Little Boy Emotional Story : रंजन 8वीं क्लास में पढ़ता था। आज स्कूल से छुट्टी होते ही वह घर पहुंचा तो देखा उसकी मम्मी बैठी रो रहीं थी।
रंजन: मम्मी क्या बात है आप क्यों रो रही हो?
रंजन के पापा गुजरात गये थे बिजनेस करने के लिये उन्हें दो साल हो चुके थे। शुरू शुरू में पैसे भिजवाते थे। धीरे धीरे वो भी बंद हो गये। फिर फोन भी आने बंद हो गये। आज सरिता ने फोन किया तो उन्होंने कहा –
योगेन्द्र जी: मेरा तुम दोंनो से कोई मतलब नहीं है। मैंने यहीं रहने का फैसला किया है। मैं अब कभी वापस नहीं आउंगा और आज के बाद इस नम्बर पर कभी फोन मत करना।
यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया। सरिता जी इस बात को सुनकर तब से रोय जा रही थीं।
रंजन: मम्मी आप चिंता मत करो मैं कल से कोई काम ढूंढ लेता हूं। हम अकेले रह लेंगे हमें किसी की जरूरत नहीं है।
पापा के लिये उसके मन में कड़वाहट भर चुकी थी। वह अपनी मां को संत्वना देने में लगा था।
रंजन की बात सुनकर सरिता जी को अच्छा लगा। लेकिन इतनी छोटी सी उम्र में उसकी पढ़ाई छुड़वा कर काम पर लगा देना यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था।
सरिता जी: नहीं बेटा तुझे बहुत मेहनत से पढ़ना होगा पढ़ लिख कर तुझे कुछ बनना होगा ताकि हम दुनिया का मुकाबला कर सकें। मैं मेहनत करूंगी बस तू मन लगा कर पढ़ाई कर।
रंजन: मम्मी पढ़ाई से जरूरी घर का खर्च चलाना है। आप क्या करोंगी? कभी घर से बाहर आप निकली नहीं। आपको कौन काम देगा। मैं काम करूंगा मैंने सोच लिया है। काम के साथ साथ शाम को पढ़ाई कर लूंगा।
अगले दिन से रंजन काम की तलाश में भटकने लगता है। कई दिन भटकने के बाद भी उसे कोई काम नहीं मिलता।
इधर सरिता जी भी रंजन के जाने के बाद काम की तलाश शुरू कर देती हैं। लेकिन उन्हें भी कोई काम नहीं मिलता।
एक दिन दोपहर के समय रंजन को बहुत भूख लग रही थी। वह सुबह से भूखा था और काम ढूंढ रहा था। तभी वह एक चाय की दुकान के बाहर पहुंच जाता है।
रंजन: भैया मुझे एक चाय दे सकते हो लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। बहुत भूख लगी है। मैं शाम तक आपकी दुकान पर काम कर दूंगा।
दुकानदार: भूख लगी है तो चाय क्यों पीना चाहता है?
रंजन: खाने के पैसे नहीं हैं चाय से भूख मर जायेगी।
दुकानदार उसे चाय और साथ में पॉव खाने को देता है। रंजन खाने के बाद दुकानदार के पास पहुंचता है।
रंजन: बताईये क्या काम करना है? मैं शाम तक आपका काम करता रहूंगा।
दुकानदार: जा बेटा घर जा। हम छोटे बच्चों से काम नहीं करवाते किसी ने देख लिया तो पुलिस हमें पकड़ लेगी।
रंजन: लेकिन मैंने जा आपकी चाय पी है उसके पैसे कैसे चुकाउंगा।
दुकानदार: जा बेटा जब पैसे हों दे जाना।
रंजन: नहीं मुझे कुछ न कुछ काम बताईये मैं कर दूंगा।
दुकानदार: अच्छा एक काम कर बड़े चौराहे पर एक बेकरी है, वहां से मुझे पाव ला दे ये ले पैसे और मेरी साईकिल ले जा।
रंजन साईकिल और पैसे लेकर बड़े बाजार पहुंच जाता है।
वह पाव लेकर वापस आने लगता है तभी पाव वाला पूछता है।
पाव वाला: सुन तू और भी दुकानों पर मेरे पाव पहुंचायेगा। तुझे कमीशन दूंगा।
रंजन: लेकिन मेरे पास साईकिल नहीं है। यह तो चाय वाले की है।
पाव वाला: मैं तुझे साईकिल भी दूंगा। शाम तक जितने पाव पहुंचायेगा। उसके पैसे मिल जायेंगे। लेकिन काम इमानदारी से करना कहीं मेरी साईकिल लेकर भाग मत जाना।
