Romantic Story in Hindi : कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया था। सभी खामोश थे। दीनानाथ जी को समझ नहीं आया कल तक चहकने वाली रचना और उसे देख कर खुश होने वाली शांति जी गुमशुम बैठी थीं।
दीनानाथ जी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा – ‘‘रचना क्या बात है। क्या तुम दोंनो में कुछ अनबन हुई है। या शादी की बात से कोई मनमुटाव हुआ है।’’
रचना ने एक नजर मां की ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर पापा से कहा – ‘‘पापा कुछ नहीं बस थोड़ी तबियत ढीली हो रही थी। बताईये क्या कह रहे थे। आप।’’
बेटी का जबाब सुनकर दीनानाथ जी पूरी तरह आश्वत हो गये थे कि कोई बात नहीं है।
शांति जी बिना कुछ बोले रसोई में जाकर काम में लग गईं। रचना ने पापा को दवाई दी। नींद की गोली होने के कारण वे कुछ ही देर में गहरी नींद में सो गये। रचना मम्मी के पास किचन में गई, लेकिन वे चुपचाप अपने काम में लगी हुई थीं।
रचना ने मां का हाथ पकड़ और उन्हें अपनी ओर करके बोली – ‘‘मम्मी मैं जानती हूं मैंने आपका बहुत दिल दुःखाया है, लेकिन मैं क्या करूं मुझे भी नहीं पता, कि ये सब कब हो गया। मैं जब कॉलेज गई थी, तो किसी से बात भी नहीं करती थी, लेकिन न जाने कब सचिन मेरी जिन्दगी में आ गया।’’
शांति जी ने कहा – ‘‘रचना तुझे यह समझ नहीं आया कि हम कैसे माहौल में रहते हैं। यह शहर नहीं है, कि तुम कुछ भी करो। यहां समाज के साथ चलना पड़ता है। तेरे पिता एक अध्यापक हैं। तुझे पता है उनकी कितनी इज्जत है गॉव में।’’
रचना ने मां को चटाई पर बैठाया और कहा – ‘‘मम्मी आपको मेरा साथ देना होगा। मुझे आप पर पूरा भरोसा है। मेरी मदद करो किसी तरह पापा को मना लो। अगर मेरी शादी सचिन से नहीं हुई तो हम दोंनो जान दे देंगे। यह हम पहले ही सोच चुके हैं।’’
रचना की बात सुनकर शांति जी अंदर से कांप गईं – ‘‘हे भगवान इस लड़की ने यह सब क्या कर डाला है।’’
रचना अपनी मम्मी की गोद में सिर रख कर लेट गई। वह अब सब कुछ हो जाने के लिये बेताब थी। कहीं न कहीं वह स्वार्थी हो चली थी।
वह अब सचिन को छोड़ कर अपने माता-पिता और गांव वालों के लिये कोई कुर्बानी नहीं देना चाहती थी।
शांति जी रचना के बालों को सहला रही थीं। शायद कल के चांटे के निशान उनके दिल पर अभी तक छपे थे। उन्होंने रचना से कहा – ‘‘बेटी एक बार फिर सोच ले। कहीं ऐसा न हो हम कहीं के न रहें।
अगर उस लड़के ने तुझे धोखा दे दिया तो क्या होगा? यहां गॉव में तो हम सबको जानते हैं।’’
रचना अपने सपनों में खोई थी। वह हल्के से मुस्कुरा कर बोली – ‘‘नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं होगा। वह मेरा जीवन भर साथ निभायेगा, आप एक बार उससे मिल तो लो।’’
‘‘उससे मिलने से पहले तेरे पापा को तो मना लूं।’’ शांति जी का जबाब सुनकर रचना बहुत खुश हो गई। उसे पता था, अगर मम्मी मान गईं, तो पापा भी मान जायेंगे।
तभी गिलास गिरने की आवज से दोंनो चौंक गईं। दोंनो भाग कर दीनानाथ जी के कमरे में पहुंची। कांच का गिलास गिरा हुआ था। जमीन पर कांच बिखरा पड़ा था। चना कांच समेटने के लिये कोई कागज ढूंढ रही थी। शांति जी ने अपने पति की ओर देखा उन्होंने रचना के हाथ को पकड़ा तो रचना चौंक गई, उसने मम्मी की ओर देखा उनके आंसू बह रहे थे – ‘‘मम्मी क्या हुआ?’’
