अकेलापन | Loneliness Story in Hindi

Loneliness Story in Hindi
Loneliness Story in Hindi

Loneliness Story in Hindi : अमरनाथ जी बहुत परेशान थे। दो महीने बाद बेटी राधिका की शादी थी और भी तक कुछ भी इंतजाम नहीं हुआ था।

राधिका की मां को गुजरे दो साल हो गये थे, तब से अमरनाथ जी अपने आपको बहुत लाचार और अकेला महसूस करते थे। उनका एक बेटा भी था कुनाल जिसकी शादी अमरनाथ जी ने चार साल पहले ही की थी।

शादी का सारा काम कब निबट गया ये अमरनाथ जी को भी पता नहीं लगा। उन्होंने केवल पैसे का इंतजाम किया बाकी सारा काम उनकी पत्नी शारदा जी ने संभाल लिया था। सपना को बहु के रूप में पाकर राधिका की मां बहुत खुश थीं।

लेकिन समय बदला और कुनाल और सपना का व्यवहार पूरे घर से बदल गया। दोंनो अपने आप में मस्त रहते थे। दो साल पहले केंसर से जूझते हुए शारदा जी ने अंतिम सांस ली। उससे दो दिन पहले उन्होंने अपने पति से कहा – ‘‘देखो मैं अब जा रही हूं। मुझे माफ कर देना, आपको अब अपना ध्यान खुद रखना होगा। बेटी की शादी की जिम्मदारी आपके उपर है। बहु बेटे से ज्यादा उम्मीद मत रखना।’’

अमरनाथ जी बोले – ‘‘शारदा तुम्हारे बगैर यह सब कैसे होगा? मुझे तो इस सबकी कुछ समझ ही नहीं है।’’

शारदा जी की आंखो से आंसू बह रहे थे, जैसे सब कुछ अधूरा छूटा जा रहा था। फिर उन्होंने जल्दी से अपने आंसू पौंछते हुए कहा – ‘‘मैं कहीं नहीं जा रही हूं। हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी और राधिका बिल्कुल मेरी परछाई है। वह सब कुछ संभाल लेगी। बहु पर ज्यादा गुस्सा मत करना, बच्ची है अभी धीरे धीरे सब समझ जायेगी।’’

अमरनाथ जी आंखों में आंसू रोके शारदा जी की सारी बातें सुन रहे थे, लेकिन उन्हें पता था, कि अब जीवन उन्हें जीवनसाथी के बगैर ही काटना है।

आज शारदा जी को गये दो साल हो गये। इस बीच जीवन में इतना कुछ बदल गया। जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। बेटे बहु ने किनारा कर लिया था। वे अब अलग फ्लेट में रहते हैं।

बेटी की शादी की चिंता में अमरनाथ जी बहुत कमजोर हो गये थे। वे जो दुकान चलाते थे, वहां अब मॉल बन गया था। इसलिये उन्हें घर बैठना पड़ा। अब कुछ और करने की हिम्मत उनमें नहीं थी। जो जीवन भर जोड़ा था। उससे बिट्यिा की शादी करना चाहते थे। बेटी जॉब करती थी। उसी से घर खर्च चलता था।

राधिका अपने पापा का बहुत ध्यान रखती थी, लेकिन वह काम में इतनी व्यस्त रहती थी, कि उसे घर आकर भी ऑफिस का काम करना पड़ता था। इसलिये दोंनो टाईम का खाना, नाश्ता अमरनाथ जी को ही बनाना पड़ता था।

राधिका की शादी पक्की करके अमरनाथ जी को बहुत खुशी हो रही थी। वे घंटो अकेले शारदा जी की फोटो के सामने बैठ कर उनसे बात करने की कोशिश करते रहते थे। अपनी खुशी बताते थे। साथ ही उन्हें यह दुःख भी था। कि बेटी के हाथ पीले करते ही वे अकेले रह जायेंगे।

एक दिन अमरनाथ जी सुबह जल्दी ही घर से निकलने लगे, तो राधिका ने टोका – ‘‘पापा इतनी सुबह कहां जा रहे हो, नाश्ता भी नहीं किया आपने। रुको मैं नाश्ता बनाती हूं।’’

