Thand Ka Kahar Story : रामकुमार खाना खाकर थोड़ी देर धूप में बैठा ही था, कि ठेकेदार ने उसे देख लिया। वह गुस्से में रामकुमार के पास आया। उसे देख कर रामकुमार उठ कर ईंटे उठाने को चल दिया।
उसे देख कर रामकुमार उठ कर ईंटे उठाने को चल दिया। तभी ठेकेदार बोला – ‘‘कहां जा रहा है बे, कब से आराम फरमा रहा था। अब मुझे देख कर काम पर लग गया।’’
रामकुमार सकपका गया। वह बोला – ‘‘नहीं मालिक बस अभी खाना खाकर दो मिनट धूप में बैठा था। बहुत ठंड है।’’
ठेकेदार ने उसे घूरते हुए कहा – ‘‘अगर धूप ही सेकनी है तो घर जाकर सेक यहां काम करने आता है या धूप सेकने। तेरे आधे दिन के पैसे काटूंगा।’’
रामकुमार को बहुत गुस्सा आया लेकिन अपने परिवार के बारे में सोच कर बोला – ‘‘मालिक ऐसा जुल्म न करो बच्चे भूखे मर जायेंगे।’’
ठेकेदार को और गुस्सा आ गया – ‘‘अबे मैंने तेरे बच्चों का ठेका ले रखा है। कल के मरते आज मर जायें।’’
अब पानी सिर के उपर हो चुका था। रामकुमार ने इधर उधर देखा उसके साथ के सारे मजदूर अपने अपने काम में लगे थे, जैसे किसी ने कुछ सुना ही न हो।
रामकुमार बोला – ‘‘मेरे बच्चे के बारे में कुछ मत बोल नहीं तो यही ईंट तेरे सिर में मार दूंगा। चल मैं काम नहीं करता ला मेरा हिसाब कर आधे दिन के पैसे दे।’’
ठेकेदार बोला – ‘‘अच्छा मुझे धमकी देता है जा भाग जा नहीं देता पैसे जो करना है कर ले।’’
रामकुमार को अपनी गलती का अहसास हो गया। अगर पैसे नहीं मिले तो घर में चूल्हा कैसे जलेगा।
रामकुमार ने कहा – ‘‘मुझे माफ कर दो पर आधे दिन के पैसे तो दे दो।’’
लेकिन ठेकेदार अपनी बात पर अड़ा था। रामकुमार बहुत गिड़गिड़ाया लेकिन ठेकेदार ने उसे एक पैसा भी नहीं दिया। वह थक हार कर वापस घर की ओर चल दिया।
शहर के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी में उसकी पत्नी लाजो और उसकी बेटी कन्तो रहते थे। आज जब वह घर पहुंचा तो लाजो ने पूछा – ‘‘क्या हुआ बहुत परेशान हो और इतनी जल्दी काम पे से कैसे आ गये।’’
रामकुमार ने कुछ नहीं कहा वह बस इतना बोला – ‘‘कम खत्म हो गया कल से कहीं और काम देखना पड़ेगा।’’
वह बाहर पड़ी टूटी सी खाट को धूप में खिसका कर लेट गया। पास ही में कन्तो खेल रही थी।
जब उसका ध्यान अपने पिता पर गया तो वो उनके पास आई – ‘‘बापू तुमने कहा था कल बाजार चलेंगे। आज मैं भी आपके साथ चलूंगी।’’
यह सुनकर लाजो भी बाहर निकल आई – ‘‘हांजी आज जल्दी आ गये हो तो घर का राशन लेने चलते हैं। घर में कुछ भी नहीं है पकाने को परसो सामान लाये थे दो दिन चल गया।’’
रामकुमार सोच में पड़ गया। फिर वह बोला – ‘‘मेरे पास पैसे नहीं हैं। ठेकेदार ने बेईमानी कर ली मुझे आज पैसे ही नहीं दिये।’’
लाजो सिर पकड़ कर बैठ गई – ‘‘हे भगवान अब क्या करेंगे कहां से खाना पकाउंगी हम तो रह लेंगे लेकिन कन्तो भूखी कैसे रहेगी।’’
रामकुमार करवट लेकर लेट गया। उसके पास इस सवाल का कोई जबाब नहीं था। शाम होने लगी तो रामकुमार चारपाई को झोपड़ी के अंदर ले गया और एक पुराना सा कंबल ओढ़ कर लेट गया।
लाजो बाहर बैठी थी। कुछ देर बाद वह कन्तो को घर का ध्यान रख यह बोल कर कहीं चल दी। पास ही में उसकी एक सहेली रहती थी। वह उसकी झोपड़ी के पास पहुंची। तो वह बाहर ही मिल गई।
लाजो बोली – ‘‘बहन थोड़ी सी मदद कर दो आज उनका काम छूट गया ठेकेदार ने पैसे भी नहीं दिये। घर में खाने को कुछ नहीं है बच्ची के लिये थोड़ा सा खाना दे दो।’’
सरिता बोली – ‘‘अरे बहन कोई बात नहीं तुम राशन ले जाओ जो जो सामान चाहिये ले जाओ पका लेना और सब खा लेना।’’
लाजो बोली – ‘‘नहीं बहन बस कन्तो के लिये दे दो हम तो भूखे भी रह लेंगे।’’
सरिता बोली – ‘‘बहन कब तक भूखे रहोगे अब पता नहीं तेरे आदमी को काम कब मिले उससे कह जरा दिमाग ठंडा रखे नहीं तो रोज चूल्हा ठंडा रहेगा।’’
