दूरदर्शिता | Desi Kahani Foresight

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Desi Kahani Foresight : रंजन जी घर में सुबह बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उन्हें रिटायर हुए दो महीने ही हुए थे। अच्छी पेंशन आ रही थी।

पूरी जिन्दगी भागदौड़ में बीत गई। अब सोचा सुकून से जीवन बितायेंगे। तभी उनकी पत्नी राधिका जी आईं।

राधिका जी: अरे आप अभी तैयार नहीं हुए।

रंजन जी: अरे क्या हुआ कहीं जाना था क्या?

राधिका जी: ओहो आप तो सब भूल जाते हो। याद है आज हमें वृद्धा आश्रम जाना था। बात करने।

रंजन जी: तुम भी फिर वही बात लेकर बैठ गईं। अब तो सुकून से घर में रहने का समय आया है और तुम्हें वृद्धा आश्रम जाना है।

राधिका जी थोड़ा गंभीर होते हुए बोली: आपको कुछ समझ नहीं आ रहा लेकिन मैं महसूस कर रही हूं जब से आप रिटायर हुए हैं। घर का माहौल बदल गया है। बेटा और बहु जैसे किसी मुसीबत में फस गये हैं। वे हमारे से दुःखी होकर हमें घर से निकालें उससे पहले हम ही अपना इंतजाम कर लें।

रंजन जी: लेकिन कमल तो मुझसे बहुत अच्छे से बात करता है।

राधिका जी: वो इसलिये क्योंकि प्रोपर्टी अभी भी आपके नाम है। आपको कुछ समझ नहीं आता। अब इस उम्र में मुझसे आपकी बेज्जती बर्दाशत नहीं होगी। एक बार चलो न देख कर आते हैं।

रंजन जी बेमन से अपनी पत्नी के साथ चल देते हैं। वृद्धा आश्रम पहुंच कर दोंनो बात करते हैं। वहां उनके रहने की व्यवस्था हो जाती है। इसके साथ ही रंजन जी अपनी पेंशन का कुछ हिस्सा वृद्धा आश्रम में दान देने की बात कर लेते हैं।

घर आकर भी उनका मन नहीं था वृद्धा आश्रम जाने का लेकिन राधिक जी अब घर में नहीं रहना चाहती थीं। उन्होंने जोर डाला की शाम को कमल के आते ही उसे अपना फैसला सुना दें।

रात को खाना खाने के बाद सब बैठे थे –

रंजन जी: बेटा हमने फैसला किया है कि हम वृद्धा आश्रम जाकर रहें। तुम भी फ्रीडम से रह सकोगे, हम भी।

कमल: पापा ये आप क्या कह रहे हैं। मैं कभी सोच भी नहीं सकता कि मेरे होते आप वृद्धा आश्रम में रहें।

रंजन जी: बेटा मुझे पता है लेकिन ये फैसला तेरी मां का है।

राधिका जी: हां बेटा मैंने ही जोर डाला था इन पर इसकी वजह कुछ नहीं बस सब फ्रीडम से रहें यही ठीक है।

तभी कमल की पत्नी सुनैना किचन से बाहर आई –

सुनैना: अब इन दोंनो ने मिल कर फैसला ले लिया है तो इन्हें जाने दीजिये। जब इनका मन करेगा वापस आ जायेंगे।

राधिका जी और रंजन जी दोंनो एक दूसरे की ओर देख रहे थे। कि बहु ने एक बार भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। रंजन जी सोचने लगे शायद राधिक ठीक कह रही थी। अपना आत्मसम्मान बचाना है तो इस घर से किनारा कर लेना चाहिये जो बात में समझ नहीं पाया वह मेरी पत्नी ने दूर से ही भांप ली।

अगले दिन दोंनो घर से निकल कर वृद्धा आश्रम पहुंच जाते हैं। कमल उन्हें अपनी गाड़ी में पहुंचा आता है।

शुरू में दोंनो बहुत उदास रहते थे। किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे और कमल रोज शाम को ऑफिस से घर आते ही दोंनो का हाल चाल पूछता था। बस पूरा दिन ही बेटे के फोन के इंतजार में बीत जाता था। उसका फोन सुन कर दोंनो खुश हो जाते थे और चैन की नींद सो जाते थे।

एक दिन कमल ने फोन किया –

कमल: मम्मी वो मैं कुछ अपना बिजनेस शुरू करना चाहता हूं। मैं क्या सोच रहा था। मकान के उपर लोन ले लूं। धीरे धीरे चुका दूंगा। आप मुझे बैंक के लॉकर से मकान के कागज निकाल कर दे दीजिये।

