बेटी की बदलती तस्वीर | Betiyan Story in hindi

Betiyan Story in hindi

Betiyan Story in hindi : सरला जी अस्पताल से घर आई तो देखा सीमा उनकी जगह बैठ कर सिलाई कर रही थी।

‘‘बेटी क्या सिल रही है?’’ सरला जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।

‘‘वो मम्मी कमला जी आई थीं कह रहीं थीं कि उन्हें शादी में जाना है ये ब्लाउज अर्जेन्ट सिलने हैं। मैंने कहा ठीक है मिल जायेंगे तीन थे मैंने सोचा जब तक आयेंगी एक तो तैयार कर ही देती हूं। आप बैठो मैं आपके लिये पानी लाती हूं।’’

सरला जी पास पड़ी एक खाट पर बैठ गईं। वो सोच रहीं थीं क्या हो गया इस बेटी को जो कभी घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाती थी। रोज अपने पापा से पैसे लेकर जाती कभी वापस नहीं करती। पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक, पार्टीयां यही उसकी जिन्दगी थी। आज एक एक पैसे के लिये काम कर रही है।

तभी सीमा पानी ले आई – ‘‘मम्मी पाप अब कैसे हैं? डॉक्टर ने कुछ बताया या नहीं।’’

‘‘बेटी डॉक्टर तो बस एक ही बात कह रहे हैं। कि वे कोमा में हैं पता नहीं कब होश आयेगा। भगवान जाने आगे क्या होगा। काश उस दिन उनका एक्सीडेंट न हुआ होता। एक ऐक्सीडेंट ने हमारी सारी खुशिया छीन लीं हैं। इस एक साल में सारे रिश्तेदारो ने मुंह मोड़ लिया। सारे पैसे खत्म हो गये। अब क्या होगा।’’

यह सुनकर सीमा के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई। उसकी मम्मी दिन में पापा की देखभाल करती। रात को कपड़े सिलती थी। एक बड़े से घर को बेच कर वो लोग छोटे से किराये के मकान में आगये थे। हर जगह कार से जाने वाली मेरी मम्मी आज बसों में धक्के खा रही है। पापा का सारा बिजनेस उनके पार्टनर ने हड़प लिया उन्हें पता है आज नहीं तो कल वे नहीं रहेंगे। इधर रिश्तेदार इस डर से नहीं आते कि कहीं हमसे पैसा न मांग लें।

कुछ देर सब सोचने के बाद उसने अपने आप को संभाला और मम्मी से बोली – ‘‘मम्मी तुम चिंता मत करो पापा ठीक होकर आयेंगे तो सब ठीक कर देंगे। सब पहले जैसा हो जायेगा और हां एक बात आपको बताना भूल गई यहीं पास ही में मुझे दो बच्चे मिले हैं ट्यूशन के लिये कल से दोपहर को उन्हें पढ़ा दिया करूंगी।’’

यह सुनकर सरला जी के होठों पर फीकी हसी आ गई। बेटी को डॉक्टर बनाने का सपना उसके पापा ने देखा था। आज वही बेटी अपना सपना भूल कर अपनी पढ़ाई छोड़ कर अब ट्यूशन देने की बात कर रही है।

जिन्दगी में कब किसे क्या देखना पड़े ये किसी को पता नहीं होता।

अगले दिन सरला जी अस्पताल पहुंची तो पता लगा रात को उनके पति ने दम तोड़ दिया है। जो एक आखिरी उम्मीद थी वह भी चली गई। फिर शुरू हुआ वही तेरह दिन का मेला रिश्तेदार सगे बन कर आ गये। घर मेहमानों से भर गया, लेकिन सरला जी की आंखें अब सूख चुकी थीं। उन्हें सबसे नफरत थी, क्योंकि उन्हें पता था। तेरह दिन बाद वे नजर भी नहीं आयेंगे।

मां और बेटी दोंनों आंखों ही आंखों में एक दूसरे को देखती, और इस तमाशे के खत्म होने का इंतजार करती।

तेरह दिन बाद सरला जी ने नये सिरे से जिन्दगी जीने का फैसला किया। उस बड़े से शहर को छोड़ कर वो गांव लौट गये। पति की निशानी के रूप में यही एक गांव का मकान था। वहीं कुछ जमीन थी।

सरला जी ने खेती शुरू की। दोंनो मां बेटी ने मेहनत करके अच्छी फसल पैदा की। कुछ दिन बाद जब पैसे आने लगे तो उन्होंने खेत पर मजदूर रख दिये। सरला अब गांव के बच्चों को पढ़ाती थी। कम खर्च में सुकून की जिन्दगी बीत रही थी।

सरला जी को एक तसल्ली और थी। गांव में ही कोई लड़का देख कर कम खर्च में सीमा की शादी हो जायेगी। क्योंकि यहां शहरों की तरह दिखावा नहीं होता।