मामा भांजी | True Story Real Relationship

True Story Real Relationship
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True Story Real Relationship : रात के दो बज रहे थे। अरविंद जी गहरी नींद में सो रहे थे। तभी फोन की घंटी बजी। फोन की घंटी सुनकर उनकी पत्नी अलका भी जाग गई।

‘‘इतनी रात किसका फोन आया होगा।’’ अरविन्द जी ने उठ कर ऐनक लगाया और फोन देखा। किसी अन्जाने नम्बर से फोन था। उन्होंने फोन उठाया।

दूसरी तरफ से एक भारी भरकम आवाज में किसी ने कहा – ‘‘आप सुमन जी के रिश्तेदार हैं?’’

अरविन्द जी ने कहा – ‘‘हां जी मैं उनका भाई बोल रहा हूं। क्या बात है आप कौन हैं।’’

दूसरी ओर से वह व्यक्ति बोला – ‘‘मैं इंस्पेक्टर बोल रहा हूं गोलगंज थाने से आपकी बहन और जीजा का ऐक्सीडेंट हो गया है। उनकी कार एक ट्रक से टकरा गई है। एक छोटी बच्ची जो अपना नाम काव्या बता रही है। वह हमारे पास है आप जल्दी से हॉस्पिटल आ जाईये।’’

यह सुनते ही अरविन्द जी के हाथ से फोन छूट गया। उन्होंने अलका को सारी बात बताई। वे दोंनो जल्दी से तैयार होकर हॉस्पिटल पहुंचे वार्ड के बाहर एक बैंच पर एक लेडी कांस्टेबल के साथ काव्या बैठी रो रही थी। अलका ने उसे संभाला अरविन्द जी अन्दर गये। वहां इंस्पेक्टर और डॉक्टर दोंनो खड़े थे।

उन्होंने बताया कि उनकी बहन और जीजा अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह सुनकर अरविन्द जी रोने लगे। वो अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे।

डॉक्टर ने उन्हें संभाला और कहा – ‘‘आपको हिम्मत से काम लेना होगा। उस बच्ची को भी आपको संभालना है।’’

कुछ देन में अपने आप को संभाल कर अरविन्द जी ने सभी रिश्तेदारों को फोन करना शुरू किया इस बीच पुलिस ने दोंनो को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया।

सुमन की ससुराल में कोई नहीं था। इसलिये अरविन्द जी ने ही दोंनो का अंतिम संस्कार किया। अब काव्या की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी।

काव्या को वे अपने साथ घर ले आये। काव्या दिन भर गुमसुम बैठी रहती थी। अलका उसे संभालती थी। लेकिन वह उस हादसे को भूल नहीं पा रही थी।

एक दिन अलका ने कहा – ‘‘सुनो जी क्या हम जीवन भर काव्या का बोझ उठाते रहेंगे। इसे किसी अनाथालय में भेज देते हैं।’’

यह सुनकर अरविन्द जी गुस्से में बोले – ‘‘ये क्या बकवास कर रही हों। वो मेरी सगी भांजी है। मेरी बहन की बेटी है। वो मेरे साथ रहेगी।’’

अलका बोली – ‘‘अपना खर्च तो ठीक से चल नहीं रहा है। इसे कहां से खिलायेंगे।’’

अरविन्द जी ने कहा – ‘‘ये समझ लो अब हमारे तीन बच्चे हैं।’’

अलका ने गुस्से में कहा – ‘‘आपको ये भी समझना होगा कि इसकी पढ़ाई और शादी भी करनी पड़ेगी। कहां से हो ये सब।’’

अरविन्द जी ने कहा – ‘‘सब हो जायेगा। उपर वाला सब इंतजाम करेगा। तुम बेकार की बातें मत करो। अगर ये तुम्हारी बहन की बेटी होती तो क्या इसे अनाथ आश्रम भेज देतीं।’’

