नीले नखून Part 1 | Horror Story Blue Nails

Horror Story Blue Nails

Horror Story Blue Nails : कल्पना ने घर में देखा तो चिल्ला कर पड़ी – ‘‘ये पानी कहां चला गया। एक बरतन में भी पानी नहीं है।’’

कल्पना की मां साधना जी ने कहा – ‘‘बेटी आज मुझे बुखार था पानी लेने नहीं जा पाई।’’

‘‘ओ हो मां अब पानी के बगैर कैसे काम चलेगा। रुको मैं कुएं से पानी लाती हूं।’’

कल्पना ने जैसे ही घड़ा उठाया। साधना जी ने उसे रोकते हुए कहा – ‘‘नहीं बेटी पानी लेने मत जा कुएं के पास खतरा है। वहां रात में कोई नहीं जाता।’’

कल्पना ने कहा – ‘‘मां कैसी बात करती हों मुझे प्यास लगी है आप इधर उधर की बातें कर रही हों। मैं अभी गई और पानी लेकर आई।’’

साधना जी ने कहा – ‘‘नहीं मैंने कहा न वहां मत जा कुऐ के पास आत्माओं का वास है।’’

लेकिन कल्पना नहीं मानती वह चली जाती है। काफी समय बीता जाता है। साधना जी किसी तरह बिस्तर से उठ कर दरवाजे तक आती हैं। पड़ोस में रहने वाले पारस को आवाज देती हैं।

पारस उनके पास आता है – ‘‘क्या हुआ चाची क्या बात है आपको तो बुखार था यहां उठ कर क्यों आ गईं।’’

साधना जी वहीं दरवाजे पर बैठ जाती हैं – ‘‘बेटा कल्पना कुएं पर पानी लेने गई है अभी तक नहीं आई।’’

यह सुनकर पारस चौंक जाता है – ‘‘क्या कह रही हों चाची तुमने कल्पना को अकेले इस समय कुएं पर भेज दिया। जरा सोचो तो वहां अगर कोई आत्मा ने उस पर कब्जा कर लिय तो क्या होगा।’’

‘‘बेटा तू जाकर देख आ जरा कल्पना को।’’ यह सुनकर पारस ने मना कर दिया – ‘‘नहीं चाची मैं नहीं जा सकता।’’

तभी सामने से कल्पना आती दिखाई देती है। उसे देख कर पारस कहता है – ‘‘लो चाची आ गई तुम्हारी बेटी।’’

‘‘कल्पना कहां रह गई थी तू इतनी देर हो गई।’’ कल्पना यह सुनकर गुस्से से पारस को देखती है -‘‘इसने ही भड़काया होगा तुझे। चल भाग यहां से नहीं तो अभी तेरा सिर फोड़  दूंगी।’’

यह सुनकर पारस चला गया। साधना जी ने कहा – ‘‘बेटी ऐसे क्यों करा तूने जानती है पारस ने हमारी कितनी मदद की है। एक आवाज में दौड़ा चला आता है।’’

‘‘सुन बुढ़िया मैं किसी की बेटी नहीं हूं। आज के बाद कोई इस घर में नहीं आयेगा तू भी चुपचाप पड़ी रह ज्यादा बक बक की तो तुझे जान से मार दूंगी।’’ कल्पना का बदला हुआ रूप देख कर साधना जी घबरा जाती हैं।

सुबह तक उनका बुखार उतर जाता है। सुबह होते ही कल्पना खेत पर चली जाती है। उसके जाने के बाद साधना जी गांव में रहने वाली एक देवी की पुजारिन शारदा के पास जाती हैं।

शारदा ने साधना को देख तो बोली – ‘‘आ गई मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी। बेटी को संभाल कर न रख सकी। आ गई वो भी चुड़ेल के कब्जे में।’’

यह सुनकर साधना जी रोने लगती हैं – ‘‘मांजी आपको कैसे पता वो बस कल पानी लेने गई थी। जब से वापस आई है उल्टा सीधा बोल रही है।’’

शारदा जी ने कहा – ‘‘मैं जानती हूं। वो उस नीले नखून वाली चुड़ेल के कब्जे में आ गई है। तू देखती रहना उसके बायें पैर के अंगूठे का नखून हल्का नीला होगा। धीरे धीरे वह ज्याद नीला होता जायेगा जब वह नीले से काला होने लगा तब समझ लियो तेरी बेटी खत्म वो चुड़ेल उसे अपने साथ ले जायेगी।’’

