#1 पानी का स्वाद | Moral Story : Testy Water

रचना ने सामने बने बंगले की डोरबेल बजाई उसमें से एक लेडिज बाहर आईं और बोली – ‘‘क्या है? कौन हो तुम?’’ ‘‘जी वो में एक प्यूरीफायर बेच रही थी। आप एक बार डेमों देख लीजिये।’’ – रचना की बात सुनकर कविता जी को गुस्सा आ गया – ‘‘क्या बेवकूफी है तुम्हें लगता है इतने बड़ें बंगले में रहने वाले हम लोगा बिना प्यूरीफायर का पानी पी रहे हैं।
इतनी गर्मी में दोपहर की नींद खराब करने चले आते हैं जाओ यहां से।’’ कविता जी गेट बंद कर ही रहीं थीं, तभी रचना ने उन्हें रोकते हुए कहा – ‘‘मेडम एक गिलास पानी मिल जायेगा। बहुत प्यास लगी है। सुबह से धूप में घूम रही हूं।’’ कविता जी ने उसे उपर से नीचे तक देखा शायद उन्हें कुछ तरस आ गया – ‘‘ठीक है यहीं रुको’’ – कविता जी पानी लेकर आईं।
रचना ने जल्दी से पानी का गिलास लिया और अपना टीडीएस मीटर उसमें डाल दिया -‘‘मेडम देखिये जिस पानी को आप साफ बता रहीं थीं। उसका लेवल कितना खतरनाक है। बस एक बार हमारी डेमो देख लीजिये। प्लीज।’’ – ‘‘ओ हो इसका मतलब तुम्हें अपनी मार्किटिंग करनी थी। प्यास नहीं लगी थी। चुपचाप पानी पीना है तो पियो। वरना चली जाओ।’’ -कविता जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
रचना ने जल्दी से गिलास वापस करते हुए कहा – ‘‘मेडम मुझे बहुत प्यास लग रही है। लेकिन ये पानी पीकर बीमार नहीं पड़ना चाहती। आगे आपकी मर्जी।’’ – ‘‘सुनो जो पानी हम पीते हैं वो प्यूरी फायर का है ये पानी तो हमारे नौकर पीते हैं। अब तुम लोगों के लिये प्यूरी फायर का पानी थोड़े ही वेस्ट करेंगे।’’
रचना ने आगे कहा – ‘‘मेडम आप अगर हमारा प्यूरी फायर अपने नौकरों के लिये लगवा देंगी तो उन्हें भी साफ पानी मिल जायेगा। ये है भी बहुत सस्ता।’’ – ‘‘उन्होंने तो कभी कम्पलेंट नहीं की तुम क्यों परेशान हो रही हों।’’
रचना वहां से जाने लगी तभी पीछे से किसी ने आवाज दी – ‘‘रुको बेटा एक मशीन हमारे यहां भी लगा दो।’’ रचना ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक सफेद लंबी सी गाड़ी से एक सूट बूट पहले सज्जन उतरे – ‘‘बेटा मैं पहले गांव में रहता था वहां कुएं का पानी इतना ठंडा और स्वादिष्ट था, उसे पीकर न कोई बीमारी होती थी। न कभी कोई प्यासा भटकता था। रचना ने कहा – ‘‘ओ के सर थैंक्यू चलिये मैं आपके साथ चलती हूं। कहां है आपका घर।’’
उन्होंने कहा – ‘‘यही है ये प्यूरी फायर तुम हमारे सर्वेन्ट क्वाटर में इंस्टाल करवा दो अंदर चलो मैं तुम्हें साफ पानी पिलाता हूं। कविता जी एक समय हमारे पास खाने के पैसे नहीं थे। उस समय मैं इस शहर के फुटपाथ पर सोता था और कभी कभी स्टेशन के बाहर लगे नल से पानी पीकर सो जाता था। उस पानी का स्वाद भी मैं आज तक नहीं भूला।’’
रचना को लेकर रजत जी अंदर जाते हैं उसे साफ पानी पिलाते हैं – ‘‘बेटी कितना टरगेट है तुम्हारा’’ – ‘‘जी मुझे महीने में पन्द्रह पीस बेचने पड़ते हैं।’’ रचना की बात सुनकर रजत जी ने कहा – ‘‘मेरी कंपनी में लगभग तीन सो वकर्स काम करते हैं। सभी यही पानी पीते हैं तुम उनके घरों में अपना प्यूरी फायर लगाओ और बिल मेरी कंपनी के नाम बना देना।’’
रचना की आंखों में आंसू आ गये। यह देख कर रजत जी ने कहा – ‘‘बेटा वो समय और था जब पानी शुद्ध आता था। आज तो हर चीज में मिलावट है। अगर मेरा स्टाफ स्वस्थ रहेगा तभी मेरे लिये काम करेगा।’’ रचना ऑडर लेकर मुस्कुराते हुए बाहर की ओर चल दी। उसके जाने के बाद कविता जी ने कहा – ‘‘मुझे माफ कर दीजिये मुझे उससे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिये था। पैसों की चकाचौंध में मैं अपने पुराने दिन भूल गई। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।
