कंजूस सास की नवरात्री | Navratri ki Kahani in Hindi

Navratri ki Kahani in Hindi
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Navratri ki Kahani in Hindi : सुशीला एक शहर में अपने बेटे अमित और बहु स्नेहा के साथ रहती थी। सुशीला का बेटा नौकरी करता था। घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। लेकिन सुशीला बहुत कंजूस थी।

अमित अपनी सारी तनख्वाह सुशीला को देता था। एक दिन स्नेहा सुशीला से बात करती है।

स्नेहा: मांजी नवरात्रि का व्रत है आप कुछ फल मंगा दीजिये।

सुशीला: बहु अगर तुझसे भूखा नहीं रहा जाता तो व्रता का ढोंग क्यों करती है पता है मेरा बेटा कितनी मेहनत से पैसा कमाता है। तुझे व्रत में भी फल खाने हैं। फल पता है कितने महंगे हैं।

स्नेहा: लेकिन मांजी फला हार तो सभी करते हैं व्रत में।

सुशीला: मैं कुछ नहीं मंगाने वाली इससे तो अच्छा है तू कल का बचा खाना खा ले।

स्नेहा चुपचाप अपने कमरे में चली जाती है।

शाम को स्नेहा अमित को सारी बात बताती है।

अमित: मॉं तुम भी कमाल करती हो थोड़े से फल मंगा लेती तो क्या हो जाता अखिर हमारे पास पैसों की कमी नहीं है फिर भी तुम हमेशा कंजूसी में लगी रहती हो।

सुशीला: मैं ही घर छोड़ कर चली जाती हूं फिर तुम दोंनो पैसे लुटाते रहना। यह कहकर सुशीला घर छोड़ कर चल देती है।

स्नेहा: मांजी रुक जाइये। आप जैसे चाहें वैसे खर्च कीजिये।

अमित: मॉं तुम तो बेकार गुस्सा हो रही हों मैंने तुम्हें घर से जाने के लिये तो नहीं कहा था।

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सुशीला: ठीक है लेकिन इस घर में सब कुछ मेरे हिसाब से चलेगा।

दो दिन बाद स्नेहा सुशीला के पास आती है।

स्नेहा: मांजी कल नवमी है हमें कन्या पूजन करना है आप मुझे कुछ पैसे दे दीजिये मैं बाजार से प्रसाद बनाने का सामन ले आती हूं।

सुशीला: बहु कन्याओं को खाना खिलाने से क्या होगा एक काम कर तू कन्याओं को पूजन करके 2-2 रुपये दे देना बच्चे हैं उन्हें बहलाना कौन सा मुश्किल काम है।

स्नेहा सुशीला से बहस न करके चुपचाप अपने पैसों से सारा सामान ले आती है अगले दिन अमित की भी छुट्टी थी।

स्नेहा सुबह से ही रसोई में प्रसाद तैयार कर देती है।

सुशीला: बहु यह रसोई मैं से देशी घी की खुश्बू आ रही है क्या बना रही है देशी घी में।

स्नेहा: मांजी हलवा बनाया था।

सुशीला: देशी घी मैं अपने बेटे के लिये लाती हूं और तू हलवा बना कर खा रही है।

स्नेहा: नहीं मांजी कन्या पूजन के लिये बनाया है। अभी पूजा करके कन्याओं को खाना खिलाना है।

सुशीला: मैंने तुझे मना किया था। फिर भी तू सामान ले आई।

स्नेहा: मांजी मैं अपने पैसों से लाई हूं आप चिन्ता न करें।

सुशीला: ठीक है लेकिन खान मैं खिलाउंगी कन्याओं को तू तो सारा खाना खत्म कर देगी।

अमित और स्नेहा सुशीला की बात सुनकर बहुत दुखी होते हैं। वे अपनी मॉं की कंजूसी की आदत से पहले ही परेशान थे लेकिन कन्याओं के खाने में कटौती से वे परेशान हो रहे थे। पूरे परिवार ने पूजा की। पूजा के बाद स्नेहा कुछ देर मॉं दुर्गा के सामने बैठ कर प्रार्थना करने लगी