अमरनाथ जी बोले – ‘‘बेटी आज तो संडे है तू आराम से नाश्ता बना लेना मुझे जरूरी काम है। तेरी शादी की तैयारियां करने ही जा रहा हूं। आज तू नाश्ता और खाना बना लेना। दोपहर को मिलते हैं।’’

अमरनाथ जी यह कहकर जल्दी से निकल गये। राधिका वापस सोने चली गई। अमरनाथ जी ऑटो से एक बिल्डिंग में पहुंच गये। वहां एक फ्लेट के सामने उन्होंने डोरबेल बजाई।

सामने उनकी बहु सपना खड़ी थी – ‘‘ओहो पापाजी आप, यहां कैसे आपको यहां का पता कैसे मिला।’’

अमरनाथ जी खून का घूंट पीकर भी चुप रहे। क्योंकि उन्होंने शारदा जी को वचन दिया था कि अब वे बहु बेटे से कभी कुछ नहीं कहेंगे।

सपना ने अन्दर जाते हुए कहा – ‘‘कुनाल तुम्हारे पापा आये हैं।’’

कुनाल बाहर आया – ‘‘अरे पापा आप अन्दर आईये न, क्या बात है सब ठीक है न।’’

अमरनाथ जी उसके साथ अन्दर आ गये – ‘‘बेटा राधिका का रिश्ता पक्का कर दिया है। शादी में अब सिर्फ एक महीना बचा है। मैं चाहता हूं। कि तुम दोंनो पहले से घर आकर सारा काम संभाल लो। मैं अकेला पड़ गया हूं। तुम्हारी मां भी नहीं है। बेटी की शादी में मैं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता हूं।’’

इससे पहले कि कुनाल कुछ बोलता। सपना बोली – ‘‘देखिये पापा हमसे कोई उम्मीद मत रखिये। मुझे पता है आप पैसों के लिये यहां आये हैं। इस फ्लेट को देखिये इसकी इ एम आई में कुनाल की आधी सैलरी चली जाती है।’’

अमरनाथ जी का दिल भर आया मन किया कि अभी यहां से उठ कर चले जायें, लेकिन उन्होंने कहा – ‘‘नहीं नहीं बहु पैसों की जरूरत नहीं है। बस जिम्मेदारी उठाने की बात है। तुम दोंनो आओगे तो घर भरा भरा लगेगा। मैंने सब इंतजाम कर लिया है। लेकिन अगर लड़की का भाई नहीं होगा तो लोग बातें बनायेंगे।’’

कुनाल बोला – ‘‘पापा आप चिंता न करें हम एक सप्ताह पहले ही आ जायेंगे।’’

सपना ने गुस्से में कहा – ‘‘तुम्हें जाना हो तो चले जाना, मैं कहीं नहीं जाने वाली हूं। न एक सप्ताह पहले, न शादी के दिन।’’

अमरनाथ जी आखिरी उम्मीद भी टूट गई। क्योंकि उन्हें पता था, कि कुनाल सपना के बगैर नहीं आयेगा। वे चुपचाप उठ कर चल दिये। कुनाल ने बस इतना कहा – ‘‘पापा आप चिंता न करें, मैं इसे किसी तरह मना लूंगा।’’

अमरनाथ जी बिना कुछ बोले अपने घर की ओर चल दिये। घर पहुंच कर देखा तो राधिका उनका खाने पर इंतजार कर रही थी। वे न चाहते हुए भी अपने आंसू रोक नहीं पाये और राधिका के सामने फूट फूट कर रो पड़े।

राधिका ने उन्हें ढंढास बंधाते हुए कहा – ‘‘रहने दो पापा, भैया नहीं आते, न सही, मैं सारा इंतजाम कर लूंगी। आप चिंता न करें।’’

अमरनाथ जी ने अपने आंसू पौंछते हुए कहा – ‘‘बेटी वो बात नहीं है। दरअसल बारात आयेगी। अगर लड़की का भाई ही नहीं होगा तो सब बातें बनायेंगे। मैं तो इसीलिये उन्हें बुलाने गया था।’’

राधिका उन्हें समझती रही लेकिन अमरनाथ जी का दिल टूट गया था। वे उठे और अपने कमरे में जाकर पलंग पर लेट गये।

