गरीब की दोस्ती | Friendship Story in Hindi

Friendship Story in Hindi
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Friendship Story in Hindi : ‘‘साहब मैं आपका सामान उठा लूं क्या?’’ साहिल अभी बस से उतरा ही था कि किसी की आवाज सुनकर चौंक गया। पीछे मुड़ कर देखा तो एक उसकी ही उम्र का लड़का फटे पुराने कपड़े पहने उसके सामान की तरफ देख रहा था।

साहिल ने उसे टालते हुए कहा – ‘‘नहीं मैं सामान खुद उठा लूंगा।’’

यह सुनकर वह लड़का थोड़ा सा निराश हो गया और बोला – ‘‘साहब कुछ भी दे दीजियेगा। बहुत मजबूर हूं कुछ खाने का इंतजाम हो जायेगा।’’

साहिल झुंझला कर उसकी ओर देख रहा था। उस लड़के की आंखों में उसे आंसू नजर आ रहे थे। फिर उसने गौर से उसे देखा तो समझ में आया यह तो उसके बचपन का दोस्त राहुल है। इस हाल में?

साहिल ने उससे कहा – ‘‘पहले मेरे साथ चलो।’’

वह उसे पास के एक ढाबे पर ले गया।

‘‘क्या खाओगे?’’ साहिल के पूछने पर लड़के ने कहा – ‘‘नहीं साहब अगर आप सामान उठवाओगे तो ही मैं कुछ लूंगा।’’

साहिल हसते हुए बोला – ‘‘हां मैं जानता हूं तुम बहुत खुद्दार हो किसी की मदद नहीं लोगे। सामान बाद में उठा लेना पहले कुछ खा लो। बैठो मैं अभी आया।’’

लड़का डरते-डरते सामने पड़ी मेज कुर्सी पर बैठ गया।

साहिल कुछ देर में आकर उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है। साहिल उससे पूछता है – ‘‘तुम इस हाल में कैसे? मेरा मतलब है कुछ अपने बारे में बताओ।’’

राहुल ने बताया – ‘‘साहब मेरे पिता इसी गांव में एक किसान थे। गांव के जमींदार से कर्ज लेकर उन्होंने फसल लगाई थी। लेकिन सारी फसल खराब हो गई। कर्ज का ब्याज बढ़ता गया, जमींदार ने खेतों पर बैलो पर और घर पर कब्जा कर लिया। पिताजी ये सब बर्दास्त न कर सके और फांसी लगा ली।’’

मैं तब छोटा था कुछ दिन बाद मां भी चल बसी। स्कूल जाना तो दूर गांव में कोई काम न मिला भूखे मरने लगा। तब से जो भी काम मिलता है वह कर लेता हूं दोपहर को बस के आने पर कोई कोई सवारी सामान उठवा लेती है तो खाने का जुगाड़ हो जाता है।’’

तभी खाना आ गया। खाना देख कर राहुल बोला – ‘‘साहब ये तो बहुत महंगा होगा मेरी मजदूरी तो बस दस रुपये बनती है। ये सब मैं कैसे चुका पाउंगा।’’

साहिल हसते हुए बोला – ‘‘अभी मैं आया हूं वापस भी जाउंगा तब मेरी सामान उठा लेना।’’

साहिल उसे जानबूझ कर अपनी पहचान नहीं बता रहा था। उसे पता था अगर उसने ऐसा किया तो राहुल उससे मदद नहीं लेगा।

राहुल बहुत भूखा था वह जल्दी जल्दी खाना खाने लगा।

इधर साहिल कुछ देर के लिये पुराने दिनों में खो गया। उस समय दोंनो एक ही स्कूल में पढ़ते थे। दोंनो साथ खेलते थे। राहुल पढ़ने में बहुत तेज था। उसमें और साहिल में हमेशा फर्स्ट आने की होड़ लगी रहती थी।

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साहिल के पिता उसी स्कूल में अध्यापक थे। साहिल के पिता का ट्रांसफर हो गया तो साहिल स्कूल छोड़ कर शहर चला गया।

आज वह कॉलेज में पढ़ता है। छुट्ट्यिों में गांव के पुराने दोस्तों से मिलने चला आया। वैसे उसके चाचा भी इसी गांव में रहते हैं।

साहिल को यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी, कि उसका दोस्त उसे इस हाल में मिलेगा।

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साहिल अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था तभी राहुल ने उसे कहा – ‘‘साहब मेरा खाना हो गया चलिये आपका सामान उठा लेता हूं।’’

साहिल ने जाबाब दिया – ‘‘अभी चलते हैं बैठो और कुछ अपने बारे में बताओ। अब कहां रहते हो और आगे क्या करोगे।’’

राहुल ने जाबाब दिया – ‘‘साहब क्या करोगे मेरे बारे में जानकर मेरे जैसे लोग ऐसे ही सड़क पर मजदूरी करते रहते हैं और एक दिन ऐसे ही मर जाते हैं। एक समय था। हमारे पास भी सब कुछ था। वो जो सामने आप स्कूल देख रहे हैं। मैं वहां पढ़ा करता था।’’

साहिल बोला – ‘‘अब पढ़ने का मन नहीं करता?’’

