गुमशुदा | Missing Kids Story in Hindi

missing kids story in hindi

Missing Kids Story in Hindi : बबलू अभी घर से निकल कर गली में खेलने गया ही था कि उसकी मम्मी शीला ने आवाज दी:

शीला: बेटा घर में आ जा बाहर इतना ट्रेफिक चल रहा है कहीं किसी गाड़ी से टक्कर न हो जाये।

बबलू: मम्मी आप मुझे पार्क में तो ले नहीं जाती। गली में खेलने नहीं देती। मैं क्या करूं।

शीला सोच में पड़ गई। उसे घर के काम के साथ साथ कई घरों में साफ सफाई और झाड़ू पौंछे का काम करने के लिये भी जाना पड़ता था, इसलिये समय ही नहीं मिल पाता था।

शीला: तू घर में ही खेला कर कल मेरी छुट्टी है। कल तुझे पार्क में ले जाउंगी, जितना मर्जी खेल लिया कर।

बबलू मम्मी की बात मान कर घर में आ गया।

शाम को वह सुनीता जी के घर का काम निबटा का निकलने ही वाली थी। तभी सुनीता जी ने टोका:

सुनीता जी: शीला कल की छुट्टी मत करना कल बहुत काम है। कल मेरे गुड्डू का जन्मदिन हैै। बहुत काम होगा।

शीला: लेकिन मालकिन कल तो मुझे अपने बेटे को कहीं लेकर जाना है मैं नहीं आ सकती।

सुनीता जी: फिर किसी दिन ले जाना बेटे को कल तो आना ही पड़ेगा नहीं तो दुगने पैसे काट लूंगी।

शीला चुपचाप मन मार कर घर की ओर चल दी।

अगले दिन वह सुबह तैयार हो रही थी। तभी बबलू उसके पास आया।

बबलू: मम्मी बड़ी जल्दी तैयार हो गईं। रुको मैं भी तैयार हो जाता हूं आज बहुत देर पार्क में खेलेंगे।

शीला: नहीं बेटा आज नहीं आज मुझे काम पर जाना हैै। तू घर में खेल ले किसी और दिन चलेंगे।

बबलू: आप हमेशा ऐसे ही करते हो, मुझे आपसे बात नहीं करनी।

यह कहकर बबलू एक कोने में रूठ कर बैठ जाता है। शीला को देर हो रही थी। वह जल्दी जल्दी काम पर जाने के लिये निकल गई।

उसके जाने के बाद बबलू ने सोचा मम्मी तो ऐसे ही बहाने बनाती रहेगी। क्यों न मैं खुद पार्क में चलूं खेल कर वापस आ जाउंगा। मम्मी को पता भी नहीं चलेगा।

उसने अपने घर का दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया और पार्क की ओर चल दिया। पार्क में जाकर वह झूलों पर झूलता कभी दौड़ लगाता। उसे बहुत मजा आ रहा था।

इधर शीला जल्दी जल्दी काम निबटा रही थी आज उसे केवल एक ही घर में काम करना था। उसने सोचा जल्दी से काम निबटा कर घर पहुंच जाउंगी शाम को बबलू को पार्क में ले जाउंगी।

सारा काम निबटा कर उसने सुनीता जी से कहा:

शीला: मालकिन सारा काम हो गया मैं आ जाउं।

सुनीता जी: चल ठीक है ये ले ये रख ले बेटे के जन्मदिन की खुशी में तू भी मिठाई खा।

उन्होंने एक मिठाई का डिब्बा और कुछ पैसे शीला को दिये।

शीला जल्दी से मिठाई और पैसे लेकर घर की ओर चल दी। घर पहुंच कर उसने देखा घर में ताला लगा हुआ है। यह देख कर वह घबरा गई। बबलू कहां गया? उसने आस पड़ोस में पता किया लेकिन बबलू का कहीं अता पता नहीं था। पड़ोस के कुछ लोग इकट्ठे हो गये। सभी बबलू को ढूंढने लगे।

बबलू शीला का एकमात्र सहारा था। उसके पति का कुछ साल पहले देहान्त हो चुका था।

शीला का रो रो कर बुरा हाल था। तभी उसे ख्याल आया कि बबलू पार्क में जाने की जिद कर रहा था। वह भागी भागी पार्क में पहुंची। अधेरा होने लगा था पार्क में कोई भी नहीं था। वह बबलू – बबलू आवाज देकर पार्क में इधर उधर घूम रही थी। लेकिन वहां काई भी नहीं था। कुछ देर बाद वह घर वापस आ गई।

शीला का रो रो कर बुरा हाल था। वह अपने आप को कोस रही थी। अगर आज वह काम पर न जाती तो बबलू घर छोड़ कर नहीं जाता।

आस पड़ोस के सभी लोग बबलू को ढूंढ रहे थे लेकिन वह कहीं नहीं मिला। शीला ने सुनीता जी को फोन कियाः

शीला: मालकिन मेरा बेटा बबलू तो आपके यहां नहीं आया।

यह कहकर शीला रोने लगी। सुनीता जी ने उसे चुप कराया और कुछ ही देर में वे अपने पति के साथ शीला के घर पहुंच गई।

सुनीता जी: शीला चिन्ता मत कर बबलू मिल जायेगा। इनकी पुलिस में बहुत जान पहचान है तू बबलू का फोटो दे दे।

कुछ ही देर में बबलू का फोटो सब पुलिस स्टेशन में पहुंच गया। सुनीता जी के पति की जान पहचान के कारण पुलिस तेजी से बबलू को ढूंढने लगी।

लेकिन बबलू का कुछ पता नहीं लगा रात के ग्यारह बज गये थे।

तभी एक ऑटो शीला के घर के बाहर आकर रुका। उसमें से बबलू उतरा। उसे देख कर शीला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। तभी ऑटो में से एक औरत उतरी। उन्होंने बताया कि यह पार्क में खेलने के बाद पार्क के दूसरे गेट से बाहर निकल गया वहां जाकर रास्ता भूल गया।

मैं अपने ऑफिस से आ रही थी। यह सड़क किनारे बैठा रो रहा था। मैंने ऑटो किया और बहुत देर से घूम रहे हैं अब इस सड़क पर आकर इसने अपना घर पहचाना।

शीला ने उनका बहुत धन्यवाद किया। वह महिला खुशी खुशी उसी ऑटो में बैठ कर वापस चली गईं।

बबलू: मम्मी मुझे माफ कर दो मुझे अकेले नहीं जाना चाहिये था।

शीला: हां बेटा आगे से मत जाना।

आगे से चाहें कितना भी जरूरी काम हो सुनीता सप्ताह में एक दिन की छुट्टी करके अपने बेटे के साथ समय बिताती थी।

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