Education Hindi Kahani : शान्ति जी अपने घर के आंगन में बने चूल्हे पर गरम गरम रोट्यिां सेक रहीं थीं। चूल्हें के पास बैठे उनके पति रामलखन जी खाना खा रहे थे।
सुबह पांच बजे दोंनो उठ जाते थे। शान्ति जी सुबह पहले गुड़ की चाय बनाती। जिसे पीकर रामलखन जी नहाने चले जाते। कुंऐ से पानी खीच कर नहाते। फिर पूजा करते बाद में खाना खाने के लिये चूल्हे के पास आकर बैठ जाते।
आज भी रामलखन जी खाना खा रहे थे। कुछ ही देर में उनकी आठ साल की बेटी पारो आंखे मनती हुई मां के पास आकर बैठ गई।
रामलखन: अरे भाग्यवान इसे भी जल्दी उठना सिखा। कल दूसरे घर जायेगी तो कैसे निभेगी।
शान्ति जी: अभी तो बहुत छोटी है धीरे धीरे सब सीख जायेगी।
तभी पारो ने अपनी मां को कुछ इशारा किया। उसकी ओर हां में सिर हिलाते हुए शान्ति जी ने कहा –
शान्ति जी: सुनो जी पारो पढ़ने की जिद कर रही है। आप कहो में इसका स्कूल में नाम लिखा आउं।
रामलखन जी: अरे क्या करेगी पढ़ कर हमारे गांव की लड़किया कहां पढ़ने जाती हैं। दो तीन साल फसल अच्छी हो जाये तो इसके हाथ पीले कर दूं। तू भी उसी की तैयारी में जुट जा।
पारो: नहीं बापू मुझे तो पढ़ना है।
शान्ति जी: अरे जब करनी हो शादी तब कर देना। अभी तो जाने दो स्कूल में अपना नाम लिखना सीख जायेगी तो हमारी तरह हर जगह अंगूठा तो नहीं लगाना पढ़ेगा।
रामलखन जी: बात तो तेरी सही है। चल कल से चली जाना स्कूल।
अगले दिन पारो का दाखिला स्कूल में हो गया। पारो स्कूल जाने लगी। दो दिन बाद रामलखन जी के एक पड़ोसी उनके घर आये और बोले –
पड़ोसी: रामलखन भाई क्या गजब कर रहे हो। लड़की को पढ़ने भेज दिया। पैसे वाले लोगों बच्चे पढ़ने जायें तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लकिन गरीब की लड़की स्कूल जाकर पढ़ेगी तो उसकी शादी भी नहीं होगी।
रामलखन जी: अरे भाई मैं तो यही समझा रहा था लेकिन मेरी घरवाली नहीं मानी हम उसे बस उतना ही पढ़ा रहे हैं कि वह केवल अपना नाम लिखना सीख जाये।
पड़ोसी: ठीक है भाई तुम्हारी मर्जी।
समय बीत रहा था। पारो को स्कूल जाते जाते एक साल बीत गया था। वह पढ़ने में होशियार थी। जब स्कूल का रिजल्ट आया तो उसके माता पिता स्कूल पहुंचे। वहां उसकी अध्यापिका ने उसकी बहुत तारीफ की। उसे ईनाम भी दिया क्योंकि वह पूरे स्कूल में पहले नम्बर पर आई थी।
शान्ति जी इससे बहुत खुश हो गईं। लेकिन रामलखन को यह सब अच्छा नहीं लगा। उसे तो चिन्ता थी, कि उसकी बेटी से कौन शादी करेगा।
पारो दिन रात पढ़ाई में लगी रहती थी। इसी तरह कई साल बीत गये। एक दिन रामलखन ने घर पर बताया –
रामलखन जी: सुन भाग्यवान मुझे किसी ने बताया है कि पड़ोस के गांव में एक लड़का है। बहुत सुन्दर है। घर की खेती है। मैं सोच रहा था। अपनी पारो के लिये बात चला कर देखता हूं।
शान्ति जी: देखो जी अभी बिट्यिा पढ़ रही है। शादी की जल्दी मत करो।
रामलखन जी: तेरा दिमाग खराब हो गया है तूने कहा था बस अपना नाम लिखना सीख जाये।
