Honesty Story in Hindi : सुरजपुर नगर में एक सोने का व्यापारी था उसका नाम था हरिसिंह। वह सोने के गहने बना कर बेचता था। वह सोने में मिलावट नहीं करता था।
उस बाजार में और भी सुनारों की दुकानें थीं, लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ हरिसिंह की दुकान पर ही रहती थी। बाकी दुकानदार हरिसिंह से बहुत परेशान रहते थे। क्योंकि वे मिलावट करके ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते थे।
एक दिन हरिसिंह रात के समय अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था। तब वहां के कुछ सुनारों ने उसे बुलाया और कहा – ‘‘भाई तुम तो हम सबका धंधा बंद करवा दोगे। तुम भी हमारी तरह सोने मिलावट करके मौटा पैसा बना सकते हो। इतनी ईमानदारी से तुम्हें मिलता ही क्या होगा।’’
उनकी बात सुनकर हरिसिंह के मन में लालच आने लगा। वह यही सब सोचता हुआ घर पहुंचा। घर पर उसकी बेटी जिसकी उम्र पांच साल थी। वह आकर अपने पिता के गले लग गई।
हरिसिंह ने उससे बहुत प्यार किया तभी उसकी पत्नी विभा उसके लिये खाना ले आई। आज विभा हरिसिंह को देख रही थी। उसका मन खाने में नहीं है।
हर दिन हरिसिंह विभा के बनाये खाने की तारीफ करता था। लेकिन आज उसे खाना कैसा लगा ये भी उसने नहीं बताया।
विभा उसके पास बैठ गई और बोली – ‘‘आज खाना अच्छा नहीं बना क्या?’’
हरिसिंह जैसे किसी नींद से जगा उसने कहा – ‘‘नहीं नहीं खाना तो बहुत अच्छा है। शायद मेरा ध्यान ही कहीं और था। विभा मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं। तुम मेरी हालत जानती हों हम लोग केवल अपने खर्चे ही चला पाते हैं। ऐसे में मेरे साथ के दुकान वाले पहले से बहुत अमीर हैं क्योंकि वे सोने में मिलावट करते हैं। जिसका पता ग्राहक को कभी नहीं लगता। इस तरह वे उस गहने की चार गुना कीमत वसूल कर लेते हैं।’’
विभा बोली – ‘‘आप साफ साफ बताईये बात क्या है?’’
यह सुनकर हरिसिंह बोला – ‘‘आज कई दुकानदारों ने मुझे रोक कर कहा कि मुझे भी मिलावट करनी चाहिये। मैं भी सोच रहा हूं अगर थोड़ी सी मिलावट कर ली जाये तो किसी को क्या पता लगेगा। इतने सालों में विश्वास मैंने कमाया है उसे अब इस्तेमाल करना चाहिये हम भी अमीर बन जायेंगे। विभा हमारी बच्ची का भी तो भविष्य है, उसके लिये भी हमें पैसे जोड़ने हैं।’’
विभा यह सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हो गई उसने कहा – ‘‘मुझे समझ नहीं आता आज तक आप बिल्कुल ईमानदारी से चलते थे। आप पर लोग भरोसा करते हैं। आज आपको क्या हो गया। आज मन में ये बेईमानी का ख्याल कैसे आ गया।’’
हरिसिंह ने झुझलाते हुए कहा – ‘‘अरे तुम तो कुछ समझ ही नहीं रही हों। हमें अपनी बच्ची के भविष्य के लिये ये काम कर लेना चाहिये। कुछ साल ऐसा करके हमारे पास पैसा आ जाये फिर हम ये सब नहीं करेंगे।’’
यह सुनकर विभा को बहुत गुस्सा आया उसने कहा – ‘‘क्या आप अपनी बच्ची को चोरी के पैसों से पालपोस कर बड़ा करेंगे। यह तो सही नहीं है।’’
लेकिन हरिसिंह अपनी जिद पर अड़ा था। वह अब किसी भी कीमत पर अमीर बनना चाहता था।
उसने विभा से आगे बात करना ठीक नहीं समझा और चुपचाप खाना खाकर सोने चला गया।
विभा उसके इस तरह के इरादे से बहुत सदमे में थी। उसे लग रहा था, कि कहीं इन पैसों से उनके घर का सुख चैन न चला जाये।
अगले दिन हरिसिंह दुकान पर गया और अपने कारीगर से सोने के जेवर में मिलावट करने के लिये कहा, कारीगर ने थोड़े से तांबे की मिलावट करके जेवर बना दिये।
