सोने की कलम | Moral Story Golden Pen Hindi

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Moral Story Golden Pen Hindi : राजेश अभी घर से निकला ही था, कि उसने देखा उसके स्कूल के मास्टर जी रघुनंदन तिवारी जी उसके घर ही आ रहे थे। वह रुक गया।

तभी मास्टर जी ने उससे कहा – ‘‘बेटा आज तो स्कूल की छुट्टी है। मुझे तेरे पिता जी से कुछ काम था। क्या वो घर पर हैं।’’

‘‘जी मास्टरजी, पिताजी जी अभी घर पर ही हैं।’’ – राजेश ने जबाब दिया।

उनकी आवाज सुनकर मधूसूदन जी घर से बाहर आये और बोले – ‘‘अरे मास्टरजी आप? क्या राजेश ने कोई गलती कर दी है।’’

मास्टर जी ने हसते हुए कहा – ‘‘अरे नहीं यह तो बहुत होनहार है, इसीलिये मैं आपसे कुछ बात करने आया हूं। आप शायद नहीं जानते कि आपका बच्चा पढ़ने में बहुत तेज है, मैं चाहता हूं, कि इसे शहर भेज दिया जाये। यह एक दिन जरूर आपका नाम रोशन करेगा।’’

मधूसूदन जी ने आश्चर्य से पूछा – ‘‘यह सब तो मुझे पता नहीं है। आप कह रहे हैं, तो ठीक ही होगा, लेकिन इसे भेजे कैसे मेरे पास तो पैसे नहीं हैं।’’

मास्टर जी ने राजेश से कहना शुरू किया – ‘‘बेटा क्या तुम शहर पढ़ने जा पाओगे।’’

राजेश बोला – ‘‘हां मास्टर जी मैं जरूर जाउंगा।’’

मास्टर जी ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘बेटा ये देखो मेरे पास एक सोने की कलम है। जब मैं छोटा था तो मैं भी पढ़ने में बहुत तेज था। उस समय मुझे मेरे स्कूल के प्रिसीपल ने यह सोने का पैन दिया था। जिसे मैं आज तक संभाल कर रखता आया हूं। लेकिन अब ये पैन मैं तुम्हें दे रहा हूं। शहर जाकर मेरे मित्र से मिलना उनके पास ये पैन गिरवीं रख देना। वो तुम्हें पैसे दे देंगे। जब तुम पढ़ लिख कर कुछ बन जाओ तो। इस पैन को छुड़ा कर मुझे वापस दे देना।’’

यह कहकर मास्टर जी ने एक डिब्बी राजेश के हाथ में पकड़ा दी। राजेश डिब्बी खोल कर देखने लगा तो उन्होंने रोका और कहा – ‘‘बेटा इस पैन को जब देखना जब तुम इसका कर्ज चुकाने लायक हो जाओ।’’

मास्टर जी से चिट्ठी और पैन लेकर राजेश उनके मित्र के पास पहुंच गया। उन्हें पैन और चिट्ठी दी। उन्होंने खत पढ़ा और राजेश को पैसे दे दिये। राजेश ने वहां के बड़े स्कूल में दाखिला ले लिया। अब जब भी राजेश को पैसों की जरूरत होती वो उनसे पैसे ले लेता और अपनी डायरी में लिख लेता था।

समय बदला कई सालों की कड़ी मेहनत से एक दिन राजेश एक आई एस ऑफिसर बन गया। अब तक वह सब कुछ भूल चुका था। वह दिन रात काम में लगा रहता।

एक बार राजेश के पिता मधुसूदन जी उससे मिलने शहर आये। वे गेट पर पहुंचे तो स्क्योरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने कई बार बताया कि वे राजेश के पिता हैं, लेकिन यह सुनकर वह हसने लगा। बहुत देर तक धूप में खड़े रहने के बाद भी जब वे उससे मिल नहीं पाये तो निराश होकर गांव की ओर चल दिये।

रास्ते में उन्हें राजेश की गाड़ियों का काफिला दिखा। पिता को देख राजेश ने गाड़ी रोकी और गाड़ी से उतर कर उनके पैर छुए। फिर उन्हें गाड़ी में बिठा कर अपने घर ले गया।