उसका फोन सुनकर राधिका जी ने कमल जी को बताया तो वे बिफर पड़े-

रंजन जी: यही होना था इसीलिये कह रहा था घर मत छोड़ो। आज मकान गिरवी रखने की बात कर रहा है कल उसे बेच देगा। देख लेना तुम।

राधिका जी: छोड़ो न किस मोह माया में फसे हो वैसे भी हमारे बाद सब उसी का होने वाला है और हमारे गुजर बसर के लिये पेंशन तो आ ही रही है।

अगले दिन कमल अपनी मां राधिका जी के साथ जाकर बैंक के लॉकर से मकान के कागज ले लेता है। चलते समय राधिका जी कहती हैं –

राधिका जी: बेटा ये जेवर भी बहु को दे देना। बेकार ही लॉकर का किराया देना पड़ता है अब तुम सब संभालो। यह लॉकर वापस कर दो।

कमल फटाफट सारे काम करके मां को आश्रम छोड़ कर वापस चला जाता है।

राधिका जी: आपसे पूछे बगैर मैंने सारे जेवर बहु को दे दिये और लॉकर खाली कर दिया।

रंजन जी: पता नहीं तुम क्या सोच रही हों। हमें सब कुछ अपने कब्जे में रखना चाहिये था।

राधिका जी: आपके सामने कोई कुछ नहीं बोलता लेकिन एक दिन मैंने बहु को कमल से बात करते सुना था। वह कह रही थी। जब तक पिताजी हैं इनकी सेवा करनी पड़ेगी। कम से कम इनसे वसीयत तो करवा लो और मां से बात करके लॉकर में मेरा नाम डलवा दो।

मैं आपकी और अपनी इज्जत की खाति ही वहां से चली आई। आप मेरे सब कुछ हो आपको मेरी औलाद बैज्जत करे ये मुझसे देखा नहीं जायेगा। इसलिये मकान, जेवर सबसे मेरा मन हट गया। जो वे दोंनो चाहते थे वो हो गया। अब अगर हमारा बेटा सच में हमें चाहता होगा तो हमें पूछेगा। वरना अपने में मस्त रहना सीख लो।

यह सुनकर रंजन जी की आंखे खुल गई –

रंजन जी: तुम ठीक कहती हों। मैं ही बेटे के मोह में फसा बैठा था। एक दिन तो ये सब छूटना ही था। बहु बेटे की खुशी इसी में है तो यही सही।

फिर दोंनो ने देखा की कमल के फोन आने बंद हो गये। कभी कभी त्यौहार पर फोन कर लेता था।

एक दिन राधिका जी ने कहा –

राधिका जी: जी बहुत दिन हो गये यहां रहते रहते एक दिन अपने घर चलते हैं। मुझे वहां रहना नहीं है। दूर से ही देख कर चले आयेंगे। वह अपनी गली अपना मौहल्ला बहुत याद आती है। मेरी सहेली भी है उससे मिल आयेंगे।

रंजन जी, राधिक जी के साथ अपने घर पहुंच जाते हैं। वहां ताला लगा था। राधिक जी अपनी सहेली के घर पहुंच जाती हैं। वह दोंनो का बहुत स्वागत करती है। चाय नाश्ता करवाती है।

सहेली: देख राधिका तू बहुत दिन बात आई है शाम का खाना हमारे साथ ही खाना होगा तभी तुझे जाने दूंगी।

राधिका जी: अरे बैठ न खाने के चक्कर में किचन में लगी रहेगी। चल बातें करते हैं। मैं तुझसे बहुत बातें करना चाहती हूं। घर पर तो ताला लगा है शायद बहु कहीं गई होगी।

सहेली: तुझे नहीं पता कमल ने तो तुम्हारे जाने के एक महीने बाद ही मकान बेच दिया। वह अब अपने ऑफिस के पास ही एक फलैट लेकर रह रहा है।

रधिका जी: लेकिन मकान तो इनके नाम था। उसने कैसे बेच दिया।

सहेली: वो सब हो जाता है। पावर ऑफ अटोनी बनवा ली होगी नकली। फिर जिसे बेचा है वह बिल्डर है। उससे कोई पंगा ले नहीं सकता।

रंजन जी ये सब बैठ कर सुन रहे थे। वे सोच रहे थे। उनके बेटे उनके साथ ही धोखा किया। उनकी पत्नी कितनी दूरदर्शी है। जो सब पहले ही भांप गई।

रंजन जी: चलो राधिका वापस चलते हैं और आज के बाद कभी इस गली में मत लाना मुझे। यहां अपने बेटे के धोखे की कहानी लिखी हुई है।

दोंनो भारी मन से वृद्धा आश्रम आ जाते हैं और बैठ कर सोचते हैं। काश हम नहीं जाते तो इतना दुःख नहीं होता।

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