Moral Story The Pain of Money : सोनू अभी भी एक रुपये का सिक्का लिये हलवाई की दुकान पर खड़ा था। उसके सामने शीशे के शोकेस में रंग बिरंगी मिठाईयां लगी हुई थीं।
साथ ही बराबर में गरम गरम जलेबी चाश्नी में डाली जा रही थीं, जिसकी महक माहौल को और भी मजेदार बना रही थी।
सोनू हलवाई चन्दन को गौर से देख रहा था, तभी चन्दन फिर से बोला – ‘‘अबे तुझे समझ नहीं आया कि एक रुपये में कुछ नहीं आता। जा कम से कम दस रुपये लेकर आ।’’
सोनू यह सुनकर थोड़ा उदास हो गया फिर बोला – ‘‘भैया कोई काम बता दो मैं कर दूंगा। साफ सफाई का, बरतन मांजने का, लेकिन कुछ खाने को दे दो। बहुत भूख लगी है।’’
चन्दन ने एक नजर सोनू को उपर से नीचे तक देखा – ‘‘अबे तू क्या काम करेगा। बित्ता सा तो है। किसी ने देख लिया तो दुकान बंद हो जायेगी। चल भाग यहां से।’’
चन्दन अपने नौकरों को डांट कर जल्दी जल्दी काम करने के लिये कह रहा था।
पूरे जिले में चन्दन हलवाई के समोसे और जलेबी मशहूर थीं। सुबह दुकान खुलते ही ग्राहकों का तांता लग जाता है।
सोनू वहां से जरा दूर हट कर एक बिजली के खम्बे के साथ खड़ा हो गया। सोनू एक फटी सी निक्कर एक टी-शर्ट पहले अभी भी ललचाई नजरों से उधर ही देख रहा था।
सोनू ने एक बार फिर से अपनी मुठ्ठी में बंद सिक्के को देखा, फिर वह सोचने लगा कि शायद आज भूखे ही रहना पड़ेगा। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
चन्दन का नौकर समोसों से भरी परात लेकर दुकान में घुस रहा था, तभी दो समोसे नीचे गिर गये। चन्दन उस पर जोर से चिल्लाया – ‘‘अबे दिखाई नहीं देता। देख कर काम कर। चल उठा इन्हें नहीं तो पैर में आयेंगे।’’
नौकर ने जल्दी से समोसे की परात रख दी। जहां बेचने वाले के चारो ओर लोग झुंड लगा कर खड़े थे और समोसों का इंतजार कर रहे थे।
उसने जल्दी से दोंनो समोसे उठाये। शायद दुकान पर कोई नहीं होता तो चन्दन कह देता कि इन्हें वापस परात में डाल दे, लेकिन ग्राहकों के सामने ऐसा नहीं कर सकता था, इसलिये उसने कहा – ‘‘एक काम कर वो सामने लड़का खड़ा है, उसे दे दे।’’
नौकर फटाफट सोनू को समोसे पकड़ा कर चला गया। सोनू ने वहीं जमीन पर बैठ कर एक समोसा खाना शुरू कर दिया।
समोसे खाकर उसने पास के नल से पानी पिया। भूख मिट गई वह चुपचाप वहां से निकल कर पास वाले चौराहे पर पहुंच गया। यही तो उसका ठिाकाना था।
जैसे ही रेड लाईट होती सोनू और उसके साथ के बच्चे एक कपड़ा लेकर गाड़ियों के शीशे साफ करते बदले में कोई एक दो रुपये दे देता नहीं तो ऐसे ही चला जाता था।
सोनू पूरे दिन भाग दौड़ कर पैसे कमाता शाम को वह बैठ कर पैसे गिन रहा था – ‘‘आज तो पूरे सत्तर रुपये कमा लिये।’’
वह पैसे लेकर घर की ओर चल दिया। पास ही में एक फ्लाईओवर के नीचे उसकी मां ने एक छोटा सा तम्बू लगा रखा था।
सोनू की मां उसी में लेटी हुई थी। सोनू ने आते ही कहा – ‘‘मां आज देख सत्तर रुपये कमा लिये। ला अपना दवाई का पर्चा दे मैं जल्दी से तेरी खांसी की दवा ले आता हूं।’’
उषा ने कहा – ‘‘बेटा इस पैसे से कुछ राशन ले आता तो मैं तेरे लिये कुछ पका देती।’’
सोनू बिना कुछ बोले खुद ही पर्चा ढूंढने लगा पर्चा मिलते ही वह तम्बू से बाहर जाते हुए बोला – ‘‘तेरी दवाई लाता हूं। बापू आ गया तो सारे पैसे छीन लेगा।’’
सोनू तेजी से बाहर निकल गया। इधर उषा सोच रही थी – ‘‘सच ही तो कह रहा है उसका पति मोहन सिंह सारा दिन जुआ खेलता रहता है। जब शाम होने लगती है। तो आज की दिहाड़ी में से पैसे लेने आ जाता है। उषा से तो मारपीट करके पैसे ले जाता था, लेकिन जब से वह बीमार पड़ी है। तब से सोनू से भी पैसे छीनने लगा है।’’
कुछ देर में सोनू आ गया। मां को दवा पिला ही रहा था। कि मोहनसिंह सामने आ गया – ‘‘क्यों बे ये दवा कहां से लाया?’’
