कॉलेज का पहला दिन | True Friendship Story

True Friendship Story
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True Friendship Story : सचिन का आज कॉलेज में पहला दिन था। सचिन के माता पिता का एक एक्सीडेंट में देहान्त हो चुका था। उसके चाचा ने उसकी परवरिश की थी।

सचिन पढ़ने में बहुत तेज था। इसलिये उसे स्कॉलरशिप मिलती रही जिससे उसके पढ़ने का खर्च न के बराबर आता था। सचिन कॉलेज पहुंचा तो उसने देखा वहां का माहौल ही अलग था। पढ़ने पर किसी का ध्यान नहीं था। सभी मौज मस्ती में लगे रहते थे। मंहगे कपड़े, बाईके, गाड़ियां। यह दुनिया ही अलग थी।

सचिन इस सबसे बचता हुआ अपनी क्लास में पहुंचा। वहां भी मौज मस्ती हो रही थी। सचिन अपनी नई किताबों को लेकर बहुत उत्साहित था। वह किताब निकाल कर पढ़ने बैठ गया।

तभी एक लड़का जिसका नाम मोहित था। उसके पास आया।

मोहित: अरे भाई तुम किस दुनिया से आये हो? कॉलेज के पहले ही दिन पढ़ने बैठ गये। यहां सब मौज मस्ती कर रहे हैं तुम भी करो।

सचिन ने कोई जबाब नहीं दिया, तो मोहित को गुस्सा आ गया। उसने सचिन की किताब छीन कर बाहर फेंक दी। सचिन ने कुछ नहीं कहा वह उठा और कॉरीडोर में पड़ी अपनी किताब को उठा कर बाहर गॉर्डन में एक पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ने लगा।

मोहित और उसके दोस्त उसे दूर से देख रहे थे।

मोहित: बड़ा पढ़ाकू बनता है चल उसे सबक सिखाते हैं।

सभी सचिन के पास पहुंच जाते हैं। उससे किताब छीन लेते हैं। यह देख कर सचिन को गुस्सा आ जाता है। वह उसने अपनी किताब वापस करने के लिये कहता है। पर वे नहीं मानते और किताब को एक दूसरे की ओर उछाल देते हैं।

तभी दूर से एक लड़का जो कि शायद सीनियर लग रहा था। मजबूत कदकाठी का था उसका नाम अमर था। वह दौड़ता हुआ वहां आया और बोला –

अमर: क्यों बे तुम सारे आज ही कॉलेज आये हो और कॉलेज को अपने बाप का घर समझ लिया। क्यों इसे परेशान कर रहे हो? मैं बताउं तुम्हें रेंगिग कैसे करते हैं।

यह सुनकर सभी घबरा जाते हैं और चुपचाप वहां से जाने लगते हैं। अमर उनसे किताब लेकर सचिन को देता है।

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अमर: तुम बहुत सीधे हो ऐसे काम नहीं चलेगा। वैसे डरो मत ये अब तुम्हें परेशान नहीं करेंगे। मेरा नाम अमर है अगर कोई तुमसे कुछ कहे तो मुझे बता देना।

सचिन: थैंक्यू भैया। मैं यहां पढ़ने आया हूं लेकिन यहां तो पढ़ाई का माहौल ही नहीं है।

अमर: आज पहला दिन है वैसे भी अभी पन्द्रह दिन ऐसे ही चलेगा। एडमिशन पूरे होने पर ही ढंग से पढ़ाई शुरू होगी। तुम भी मौज मस्ती करो बाद में पढ़ लेना।

सचिन: नहीं अमर मेरे उपर बहुत जिम्मेदारी है। मेरे माता पिता नहीं हैं। किसी तरह चाचा के घर पर रह रहा हूं। मुझे जल्द से जल्द कुछ बनना है। अगर स्कॉलरशिप न मिलती तो मैं कभी कॉलेज नहीं आ पाता।

यह सुनकर अमर को सचिन की सच्चाई का पता लगा वह बोला –

अमर: आज से तुम मेरे दोस्त हो तुम्हें कोई परेशानी हो तो मुझे बताना। मन लगा कर पढ़ो, तुम जरूर कामयाब हो जाओगे।

सचिन शाम को घर आया तो चाचा ने पूछा –

चाचा: बेटा कैसा था कॉलेज का पहला दिन?

चाची: कैसा होगा मौज मस्ती करने ही तो जाते हैं कॉलेज उड़ाओ अपने चाचा के पैसे।

चाची सचिन को पसंद नहीं करती थीं। वे हमेशा ही उसे ताने मारती रहती थीं। पूरे घर का काम सचिन से करवाती। बाहर से सामान मंगवाती फिर भी उसे आधा पेट खाने को देती थीं।

उनकी बात सुनकर सचिन बोला –

सचिन: नहीं चाची मैं तो सारा दिन पढ़ रहा था।

चाची: मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम पढ़ते हो या नहीं। जल्द से जल्द पढ़ लिख कर कोई नौकरी ढूंढो और हमारा पीछा छोड़ो।

चाचा: चुप हो जा बेचारा कितना काम करता है। बदले में तुम उससे कितना बुरा व्यवहार करती हों।

चाची: तो यहां क्यों पड़ा है। कहीं चला क्यों नहीं जाता।

चाचा: जिस दिन यह अपने पैरों पर खड़ा होगा चला जायेगा। तेरी जली कटी सुनने के लिये यहां नहीं रहेगा।

सचिन वहां से चुपचाप अपने कमरे में चला जाता है और अपने माता पिता की फोटो के आगे बैठ कर रोने लगता है। काश उसे माता पिता जीवित होते तो उसे यह सब नहीं देखना पड़ता।