राहुल बोला -‘‘साहब माता पिता का साया क्या होता है ये उनके जाने के बाद पता लगता है। मेरे पिता मुझे सरकारी अफसर बनाना चाहते थे।’’

साहिल उसकी बातें गौर से सुन रहा था। राहुल को एक पल के लिये भी यह एहसास नहीं हुआ कि यह तो उसका बिछुड़ा हुआ दोस्त है। क्योंकि साहिल के नयन नक्श से लेकर उसका पहनावा सब बदल चुका था।

राहुल ने पूछा – ‘‘साहब आप यहां किसके घर आये हैं?’’

साहिल ने अपनी पहचान छिपाते हुए कहा – ‘‘नहीं बस ऐसे ही गांव घूमने आया था। यहां कोई होटल मिल जायेगा रुकने के लिये।’’

‘‘हां साहब बस स्टेंड के पीछे ही एक होटल है आपके शहर जैसा तो नहीं पर ठीक ठाक है मैं आपको वहीं ले चलता हूं।’’ राहुल बोला।

साहिल ने हां में सर हिलाया राहुल सामान लेकर आगे आगे और साहिल उसके पीछे पीछे चलने लगा। कुछ ही देर में वे होटल में पहुंच गये।

साहिल ने एक कमरा लिया। राहुल उससे कहने लगा – ‘‘साहब मैं चलता हूं जब आपको जाना हो बता देना मैं आपका सामान लेने आ जाउंगा।’’

साहिल बोला – ‘‘अरे रुको ये कमरा मैंने दो लोगों के लिये लिया है। तुम मेरे साथ रहोगे।’’

राहुल बोला – ‘‘नहीं साहब कहां मैं और कहां आप वैसे भी मैं तो कहीं भी सो जाता हूं। मेरा बिस्तर एक पेड़ के उपर रखा होता है। वहीं पेड़ के नीचे चबूतरे पर सो जाता हूं। मुझे जाने दो साहब।’’

साहिल बोला – ‘‘मुझे तुमसे बहुत सी बातें करनी है जब तक मैं यहां हूं तुम मेरे साथ रहोगे। मैं यहां किसी को जानता नहीं हूं। तुम मुझे पूरा गांव घुमाओगे।’’

राहुल कुछ नहीं बोला कमरे में सामान रखने के बाद साहिल, राहुल को लेकर एक कपड़े की दुकान पर पहुंचा। उसे नये कपड़े दिलवाये। नये जूते दिलवाये। फिर उसे लेकर होटल पर आया उसने राहुल की जरूरत का हर सामान खरीदा और उससे कहा तुम नहा कर ये कपड़े पहनों मैं अभी आता हूं।

राहुल को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने नहा धोकर नये कपड़े पहने अपने आप को शीशे में देख ही रहा था तभी साहिल आ गया। राहुल अपने कपड़ों को देख कर रो रहा था।

साहिल बोला – ‘‘क्या हुआ कपड़े अच्छे नहीं हैं।’’

राहुल बोला – ‘‘नहीं साहब मां की याद आ गई वो अपने हाथ से सिल कर कपड़े पहनाया करती थी। कल में आपको अपना घर दिखाउंगा। जो जमींदार ने हथिया लिया।’’

साहिल उससे बैठ कर बातें करने लगा – ‘‘कितना कर्जा था तुम्हारा?’’

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राहुल ने कहा – ‘‘साहब सब मिला कर पचास-साठ हजार था। अब तो अस्सी नब्बे हजार हो गया होगा।’’

काफी देर इधर उधर की बातें करने के बाद दोंनो सो गये। सुबह साहिल राहुल को लेकर गांव घूमने गया। वहां राहुल ने अपना घर दिखाया जो बंद था।

फिर वह उस पेड़ के नीचे ले गया जहां कल तक वह सोता था।

राहुल बोला – ‘‘साहब यह पेड़ ही मेरे मां-बाप है। मैं यहीं सोता हूं।

साहिल बोला – ‘‘राहुल मैंने तुमसे झूठ बोला था। मैं गांव घूमने नहीं सिर्फ तुमसे मिलने आया था।’’

यह सुनकर राहुल चौंक गया।

साहिल ने बताया – ‘‘मैं तुम्हारे बचपन का दोस्त साहिल हूं।’’

यह सुनकर राहुल गौर से साहिल के चेहरे को देखने लगा। उसे अब उसमें अपना दोस्त नजर आने लगा। उसकी आंखों से टप-टप आंसू बह रहे थे।

‘‘साहब आप।’’

वह कुछ बोलता इससे पहले साहिल ने कहा – ‘‘साहब नहीं साहिल तुम्हारा दोस्त।’’

राहुल कुछ बोल न सका। वह बस एकटक साहिल को देखे जा रहा था। उसके अंदर का सैलाब अब उमड़ने लगा था। इतने सालों का दर्द उसकी आंखों से बह रहा था।

आज उसका कोई अपना उससे मिलने आया। इस बात पर अभी भी उसे विश्वास नहीं हो रहा था।

साहिल ने उसे चुप कराया फिर वह उसे लेकर अपने चाचा के घर गया।

साहिल के चाचा सब पहले से जानते थे। साहिल ने उनसे कुछ बात की। साहिल के चाचा एक सम्पन्न किसान थे। उन्होंने अपने साथ कुछ और किसानों को इकट्ठा किया और जमींदार के घर पहुंच गये।

साहिल के चाचा ने जमींदार से पूछा – ‘‘इसके पिता पर कितना कर्ज है?’’