शान्ति जी: जी मैं मानती हूं मैंने कहा था। लेकिन तब मुझे कहां पता था, कि हमारी बेटी इतनी पढ़ाई करेगी कि पूरे स्कूल में पहले नम्बर पर आयेगी। पिछले चार साल से लगातार पहले नम्बर पर आ रही है। हर साल उसे ईनाम मिलता है।
रामलखन जी: शादी की उम्र तो हो चुकी बाद में रिश्ता नहीं मिलेगा।
शान्ति जी: मिल जायेगा। पूरे गांव में अकेली लड़की होगी पढ़ी लिखी। घर बैठे रिश्ते आयेंगे।
दोंनो बहस कर रहे थे। तभी पारो वहां आ गई और बोली –
पारो: बापू मैं पढ़ कर अच्छी सी नौकरी करना चाहती हूं।
यह सुनकर रामलखन जी आग बबूला हो गये –
रामलखन जी: देखा हो गया न लड़की का दिमाग खराब अब हम इसकी कमाई खायेंगे क्या। मैं आज ही बात करता हूं जल्द से जल्द इसकी शादी कर दूंगा।
अगले दिन रामलखन जी दूसरे गांव गये और रिश्ते की बात कर आये एक सप्ताह बाद वे लोग आकर पारो को देख गये और बात पक्की हो गई।
पारो और शान्ति जी दोंनो बेबस मूक दर्शक बन कर यह सब देख रहीं थीं।
घर में शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। रामलखन जी और शान्ति जी दोंनो शादी की तैयारियों में जुट गये। अब रिश्ता पक्का हो गया तो किया भी क्या जा सकता था।
पारो की शादी का दिन आ गया। पारो लग्न मंडप में बैठी थी। तभी उसने लड़के के पिता की ओर देखते हुए कहा –
पारो: ससुर जी मैं आगे पढ़ना चाहती थी। लेकिन मेरे पिता जबरदस्ती मेरी शादी करा रहे हैं। अगर आप मुझे आगे पढ़ने की इजाजत देंगे तभी मैं यह शादी करूंगी।
ससुर जी: रामलखन जी यह क्या मजाक है? आपने हमें हमारी बेज्जती करने के लिये बुलाया है। यह बात थी तो हमें पहले बताते हम बारात लेकर ही नहीं आते।
रामलखन जी: मुझे माफ कर दीजिये समधी जी यह बच्ची तो नादान है मैं इसे समझाता हूं।
रामलखन जी ने पारो को अलग कमरे में लेजाकर बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी। इधर बारात वापस जाने के लिये तैयार थी।
रामलखन जी सबको समझाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन लड़के पिता बारात वापस ले जाने की जिद्द पर अड़े थे। रामलखन ही उनके आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहे थे। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। दूल्हा अपने पिता के पास गया और बोला –
दूल्हा: पिताजी आपने मुझे पढ़ा लिखा कर काबिल बना दिया। तो क्या मैं किसी अनपढ़ गंवार से शादी करूंगा। यह तो हमारा नसीब अच्छा है कि हमें ऐसी लड़की मिल रही है जो आगे पढ़ना चाहती है। अगर हम इसे आगे पढ़ने की इजाजत दे दें तो इसमें क्या हर्ज है।
मैंने तो इस लड़की से शादी के लिये हां इसीलिये की थी, कि हमारे दोंनो गांव में केवल एक लड़की है जो पढ़ रही है।
उसकी बात सुनकर सब दंग रह गये। आखिरकार दूल्हे के पिता मान गये। धूमधाम से शादी हुई। उसके बाद पारो आगे पढ़ती रही। एक दिन उसकी सरकारी नौकरी लग गई। अब वह उस गांव में जहां उसकी ससुराल थी।
अध्यापिका बन कर स्कूल में पढ़ाने लगी और पूरे गांव में घर घर जाकर लड़कियों को आगे पढ़ने के लिये मनाने लगी। कुछ ही दिनों में बहुत सी लड़किया स्कूल आने लगीं।
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