Gold Hindi Kahani : एक शहर में रेखा अपनी बेटी लक्षिता के साथ रहती थी। रेखा के पति का देहान्त हो चुका था। वह लोगों के घरों में काम करती थी।
लक्षिता को ढंग से पढ़ाने के लिये रेखा दिन रात काम करती थी। लक्षिता भी पढ़ने में बहुत तेज थी। एक दिन जब रेखा घर आती है –
लक्षिता: मां देखो मुझे स्कूल से ईनाम में ये ट्राफी मिली है। मैं स्कूल में फर्स्ट आई हूं।
रेखा: बेटी ऐसे ही मेहनत से पढ़ाई करती रह। मेरा सपना है कि तू पढ़ लिख कर एक बड़ी अफसर बन जाये।ं
लक्षिता: लेकिन मां मैं आभी केवल छठी क्लास में हूं उसमें तो बहुत समय लगेगा।
रेखा: कोई बात नहीं बेटा मैं बहुत मेहनत करके तुझे पढ़ाउंगी। तू चिन्ता मत कर बस मन लगा कर पढ़।
इसी तरह समय बीत रहा था। एक दिन रेखा अपने काम से वापस आ रही थी। तभी रास्ते में उसे एक लकड़ी का बक्सा पड़ा दिखा पहले तो रेखा आगे बढ़ गई लेकिन फिर उसने देखा कि उस बक्से में कुछ चमक रहा है।
रेखा ने डरते डरते वह बक्सा खोला, तो उसमें बहुत सारे सोने के जेवर थे। रेखा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ वह इधर उधर देखने लगी लेकिन वहां कोई नहीं था।
रेखा बक्से को उठा कर घर ले आई।
रेखा: देख बेटी मुझे क्या मिला। इतने सारे जेवर अब हमें कभी पैसों की कमी नहीं होगी।
लक्षिता: मां ये कहां से आये?
रेखा: बेटी यह लगता है भगवान जी ने हमारे दुःखों को दूर करने के लिये भेजे हैं, लेकिन तू इसके बारे में किसी से कुछ मत कहना।
रेखा बक्से को संभाल कर छुपा कर रख देती है। अगले दिन उस बक्से में से एक अंगूठी निकाल कर बाजार में एक सुनार की दुकान पर बेचने जाती है।
रेखा: भैया मुझे ये अंगूठी बेचनी है।
सुनार अंगूठी लेकर उसकी जांच करता है। फिर वह कहता है।
सुनार: ये अंगूठी कहां से लाई हों। यह तो नकली है इस पर केवल सोने का पानी है अंदर तो सब पीतल ही पीलत है इसके तो कोई दो रुपये भी नहीं देगा।
यह सुनकर रेखा परेशान हो जाती है।
रेखा: एक का करो सेठ जी यह मुझे वापस दे दो।
सुनार: लेता है तुझे पैसों की सख्त जरूरत है। एक काम कर मैं इस अंगूठे के तुझे सौ रुपये दे देता हूं।
रेखा पैसे लेकर घर आ जाती है।
रेखा: भगवान ने हमारे साथ धोखा किया है। हमें नकली जेवर दे दिये ये तो सब पीतल के हैं, वो तो सुनार ने तरस खाकर मुझे सौ रुपये दे दिये।
लक्षिता बहुत चालाक थी। वह समझ गई कि सुनार ने मेरी सीधी सादी मां को बेवकूफ बनाया है।
लक्षिता: मां तुम एक काम करो सुनार के पास चलो उसे सौ रुपये वापस देकर अंगूठ वापस ले आते हैं।
रेखा मना करती रही लेकिन लक्षिता उसे लेकर सुनार की दुकान पर पहुंच गई।
रेखा: सेठ जी वो अंगूठी मेरी सास की थी वो अब झगड़ा कर रहीं हैं आप अपने सौ रुपये ले लो और अंगूठी वापस कर दो।
सुनार: अरे उस पीतल की अंगूठी का क्या करेगी ये ले सौ रुपये और ले जा मुझे तो अंगूठी की बनावट अच्छी लगी इसलिये रख ली इसे देख कर मैं सोने की अंगूठी बनवा लूंगा।
लक्षिता: नहीं सेठ जी आप हमारी अंगूठी वापस कर दो नहीं तो मेरी दादी यहीं आकर झगड़ा करेगी।
सुनार बड़ी मुश्किल से अंगूठी वापस करता है। अंगूठी लेकर दोंनो घर आ जाती हैं।
रेखा: अच्छे भले दो सौ रुपये दे रहा था। ले लेती इस पीतल की अंगूठी का क्या करेंगे कोई दो रुपये भी नहीं देगा।
लक्षिता: मां आपको शायद पता नहीं है वो सुनार हमें बेवकूफ बना रहा था। मुझे लगता है यह अंगूठी सोने की है। मैं इसे कल स्कूल ले जाउंगी। हमारी सांइस लेब में इसका पता लग जायेगा। मैं अपनी मेडम से इसे चैक करवा लूंगी।
अगले दिन लक्षिता खुशी खुशी घर आई। शाम को जब रेखा वापस आई तो लक्षिता ने उसे बताया –
लक्षिता: मां ये अंगूठी सोने की है। उस सुनार की नियत खराब हो गई थी। मेरी मेडम ने चैक करके बताया कि यह असली सोने की है और इसमें जरा भी मिलावट नहीं है।
रेखा: लेकिन अब हम क्या करें हमें तो कोई भी बेवकूफ बना देगा।
लक्षिता: मां इन गहनों को रखा रहने दो। जब मैं पढ़ लिख कर बड़ी हो जाउंगी तब इन्हें बेचेंगे तब तक इनकी कीमत भी बढ़ जायेगी और कोई हमें बेवकूफ भी नहीं बना पायेगा।
इसी तरह कई साल बीत जाते हैं लक्षिता की पढ़ाई पूरी हो जाती है।
पढ़ाई पूरी होने के बाद वह ज्वैलरी डिजाईनिंग का कोर्स करती है। उसके बाद वह कुछ गहने बेच कर मार्किट में एक दुकान खरीद लेती है। फिर दुकान के पिछले हिस्से में सोने के कारीगरो को नौकरी पर रख लेती है।
इसके बाद इन गहनों को पिघला कर सुन्दर सुन्दर गहने बनवा कर दुकान में सजा देती है।
लक्षिता और उसकी मां दोंनो दुकान पर बैठ जाती हैं। लक्षिता नये नये डिजाईन के गहने बनवाती जिससे उसके गहने हाथों हाथ बिक जाते।
कुछ ही दिनों में उनकी दुकान अच्छी चलने लगती है।
एक दिन दुकान पर वही सुनार आता है।
सुनार: बेटी क्या तुम मेरे लिये गहने डिजाईन कर दोंगी। मेरे पुराने डिजाईन के गहने कोई नहीं खरीदता।
लक्षिता: जी नहीं आप सोने को पीतल के भाव में खरीद कर लोगों को बेवकूफ बनाते हो। हमें आपके साथ कोई काम नहीं करना।
सुनार: नहीं बेटी मैं ऐसा नहीं करता।
रेखा: सेठ जी आप भूल गये एक बार मैं अपकी दुकान पर आई थी। फिर रेखा ने सारी बात बता दी।
सुनार: बेटी मेरे से गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। मेरा सारा धंधा चौपट हो गया।
लक्षिता: नहीं आप चले जाईये।
सुनार चुपचाप वापस चला जाता है। लक्षिता ने अपने काम को बहुत बढ़ा लिया अब उसके शहर में कई शोरूम थे। जहां नये नये डिजाईन के गहने बिकते थे।
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