काली नदी | Ghost Story of Black River

Ghost Story of Black River
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Ghost Story of Black River : ‘‘मारो, मारो’’ की आवाज उस काली गहरी रात के सन्नाटे को चीरती हुई पूरी वादी में गूंज रही थी। कोई लाठी लेकर, कोई कुल्हाड़ी लेकर।

जिसके जो हाथ लगा वह उस काली नदी की ओर दौड़ पड़ा। अभी अंधेरा होते ही गांव वालों को किसी ने बताया कि काली नदी पार कर रहे दो आदमियों पर हमला हुआ है।

गांव वाले बेतहाशा भागते हुए नदी के किनारे पहुंचे तो क्या देखते हैं। खून में लथपथ दो लाशें किनारे पर पड़ी हैं।

देखने पर पता लगा कि दोंनो की मौत पानी में डूबने से हुई बाद में किसी ने इन लाशों को काटा है।

पूरे गांव में सनसनी फैल गई। गांव के मुखिया ठाकुर जगन्नाथ जी आगे आये और बोले – ‘‘जब हमने फैसला किया था कि रात के समय कोई नदी के रास्ते नहीं जायेगा तो ये सब कैसे हो गया। चौकीदार कहां मर गया।’’

तभी पीछे खड़ा चौकीदार कांपता हुआ आगे आया – ‘‘मालिक मैंने तो इन्हें बहुत मना किया था। लेकिन ये तो शहर से आये पढ़े लिखे नौजवान थे इन्होंने मेरी एक बात नहीं मानी। हार कर मैं गांव वालों को बुलाने चला गया। आया तो यह सब देखा आपको यकीन न हो तो गांव वालों से पूछ लो।’’

जमींदार जगन्नाथ जी बोले – ‘‘तुझे इसीलिये तो नौकरी पर रखा है कि किसी को नदी में न उतरने दे। हमें पता है काली नदी का भूत किसी को परेशान नहीं करता जब कोई नदी में जाता है तो वह उसे मार देता है। ऐसे में इस चौकीदार का क्या फायदा। अब पुलिस आयेगी दस सवाल करेगी।’’

उसी समय पुलिस को सूचना दी गई कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई लाशों को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। काफी लोगों से पूछताछ की गई लेकिन किसी को कुछ भी पता नहीं था।

कुछ ही दिनों में गांव वाले सामान्य हो गये। उसी गांव में एक पच्चीस साल का नौजवान जिसका नाम नीरज था। वह एक दिन अपने दोस्त दीपक के साथ नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा था।

नीरज बोला – ‘‘यार ये भूत का क्या चक्कर है। इस भूत के चक्कर में हम कभी नदी में नहीं जा पाते। नदी के उस पार देखो कितने सुन्दर नजारे हैं। उस पार एक मन्दिर भी है। अगर किसी तरह इस भूत से छुटकारा मिल जाये तो कितना मजा आये।’’

यह सुनकर दीपक बोला – ‘‘भाई यही तो समस्या है इस नदी की जो भी इस नदी के जल में पैर रखता है मारा जाता है।’’

नीरज उस पार जाना चाहता था। उसने अपने दोस्त से कहा – ‘‘क्यों न हम पता लगायें कि आखिर यह भूत सबको क्यों मार रहा है।’’

यह सुनकर दीपक बोला – ‘‘इसका जबाब तो गांव के कोई बुर्जुग ही दे सकते हैं गांव में सबसे ज्यादा उम्र के तो केवल पुष्पा के दादाजी हैं चलो उनके पास चलते हैं।’’

दोंनो उनके पास पहुंच जाते हैं। उनकी बात सुनकर दादाजी संभल कर बैठ जाते हैं वो अपनी पोती पुष्पा से कहते हैं – ‘‘बेटी तू बाहर जाकर खेल मुझे इन दोंनो से कुछ जरूरी बात करनी है।’’

उसके जाने के बाद दादाजी कहना शुरू करते हैं – ‘‘बात यह है बच्ची है डर जायेगी। तुम जो पूछ रहे हो वो में तुम्हें बता देता हूं लेकिन नदी में जाने की कभी कोशिश मत करना क्योंकि जो भी नदी में गया वह वापस नहीं आया।’’

नीरज बोला – ‘‘बाबा आप बताओ तो सही बाकी हम पर छोड़ दो।’’

