मदन हलवाई | Emotional Hindi Moral Kahani

Emotional Hindi Moral Kahani
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Emotional Hindi Moral Kahani : गरमा गरम समोसे की खुशबू आते ही समझ गया कि मदन हलवाई की दुकान के पास पहुंच गये।

तांगे से बाहर झांक कर देखा तो मदन हलवाई का नौकर समोसे तल रहा था।

बस वहीं तांगा रुकवा लिया। तभी आभा (मेरी पत्नी) बोली –

आभा: बस हो गया न यहां आते ही हलवाई की दुकान पर कूद पड़े।

मैं (सौरभ): अरे देखो तो कितनी अच्छी समोसों की खुशबू आ रही है। कौन सा रोज रोज यहां आते हैं। अब आये हैं तो घर लेकर चलते हैं।

मैं जैसे ही मदन हलवाई की दुकान पर पहुंचा –

मैं: चाचा कैसे हो? जरा दस समोसे तो पैक करा दो।

मदन हलवाई: बहुत दिनों के बाद दिखाई दिये बबुआ। तुम्हारे अम्मा बाउजी रोज तुम्हारी राह देखते थे।

मैं: हां चाचा बात तो ठीक है लेकिन क्या करूं शहर में काम ही इतना होता है कि समय ही नहीं मिलता।

बातें करते करते नौकर ने समोसे पैक कर दिये मैं समोसे लेकर जल्दी से तांगे में बैठ गया। तभी बंटी जो कि मेरा पांच साल का बेटा था बोला –

बंटी: पापा मुझे भी दो न समोसा।

आभा: नहीं अभी घर चल कर हाथ पैर धोना फिर मैं चाय बनाउंगी तब खाना।

कुछ ही देर में हम घर पहुंच गये। अम्मा, बाबूजी से मिल कर अच्छा लगा। बंटी फिर से समोसे खाने की जिद करने लगा। भला दादी कैसे अपने पोते का दिल तोड़ती। उन्होंने तुरंत एक समोसा निकाल कर उसे खाने के लिये दे दिया।

बंटी एक हाथ में समोसा लिये, दूसरे हाथ पतंग उठाये छत की ओर चल दिया। उसकी दादी ने बहुत सी पतंगे इकट्ठी कर रखी थीं। वह समोसा खाकर पतंग उड़ाने की तैयारी करने लगा।

नीचे आंगन में सब बैठ कर समोसे खा रहे थे। तभी आभा चाय बना कर ले आई –

सुभाष: बाबूजी ये मदन के समोसे तो कमाल के होते हैं। जमाना बदल गया लेकिन इसके समोसे नहीं बदले।

बाबूजी: हां बेटा इसके समोसे के स्वाद से लोग खिंचे चले आते हैं।

अम्मा: छोड़ो उसे बेटा यह बता कितने दिन के लिये आया है अब रुक कर जायेगा न।

सुभाष: अम्मा मैं तो परसो चला जाउंगा। छुट्टी नहीं मिल रही है आभा और बंटी रहेंगे कुछ दिन आपके साथ।

अम्मा का चेहरा थोड़ा सा मुरझा गया लेकिन फिर पोते के बारे में सोच कर उन्होंने अपनी सहमति जता दी।

इधर बंटी अपनी ही धुन में पतंग उड़ा रहा था। शहर में यह सब कहां मिलता था।

तीसरे दिन सुभाष अपने काम पर वापस चले गये। बंटी की छुट्ठ्यिां थीं तो आभा और बंटी रुक गये।

कुछ दिन बाद सुभाष बंटी और आभा को लेने गया। मदन हलवाई की दुकान के पास पहुंच कर उसने देखा कि दुकान बंद है।

घर पहुंचा तो पता लगा। मदन हलवाई का बेटा बहुत बीमार है। उसकी ही देखभाल में वह लगा था।

अगले दिन मैं आभा और बंटी के साथ घर वापस आ गया।

कुछ दिन बाद रात को करीब एक बजे डोर बेल बजी। गेट खोला तो देखा सामने मदन हलवाई खड़ा था।

मदन: भैया माफ करना इस समय तकलीफ दे रहा हूं। आपके बाबूजी ने पता दिया था, इसलिये आ गया।

मैं: क्या बात है सब ठीक तो है। तुम अन्दर आओ।

मदन: भैया मेरा बेटा अस्पताल में है। उसका ऑपरेशन होना है। मुझे बहुत सख्त दो लाख रुपये की जरूरत है। आप मेरी मदद कर दो। गांव पहुंचते ही लौटा लूंगा।