#2 चूल्हे की ठंडी रोटी | Moral Story Fauzi ki Vidai
100+ Short Moral Stories in Hindi : विभा अभी चूल्हे पर खाना बना रही थी। विभा की सास एक चारपाई पर बैठी थी। अभी दो दिन पहले ही उसका बेटा रवि छुट्टी पर घर आया था। विभा ने कहा – ‘‘मांजी रोटी बन गई है पता नहीं ये कहां गये। आप रोटी खा लो।’’

‘‘न बहु आ जाने दे रवि को फिर पता नहीं कब मौका मिले उसके साथ खाना खाने का।’’ यह सुनकर विभा हसने लगी। सास ने मजाक में टोक दिया – ‘‘हां हां ठीक है मैं एक रोटी खा लूंगी बाकी तू खा लेना।’’ विभा यह सुन कर शर्मा गई।
सास ने कहा – ‘‘पता नहीं कहां गया है, कह रहा था दोस्तों से मिलने जा रहा हूं।’’ कुछ देर बाद रवि अपने चार दोस्तों के साथ घर आया। सास ने कहा – ‘‘अरे कहां घूम रहा था और तुम भी कमाल करते हो इसे खाना तो खाने दो। अभी तो छुट्टी पर आया बाद में घूम लेना इसके साथ।’’
रवि चुपचाप खड़ा था उसके दोस्त भी एक शब्द नहीं बोल रहे थे। विभा ने गौर से चारों को देखा – ‘‘मांजी कुछ बात जरूर है, पूछो न क्या बात है।’’
रवि ने आगे बढ़ का विभा का हाथ पकड़ कर उठाया और उसे एक तरफ ले जाकर कुछ कहा – ‘‘विभा रोती हुई अपने कमरे में चली गई।’’
‘‘अरे क्यों रुला दिया बहु को अच्छी भली खाना बना रही थी।’’ सास ने बहु की तरफदारी करते हुए कहा। लेकिन रवि अभी भी चुप था। तभी देखा विभा रविा का बैग लेकर आ गई उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
रवि बोला – ‘‘मां वो लड़ाई शुरू हो गई है सभी फोजियों की छुट्टी केंसिल हो गई है। अभी छः बजे हैं सात वाली ट्रेन पकड़नी पड़ेगी सुबह दस बजे रिर्पोट करना है।’’
यह सुनकर रवि की मां खड़ी हो गई उनके हाथ पैर कांप रहे थे। बेटे को बड़े गर्व से फौज में भर्ती करवाया था। इसके पिता भी फौज में शहीद हुए थे। लेकिन जब भी इकलौते बेटे को बार्डर पर भेजते हैं रुह कांप जाती है।
चारों दोस्तों ने जल्दी से बैग लेकर गाड़ी में रखा जो वो साथ लाये थे। रवि मां के पैर छूकर और विभा से गिले मिल कर जल्दी से गाड़ी में बैठ गया।
इधर चूल्हे पर रोटी जल गई थी। काफी देर रोने के बाद विभा ने कहा – ‘‘मांजी आप रोटी खा लो।’’
सास ने कहा – ‘‘बहु जिसके साथ खानी थी वो तो भूखा ही चला गया। तू खा ले मुझे भूख नहीं है।’’ दोंनो रोटी भूल कर दूर जाते रास्ते को देख रही थीं। पता नहीं अब कब घर की रोटी खाने वाला वापस आयेगा।
#3 माता पिता की जिम्मेदारी Saas Sasur Story Hindi
सोनिया अपनी सास मंजू जी को पानी का गिलास देने गई- ‘‘बहु इसमें कुछ पड़ा है जरा दूसरा गिलास दे दो।’’ मंजू ने गिलास में देखा – ‘‘मांजी इसमें तो कुछ भी नहीं पड़ा है। आपको तो हर बात में टोकना है बस पी लीजिये पानी या फिर खुद ले लीजिये।’’
मंजू जी अपने घुटने के दर्द को अनदेखा करके पानी लेने चली गईं। इधर सोनिया अपने कमरे में जाकर मोबाईल चलाने लगी। कुछ ही देर में बाहर कुछ हलचल हुई वह बाहर आई तो देखा मांजी के हाथ से दूध का भगोना गिर गया। किचन के फर्श पर पूरा दूध फैला हुआ था।
सोनिया बिना कुछ बोले वापस आ गई – ‘‘इनका तो रोज का काम है पता नहीं कब मुझे मुक्ति मिलेगी। टाईम पर चाय चहिये नहीं मिली तो खुद बनाने चल दीं। काम करो तो मुसीबत न करो तो मुसीबत।’’
मंजू जी से झुका नहीं जा रहा था। उन्होंने सोनिया को आवाज दी – ‘‘बहु यह गलती से दूध फैल गया। जरा साफ कर दे।’’ दो तीन बार आवाज देने के बाद वे खुद किसी तरह फर्श पर बैठ गईं और दूध साफ करने लगीं।’’
शाम को रोशन जी घर आये और बोले – ‘‘बहु एक कप चाय बना दो।’’ ‘‘पापा जी मांजी ने सारा दूध गिरा दिया। आपको चाय पीनी है तो दूध ले आईये।’’ मंजू जी ने कहा – ‘‘अभी तो ये दुकान से थके हारे आये हैं तुम ऑनलाईन मंगा लो।’’
