सरकस का हाथी | Panchatantra Hathi ki Kahani

Panchatantra Hathi ki Kahani
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Panchatantra Hathi ki Kahani : एक सरकस में एक हाथी काम करता था। उसका नाम मोती था। वह बहुत सीधा था। जब वह बच्चा था, तभी से सरकस में था।

वह पूरे दिन एक खूंटे से बंधा रहता था। उसका महावत उसे सुबह खोल कर ले जाता उसे मार मार कर तरह तरह के करतब करवाता था। उसके बाद दोपहर को मोती डर के कारण सरकस में तमाशा दिखाता था। शाम तक वह थक जाता था। लेकिन देर रात तक उसे करतब दिखाने पड़ते थे।

रात को वह थक कर सो जाता था। इधर उसका महावत भी उसके पास एक खाट बिछा कर सो जाता था।

एक दिन सुबह जब मोती जगा तो देखा उसका महावत वहां नहीं है। वह अपने गांव गया था। इसलिये आज मोती का तमाशा नहीं होना था। मोती बहुत खुश हुआ कम से कम एक दिन के लिये तो उसे छुट्टी मिली।

इधर सरकस का मालिक बहुत परेशान था। सारे टिकट बिक चुके थे। अगर हाथी का तमाशा नहीं हुआ तो पब्लिक तोड़ फोड़ मचा देगी।

नटखट बंदर अपने पिंजरो में उछल कूद मचा रहा था।

मोती: नटखट आज तो मेरी छुट्टी है। मेरा महावत तो गांव चला गया।

नटखट: क्या बात करते हो भाई भला ये सरकस का मालिक कभी छुट्टी दे सकता है वह कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेगा।

मोती: लेकिन मैं तो बस महावत के इशारे समझता हूं। मैं तमाशा कैसे करूंगा।

नटखट: भाई हम तो मजबूर हैं पिंजरे में बंद हैं। लेकिन तुम इतने बलशाली होकर भी एक खूंटे से बंधे रहते हो। क्या तुम नहीं जानते अगर तुम जरा सी जान लगाओ तो रस्सी तोड़ कर भाग सकते हो। तुम्हें कोई रोक भी नहीं पायेगा।

मोती: वो तो ठीक है लेकिन मैं जाउंगा कहां? मैंने तो जब से होश संभाला है अपने आप को खूंटे से बंधा ही पाया है। यही महावत मुझे खाने को देता है, मारता है, करतब करवाता है। कभी कभी मन तो करता है कहीं भाग जाउं।

नटखट: भाई एक काम करो तुम आज रात को अपना खूंटा उखाड़ देना फिर मेरे पिंजरे की सलाखों चौड़ी कर देना मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ जाउंगा। फिर हम दोंनो जंगल में चलेंगे। मुझे ये वहीं से पकड़ कर लाये थे। ऐसे दोंनो का भला हो जायेगा।

मोती: लेकिन अगर किसी को पता लग गया तो बहुत बुरा होगा। मेरा महावत लोहे का नुकीला सरिया चुभा चुभा कर खून निकाल देता है।

नटखट: बस यही तो फर्क है। तुम इतने ताकतवर होकर भी एक छोटे से इंसान से डर रहे हो।

उसकी बातें सुनकर मोती के अंदर हिम्मत आ जाती है।

इधर सरकस का मालिक किसी दूसरे महावत को एक दिन के लिये बुला लेता है। लेकिन उसके इशारे मोती की समझ में नहीं आते वह गुस्सा होकर मोती को बहुत ज्यादा मारता है। मोती रात को अपने खूंटे से बंधा रो रहा था।

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नटखट: भाई रोने से कुछ नहीं होगा इतने बड़े शरीर का फायदा उठाओ मेरा पिंजरा तोड़ दो, और वो सामने का फाटक एक टक्कर में गिर जायेगा। फिर हम दोंनो जंगल में चले जायेंगे। वहां तुम मजे से रहना सारा दिन खाना खाना और कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं होगा।

रात को मोती ऐसा ही करता है। दोंनो सरकस से भाग कर रात भर चलते रहते हैं और शहर से जंगल में पहुंच जाते हैं। वहां पहुंच कर मोती बहुत थक जाता है। वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगता है। नटखट बंदर भी उसी पेड़ की एक डाल पर आराम करने लगता है।

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सुबह दोंनो एक दूसरे से विदा लेकर अलग अलग हो जाते हैं। मोती सारा दिन खाने की तलाश में घूमता रहता है। उसे जंगल की घास और फल अच्छे नहीं लगते उसका महावत उसके लिये अलग से खाना तैयार करके देता था। मोती को उसी की आदत लग गई थी।

दोपहर के समय मोती पानी पीने नदी की ओर जाता है। वहां मगरमच्छ होते हैं जो मोती को खाने के लिये उसके पीछे लग जाते हैं। मोती किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाता है।

इसी तरह शाम हो जाती है वह थक कर एक पेड़ के नीचे आराम करने लगता है तभी हाथियों का एक झुंड वहां पानी पीने आता है।

मोती: भाईयों मैं भी तुम्हारा साथी हूं मुझे अपने झुंड में शामिल कर लो।

हाथी: नहीं हम जंगल के हाथी हैं और तुम सरकस के तुम्हारा हमारा क्या मेल हम तुम्हें अपने साथ रखेंगे कोई मुसीबत आई तो तुम बचना भी नहीं जानते, तुम्हारे चक्कर में हम भी शिकारी की गोली का निशाना बन जायेंगे।

यह सुनकर मोती उदास हो जाता है। वह अकेला पेड़ के नीचे बैठा रहता है। अगले दिन वह नटखट बंदर को ढूंढने निकल जाता है। लेकिन वह भी कहीं नहीं मिलता।

इसी तरह दो दिन बीत जाते हैं। मोती कमजोर होने लगता है क्योंकि जंगल का बेस्वाद खाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। एक दिन वह धीरे धीरे चलता हुआ सरकस के गेट पर पहुंच जाता है। वहां जाकर वह गेट पर आवाज लगाने लगता है। उसकी आवाज सुनकर सरकस का मालिक और उसका महावत दोंनो आ जाते हैं।

महावत मोती को देख कर बहुत खुश होता है।

महावत: मुझे पता है नये महावत ने तुम्हें बहुत मारा इसलिये तुम चले गये थे। लेकिन मेरे बिना तुम रह नहीं पाये इसलिये वापस आ गये। आखिर हमारा तुम्हारा बचपन का साथ है।

महावत मोती को वापस लाकर खूंटे से बांध देता है। कुछ ही देर में मोती देखता है कि नटखट बंदर भी अपनें पिंजरे में बैठा है।

मोती: अरे तुम यहां कैसे?

नटखट: भाई मैं तो दो दिन पहले ही आ गया। वहां कोई भी जानवर मुझसे बात नहीं करता था। जहां तक की दूसरे बंदरों ने तो मुझ पर हमला कर दिया। वे कहते हैं हम सरकस के जानवर हैं उनके साथ नहीं रह सकते। इसलिये मैं वापस आ गया।

मोती: हां भाई हम यहीं ठीक हैं। अब हमारा यही घर परिवार है। अब बस अपना काम अच्छे से करते हैं। जिससे हमें ढंग से खाना मिल सके और मार भी कम पड़े। अकेले उस आजादी में रहने से इस परिवार में रहना ज्यादा अच्छा है।

इसके बात मोती अपने महावत की हर बात मानने लगा और महावत भी अब मोती को नहीं मारता था।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.