अलका चुप रह गई लेकिन अब वो काव्या से मन ही मन नफरत करती थी। सुबह अरविन्द जी के ऑफिस जाने के बाद काव्या से पूरे घर का काम करवाती थी। काव्या को उसके माता पिता ने बहुत लाड़ प्यार से पाला था। लेकिन मामी उसे रोज मारती थीं। वो पैसों की तंगी का सारा गुस्सा काव्या पर निकालती थी।

काव्या हर दिन सोचती कि काश वो भी अपने माता पिता के साथ मर जाती। यह जिन्दगी तो नरक से भी ज्यादा दुःखदायी है।

एक दिन अरविन्द जी दोपहर को घर आये। दरवाजा खुला था। तो वे सीधे अंदर आ गये। उन्होंने देखा कि एक रोटी जल जाने पर अलका, काव्या को मार रही थी। यह देख कर उनकी आंखों में आंसू आ गये। वे किचन में गये।

अलका उन्हें देख कर डर गई। उसने कहा खाना मैं बना रही थी। जरा फोन आ गया तो इसे एक रोटी सेकने को कहा इसने उसे भी जला दिया।

काव्या के सब्र का बांध टूट चुका था। वो बोली – ‘‘मामा जी मुझे अनाथ आश्रम में छोड़ आईये। मैं यहां नहीं रहना चाहती । मामी मुझसे सारा काम करवाती हैं और हर दिन कम से कम दो बार मुझे मारती हैं। इससे तो अच्छा होता मैं भी मर जाती।’’

अलका अंदर से डंडा लेकर आई – ‘‘अब झूठ बोल कर हम दोंनो में लड़ाई करवाना चाहती है। रुक मैं तुझे बताती हूं।

अरविन्द जी की आंखों से आंसू बह रहे थे, वे बोले – ‘‘खबरदार जो इसे हाथ भी लगाया। बेटी मुझे माफ कर दे। आज मेरी बहन भी मुझे कोस रही होगी। तू चल मेरे साथ अपने कपड़े एक बैग में लगा ले।’’

अलका बहुत खुश हो गई -‘‘हां हां ठीक है इसे अनाथ आश्रम में छोड़ आओ मैं भी चैन से रहूंगी।’’

अरविन्द जी बोले – ‘‘अब तुम चैन से रहो हम जा रहे हैं।’’

कुछ देर बाद दोंनो घर से निकल गये। काव्या रो रही थी। अरविन्द जी सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच गये।

काव्या बोली – ‘‘मामा जी क्या अनाथ आश्रम दूसरे शहर में है?’’

अरविन्द जी बोले – ‘‘नहीं बेटी अब हम किसी अनाथ आश्रम में नहीं जा रहे हैं। मेरे गांव में एक छोटा सा मकान है। हम वहीं रहेंगे मैं तेरे साथ रहूंगा। उसके बारे में तेरी मामी को भी कुछ नहीं पता। मैंने भी तेरे साथ वो घर छोड़ दिया। जहां इंसानों की कद्र नहीं वहां मैं नहीं रह सकता। अब बस मैरी जिन्दगी का मकसद तेरा पालन पोषण करना है।’’

काव्या यह सुनकर बोली – ‘‘लेकिन मामा, मामी का क्या होगा?’’

अरविन्द जी बोले – ‘‘बेटी उसे अहसास होने दे कि जब कोई अकेला रह जाता है तो उस पर क्या बीतती है। वैसे उसके मायके वाले उसे संभाल लेंगे। तू चिंता मत कर।’’

काव्या ने कहा – ‘‘मामा मेरे कारण आपको भी परेशानी उठानी पड़ रही है। मुझे कहीं छोड़ आईये।’’

अरविन्द जी बोले – ‘‘कल जब मैं उपर जाउंगा। तो अपनी बहन और तेरी मां को क्या मुंह दिखाउंगा। ये सोचा है तूने। बस अब कुछ मत बोल मैं तेरा पालन पोषण कर तेरी शादी करूंगा। यही मेरे जीवन का मकसद बन गया है।’’