सोनू – ‘‘बापू ये तो सरकारी दवाखाने से लाया हूं। ये लो बीस रुपये आज बस इतने बन पाये हैं।’’
मोहनसिंह ने गुस्से पैसे छीन लिये फिर सोनू से कहा – ‘‘झूठ बोला तो तुझे उल्टा लटका दूंगा। कल से कम से कम पचास रुपये मुझे चाहिये।’’
उषा ने लड़खड़ाती आवाज में कहा – ‘‘खुद तो कुछ काम करता नहीं छोटे से बच्चे की मेहनत की कमाई उड़ाता रहता है। मैं एक बार ठीक हो जाउं तो इसे लेकर कहीं और चली जाउंगी।’’
मोहनसिंह, उषा के मुंह नहीं लगना चाहता था। उसे दुकान बंद होने से पहले शराब जो लानी थी। वह चुपचाप निकल गया।
उषा ने सोनू से पूछा – ‘‘तूने कुछ खाया या नहीं?’’
सोनू बोला – ‘‘मां आज मुझे दो समोसे सुबह ही मैंने खा लिये अब तक भूख नहीं लगी है।’’
उषा की आंखों में आंसू भर आये – ‘‘बेटा भूख कहां से लगेगी, जब अपने मां बाप पर सारे पैसे लुटा देगा तो, रुक मेरे पास दस रुपये हैं, जा बाहर जाकर कुछ खा ले।’’
सोनू बिना कुछ बोले पैसे लेकर बाहर चला गया। भूख तो उसे लग रही थी। लेकिन अगर बापू को पैसे नहीं देता तो वह मां को मारता। इसलिये मां को बचाने के लिये उसने भूख को मार लिया।
कुछ देर बाद सोनू खाने के लिये बिस्कुट के दो पैकेट लाया एक मां को दिया और एक खुद खा लिया। उसके बाद थका हारा सोनू सोने के लिये मां के पास लेट गया। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई।
सुबह शोर मचने के कारण उसकी आंख खुली तो देखा, मां तम्बू के बाहर बैठी रो रही है। साथ ही पास में रहने वाली कुछ औरतें थीं।
सोनू उठ कर उसके पास पहुंचा – ‘‘मां क्या हुआ तुम रो क्यों रही हों।’’
उषा कुछ कह पाती तभी पास खड़ी करूणा जी ने सोनू को अपने पास लाकर खड़ा कर लिया – ‘‘बेटा तेरे पापा कल शराब पीकर घर आ रहे थे। तभी उनका एक्सीडेंट हो गया। वो अब नहीं रहे। कुछ लोग अस्पताल गये है उनकी लाश को लेने।’’
सोनू को एक बार झटका लगा, लेकिन वह यह समझ नहीं पा रहा था, कि पिता की मौत पर वह रोये या खुश हो, क्योंकि अब वह जितने भी पैसे कमायेगा, वह उसे अपनी मां पर खर्च करेगा।
कुछ ही देर में एक एंबूलेंस वहां आकर रुकी कुछ लोगों ने मोहनसिंह को उतारा। मौहल्ले वालों ने चंदा इकट्ठा करके मोहनसिंह का अंतिम संस्कार कर दिया। शाम तक सब अपने घर वापस आ गये।
सोनू एक कोने में बैठा था, उषा अभी भी रो रही थी। सबके जाने के बाद सोनू ने कहा – ‘‘मां अब बस भी करो तुम्हारी तबियत खराब हो जायेगी।’’
उषा ने सोनू को अपनी गोद में बिठाया, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा – ‘‘भगवान ने तेरे सिर से पिता का साया छीन लिया।’’
सोनू बोला – ‘‘अब हम चैन से रह सकेंगे मां, अब कोई हमारे पैसे नहीं छीनेगा।, पिता से तो हमें हमेंशा एक ही चीज मिली है, वो है पैसे का दर्द। अब तुम्हारा ढंग से इलाज होगा। आज से इस पैसे के दर्द से छुटकारा मिला। अब हमारा पैसा हमारा होगा।’’
उषा सोच रही थी – ‘‘मेरा बच्चा बिना बचपन देखे ही बड़ा हो गया। वैसे कह तो सही रहा है। उस आदमी ने दर्द के अलावा हमें दिया ही क्या है।’’
इधर सोनू कल से कमाये जाने वाले पैसों को जोड़ने की सोच रहा था। उसने निश्चय किया कि कल शाम को आते हुए एक गुल्लक जरूर लायेगा। जितने पैसे उसका बाप छीन लेता था, उन्हें वह उस गुल्लक में डालेगा।
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