रंजन: मालिक मैं ईमानदारी से काम करूंगा। आप चिंता मत करो।
अगले दिन रंजन पाव वाले की दुकान पर पहुंच जाता है। वह उसके पाव दुकानों पर पहुंचा देता है। शाम को उसे कमीशन के सौ रुपये मिल जाते हैं।
घर आकर वह सरिता जी को सारी बात बताता है।
दूसरे दिन भी वह मेहनत से काम करता है। शाम को जब वह अपने पैसे लेने पहुंचता है। तो पाव वाला उससे कहता है –
पाव वाला: सुन बेटा तेरे काम करने से मेरा बहुत फायदा हो रहा है। कल तू पाव देने के बाद दूसरे बाजार में जाकर ये पाव वहां की दुकान वालो को दिखाना। क्या पता वहां से ऑडर मिलने लगें। इससे मेरी भी कमाई होगी और तेरी भी।
रंजन ऐसा ही करता है। धीरे धीरे उसका काम बढ़ने लगता है। इधर सरिता जी को भी एक घर में खाना बनाने का काम मिल जाता है।
दोंनो मां बेटे मेहनत से काम करने लगते हैं।
इसी तरह समय बीत जाता है। आठ साल बाद रंजन बहुत पैसा कमाने लगता है। उसने पैसे जोड़ कर अपनी पाव की दुकान खोल ली थी। उसकी दुकान पर उसने कई लड़के रख लिये जो पाव बेचने जाते थे। रंजन ने अपनी मां का काम छुड़वा दिया था।
कुछ समय बाद सरिता ने एक अच्छी सी लड़की देख कर रंजन की शादी कर दी। पूरा परिवार खुशी से रह रहा था।
एक दिन किसी ने कुंडा खटखटाया
सरिता ने दरवाजा खोला तो देखा सामने उसके पति योगेन्द्र जी खड़े थे।
सरिता उन्हें पहले तो पहचान नहीं पाई, पुराने से कपड़े पहने, दाढ़ी बड़ी हुई थी। बहुत कमजोर लग रहे थे।
सरिता: अब आप क्यों आये हो?
योगेन्द्र जी फूट फूट कर रोने लगे।
योगेन्द्र जी: मुझे माफ कर दो। मैंने वहां बहुत पैसा कमाया। फिर मैंने वहीं शादी कर ली उसके बाद सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन एक दिन मैं बीमार पड़ गया। मेरी पत्नी सारा पैसा और जेवर लेकर चली गई। मैं अकेला बीमारी से लड़ता रहा। मेरी हालत ऐसी हो गई अब न मेरे पास घर है, न खाने को रोटी, न पहनने को कपड़े। मैंने तुम लोगों के साथ बहुत बुरा किया। लेकिन अब मैं कहां जाउ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इसलिये मैं यहां चला आया।
सरिता: आपको पता है हमने कैसे दिन काटे हैं रंजन ने पढ़ाई छोड़ कर दिन रात मेहनत की तब कहीं जाकर यह सब बना पाया। मैं तो आपको माफ भी कर दूं। लेकिन वह कभी आपको माफ नहीं करेगा।
शाम को रंजन आया तो उसे सारी बात का पता लगा।
रंजन: मां इनसे कहो यहां से चले जायें। मुझे इनसे कोई मतलब नहीं है।
सरिता जी बैठी रो रहीं थी। उन्हें रोता देख रंजन ने कहा –
रंजन: मम्मी मैं आपको रोते नहीं देख सकता। ये बाहर वाले कमरे में रह सकते हैं। लेकिन हम लोगों से कोई मतलब नहीं होगा। आप इनका खाना वहीं पहुंचा देना।
योगेन्द्र जी को बाहर के कमरे में ठहरा दिया जाता है। लेकिन घर का कोई सदस्य उनसे बात नहीं करता था। सरिता उन्हें खाना दे आती थी।
योगेन्द्र जी अपने किये पर पछता रहे थे। इधर रंजन ने उनसे सब रिश्ते तोड़ दिये थे।
सरिता जी चाह कर भी अपने पति की मदद नहीं कर सकती थीं क्योंकि उन्हें अपने बेटे के कष्ट नजर आते थे।
एक दिन योगेन्द्र जी रात को सोये तो सुबह उठे नहीं। घर में मातम छा गया। रंजन ने अपने पिता को आखिरी विदाई दी। लेकिन उनके जाने का दुःख केवल सरिता को था। रंजन की जिन्दगी से तो वे बहुत पहले चले गये थे।
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