Moral Story Poor Girl Destiny : गीता एक गरीब परिवार में रहने वाली छोटी सी बच्ची थी। उसकी मां कल्याणी लोगों के घरों में साफ सफाई का काम करती थी।
उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे। उन्हें कभी काम मिलता था, कभी नहीं मिलता था। गीता पहली क्लास में एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी।
गीता पढ़ाई में बहुत होशियार थी। गीता घर पर आकर घर का काम निबटा कर पढ़ने बैठ जाती थी।
एक दिन गीता शाम तक मां का इंतजार कर रही थी, मां के न आने पर वह परेशान हो गई। शाम को उसके पिता मोहन जी घर आये, तो वे गीता को घर पर छोड़ कर कल्याणी को ढूढंने निकले।
कल्याणी जिन घरों में काम करती थी। उन्होंने सब जगह पता किया, उन्हें पता लगा कि कल्याणी तो आज काम पर आई ही नहीं।
रात हो चली थी। मोहन जी पुलिस स्टेशन पहुंच गये। वहां जाकर उन्होंने कहा – ‘‘साहब मेरी पत्नी सुबह से गुम है। आप रिर्पोट लिख लो।’’
पुलिस वालों ने कहा – ‘‘चौबिस घंटे से पहले रिर्पोट नहीं लिख सकते।’’
मोहन जी को गुस्सा आ गया। वे बोले – ‘‘आपको पता है उसके साथ क्या हो सकता है। आप रिर्पोट लिखो और मेरे साथ उसे ढूंढने चलो।’’
पुलिस वाले ने उन्हें उल्टा सीधा बोल कर भगा दिया। निराश होकर वे घर आ गये। घर आकर उन्होंने देखा गीता बैठी रो रही थी।
मोहन जी फटाफट बाजार गये और गीता के लिये खाना लाये। गीता ने थोड़ा सा खाना खाया और सो गई। इधर मोहन जी इधर उधर भटकते रहे, लेकिन कल्याणी का कहीं कुछ पता नहीं लगा था।
सुबह जब गीता की आंख खुली तो उसके घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी, सामने सफेद कपड़ा ओढ़े उसकी मां लेटी हुई थी। उनका सिर ढका हुआ था। गीता को कुछ समझा नहीं आया
पास ही में मोहन जी खड़े रो रहे थे। तभी गीता की चाची ने उसे अपने से लिपटा लिया और बोली – ‘‘बेटी तेरी मां हम सब को छोड़ कर चली गईं।’’
गीता का दिल धक से बैठ गया उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वह रोती हुई मां से लिपट गई – ‘‘उठो न मां, उठो देखो रात को तुमने मेरे लिये खाना भी नहीं बनाया।’’
गीता की चाची उसे संभालने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर बाद गीता रोते रोते बेहोश सी हो गई। उसे सब कुछ दिख रहा था। लेकिन अब उसे होश नहीं था। कुछ देर में उसकी मां को अंतिम संस्कार के लिये ले गये।
गीता अब गुमशुम रहने लगी थी। वह किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी। एक दिन मोहन जी ने गीता से कहा – ‘‘बेटी कल्याणी तो अब वापस नहीं आयेगी। तू और मैं ही रह गये हैं। तू चिन्ता मत कर मैं तेरा अच्छे से ख्याल रखूंगा।’’
इसी तरह समय बीत रहा था। गीता अब घर के काम निबटाने लगी थी।
एक दिन गीता मन्दिर जा रही थी। वह अब सुबह उठ कर नहा धो कर मन्दिर जाती थी। उसकी मां को मरे दो महीने हुए थे। वह अब मां के सारे काम करने लगी थी। उसकी मां मन्दिर जाती थी। इसलिये वह उनकी जगह मन्दिर जाने लगी।
मन्दिर में उसे एक बुर्जुग मिलती थीं। धीरे धीरे गीता और रंजना जी में जान पहचान हो गई। मन्दिर में दर्शन करने के बाद दोंनो मन्दिर की सीढ़ियों पर कुछ देर के लिये बैठ जाती। रंजना जी ने बातों बातों में गीता के बारे में सब कुछ जान लिया।
एक दिन मोहन जी घर पर ही थे। उनका काम छुट गया था। वे इसी उलझन में थे। कि अब क्या करेंगे। तभी गीता अन्दर आई और बोली – ‘‘पापा देखो कौन आया है।’’
मोहन जी ने देखा तो बाहर एक चमचमाती कार खड़ी थी। उसमें से एक औरत उतर कर उनके घर की ओर आ रही थीं। महंगे कपड़े, जेवर पहने हुए। मोहन जी ने इशारे से गीता से पूछा।