दादाजी ने कहना शुरू किया – ‘‘बेटा ये सब गांव वालों के ही कर्मों का फल है। इस गांव में मुकुन्द नाम का एक सीधा सादा किसान रहता था। दिन भर खेत में मजदूरी करता था। उसका अपना खेत नहीं था। वह तो उस समय के जमींदार के खेत में मजदूरी करता था। वह पूजा पाठ करने वाला आदमी था।

रात को जब वह अपने घर पहुंचता तो उसकी पत्नी पूजा की थाली तैयार रखती थी। पूजा की थाली लेकर वह रात को नदी किनारे बंधी नाव से दूसरे किनारे के मन्दिर में जाता था।

उस मन्दिर में कोई नहीं जाता था। केवल मुकुन्द ही जाता था। मन्दिर की साफ सफाई करता, उसे फूलों से सजाता भगवान की पूजा करता उन्हें भोग लगाता और वापस आ जाता था।

एक बार नदी में भयानक बाढ़ आ रही थी। लेकिन मुकुन्द नहीं माना वह चला गया जब वह पूजा करके वापस आया तो नाव नदी के तेज बहाव में बहने लगी। मुकुन्द ने नाव से कूद कर अपनी जान बचाई। वह किसी तरह तैरता हुआ किनारे पर पहुंचा। उसकी पूजा की थाली का सिन्दूर उसके पूरे चहरे पर बिखर गया था। वह इस अवस्था में घर की ओर चल दिया।

रास्ते में उसे कुछ गांव वाले मिले उन्होंने मुकुन्द को पकड़ लिया वह चिल्लाता रहा लेकिन गांव वालों ने उसे तांत्रिक समझ कर उसकी पिटाई शुरू कर दी। उसकी शक्ल कोई पहचान न सके और इतने शोर में उसकी आवाज किसी ने न सुनी।

मारने के बाद उसकी लाश को नदी में बहा दिया। बस तभी से वह गुस्से में है। उसका भूत इसी नदी में रहता है और जो भी नदी पार करने की कोशिश करता है वह उसे मार देता है।’’

नीरज और दीपक दोंनो उस भूत की आत्मा की शांति के लिये गांव के पंडित जी के पास पहुंच जाते हैं।

पंडित जी मना कर देते हैं। फिर वे दोंनो जमींदार जगन्नाथ जी की हवेली पर पहुंच जाते हैं। जगन्नाथ जी उनका साथ देने के लिये तैयार हो जाते हैं।

जमींदार जगन्नाथ, नीरज और दीपक को साथ लेकर दूसरे गांव पहुंच जाते हैं। वहां से कुछ दूर वार्डर था। वहीं पास में फौजी कैम्प थे। जहां फौजियों ने नदी पर पुल बना रखा था।

जगन्नाथ जी और गांव वालों ने फौज के कैप्टन से बात की। कैप्टन से परमिशन लेकर वे सब उस पुल से दूसरे किनारे पर बने उस मन्दिर में पहुंच जाते हैं जहां मुकुन्द पूजा करने जाया करता था। अगले दिन उसको मुक्ति दिलाने के लिये पूजा रखी जाती है। बाकी गांव वाले इस किनारे पर खड़े हो मन्दिर में होने वाली पूजा को देख रहे थे।

पूजा जब खत्म होने वाली होती है। तो चारों ओर से अजीब सी आवाजें आने लगती हैं। तब पंडित जी कहते हैं – ‘‘मुकुन्द गांव वाले अपनी गलती मान रहे हैं। इन्हें माफ कर दो और ये दोंनो बच्चे तुम्हारा पिण्ड दान कर रहे हैं। अब तुम मुक्ति की ओर जाओ और भटकना छोड़ कर भगवान के धाम चले जाओ।

पंडित जी ने पूजा समाप्त करके नीरज और दीपक से पिण्डदान करवाया। उसके बाद धीरे-धीरे वे आवाजें आना बंद हो गईं जैसे कोई उनसे दूर जा रहा हो।

उसके बाद जमींदार के साथ पंडित जी, नीरज, दीपक और गांव वाले एक नाव में बैठ कर अपने गांव आ गये।

दो नौजवानों की हिम्मत से गांव वालों को काली नदी के भूत से छुटकारा मिल गया। उसके बाद गांव वाले रोज सुबह सवेरे उस मन्दिर में पूजा करने जाने लगे।

जमींदार ने गांव वालों के साथ मिल कर उस नदी पर एक कच्चा सा पुल बना दिया। जिससे लोग उस मन्दिर में जा सकें।

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