स्नेहा: हे देवी मॉं हमारी भूल चूक क्षमा करना। मेरी सास का हृदय परिवर्तन कर दो जिससे वे कंजूसी छोड़ दें।

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कुछ देर बाद 9 कन्याओं भोजन करने के लिये आ जाती हैं।

सुशीला अपने हाथों से सबको खाना परोसती है। वह बहुत कम खाना परोसती है।

अमित: मॉं यह तो बहुत कम है कम से कम कन्याओं को खाना तो ढंग से परोसो।

सुशीला: तू चुप रह अगर किसी कन्या को जरूरत होगी तो वह मांग लेगी।

अमित और स्नेहा चुपचाप खड़े रहकर कन्याओं को खाना खाते देखते हैं।

सभी कन्याएं खाना खा लेती हैं। उनमें से एक कन्या अभी खाना खा रही थी।

कन्या: मांजी क्या आपके घर में खाना कम बना है। मुझे तो बहुत भूख लगी है।

स्नेहा उसे पूरी और हलवा परोस देती है।

सुशीला: खाना बहुत है लेकिन बेकार करने के लिये नहीं है जितना चाहिये उतना ही लेना झूठ मत छोड़ना।

वह कन्या सारा खाना खा जाती है और खाना मांगती है। स्नेहा उसे जितनी बार खाना देती वे सारा खा जाती यह देख कर सुशीला परेशान हो जाती है। जब सारा खाना खत्म हो जाता है।

कन्या: अभी तो मेरी भूख नहीं मिटी।

सुशीला: अब तो खाना भी खत्म हो गया।

कन्या: लेकिन आप लोगो ने कन्या पूजन किया है भरपेट भोजन तो करना पड़ेगा तभी तो मॉं अम्बे प्रसन्न होंगी अगर आपके घर से कन्या भूखी चली गई तो मॉं रुष्ट हो जायेंगी।

स्नेहा जल्दी से दुबारा खाना तैयार करती है।

सुशीला: बहु मैं तुझे इसीलिये मना किया था कन्याओं को खाना खिलाने के लिये अब तो लगता है हमारे घर का सारा राशन खत्म हो जायेगा।

कन्या: मांजी कंजूसी छोड़ कर पूजा किया करो देवी मॉं के प्रसाद मैं कैसी कंजूसी।

सुशीला: चुप रह चुपचाप खाना खा और अपने घर जा।

स्नेहा उसे और खाना लाकर देती है। जिसे खाकर कन्या खड़ी हो जाती है।

कन्या: खाना तो हो गया लेकिन कन्या को दक्षिणा भी तो दो कंजूस दादी।

सुशीला: हे भगवान अब इसे पैसे भी चाहिये

तभी अमित उस कन्या को पैसे दे देता है। अमित और स्नेहा उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।

कन्या: आप भी पैर छूलो मैं आपको भी आशीर्वाद दे दूंगी।

सुशीला बेमन से पैर छूनें के लिये झुक जाती है। वह कन्या सुशीला के सिर पर हाथ रख देती है।

उसके हाथ रखते ही सुशीला की आंखो से आंसू बहने लगते हैं। वह कन्या के पैरों में पड़ जाती है।

सुशीला: मॉं मुझे माफ कर दो अपनी कंजूसी के कारण मैंने आपका अपमान किया लेकिन आपके छूते ही मेरे मन से सारे पाप मिट गये।

कन्या: मैं तो एक साधारण कन्या हूं।

सुशीला: नहीं आप साधारण नहीं है आप साक्षा मॉं दुर्गा का रूप हैं।

फिर वह कन्या उन्हें आशीर्वाद देकर चली जाती है। सुशीला का मन बदल चुका था वह सब कुछ छोड़ कर मॉं दुर्गा की भक्ति में लग जाती है।

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