दादाजी का श्राद्ध | Sharaddh Moral Story in Hindi

Sharaddh Moral Story in Hindi

Sharaddh Moral Story in Hindi : नवीन एक आठ साल का छोटा सा बच्चा था। आज वह स्कूल में छुट्टी के बाद बाहर निकला तो उसका मां कविता उसके इंतजार में खड़ी थीं उन्हें देख कर नवीन दौड़ता हुआ उनके पास आया।

कविता: बेटा जल्दी से घर चल और आज जल्दी से होमवर्क कर लेना कल हमें गांव जाना है।

नवीन: क्यों मम्मी गांव क्यों जाना है अभी मेरे स्कूल की छुट्टी भी नहीं है?

कविता: बेटा घर चल सब बताती हूं।

घर पहुंच कर नवीन जिद करने लगा नवीन को गांव जाना बहुत अच्छा लगता था। लेकिन जब से दादा जी नहीं रहे तब से उसका मन गांव जाने का नहीं करता था। गांव में दादी थीं, लेकिन नवीन को दादा जी बहुत प्यार करते थे।

कविता: बेटा परसों दादाजी का श्राद्ध है इसलिये कल हमें गांव जाना है।

नवीन: मां ये श्राद्ध क्या होता है।

कविता उसे श्राद्ध के बारे में सब कुछ बताती है। उसमें नवीन को एक बात अच्छी लगती है कि दादाजी हमारे घर भोजन करने आयेंगे।

अगले दिन नवीन अपने मम्मी पापा, कविता और राकेश के साथ गांव पहुंच जाता है। वह जाकर दादी जी के पैर छूता है। दादी उसे ढेर सारा प्यार करती हैं। वह ध्यान से देखता है कि दादी पहले से बहुत कमजोर हो गई हैं।

नवीन: दादी आप तो बहुत कमजोर हो गई हों।

दादी: हां बेटा तेरे दादाजी थे तो मेरा बहुत ध्यान रखते थे। अब मेरे से घर का काम भी नहीं होता और अकेले में कोई बात करने वाला भी नहीं है।

नवीन: तो आप हमारे साथ चलो वहां पापा, मम्मी के साथ रहना फिर हम दोंनो बहुत सी बातें करेंगे।

नवीन की बात सुनकर कविता और राकेश थोड़ा डर गये कि कहीं उनकी मां साथ चलने को तैयार न हो जायें।

दादी ने दोंनो की ओर देखा और वो समझ गईं की इनकी मर्जी नहीं है मुझे साथ में रखने की।

दादी: बेटा मैं यहीं ठीक हूं। वैसे भी तुम्हारा घर बहुत छोटा है। मैं वहां कैसे रुक पाउंगी।

उसके बाद दादी ने राकेश को सामान की लिस्ट दे दी और कहा –

दादी: मैंने पंडित जी को भी बोल दिया है वे सुबह ग्यारह बजे आ जायेंगे। तू ये सामान इकट्ठा कर ले।

राकेश थैला लेकर सामान लेने चला गया। कविता घर के कामों में व्यस्त हो गई।

शाम तक राकेश के बड़े भाई और भाभी पहुंच गये साथ ही राकेश की बहन रमा भी पहुंच गई थी। पहला श्राद्ध था इसलिये पूरा परिवार इकट्ठा हो गया था।

जिस घर में कल तक सन्नाटा पसरा रहता था। वहां आज काफी चहल पहल थी।

दादी अपने बेटे बहुओं और बेटी को देख कर बहुत खुश थीं। लेकिन उन्हें यह भी पता था कि यह सब एक दो दिन का ही मेला है।

शाम होते होते दादी को दादाजी की याद सताने लगी। जब वे जिन्दा थे तो इस घर में हमेशा मेला लगा रहता था। गांव वाले उन्हें बहुत मानते थे, इसलिये हमेशा कोई न कोई उनके सामने अपनी परेशानी लेकर आ जाता था। जिसका समाधान दादाजी करते थे। गांव के आपसी झगड़ों को सुलझाने के लिये दादाजी को बुलाया जाता था।