ट्रेन से उतर कर दोंनो गांव के लिये एक तांगे में सवार हो जाते हैं। गांव में एक छोटा सा मकान था। अरविन्द जी ने काव्या को एक कुर्सी पर बैठाया और खुद उसकी सफाई करने में जुट गये।

कुछ देर में दोंनो को भूख लगी। तो वे एक होटल पर पहुंच गये खाना खाने। खाना खाने के बाद जब अरविन्द जी पैसे देने गये। तो होटल का मालिक रविन्द्र बोला – ‘‘भाई क्यों शर्मिन्दा कर रहा है। अपने बचपन के दोस्त को भूल गया।’’

यह कहकर वह अरविन्द जी के गले लग गया और बोला – ‘‘और बता इतने साल बाद गांव कैसे आया।’’

अरविन्द जी ने सारी बात बता दी। यह सुनकर रविन्द्र बोला – ‘‘एक काम कर यहीं बस अड्डे के पास मेरी जमीन है। वहां तू ऐसा ही होटल खोल ले। बहुत कमाई होगी। हम दोंनो पार्टनरशिप में होटल चलायेंगे। मुझे कोई साथ देने वाला नहीं मिल रहा था। अब तू आ गया है। दोंनो मिल कर होटल चलायेंगे।’’

अरविन्द जी ने अगले दिन से ही होटल खोलने की तैयारी शुरू कर दी दोंनो कुछ पैसे लगा कर कुछ ही दिनों में एक होटल खोल लिया।

उन्होंने काव्या का दाखिला भी एक अच्छे स्कूल में करा दिया। दोपहर को काव्या को स्कूल से लेकर होटल पर पहुंच जाते रात तक अरविन्द जी होटल चलाते और काव्या पढ़ती रहती थी।

इसी तरह समय बीत रहा था। अरविन्द जी ने अब कुछ पैसे जोड़ने शुरू कर दिये थे। उन्हें काव्या की शादी भी करनी थी। काव्या कभी उदास होती उसे अपने माता पिता की याद आती तो अरविन्द जी उसे समझाते। फिर वह सोचती कि मामा ने मेरे लिये अपना परिवार छोड़ दिया। यह सोच कर वह सब कुछ भूल जाती। उसके सिर पर एक छत तो है। मामा की छत्रछाया में उसका पालन पोषण अच्छे से होने लगा।

धीरे धीरे समय बीत गया। काव्या अब बड़ी हो गई। एक दिन रविन्द्र ने अरविन्द से कहा – ‘‘भाई अगर बुरा न माने तो एक बात कहूं। मैं अपने बेटे के लिये काव्या का हाथ मांगता हूं। मेरा बेटा शहर में डॉक्टर बन गया है। मैं चाहता हूं कि हम इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें।’’

अरविन्द जी बहुत खुश हुए उन्होंने काव्या से बात की। लड़के लड़की को मिलवाया दोंनो ने एक दूसरे को पसंद कर लिया। शादी की तैयारी शुरू हो गई। रविन्द्र ने शर्त रखी थी, कि वह दहेज नहीं लेगा। इसलिये अरविन्द जी शादी में अच्छे से दावत और मेहमानों की आवभगत उनके स्वागत की तैयारी करने लगे।

एक दिन वे होटल पर पैसे गिन रहे थे। तभी किसी ने उन्हें पुकारा – ‘‘कैसे हैं आप।’’

उन्होंने पलट कर देखा तो सामने अलका खड़ी थी। बहुत कमजोर थी। सफेद बाल उसके काले बालों के बीच में से झांक रहे थे। चेहरा मुरछाया हुआ था। एक पुरानी सी धोती पहने वह एक सूटकेस लिये उनके सामने खड़ी थी। उसकी आंखों में आंसू थे।

अरविन्द जी बोले – ‘‘अरे अलका तुम यहां का पता तुम्हें किसने दिया।’’