तभी उसकी नजर अपने पापा पड़ी, गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा। आंखों में आंसू भरे हुए वे शांति जी को घूर रहे थे। शांति जी उनके पास आईं उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली – ‘‘आप गुस्सा न करें, आपकी तबियत खराब हो जायेगी। भगवान के लिये गुस्स न करें।’’
‘‘अब जीना कौन चाहता है? काश मैं ये सब देखने से पहले मर गया होता।’’ दीनानाथ जी यह कहकर चुप हो गये।
रचना की रूह कांप गई थी। पापा ने उसकी और मम्मी की सारी बातें सुन लीं थीं। रचना थर थर कांप रही थी।
अगले ही पल दीनानाथ जी ने चिल्लाते हुए कहा – ‘‘शांति जी इसे कहां चली जाये यहां से मैं इसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहता। आज ही रात की गाड़ी से इसे वापस भेज दो।’’
शांति जी बोली – ‘‘मेरी बात तो सुनिये इसे भेज दूंगी, बस आप गुस्सा मत कीजिये आपकी तबियत बिगड़ जायेगी।
मैं आपके हाथ जोड़ती हूं, गुस्सा मत कीजिये।’’
‘‘रचना तू अभी यहां से चली जा अपनी किसी सहेली के।’’ शांति जी ने गुस्से में रचना को कहा।
रचना चुपचाप घर से बाहर निकल कर अपनी सहेली आशा के घर पहुंच गई। वह अकेली थी। उसे रचना के बारे में सब पता था।
आशा ने रचना को देखा और बोली – ‘‘क्या हुआ सब ठीक है न, मुझे लग रहा है कि तेरे घर पर सब पता लग गया।’’
रचना के आंसू आ गये। वह बिना कुछ बोले आशा के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी। आशा उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन रचना का रोना रुक नहीं रहा था। जैसे किसी झनक के साथ अन्दर सब कुछ टूट गया। इस प्यार के चक्कर में वह अपने मम्मी पापा के दुःख का कारण बन गई थी।
आशा ने उसे पानी लाकर दिया। पानी पीकर रचना पास पड़े सोफे पर बैठ गई। उसने आशा को अपने पास बिठाया और बोली – ‘‘आशा मैं मर जाउंगी। कुछ समझ में नहीं आ रहा। क्या करूं एक तरफ मेरे मम्मी पापा हैं और दूसरी तरफ सचिन। मैं किसी को नहीं छोड़ सकती।’’
आशा ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा – ‘‘तू चिन्ता मत कर सब कुछ वक्त पर छोड़ दे। अब तेरे हाथ में कुछ नहीं है। तूने जो करना था वो कर दिया। अब बस एक बात मान ले, अगर सचिन तेरे भाग्य में होगा तो वह तुझे मिल जायेगा। घबरा मत, परेशान होने से कुछ नहीं होगा।’’
दोंनो सहेली बहुत देर तक बात करती रहीं। कुछ देर बाद शाम होने वाली थी। रचना, आशा को लेकर छत पर पहुंच गई। वहां जाते ही उसने सचिन को फोन किया और उसे सारी बात बता दी।
सचिन ने यह सुना और वह बोला – ‘‘रचना घबरा मत सब ठीक हो जायेगा। बस एक बार अपने मम्मी पाप से मेरी मुलाकात करवा दे। मैं किसी भी तरह उन्हें मना लूंगा।’’
रचना बोली – ‘‘हां शायद यही ठीक रहेगा। तुम रुको मैं पापा से बात करके तुम्हें बताती हूं।’’
फोन रख कर रचना पलटी तो सामने आशा खड़ी थी। आशा ने कहा – ‘‘रचना क्या कर रही है, अपनी जिन्दगी के साथ। तू पहले यह सोच कि तुझे पापा मम्मी चाहिये या सचिन?’’