राजेश को इस तरह देख कर उसके पिता बहुत खुश हुए। राजेश बोला – ‘‘पिताजी अब आप चिन्ता मत कीजिये गांव को छोड़ दीजिये और मेरे साथ यहां आकर रहिये।’’

मधुसूदन जी बोले – ‘‘बेटा मेरा मन यहां नहीं लगेगा। मैं तो गांव में ही ठीक हूं। एक बात और अपने गार्ड से कहो कि वो तुम्हें किसी से मिलने से रोके नहीं। क्योंकि कोई न कोई मुसिबत में होगा तभी तुमसे मिलने आयेगा।’’

राजेश ने तुरंत गार्ड को बुला कर डाटा और कहा – ‘‘मुझसे कोई भी मिलने आये उसे अंदर बिठा कर पहले पानी के लिये पूछो फिर मुझे खबर करो।’’

उसके जाने के बाद राजेश बोला – ‘‘पिताजी गांव के क्या हाल चाल हैं। आपके खेत वगैरहा।’’

मधुसूदन जी बोले – ‘‘बेटा मैं तो तुम्हें कुछ याद दिलाने आया था।’’

राजेश ने कहा – ‘‘हां हां पापा बताईये न।’’

‘‘बेटा तुम्हें वो सोने की कलम याद है या भूल गये। मास्टरजी याद हैं गांव के उनका कर्ज चुकाना था।’’-मधुसूदन जी ने कहा।

राजेश ने अपना सिर पकड़ लिया – ‘‘पिताजी मैं तो सब कुछ भूल गया। मास्टर जी और उनकी सोने की कलम चलिये अभी चलते हैं। उनकी सोने की कलम लेकर उनके देने।’’

राजेश अपने पिता को लेकर मास्टर जी के मित्र के पास पहुंच गया। उसने उन्हें डायरी दिखाई और सारे पैसे चुका दिये। उन्होंने राजेश को वह डिब्बी पकड़ा दी।

राजेश ने डिब्बी खोल कर देखी तो वो खाली थी। राजेश ने गुस्से में कहा – ‘‘लगता है आपकी नियत में खोट आ गया। यह तो खाली है इसमें से सोने की कलम कहां गई।’’

मित्र बोले – ‘‘बेटा पहले यह खत पढ़ लो फिर गुस्सा करना।’’

राजेश ने खत पढ़ा तो उसके आंसू निकल आये। उसमें लिखा था। कि भाई मैं जिस लड़के के हाथ यह खत भेज रहा हूं। उसे पढ़ाई के लिये जितने पैसे चाहिये हों दे देना। मैं अपना खेत बेच कर कुछ ही दिनों में तुम्हारे पैसे चुका दूंगा। यह खाली डिब्बी रख लेना इसे मैंने खोलने को मना किया है। वह जानता है कि इसमें सोने की कलम है।

राजेश की आंखों से आंसू बह रहे थे वह बोला – ‘‘पिताजी, मास्टर जी ने मुझे पढ़ाने के लिये अपने खेत बेच दिये। अभी चलिये हम वो खेत खरीद कर मास्टर जी को वापस दे देते हैं।’’

तभी उनके मित्र ने पीछे से राजेश के कंधे पर हाथ रखा और कहा – ‘‘बेटा ये पैसे तुम्हारे हैं। मेरा कर्ज तो मास्टर जी ने पहले ही चुका दिया। अब उन खेतों को खरीदने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि मास्टर जी अब इस दुनिया में नहीं हैं।’’

राजेश फूट फूट कर रोने लगा। उसने अपने पिता की ओर देखा। वे बोले – ‘‘बेटा दो दिन पहले ही उनका देहान्त हुआ है। यही खबर देने मैं तेरे पास आया था।’’

राजेश रोते हुए बोला – ‘‘पिताजी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। अफसर बनते ही मैं सब भूल गया। काश मैं उनका कर्ज उतार पाता।’’

मधुसूदन जी बोले – ‘‘बेटा तुम कुछ बन गये हो अब गांव के ऐसे ही गरीब बच्चों को शिक्षा देकर अपने लायक बनाओ।’’

राजेश ने अपना तबदला उसी गांव में करवा लिया। अब वह नौकरी के साथ साथ गरीब बच्चों को पढ़ता भी था।

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