गीता ने बताया – ‘‘अरे पापा ये वही रंजना जी हैं जिनके बारे में मैंने आपको बताया था। ये रोज मुझे मन्दिर में मिलती हैं। आज ये घर आने के लिये कहने लगीं तो मैं इन्हें घर ले आई।
मोहन जी ने उनका हाथ जोड़ कर स्वागत किया और बोले – ‘‘मालकिन आपने क्यों कष्ट किया बच्ची से कह देंती मैं आपकी सेवा में हाजिर हो जाता।’’
यह सुनकर रंजना जी ने कहा – ‘‘कुए को प्यासे के पास आना पड़ता है।’’
मोहन जी बोले – ‘‘मैं कुछ समझा नहीं ओ हो मैं तो भूल ही गया। आप बैठ्यिे मैं आपके लिये कुछ खाने को लाता हूं।’’
रंजना जी बोली – ‘‘नहीं मोहन जी परेशान मत होईये। आप बैठ्यिे मुझे आपसे कुछ बात करनी है। जानतें हैं आपकी बेटी कितनी होनहार और संस्कारी है। जितने ध्यान से यह पूजा करती है। मैं भी नहीं कर सकती। इसके चेहरे का तेज, इसकी हसी मैं घर जाकर भी भूल नहीं पाती। मैं चाहती हूं कि मैं इसका अच्छे से पालन पोषण करूं। अपने घर ले जाकर।’’
मोहन जी जितना अपनी बेटी की तारीफ सुनकर खुश हो रहे थे। अब उतने ही दुःखी होकर बोले – ‘‘मालकिन मेरी पत्नी तो पहले ही चली गई है। अब मेरे जीने का एक ये ही सहारा है। इसे भी आप ले जायेंगी तो मैं कैसे जिउंगा।’’
रंजना जी ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘मोहन जी आप गलत समझ रहे हैं। मैं आप दोंनो को ले जाना चाहती हूं। आपको यहां कभी काम मिलता है कभी नहीं। बस आप मेरे घर की देखभाल करना और गीता मेरे साथ रहेगी। मैं आपको बता दूं। मैं अकेली रहती हूं। मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं। और बच्चे विदेश में रहते हैं।’’
मोहन जी की आंखों में आंसू आ गये – ‘‘मालकिन एक बिन मां की गरीब बच्ची की आप मदद कर रही हैं। यह मैं सोच भी नहीं सकता था।’’
रंजना जी ने कहा – ‘‘नहीं मोहन जी, इस बच्ची से मिलते मिलते मैं इसे चाहने लगी हूं। जानते हैं। इससे थोड़ी सी छोटी मेरी पोती होगी, लेकिन उसे मैंने सिर्फ विड्यिो कॉल पर ही देखा है। मैं इसका अच्छे से पालन पोषण करूंगी। आपकी बेटी लाखों में एक है।’’
मोहन जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रंजना जी ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘आप तैयारी कीजिये मेरे नौकर आकर आपका सामान ले जायेंगे। आप दोंनो अभी मेरे साथ चलिये।’’
रंजना जी दोंनो को गाड़ी में बिठा कर घर ले जाती हैं। घर से दो नौकरों को ड्राईवर के साथ मोहन जी के घर भेज कर जरूरी समान मंगवा लेती हैं। जिसमें सबसे जरूरी गीता की मां का फोटो था।
धीरे धीरे समय बीत जाता है एक दिन गीता घर आती है – ‘‘पापा देखो मैं डॉक्टर बन गई। आज ही मुझे डिग्री मिली है। कल से मुझे सरकारी हॉस्पिटल में जाना है।’’
मोहन जी उसे अपने साथ ले गये। एक बड़े से हॉल में रंजना जी की तस्वीर लगी थी। मोहन जी बोले – ‘‘बेटी इन्हें नमन कर जिन्होंने तेरी किस्मत बदल दी। माना ये देवी अब हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन मुझे आज भी याद है अपने अंतिम समय में इन्होंने मेरे से यही कहा था, कि मेरी यही अंतिम इच्छा है। मेरा अंतिम संस्कार गीता करे। आप यहां का सब संभाल लें और इसे डॉक्टर बनायें।’’
गीता और मोहन जी दोंनो की आंखों से आंसू बह रहे थे। एक तरफ रंजना जी के बेटे थे, तो उनके मरने पर भी नहीं आये और एक तरफ यह एक गरीब लड़की थी। जिसने रंजना जी को इतना प्यार दिया, कि वो अपना सब कुछ इसके नाम कर गईं।
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