जमींदार ने अकड़ से कहा – ‘‘कौन चुकायेगा। इसके पास तो फूटी कौड़ी नहीं है। नहीं तो इसका बाप फांसी नहीं झूलता। सब मिला कर एक लाख है।’’

साहिल ने अपने चाचा को इशारा किया उन्होंने बैग से एक लाख रुपये निकाल कर जमींदार के सामने रख दिये और कहा – ‘‘इसके खेत, मकान और बैल। अभी वापस चाहिये।’’

जमींदार यह देख कर घबरा गया। लेकिन इतने लोगों के सामने कर भी क्या सकता था। घर की चाभी और कागज वापस कर दिये। बैल उसे घर भिजवा दिये।

वहां से निकल कर साहिल बोला – ‘‘चाचाजी मैं शहर पहुंचते ही आपके पैसे लौटा दूंगा।’’

चाचाजी ने कहा – ‘‘कोई बात नहीं बेटा तुम बहुत नेक काम कर रहे हो।’’

फिर उन्होंने और किसानों के सामने राहुल से बोला – ‘‘बेटा तुम्हें तुम्हारा सब कुछ वापस मिल गया। अब अपने खेतों पर खेती करो। हम सारे किसान तुम्हारा साथ देंगे।’’

यह सुनकर सब किसान तैयार हो गये – ‘‘हां बेटा अब वो जमींदार तुम्हारी तरफ आंख भी नहीं उठा सकेगा।’’

साहिल ने राहुल को खेती करने के लिये बीस हजार रुपये और दिलवा दिये।

राहुल उसके पैरों में गिर पड़ा। उसे उठा कर साहिल ने कहा – ‘‘दोस्त अब तुझे आगे निकल कर दिखाना है। अगली बार जब मैं गांव आउं तो मेरा दोस्त मुझे खुशहाल मिलना चाहिये।’’

यह कहकर साहिल ने राहुल को गले लगा लिया।

अगले दिन साहिल शहर चला गया। वहां से उसने अपने चाचा के पैसे बैंक में जमा करवा दिये।

इसके छः महीने बाद एक दिन साहिल दरवाजे की घंटी सुनकर दरवाजा खोलने गया तो देखा सामने राहुल खड़ा था।

छः महीने में बिल्कुल बदल गया था। साहिल ने उसे गले से लगा लिया। अंदर आकर उसने साहिल के माता पिता के पैर छुए।

साहिल बोला – ‘‘अचानक यहां कैसे सब ठीक है न उस जमींदार ने परेशान तो नहीं किया।’’

राहुल बोला – ‘‘नहीं यार सब ठीक है। तेरे चाचा और दूसरे किसाने ने मेरी बहुत मदद की। अब तो सब ठीक है। मेरी फसल भी अच्छी उसकी कमाई से तेरा कर्ज चुकाने आया हूं। ये बीस हजार हैं। बाकी धीरे धीरे चुका दूंगा।’’

साहिल बोला – ‘‘तू मेरा भाई है मैंने कोई कर्ज नहीं दिया था तुझे, तूने कैसे सोच लिया ये मैं नहीं ले सकता।’’

लेकिन राहुल जिद करने लगा तब साहिल के पिता ने कहा – ‘‘बेटा रख लो ये इसकी खुद्दारी है। जो शिक्षा मैंने दी थी। यह उसकी का पालन कर रहा है।’’

साहिल पैसे रख लेता है। फिर राहुल शर्माते हुए उसे अपनी शादी का कार्ड पकड़ा देता है।

साहिल कहता है – ‘‘अरे ये क्या तू शादी कर रहा है।’’

तभी साहिल के पिता ने कहा – ‘‘हां जब तूने हमें सब बताया तभी मैंने तेरे चाचा से इसके लिये अच्छी सी लड़की देखने के लिये कहा था। कब तक घर में अकेला रहेगा।’’

राहुल बोला – ‘‘मैं आप लोगों का अहसान जिन्दगी भर नहीं भूल सकता। मेरी तो कोई औकात नहीं थी।’’

साहिल बोला – ‘‘सब उपर वाला करता है। सब उसी के हाथ में हैं तेरे अच्छे दिन आने थे। मैं नहीं आता मदद करने तो उपर वाला किसी और को भेज देता।’’

कुछ दिन बाद साहिल अपने परिवार के साथ राहुल की शादी में पहुंच गया। उन्हें देख कर राहुल बहुत खुश हुआ। उनके साथ पूरा गांव दोंनो की दोस्ती की मिसाल देने लगा।

Image Source : Playground

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.