लाजो को बहुत बुरा लगा – ‘‘बहन ऐसी क्या बात हो गई तो तुम ऐसे बोल रही हों।’’
सरिता ने राशन का सामान एक थेले में डाला और थैला लाजो को पकड़ाते हुए बोली – ‘‘बहन मैं तेरी सहेली हूं मेरी बात का बुरा मत मान आज तेरे आदमी ने ठेकेदार से लड़ाई कर ली। उसे ईंट मारने की धमकी दी तभी उसने उसे भगा दिया। मेरे आदमी ने बताया। वहां काम खत्म नहीं हुआ है।’’
लाजो वहीं बैठ गई – ‘‘हे भगवान अब क्या होगा? ये तो कह रहे थे काम खत्म हो गया। मैंने सोचा ठेकेदार सारे मजदूरों को कहीं और लगवा देगा।’’
सरिता बोली – ‘‘बहन हम गरीब लोग हैं हमें तो सबकी सुननी पड़ती है। ठेकेदार मेरे आदमी को भी रोज गाली देता है। लेकिन सब सुनना पड़ता है।’’
लाजो कुछ नहीं बोली राशन लेकर सीधे घर आ गई। आज उसे अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने खाना बनाया और रामकुमार से कहा – ‘‘चलो खाना खा लो।’’
रामकुमार उठ कर बैठ गया और बोला – ‘‘राशन कहां से आया तू तो कह रही थी घर में कुछ नहीं है।’’
लाजो को गुस्सा और तेज हो गया वह बोली – ‘‘भीख मांग कर लाई हूं। तुम तो लोगों के ईंट मारो मुझे तो अपनी बच्ची के लिये भीख मांगनी पड़ेगी। सरिता से मांग कर लाई हूं।’’
रामकुमार को भी गुस्सा आ गया वह बोला – ‘‘कोई मेरी बच्ची को मरने के लिये बोलेगा तो उसका सिर फाड़ दूंगा।’’
लाजो ने यह सुना तो वह पूछने लगी कि क्या बात थी।
रामकुमार ने सारी बात बताई तो वह बोली – ‘‘चलो छोड़ो कल किसी दूसरे ठेकेदार के पास जाकर काम की बात कर लेना आज का काम तो चल गया लेकिन कल क्या होगा?’’
रामकुमार की आंखों से आंसू बह रहे थे। वह अपनी लाचारी और गरीबी पर बहुत शर्मिन्दा था। लाजो उसे समझा रही थी।
रामकुमार बोला – ‘‘हम गांव में कितने सुखी थे। सूखी रोटी मिलती थी। लेकिन पूरे गांव में इज्जत थी। यहां शहर में बेज्जती भी होती है मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है और पैसे भी कम मिलते हैं। उपर से महंगाई।’’
लाजो बोली – ‘‘मैं तो पहले ही कह रही थी यहीं रहते हैं आप ही को लग रही थी। शहर में जाकर ज्यादा पैसे कमा लेंगे।’’
रामकुमार चुपचाप खाना खाकर सो गया। कन्तो ने भी खाना खा लिया था लेकिन लाजो के हल्क से एक निवाला भी नहीं उतरा था।
अगले दिन रामकुमार ने काम ढूंढना शुरू किया लेकिन कहीं भी काम नहीं मिला। वह शाम को घर आया तो पता लगा कन्तो को तेज बुखार है। वह उसे डाक्टर के पास भी नहीं लेजा सकता था। लाजो के पास कुछ पैसे थे तो केमिस्ट से बुखार की गोली ले आया और कन्तो के सिर पर पट्टी रखता रहा।
जैसे तैसे रात गुजरी भूख से दोंनो बेहाल थे। कन्तो का बुखार उतर गया था। लेकिन वह बहुत कमजोर थी।
रामकुमार सुबह उठ कर उसी ठेकेदार के पास पहुंचं गया और बोला – ‘‘मालिक मेरे से बहुत भूल हो गई माफ कर दो वापस काम पर रख लो।’’
ठेकेदार बोला – ‘‘नहीं भैया कल तुझे गुस्सा आया और तूने ईंट मार दी तो मैं तो मर जाउंगा। एक काम कर मुनीम जी से अपने आधे दिन के पैसे ले जा और मेरा पीछा छोड़।’’
रामकुमार पैसे लेकर घर आया। पैसे लाजो को दिये लाजो कुछ सामान ले आई और कन्तो के लिये थोड़ा सा दूध ले आई।
रामकुमार बोला – ‘‘लाजो चल इन बचे पैसों से गांव चलते हैं। वहां इज्जत की दो रोटी तो मिल ही जाती थीं। कभी भूखे नहीं सोना पड़ा। यहां दिन रात मेहनत करके भी चूल्हा ठंडा पड़ा है।’’
लाजो बोली – ‘‘मैं भी आपसे यही कहना चाहती थी। अपना घर अपना ही होता है। इस शहर में इस झोपड़ी में ठंड में पड़े रहते हैं। अब तो चूल्हा भी नहीं जल पा रहा। चलो चलते हैं।’’
सारा सामान बांध कर वे तीनों हमेशा के लिये गांव चल दिये।
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