यह सुनकर साधना जी ने शारदा जी के पैर पकड़ लिये – ‘‘बचा लो मेरी बेटी को उसके सिवा मेरा कोई नहीं है।’’

शारदा जी ने आंख बंद करके कुछ मंत्र पढ़े और कहा – ‘‘वह बहुत शक्तिशाली है। मैं कुछ नहीं कर सकती। वैसे भी अब उसे रख कर क्या करेगी। वह जितनी जल्दी मर जाये अच्छा है। वरना अगर उसे गांव की कोई भी कुंवारी लड़की अकेले में मिल गई तो वो उसे भी अपने जैसा बना लेगी। गांव में कम से कम और लड़कियां तो बच जायेगी।’’

साधना जी ने पुजारिन के पैर पकड़ कर बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन शारदा जीने उनकी कोई मदद नहीं की उन्होंने बस इतना कहा – ‘‘अपनी बेटी को किसी तरह रात के समय में घर में बंद करके रख इससे गांव के लोग बच जायेंगे।’’

साधना जी रोती हुई अपने घर आ जाती हैं। कुछ देर बाद कल्पना भी घर आ जाती है। साधना जी उसे खाना परोस कर देती हैं। तभी उनका ध्यान उसके अंगेठे पर जाता है। वह हल्का सा नीला था। यह देख कर वे कल्पना से पूछती हैं – ‘‘बेटी ये तेरा अंगूठा लाल कैसे हुआ।’’

‘‘मुझे भूल जाओ मां कल जब मैं पानी लेने गई थी। तभी वहां एक औरत खड़ी थी उसका पूरा शरीर नीला था। वह पानी मांग रही थी मैंने उसे पानी पिलाया उसके बाद उसने मेरे सिर पर हाथ फेरा तब मैं बेहोश होने लगी। जब मुझे होश आया तो वहां कोई नहीं था। रात होते ही वो मुझ पर हावी हो जाती है। उसके अलावा मुझे किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता।’’

यह कहकर कल्पना रोने लगती है। साधना जी उसे चुप कराती हैं। कल्पना उनसे कहती है – ‘‘मां मुझे रात होने से पहले अंदर के कमरे में बंद कर दिया करो। नहीं तो पता नहीं मैं कर दूंगी। में अपने वश में नहीं रहती।’’

इसी तरह कुछ दिन बीत हाते हैं। कल्पना कमजोर होने लगती है और उसके पैर का नखून धीरे धीरे ज्यादा नीला होने लगता है।

साधना जी कई जगह कल्पना के लिये बात करती हैं। लेकिन कोई भी उस चुड़ेल से कल्पना को मुक्त नहीं करा पाता।

एक दिन साधना जी अपने घर के बाहर आंगन में बैठी थीं। तभी गांव वाले इकट्ठे हो जाते हैं।

मुखिया ने कहा – ‘‘साधना बहन कल्पना को लेकर इस गांव से चली जाओ वरना गांव वाले उसे जला कर मार देंगे।’’

साधना जी गुस्से से चिल्लाते हुए बोली -‘‘तुम सब लोग उस चुड़ेल को मारो जिसने मेरी बच्ची की ये हालत कर दी। उस पर कोई जोर नहीं चलता तो मेरी बच्ची को मारने आ गये। चले जाओ यहां से नहीं तो मैं रात को कल्पना को खुला छोड़ दूंगी। जब तुम्हारे बच्चे ऐसे तड़पेंगे तो तुम्हें पता लेगेगा।’’

यह सुनकर सब गांव वाले चले जाते हैं। एक दिन सुबह जब साधना जी कल्पना के कमरे का दरवाजा खोलती हैं। तो देखती हैं कल्पना मरी पड़ी है। उसका पूरा शरीर नीला हो चुका था।

बहुत हिम्मत करके कुछ लोग कल्पना का अंतिम संस्कार करते हैं। अंतिम संस्कार के बाद साधना जी सभी गांव वालों के सामने कहती हैं – ‘‘मेरी बच्ची तो चली गई किसी ने उसकी मदद नहीं की, लेकिन फिर भी मैं चाहती हूं, कि जो मेरी बच्ची के साथ हुआ वह किसी ओर के साथ न हो आप लोग मेरी मदद करो। उस चुड़ेल से बदला लेने में वरना एक दिन इस गांव में कोई जिन्दा नहीं बचेगा।’’

सभी गांव वाले सहमत हो जाते हैं। लेकिन यह सब कैसे होगा ?

कहानी के अगले भागों में जानेंगे।