अगले दिन दादा जी का श्राद्ध था सारी तैयारियां हो चुकी थीं। ब्राह्मण को भोजन कराया गया। दान दक्षिणा देकर विदा किया गया। उसके बाद पूरे परिवार ने भोजन किया दादी और मम्मी सबको भोजन परोस रहीं थीं।

पूरा दिन काम निबटाने मेहमानों की चहल पहल में निकल गया। रात के समय बैठ कर बातें कर रहे थे।

नवीन: मैं अब दादी के पास रहूंगा।

यह सुनकर सब अवाक् रह गये और नवीन की ओर देखने लगे।

कविता: बेटा ये तू क्या कह रहा है? तेरी पढ़ाई का क्या होगा वैसे भी तू अभी इतना बड़ा नहीं हो गया कि दादी की देखभाल कर सके।

नवीन: नहीं मां दादी को अब किसी सहारे की जरूरत है नहीं तो वो भी दादाजी की तरह चली जायेंगी। मैंने फैसला कर लिया अगर आप लोग दादी को अपने साथ नहीं रख सकते तो मैं दादी के साथ रहूंगा।

दादी: बेटा मैं ठीक हूं तू कभी कभी मुझसे मिलने आते रहना।

नवीन: नहीं दादी जिन बच्चों को आपने पाला पोसा उनके पास आपके लिये टाईम नहीं है। मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला।

नवीन की बातें सुनकर सभी की आंखे शर्म से झुक गईं। सभी ने नवीन को बहुत समझाया लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा।

राकेश और कविता को बहुत गुस्सा आ रहा था। वे दोंनो न अपनी मां को साथ ले जा सकते थे। न नवीन को यहां छोड़ सकते थे।

अगले दिन बड़े भैया भाभी और बहन रमा तो वापस चले गये, लेकिन कविता और राकेश को रुकना पड़ा।

राकेश: इससे तो इसे साथ ही नहीं लाते। चलो मां अब तुम ही हमारे साथ चलो ये तो मानेगा नहीं।

नवीन: नहीं पापा दादी कहीं नहीं जायेंगी। इस घर में दादाजी की कितनी यादें बसी हुई हैं। आप जाओ मैं दादी के साथ रहूंगा।

दादी ने भी बहुत समझाया लेकिन नवीन नहीं माना और हार कर राकेश और कविता को वापस आना पड़ा। चलते समय दादी ने राकेश से कहा –

दादी: बेटा अभी यह गुस्से में है मैं एक दो दिन में इसे समझा कर मना लूंगी तब तू इसे आकर ले जाना।

घर आकर दोंनो उदास मन से बैठे थे। मन नहीं लग रहा था। कविता पहली बार अपने बेटे से अलग हुई थी। वह बैठ कर रोने लगी।

राकेश: अब तुम्हें पता लगा। बेटे से बिछुड़ने का दर्द एक दिन तुमने मेरी मां से लड़ झगड़ कर मुझे अलग कर दिया था। तब उन पर क्या बीती होगी।

कविता: मुझे माफ कर दीजिये आज मांजी का दर्द मुझे समझ आ रहा है। चलो हम दोंनो भी गांव चलते हैं वहीं आप कुछ कर लेना बेटे के बगैर यहां कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। मैं मांजी की खूब सेवा करूंगी।

चार दिन बाद अपना सब कुछ समेट कर दोंनो गांव पहुंच गये। उन्हें देख कर नवीन और दादी बहुत खुश हुए।

राकेश ने वहीं गांव के बाजार में एक छोटी सी दुकान खोल ली। कविता घर का सारा काम करती। नवीन को पास ही एक स्कूल में दाखिला दिला दिया।

नवीन की जिद ने एक परिवार को वापस अपनी जड़ो से जोड़ दिया।

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