आशियाना | Unconditional Love Story

Love Story In Hindi

Unconditional Love Story : रचना एक गाँव की रहने वाली लडकी की सच्चे प्यार को पाने की चाहत की कहानी

प्यार में जीने वाले दो प्रेमियों की कहानी, कैसे उन्होंने अपने प्यार के लिए संघर्ष किया।

रचना का एडमिशन दिल्ली के एक कॉलेज में हो गया। रचना बहुत खुश थी। रचना के पापा कानपुर के देहात के एक स्कूल में टीचर थे।

बेटी को इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे। तब रचना ने कहा – ‘‘पापा आप चिंता न करें मैं सब संभाल लूंगी और ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता।’’ अपने पापा को किसी तरह समझा बुझा कर रचना दिल्ली के लिये रवाना हुई।

घर से निकली तो मम्मी, पापा उसे बस में बैठाने आये। रचना के पापा दीनानाथ जी चाहते थे वे उसे दिल्ली तक पहुंचा कर आयें लेकिन रचना ने मना कर दिया। रचना की मां शांति जी की आंखे नम थी।

तीनों बस स्टेंड पर खड़े थे। कुछ ही देर में बस आ गई। रचना अपना सारा सामान बस में चढ़ाने लगी। फिर मम्मी के गले लग कर उसने विदा ली। बस में खिड़की के सहारे सिर टिका कर अपने गांव को निहार रही थी।

रचना को लग रहा था। जैसे सब छूटा जा रहा है। बस उसे कानपुर तक ले जाती वहां से उसे ट्रेन से दिल्ली जाना था।

रचना को बैठे बैठे बचपन की बातें याद आ रहीं थी। कैसे उसकी मम्मी उसे प्यार से खाना खिलाती थीं और उसके पापा सुबह-सुबह उसे उठा कर पढ़ने के लिये बिठा देते थे।

मम्मी पापा को याद करते करते एक बार तो उसका मन किया कि बस से उतर कर वापस चली जाये। रचना के मन में कई ख्याल उमड़ रहे थे – ‘‘मुझे नहीं जाना अपने मम्मी पापा को छोड़ कर, क्या हो जायेगा दिल्ली जाकर, ज्यादा पढ़ कर भी क्या करेगी। पढ़ाई पूरी करते ही शादी कर दी जायेगी।’’ अपना घर परिवार छोड़ कर जाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। वह बस से उतर जाना चाहती थी।

रचना की आंखे नम हो गई थीं। दुप्पटे से आंखों को पौंछते हुए उसके मन में कुछ और विचार आने लगे – ‘‘ऐसा भी तो हो सकता है। दिल्ली में पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी मिल जाये। एक मकान लेकर मम्मी पापा को यहीं बुला लूंगी। कुछ सालों की ही तो बात है।’’

इन्हीं ख्यालों में डूबती-उतरती रचना की तंद्रा तब टूटी जब कंडेक्टर ने आवाज लगाई – ‘‘कानपुर स्टेशन आने वाला है सभी सवारियां अपना सामान लेकर गेट पर आ जायें इसके बाद बस सीधे बस स्टेंड पर रुकेगी’’

रचना ने जल्दी से अपना बैग और सूटकेस संभाला और बस के रुकते ही वह कानपुर स्टेशन पर उतर गई।

बस से उतर कर उसे थोड़ा डर लग रहा था। अभी तक तो मम्मी पापा का साया था अपना गांव था अब वह शहर की भीड़-भाड़ के बीच अकेली खड़ी थी।

प्लेटर्फाम पर पहुंची तो ट्रेन खड़ी थी। रचना जल्दी से ट्रेन में चढ़ गई अपनी सीट पर पहुंच कर उसने सामान सेट किया और बैठ गई। ट्रेन यही से शुरू होती है इसलिये टाईम पर ट्रेन ने सरकना शुरू कर दिया।

बारह घंटे के बाद ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंची। रचना बाहर आई तो टैक्सी और ऑटो वाले उसके पीछे लग गये। रचना ने एक ऑटो को ठहरा लिया कॉलेज जाने के लिये। वह कॉलेज पहुंची वहां उसे होस्टल में कमरा मिल गया। कमरे में जाकर रचना ने सामान रखा और छोटे से बेड पर बैठ कर आराम करकने लगी।

तभी उसे याद आया कि मम्मी पापा ने खबर देने के लिये कहा था। मम्मी को फोन मिला कर पहुंचने की जानकारी देदी।

रचना की रूम पार्टनर प्रिया थी। जो कि उसकी सीनियर भी थी। बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। जल्द ही दोंनो में दोस्ती हो गई।

रचना ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया। कॉलेज में उसने देखा कि वहां स्टूडेंट पढ़ने कम और मौज मस्ती करने ज्यादा आते थे। रचना अपने खाली समय में लाईब्रेरी में बैठ कर पढ़ती रहती थी।

एक दिन वह पढ़ रही थी। तभी प्रिया को अपनी ओर आते देख कर वह मुस्कुराने लगी -‘‘अरे प्रिया तुम और लाईब्रेरी में तुम तो कभी यहां नहीं आती।’’

प्रिया ने फटाफट रचना की किताब बंद कर दी – ‘‘आज सब घूमने जा रहे हैं तू भी चल’’

रचना ने पीछा छुड़ाते हुए कहा – ‘‘प्रिया मुझे यह सब पसंद नहीं अभी बहुत पढ़ाई करनी है तुम सब जाओ।’’

लेकिन प्रिया नहीं मानी और उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गई। पूरा ग्रुप दिल्ली से कुछ दूर एक हिल स्टेशन पर पहुंच गया। सभी अपने पार्टनर के साथ घूम रहे थे।

रचना एक पेड़ के नीचे बैठ कर आसपास के नजारों को देख रही थी।

तभी उसी की क्लास में पढ़ने वाला सचिन उसके पास आया – ‘‘अरे रचना तुम यहां अकेले बैठे हो प्रिया कहां है?’’

