी। जब नीलम जा रही थी, तो बबीता ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह कहने लगी – ‘‘मैं अब तुम्हारी गुलाम बन कर नहीं रह सकती इसलिये मैं जा रही हूं।’’
मोहनलाल जी और बबीता को बहुत दुःख हुआ। बबीता ने अब काम पर जाना छोड़ दिया था। उसकी तबियत खराब रहने लगी थी।
इधर नीलम को काम करते करते एक लड़के से प्यार हो गया। दोंनो ने शादी का फैसला कर लिया। एक दिन बबीता दवाई लेने डॉक्टर के पास जा रही थी। तभी उसे रास्ते में सुजाता मिली – ‘‘कैसी है बहन ये क्या हाल बना रखा है?’’
बबीता ने रोते हुए उसे सारी बात बताई। तब सुजाता ने कहा – ‘‘अरे मैंने जो नया घर लिया था वहीं पास ही में एक फ्लेट में नीलम रहती है। उसने तो शादी कर ली तुझे नहीं बताया।’’
यह सुनकर बबीता का दिल टूट गया। वह बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी।
एक दिन नीलम के पति रोशन किसी काम से जा रहे थे उन्हें रास्ते में सुजाता मिली। पड़ोसी होने के नाते सुजाता ने नीलम का हाल चाल पूछ लिया। तब रोशन ने पूछा कि वे नीलम को कैसे जानती हैं?
सुजाता ने रोशन को सारी बात बताई कि कैसे बबीता ने नीलम को पाल पोस कर बड़ा किया।
यह सुनकर रोशन को बहुत दुःख हुआ क्योंकि उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था।
रोशन ने नीलम से जाकर इस बारे में पूछा – ‘‘नीलम तुम्हारे माता पिता इसी शहर में हैं तुमने बताया नहीं।’’
नीलम – ‘‘आपके कैसे पता? वैसे वे मेरी मौसी हैं। जिन्होंने आज तक ये नहीं बताया कि मेरे माता पिता कहां हैं वो तो बस मुझे नौकरानी बना कर रखना चाहती थी।’’
तब रोशन ने कहा – ‘‘कोई भी मालकिन अपनी नौकरानी से बिछुड़ने के गम में मरने जैसी हालत में नहीं पहुंच जाती। वो तुम्हारे से बिछुड़ने का दुःख सहन नहीं कर पा रहीं हैं। तुम्हें उनसे माफी मांगनी चाहिये।’’
ये बात सुनकर नीलम ने कहा – ‘‘ये फिर कोई नई चाल होगी मौसी की।’’
तब रोशन ने कहा – ‘‘अगर वो उस समय तुम्हें नहीं पालती तो शायद आज तुम जिंदा भी नहीं होतीं।’’
रोशन की बात सुनकर नीलम को अपने किये पर पछतावा होने लगा। उसने मौसी से जाकर मिलने की सोची।
दो दिन बाद नीलम अपने पति रोशन के साथ मौसी से मिलने गई। वहां जाकर पता लगा कि दो दिन पहले ही बबीता सबको छोड़ कर चली गई। नीलम उसकी फोटो के सामने फूटफूट कर रोने लगी।
मोहनलाल जी ने नीलम को संभालते हुए कहा – ‘‘बेटी वापस आने में बहुत देर कर दी। तेरी मौसी तुझे बहुत याद करती थी।’’
नीलम ने प्राश्चित करने की सोची। नीलम और उसके पति रोशन मोहनलाल जी को अपने घर ले आये नीलम उनकी पिता की तरह देखभाल करती थी।
रोशन भी उन्हें अपने घर के बड़े बुर्जुग की तरह मान-सम्मान देता था। नीलम हर दिन बबीता की फोटो के सामने दीपक जला कर उनसे माफी मांगती थी।
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Image Source : Playground
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