रचना ने कहा – ‘‘लेकिन मुझे तो दोंनो चाहिये।’’
आशा यह सुनकर थोड़ा परेशान हो गई – ‘‘रचना तू दो नाव पर सवार होना चाहती है। जो कि दो अलग अलग किनारे पर जा रही हैं। ऐसे में या तो तुझे एक नाव छोड़नी होगी या फिर तू पानी में गिर जायेगी। अगर तू सचिन से प्यार करती है तो भूल जा सब कुछ अपना बैग उठा और जाकर सचिन से बोल वो तुझसे शादी कर ले। शादी के बाद आकर अपने मम्मी पापा को मना लेना। वे नहीं माने तो जाकर सचिन के साथ खुश रहना।’’
रचना गहरी सोच में पड़ गई फिर बोली – ‘‘नहीं मैं मम्मी पापा का दिल नहीं दुःखाना चाहती हूं। मैं उनकी रजामंदी से सचिन से शादी करना चाहती हूं।’’
आशा ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘रचना यह संभव नहीं है। अगर तू अपने मम्मी पापा का दिल रखना चाहती है तो सचिन को भूल कर अपने पापा के बताये रिश्ते को अपना ले। यहां रहकर यह सब संभव नहीं है। तुझे सचिन का साथ पाने के लिये अपने मम्मी पापा को छोड़ना पड़ेगा, साथ साथ ये गॉव भी छोड़ना होगा।’’
रचना ने आशा का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा – ‘‘क्या ये सही होगा’’
आशा यह सुनकर हसने लगी बोली – ‘‘पागल प्यार में सब सही होता है। अपने मनपसंद साथी को पाने के लिये तुझे अपना आशियाना छोड़ना ही पड़ेगी। एक बार जाकर अपने मम्मी पापा से बात कर। वे मान जाते हैं तो ठीक है वरना तू जाकर सचिन से शादी कर ले। बस एक बात का ध्यान रखना। सचिन को पहले पक्का कर ले क्योंकि एक बार तू यहां से गई तो वापस आने का कोई चांस नहीं है। सचिन तुझसे शादी तो करेगा न?’’
रचना ने हां में सिर हिलाया। दोंनो सहेली नीचे आ गई। रात होने को थी। रचना वापस अपने घर की ओर चल दी।
घर पहुंच कर रचना पापा के कमरे में जाने लगी, तभी उसकी मम्मी ने उसे हाथ पकड़ कर खींच लिया – ‘‘वहां मत जा अभी, वो बहुत गुस्से में हैं।’’
‘‘लेकिन मम्मी मुझे पापा से बात करनी है।’’ रचना ने हाथ छुड़ाते हुए कहा।
‘‘कल कर लेना बात रात को उन्हें आराम करने दे, शायद कल तक उनका गुस्सा कम हो जाये अभी तो वो तेरी एक भी बात नहीं सुनेंगे। मैं तुझसे भीख मांगती हूं। उनका हार्ट पहले ही बहुत कमजोर है। रुक जा।’’ शांति की आंखों में गुस्सा और नफरत साफ नजर आ रही थी।
रचना अपने कमरे में जाकर पलंग पर लेट गई। कुछ देर बाद सचिन का फोन आया, लेकिन रचना ने फोन काट कर उसे मैसेज कर दिया, कि कल बात करेंगे। अब तो बस उसे कल का इंतजार था। यह कल उसके आने वाले जीवन के लिये निर्णायक होने वाला था।
शेष आगे …


















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