‘‘माफ करना मांजी पापा जी तो बस थोड़ी देर के लिये दुकान पर जाते हैं। बाकी तो सौरभ ही सारा काम संभालते हैं। सौरभ ने कहा था बहुत फिजूल खर्ची हो रही है। इसलिये मैंने सब बंद कर दिया। जिसे चाय पीनी हो वह दूध लाये।’’
रोशन जी उठ कर अपने कमरे में जाकर लेट गये। पीछे से मंजू जी पहुंच गईं – ‘‘सुनो जी मेरी ही गलती है। आप बात को बढ़ाओ मत दूध ले आओ।’’ अभी सौरभ भी आता होगा उसे पता लगेगा तो वह भी चिल्लायेगा।
रोज रोज के क्लेशों से डरे सहमे माता पिता ऐसे डर रहे थे। जैसे उन पर बुढ़ापा नहीं आया कोई क्राईम हो गया है। घर की फालतू चीज बन कर रहने से अच्छा कहीं चले जायें। यही सोच कर रात के सन्नाटे में दोंनो ने घर छोड़ने का फैसला किया।
सुबह हुई लेकिन वे जा न सके। लाचारी यह कि मंजू जी से दो कदम भी चला नहीं जाता। अगले दिन रोशन जी सुबह जल्दी तैयार होकर सौरभ के उठने से पहले ही दुकान की चाबी लेकर चले गये।
सौरभ जब चाबी ढूंढ रहा था तो मंजू जी ने कहा – ‘‘बेटा आज से दुकान तेरे पापा संभालेंगे और घर मैं। मैंने फैसला किया है कि मैं एक नौकरानी रखूंगी। तुम्हें दुकान पर जाने की जरूरत नहीं है। और बहु को काम करने की। अपने गुजारे के लिये तुम कुछ और काम ढूंढ लो साथ में मकान भी।
यह सुनकर सौरभ और सोनिया के होश उड़ गये। सौरभ दुकान पर पहुंचा। उसके पापा वहां बैठे थे। उन्होंने जाते ही सौरभ को वापस कर दिया। इधर घर में एक नौकरानी आ चुकी थी। जो केवल मंजू के कहने से काम करती थी।
माता पिता दोंनो कायरों की तरह भागने से अच्छे अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने लगे।
#4 बहु बेटे का प्यार Hindi Moral Story
बहु मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। निरंजन जी ने अपनी बहु अल्का से कहा। अल्का यह मानने को तैयार नहीं थी। वह बोली पिताजी जब सासू जी खत्म हुईं तो आपके एकाउंट में एक लाख रुपये थे। उनके जेवर भी नहीं मिल रहे कहां है ये सब।
तभी पीछे से इकलौता बेटा अरुण बोला – हां पापा जल्दी से बताओ मुझे पैसों की जरूरत है। यह सुनकर निरंजन जी दुःखी होकर बोले – बेटा वो सारा पैसा मैंने एक वृद्धा आश्रम में दान कर दिया। तेरी मां के जेवर वहां की गरीब लड़कियों की शादी के लिये दे दिये।
हे भगवान ये आपने क्या कर दिया। जिस पैसे, जेवर पर हमारा हक था वो आपने वृद्धा आश्रम में दे दिया। फिर आप भी वहीं चले जाईये। यहां रहने की क्या जरूरत है। बहु अल्का ने गुस्से में कहा।
बहु तुम दोंनो तो मुझे बहुत चाहते थे। अब क्या हुआ। बस पैसे खत्म होते ही प्यार भी रफू चक्कर हो गया। अरुण को भी गुस्सा आ रहा था। वह बोला – पापा जब आप हमारा हिस्सा दान कर रहे थे तब ये बात सोचनी चाहिये थी।
अल्का तुम इनका सामन बांधो मैं आज ही इन्हें वृद्धा आश्रम छोड़ आता हूं। वैसे भी वहां आपकी खूब सेवा होगी। कुछ ही देर में बाप बेटे वृद्धा आश्रम की ओर जाने के लिये घर से निकल रहे थे।
तभी निरंजन जी का बचपन के मित्र विश्वा जी आ गये – ‘‘क्यों भाई बंध गई न पोटली। बहुत कहता था। मेरा बेटा ऐसा नहीं है। तू शर्त हार गया। बेटा तेरे पापा के पास अभी भी पचास लाख रुपये हैं और शहर के बीच में पांच दुकाने हैं जिनसे हर महीने दो लाख किराया आता है। उसमें से हर महीने एक लाख ये वृद्धा आश्रम में देता है।
अरुण बोला पापा मुझे माफ कर दो। यह सुनकर निरंजन जी बोले – नहीं बेटा ये सबक मेरे लिये नहीं हर उस बाप के लिये है जो अपने बच्चों पर अंधा विश्वास करते हैं। बाद में वो ही वृद्धा आश्रम में पाये जाते हैं। मैं तो चला वृद्धा आश्रम।
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