रचना अचानक चौंक जाती है, क्योंकि इससे पहले उसने कभी सचिन से बात नहीं की थी – ‘‘वह यहीं होगी अभी आ जायेगी।’’

यह सुनकर सचिन हसने लगा – ‘‘यहां सब अपने पार्टनर के साथ घूम रहे हैं। वो तो अब वापिसी में ही मिलेगी।’’

यह सुनकर रचना भी हसने लगी – ‘‘तुम्हारी कोई पार्टनर नहीं है?’’

सचिन ने कहा – ‘‘नहीं अभी तक तो नहीं है।’’

दोंनो एक साथ बैठ कर बातें करने लगते हैं। रचना को सचिन के साथ बात करके अच्छा लग रहा था। कुछ देर बाद सचिन ने कहा – ‘‘वहां सामने कॉफी हाउस है क्या तुम मेरे साथ कॉफी पीने चलोंगी।’’

रचना सचिन के साथ चल देती है। काफी पीते पीते सचिन अपने बारे में रचना को बताता है कि वह एक बहुत बड़े बिजनेसमेन का बेटा है और पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने पापा का बिजनेस ही संभालने वाला था।

सचिन और रचना दोंनो में दोस्ती हो जाती है। दोंनो एक साथ कॉलेज आते, एक साथ लंच करते एक साथ वापस जाते थे। रचना का मन धीरे-धीरे पढ़ाई से उब गया था। उसे सचिन के साथ रहना अच्छा लगता था।

एक दिन प्रिया ने रचना को समझाया – ‘‘रचना तू जिस काम के लिये आई है उस पर ध्यान दे पढ़ाई बहुत जरूरी है। मुझे लगता है तू सचिन से प्यार करने लगी है। लेकिन बहुत सोच समझ कर कदम उठाना। उसके पापा करोड़पति हैं क्या वे तुझे स्वीकार करेंगे।’’

रचना हसते हुए बोली – ‘‘अरे तू कहां पहुंच गई हम दोंनो अच्छे दोस्त हैं बस।’’

प्रिया बोली – ‘‘बेटा मैंने तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है। जब तेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा तो तुझे प्यार हो गया है। अगर मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो एक हफ्ते तक सचिन से मत मिल।’’

रचना उसकी बात टालने के लिये बोल देती है – ‘‘हां हां इसमें कौन सी बड़ी बात है।’’

रचना ने बोल तो दिया लेकिन वह रात भर सो नहीं पाई। वह सचिन से दूर नहीं रह सकती थी। सुबह होते ही वह प्रिया से बोली – ‘‘हां तू ठीक कह रही थी। मुझे लगता है सचिन से प्यार हो गया है। लेकिन अब क्या करू।’’

प्रिया बोली – ‘‘बस कुछ नहीं इंतजार कर और देख उसे भी तुझसे प्यार हुआ है क्या वो अपने प्यार का इजहार करता है या सिर्फ टाईम पास कर रहा है।’’

इस बात को एक हफ्ता बीत जाता है। रचना और सचिन पहले की तरह मिलते रहते हैं। एक दिन रचना कुछ उदास बैठी थी। तभी सचिन ने उससे आकर कहा – ‘‘रचना मैं तुमसे प्यार करता हूं और अपनी पूरी जिन्दगी तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं। मैं जानता हूं हम दोंनो में बहुत फर्क है लेकिन चिन्ता मत करना मैं तुम्हारे लिये पूरी दुनिया से लड़ जाउंगा।’’

रचना तो यही सुनने को कबसे बेताब थी। सचिन की बातें सुनकर उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। सचिन ने यह देखा वह घबरा गया – ‘‘रचना मुझे माफ कर दो मेरा मन तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था। अगर तुम्हें मैं पसंद नहीं हूं तो हम केवल अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं।’’

रचना बोली – ‘‘बेवकूफ मैं तो कब से इंतजार कर रही थी कि तुम अपने प्यार का इजहार करो। ये तो खुशी के आंसू हैं। लेकिन क्या तुम्हारे घरवाले मानेंगे मेरा मतलब है पैसा की दीवार हम दोंनो के बीच खड़ी है।’’

सचिन बोला – ‘‘वह सब मैंने पहले ही सोच लिया है अगर मेरे पापा नहीं माने तो मैं अपना घर छोड़ दूंगा। तुम्हारे साथ जीवन बिताने के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूं।’’

यह सुनकर तो रचना सातवें आसमान पर थी। रचना और सचिन दोंनो एक दूसरे के साथ घंटों समय बिताते थे। कई बार तो दोंनो कॉलेज भी नहीं आते थे। इसका असर दोंनो की पढ़ाई पर भी पड़ रहा था।

एक तरफ रचना अपने माता पिता के सपने पूरे करने दिल्ली आई थी। नौकरी करके उनके लिये अच्छा सा घर खरीदने का इरादा रखती थी। दूसरी तरफ उसकी जिन्दगी बस सचिन के चारों ओर सिमट कर रह गई थी।

शेष अगले भाग में . . .

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