मैं: अच्छा अंदर तो आओ देखते हैं।

मदन आकर सोफे पर बैठ गया। आभा ने उसे पानी का गिलास पकड़ाया। मदन हड़बड़ाहट में पानी पीने लगा।

मैंने आभा की ओर देखा तो उसने इशारे से मना कर दिया।

मैं: भैया इतना पैसा तो मेरे पास है नहीं अगर दस बीस हजार की बात होती तो बात और थी।

मदन: भैया किसी से दिलवा दो कल मेरे बेटे का ऑपरेशन है कितनी भी ब्याज पर दिलवा दो।

मैं: अच्छा मैं देखता हूं कौन सा हॉस्पिटल है? तुम वहां पहुंचो मेरे से जो भी  बन पड़ेगा मैं करूंगा। सुबह मैं हॉस्पिटल आता हूं।

मदन हॉस्पिल का नाम बता कर जाने लगा। जाते जाते उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहा –

मदन: भैया शहर में बस आप ही का सहारा है। ध्यान रखना।

उसके जाने के बाद आभा ने कहा –

आभा: कोई जरूरत नहीं है इसे पैसा देने की। कोई हमारा रिश्तेदार तो है नहीं।

मैं: आभा मुसीबत तो किसी पर भी आ सकती है। मैं सोचता हूं इसकी मदद करनी चाहिये।

आभा: लेकिन अगर पैसे वापस न किये तो हम क्या कर लेंगे?

मैं: देखा जायेगा। वैसे भी गांव जाकर बाबूजी को सुनायेगा। उन्होंने भी बहुत उम्मीद से मेरे पास भेजा होगा।

आभा कुछ नहीं बोली लेकिन उसकी आंखों से दिख रहा था। कि उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा है।

मैं रात भर कशमाकश में रहा कि क्या करूं। अगले दिन मैंने मन बना लिया कि मैं उसकी मदद करूंगा। मैं सुबह ही बैंक गया वहां से पैसे लेकर सीधा अस्पताल पहुंचा।

रिशेप्शन पर मदन खड़ा था।

मैं: भैया ये लो दो लाख रुपये। जमा करा दो।

मुझे देख कर मदन की आंखों में आंसू भर आये –

मदन: भैया तुम्हारा बहुत धन्यवाद लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं आज सुबह चार बजे मेरा बेटा चला गया मुझे छोड़ कर।

मैं: लेकिन कैसे आज तो उसका ऑपरेशन होने वाला था।

मदन: सब उपर वाले का खेल है भैया। लेकिन आपका यह अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा।

कुछ ही देर में एंबूलेंस आ गई। मदन बुरी तरह रो रहा था। उसके साथ गांव के कुछ लोगा और भी थे। वे सब मदन के बेटे को ऐंबूलेंस में रख कर गांव की ओर रवाना हो गये।

आज मेरा ऑफिस जाने का मन नहीं किया। मैं सीधा घर आ गया। घर आकर मैंने सारी बात आभा को बताई उसे भी बहुत बुरा लगा।

इस बात को कई महीने बीत गये। कई महीने बाद मुझे फिर से अपने घर जाने का मौका मिला। मैं अकेला ही जा रहा था। तांगा मदन हलवाई की दुकान के पास पहुंचा तो देखा वहां कोई ओर बैठा है।

मैं: भैया जरा दस समोसे पैक कर देना और मदन भैया कहां हैं।

लड़का: साहब वो कई महीने पहले भगवान को प्यारे हो गये थे।

मैं: लेकिन कैसे?

लड़का: वो आपको पता है उनका बेटा खत्म हो गया था। उसके गम में पन्द्रह दिन बाद वो भी चले गये। उनकी पत्नी तो पहले ही नहीं थी। अब यह दुकान हमने खरीद ली है।

मेरी आंखों में आंसू भर आये थे। मैं समोसे लेकर घर पहुंचा। लेकिन आज उन समोसों में वह स्वाद नहीं था। मैंने थोड़ा सा समोसा खाया और छोड़ दिया। अम्मा के पूछने पर मैं उनसे लिपट कर रोने लगा।

मदन से मेरा कोई रिश्ता नहीं था। लेकिन बचपन से उसकी दुकान के समोसे खाकर हम दोंनो के बीच एक रिश्ता बन गया था। जिसके कारण वह मेरे घर मदद मांगने आया था।

मैं जिन्दगी भर यही सोचता रहूंगा। काश मैं मदन की मदद कर पाता। काश उसका लड़का बच जाता।

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