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अगले दिन सचिन कॉलेज में उसी पेड़ के नीचे बैठा था। आज उसका पढ़ने का बिल्कुल मन नहीं था। तभी वहां अमर आ जाता है।

अमर: क्या बात है सचिन आज बिल्कुल नहीं पढ़ रहे।

सचिन: अमर कल की बातें अमर को बता देता है।

अमर: मैं यहीं होस्टल में रहता हूं तुम चाहो तो मेरे साथ आकर रह सकते हो।

सचिन: नहीं मैं अभी वहां से नहीं आ सकता। मैं कमा कर चाचा जी को पैसे देना चाहता हूं तो उन्होंने मेरी पालन पोषण और पढ़ाई पर खर्च किये वो एक कर्ज है। जिसे उतार कर ही वहां से निकलूंगा।

अमर: एक काम कर मेरे साथ चल यहीं पास में एक इंस्टीट्यूट है तू वहां कोचिंग देना शुरू कर दे शाम को वहां पढ़ाना शुरू कर इससे तुझे पैसे भी मिलेंगे और तेरी पढ़ाई भी हो जायेगी।

अमर, सचिन को लेकर शाम को इंस्टीट्यूट पहुंच जाता है। सचिन को वहां पढ़ाने का काम मिल जाता है। अब सचिन देर रात को घर जाता और सुबह जल्दी ही घर से निकल जाता था।

सचिन ने पैसे जोड़ने शुरू कर दिये। अब वह घर में भी कुछ पैसे देने लगा था।

सर्दी की एक रात को सचिन कोचिंग से घर की ओर जा रहा था। सुनसान सड़क को वह पार कर रहा था। तभी अचानक तेज सपीड में एक कार आई इससे पहले सचिन कुछ समझ पाता वह कार उसे टक्कर मार कर चली गई आगे जाकर कार रुकी। लेकिन कुछ ही देर में वह वहां से चली गई। सचिन सड़क पर बेहोश पड़ा था। तभी किसी ने पुलिस को फोन कर दिया पुलिस उसे लेकर अस्पताल पहुंच गई।

सचिन के सिर में काफी चोट आई थी। अमर को यह बात पता लगी तो वह अपने कुछ दोस्तों के साथ अस्पताल पहुंचा बाहर एक बैंच पर सचिन के चाचा बैठे थे।

चाचा: बेटा सचिन के सर में काफी चोट आई है और उसका एक पैर टूट गया है। पता नहीं बेचारे की किस्मत में क्या लिया है। ऐसा ही हादसा इसके माता पिता के साथ हुआ था।

अमर: चाचाजी आप चिंता मत करो। हम सब सचिन का ध्यान रखेंगे आप घर जाओ।

अमर ने अलग जाकर अपने दोस्तों से कुछ बात की। उस दिन से अमर और उसके दोस्त सचिन की देखभाल करने लगे। कुछ दिन में सचिन ठीक होने लगा। लेकिन उसके पैर में लंबे समय के लिये प्लास्टर चढ़ गया था।

सचिन: अमर तुमने मेरे लिये बहुत कुछ किया है। मैं इसका एहसान कैसे चुकाउंगा?

अमर: चुप कर तू मेरा छोटा भाई है। चिंता मत कर।

कुछ दिनों में सचिन को छुट्टी मिल गई अमर उसे अपने साथ अपने होस्टल ले गया। उसकी देखभाल करता रहा। कुछ महीनों में सचिन धीरे धीरे चलने लायक हो गया।

बुरा समय टल गया था। वह फिर से कोचिंग में पढ़ाने लगा। अब वह अमर के साथ हॉस्टल में रहता और कभी चाचा चाची से मिलने जाता। वह हर बार उन्हें कुछ पैसे दे आता था।

इसी तरह समय बीत रहा था। सचिन की पढ़ाई पूरी हो गई अमर पहले ही पढ़ाई पूरी करके एक कंपनी में नौकरी कर रहा था। वहीं उसने सचिन की नौकरी भी लगवा दी।

एक दिन सचिन को पता लगा कि उसके चाचा बहुत बीमार हैं। वह उनसे मिलने गया।

सचिन: चाचजी चलिये आप मै आपको अस्पताल ले चलता हूं वहां आपका अच्छे से इलाज होगा।

चाचा: नहीं बेटा डॉक्टरो ने जबाब दे दिया है। अब मैं कुछ दिन का मेहमान हूं। पर सोचता हूं मेरे बाद तेरी चाची का क्या होगा हमारी कोई सन्तान तो है नहीं तू एक काम कर देना मेरे मरने के बाद इसे किसी वृद्धा आश्रम में पहुंचा देना।

यह सुनकर चाची चाचा के पैरों के पास बैठ कर रोने लगी।

सचिन: कैसे बात करते हो चाचा मैं आपका बेटा नहीं हूं आप और चाची मेरे साथ रहेंगे जीवन भर।

सचिन दोंनों को अपने घर ले आता है। कुछ दिन बाद चाचा का देहान्त हो जाता है। सचिन उनकी अंतिम क्रिया पूरी करता है। कुछ दिन बाद उसकी चाची कहती हैं –

चाची: बेटा मुझे वृद्धा आश्रम छोड़ और मैं इस लायक नहीं कि तू मुझे अपने घर में रखे।

सचिन: चाची मैंने आपको हमेशा अपनी मां माना है। आप हमेशा मेरे साथ रहोंगी। मैंने चाचा को वचन दिया था। आप पूरे हक से अपने बेटे के साथ रहो।

यह सुनकर चाची रोने लगीं और सचिन को गले से लगा लिया।

अमर को बड़े भाई के रूप में पाकर सचिन का जीवन बदल गया। ऐसा दोस्त जिसने उसकी सारी परेशानियां खत्म कर दीं किस्मत वालों को मिलता है।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.