अगले दिन ग्राहक जब अपने जेवर लेने आये तो बोले – ‘‘भाई हरिसिंह जी मेरे बेटे की शादी है इसीलिये मैंने ये जेवर बनाये हैं। हम लोगों में रिवाज है कि बहु के मायके में ज्यादा से ज्याद जेवर लेकर जाते हैं। जिससे हमारी शान बढ़ जाये।’’
हरिसिंह ने जेवर दे दिये और पैसे लेकर रख लिये। शाम को उसके कारीगर ने बचा हुआ सोना हरिसिंह को दे दिया।
हरिसिंह सोना लेकर घर आ गया। उसे अब यह लग रहा था, कि अगर इतना ही सोना रोज बच जाये तो वह बहुत अमीर बन जायेगा। कुछ दिन बाद इस बने जेवर से ही गहने बना कर बेच दूंगा।
उस रात हरिसिंह अपने भविष्य के बारे में सोच कर खुश हो रहा था। इधर विभा को जब ये पता लगा तो वह बहुत परेशान हो गई। उसने हरिसिंह को फिर से समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने अपनी पत्नी को मूर्ख बताया और वह सो गया।
रात को उसने सपना देखा कि उसकी बेटी बड़ी हो गई और उसका विवाह का दिन आ गया। जिस दिन उसका विवाह था। उसी दिन हरिसिंह की चोरी का पता लड़के वालों को लग जाता है और वे बारात वापस ले जाते हैं।
हरिसिंह की आंख खुली वह पसीने में नहा गया था। उसने विभा को सपने के बारे में बताया। विभा ने कहा – ‘‘आपकी ईमानदारी ही हमारे लिये सबसे बड़ी दौलत है। ये काम छोड़ दीजिये।’’
हरिसिंह बोला – ‘‘हां अब में आगे से कभी ये काम नहीं करूंगा लेकिन अब इस सोने का क्या करूं सेठ जी को वापस करना ही सही रहेगा। लेकिन वो मेरी बात पर विश्वास नहीं करेंगे।’’
विभा ने कहा – ‘‘तुम कल उनके घर चले जाओ और ये वापस करके माफी मांग लेना। या कोई बहाना लगा देना।’’
अगले दिन हरिसिंह दुकान पर गया। उसका दुकान पर मन नहीं लग रहा था। वह सारा दिन सोचता लेकिन उसे तो सेठ जी का पता मालूम ही नहीं था। रात के समय वह दुकान बंद करके घर जा रहा था। तभी उसका ध्यान एक शादी समारोह में गया। वहां काफी भीड़ थी। वह भी वहां देखने पहुंच गया।
लड़की के पिता गुस्से में अपने समधी से लड़ रहे थे – ‘‘आप ये नकली गहने लेकर हमारी लड़की को अपने घर की बहु बनाने आये थे आपको शर्म आनी चाहिये।’’
जब हरिसिंह ने देखा तो ये तो वही सेठ जी थे और वहीं पास में सारे जेवर रखे थे।
सेठ जी ने कहा – ‘‘आप एक काम कीजिये अपने जान पहचान के किसी सुनार को बुलाईये उससे गहनों की जांच करवाईये।’’
सुनार को बुलाया गया। उसने गहनों की जांच की और कहा इनमें कुछ मिलावट है।
यह सुनकर सेठ जी को बहुत गुस्सा आया वे बोले – ‘‘माफ कीजिये समधी जी ये धोका मुझे उस हरिसिंह सुनार ने दिया हैं मैं कल ही उसकी दुकान बंद करवा दूंगा। उसे जेल करवा दूंगा।’’
तभी हरिसिंह आगे आया और बोला – ‘‘सेठ जी आपके गहनों में गलती से मिलावट हो गई। गहने बन नहीं पा रहे थे। उनकी मजबूती के लिये हमें मिलावट करनी पड़ी। मैं सोना साथ में लेकर आपको ढूंढ रहा हूं। अपाका कोई पता नहीं था। तभी अचानक मैं यहां शादी में आ गया। मुझे माफ कर दीजिये। यह रहा आपका सोना।’’
यह कहकर हरिसिंह ने सोना सेठ जी को दे दिया। सुनार ने सोना तोला तो बराबर मिलावट के जितना था।
सेठजी ने कहा – ‘‘अगर तुम समय पर नहीं आते तो समाज में मेरी बहुत बेज्जती हो जाती।’’
लड़की के पिता ने सेठ जी से माफी मांगी और विवाह की रशमें शुरू हो गईं।
हरिसिंह घर आया आज वह बहुत खुश था। उसने सारी बात विभा को बताई। विभा बोली – ‘‘देखा आपकी जरा सी बेईमानी से एक शादी टूट जाती और अगर इस सब में सेठ जी को कुछ हो जाता तो उनकी मौत के जिम्मेदार भी आप होते।’’
हरिसिंह बोला – ‘‘हां अब मैं आगे से कभी ऐसा काम नहीं करूंगा।’’
अगले दिन से वह सबको ईमानदारी से गहने बेचने लगा।
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