अलका बोली – ‘‘तुमने सभी रिश्तेदारों को शादी का कार्ड भेजा उसमें से ही किसी ने मुझे तुम्हारा पता बता दिया। मुझे माफ कर दो। मेरी एक गलती की इतनी बड़ी सजा तुमने दे दी बिना कुछ कहे मुझे छोड़ कर चले आये।’’

अरविन्द जी ने कहा – ‘‘अलका उस समय मुझे अपनी बहन के लिये ये कुर्बानी देनी पड़ी। तुम कभी काव्या को कभी अपना नहीं मानती, मुझे मर कर अपनी बहन को मुंह दिखाना था। मैं क्या करता इसलिये चुपचाप वहां से निकल आने में ही भलाई समझी।’’

अलका बोली – ‘‘हां मुझे भी अपने किये की सजा मिल गई। तुम्हें ढूंढने के बाद जब तुम्हारा कोई पता नहीं मिला तो मैं अपने मायके चली गई। वहां मेरे भैया भाभी ने मेरे साथ वही व्यवहार किया जो मैंने काव्या के साथ किया था। मैं वहां से निकल कर एक अनाथआश्रम में चली गई वहां बच्चों की सेवा करने लगी। मुझे वहां दो वक्त का खाना मिल जाता था। वहां मैं हर बच्चे में काव्या को देखती थी। कभी कभी किसी रिश्तेदार से मिलने जाती। तुम्हारे बारे में पता करती लेकिन कुछ पता नहीं लगा।

अब जब तुमने अपने दूर के भाई को शादी का कार्ड भेजा तो उन्होंने मेरी हालत पर तरस खाकर मुझे तुम्हारा पता बता दिया।

क्या अब भी तुम मुझे माफ नहीं करोगे। मेरे पास अब उस अनाथ आश्रम के अलावा कोई ठिकाना नहीं है। मैं तुम पर अपना हक खो चुकी हूं। अगर तुम मुझे माफ नहीं करोगे तो मुझे कोई अफसोस नहीं होगा। बस एक काम कर दो एक बार काव्या बेटी को आशीर्वाद देकर मैं शाम की बस से वापस चली जाउंगी। इतना हक मुझे दे दो।

अरविन्द जी की आंखों से भी आंसू बह रहे थे। वो बोले मैंने तुम्हें पहले ही माफ कर दिया था। मैं बस अपना फर्ज निभाने के लिये मजबूर था। अब तुम कहीं नहीं जाओंगी। हम दोंनो मिल कर काव्या का कन्यादान करेंगे। चलो घर चलो।

अरविन्द जी, अलका को लेकर घर पहुंचे। काव्या के सामने जब अलका पहुंची तो उसने कहा – ‘‘बेटी मुझे माफ कर दे। मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया।’’

काव्या की आंखों से आंसू बह रहे थे। वो दौड़ कर अलका से लिपट गई -‘‘मामी मैंने हमेशा अपनी मम्मी की जगह आपको माना है। पुरानी बातें भूल जाईये मुझे बहुत खुशी है कि आप आ गईं। मेरे जाने के बाद मामा अकेले रह जाते।’’

अगले दिन से दोंनो शादी की तैयारियों में जुट गये। तय समय पर काव्या की शादी हुई। दोंनो ने कन्यादान किया। काव्या ने विदा होने से पहले मामा के गले लग कर कहा – ‘‘मामा जी शायद मेरे पापा भी मेरे लिये इतना नहीं करते। आपने अपना पूरा जीवन मेरे लिये कुर्बान कर दिया।’’

अरविन्द जी बोले – ‘‘बेटी तुझे नहीं पता ये सब मैंने अपने लिये किया है। अब मैं अपनी बहन के सामने शर्मिन्दा नहीं होउंगा।’’

दोंनो रो कर गले लग गये। काव्या अपनी ससुराल चली गई। अरविन्द जी और रविन्द्र जी दोंनो समधी बन गये थे।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.