धीरे धीरे समय बीतने लगा। अमरनाथ जी अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गये। अब शादी में सिर्फ दो दिन बचे थे। सारी तैयारियां पूरी हो गईं थी।

घर में मेहमान आने लगे थे। रात के समय राधिका ने अमरनाथ जी से कहा – ‘‘पापा मैंने आपके लिये किसी से बात की है। आपकी हेल्प के लिये किसी को रखने के लिये वह आपके साथ ही रहेंगे, खाना बनाने कपड़े धोने से लेकर घर की सफाई सब करेंगे। उसकी सैलरी मैं दे दूंगी। आप चिंता न करें।’’

अमरनाथ जी बोले – ‘‘बेटी अब मुझे किसी बंधन में नहीं बधंना। मेरे लिये किसी से बात मत कर। अब मैं यहां से निकल जाना चाहता हूं। अलग अलग जगह घूमना चाहता हूं।’’

राधिका ने कहा – ‘‘ठीक है पापा आपको जहां भी जाना हो मुझे बता देना मैं आपकी टिकट, होटल सब बुक कर दूंगी।’’

अमरनाथ जी कुछ नहीं बोले शादी वाले दिन कुनाल और सपना दोंनो आये। अमरनाथ जी के पैर छुए तो उन्होंने फीकी मुस्कुराहट से उनका स्वागत किया। राधिक स्टेज पर बैठी थी।

कुनाल और सपना उसके पास गये। फोटो खिचवाया और खाना खाकर जाने लगे। अमरनाथ जी उन्हें देख रहे थे। कुनाल ने जेब से एक लिफाफा निकाला और लिखने वाले को देने लगा, तो अमरनाथ जी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा -‘‘बेटा इसे पैसे को अपने घर की ई एम आई के लिये संभाल कर रख। हमें इसकी कोई जरूरत नहीं है।’’

कुनाल और सपना दोंनो गुस्से से बाहर निकल गये। बेटी की विदाई होते ही अमरनाथ जी अपने आपको बहुत हल्का महसूस करने लगे।

अगले दिन तक सारे मेहमान भी विदा हो गये थे।

शादी का सारा काम निबट गया था। अमरनाथ जी अब अकेले रह गये थे। एक दिन उनके दमाद राकेश और राधिका दोंनो उनसे मिलने आये।

राकेश ने कहा – ‘‘पापा चलिये अब आप हमारे साथ रहेंगे।’’

अमरनाथ जी – ‘‘अरे नहीं बेटा मैं बेटी के घर कैसे रह सकता हूं।’’

तब राकेश ने कहा – ‘‘पापा हम यहां फ्लेट में रहते हैं और आपकी बेटी ने शादी से पहले शर्त रखी थी। कि पापा हमारे साथ रहेंगे। तभी शादी होगी।’’

राधिका बोली – ‘‘पापा जरूरी नहीं है। कि आप अकेले रहें। अगर आप अकेले रहेंगे, तो मैं भी सुखी नहीं रह पाउंगी।’’

राकेश ने कहा – ‘‘पापा हमें भी बड़ों का साथ चाहिये, आपको तो पता है मेरा परिवार गांव में रहता है। यहां एक ही शहर में आप अकेले रहें यह नहीं हो सकता। हमने पहले ही प्लानिंग करके एक बड़ा फ्लेट लिया था, जिससे हम सब साथ रह सकें।’’

राकेश और राधिका जिद करके अमरनाथ जी को अपने साथ ले गये। अमरनाथ जी सोच रहे थे। बेटे ने साथ छोड़ दिया और दामाद ने साथ दे दिया। क्या नियति है।

Read More

कोमल मनबुढ़ापे की लाठी
चुड़ेल के कहर से कौन बचेगाचुड़ेल का कहर
चांद की चांदनीमजबूरी
चाचाजी की आइसक्रीम100+ Horror Story in Hind
खजाने की चाबीपैसे का घमंड
पानी की प्यासगरीब की दोस्ती
मेरे पापा को छोड़ दोबेटी की जिद्द
नीलम की मौसी आलस की कीमत
चुड़ेल का सायागुमशुदा