छोटा सा तिनका | Desi Kahani of Little Plant

Desi Kahani of Little Plant
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Desi Kahani of Little Plant : एक सेठ जी ने शहर के बाहर एक आलीशान कोठी बनवाई। उनकी कोठी के आगे बहुत बड़ा व सुन्दर बगीचा था।

बगीचा बड़े और फलों वाले पेड़ों से घिरा हुआ था।

सेठ जी ने बगीचे की देखभाल के लिये दो माली नौकरी पर रख लिये थे। वे दिन भर फूलों के पौधों की देखभाल करते उनमें खाद डालते उन्हें पानी देते थे।

हवेली सालों से बंद पड़ी थी। लेकिन सेठ जी के आने से उस हवेली की तो जैसे किस्मत चमक गई साथ ही बगीचे की सुन्दरता भी बढ़ गई थी।

इससे सभी पेड़ और फूलों के पौधे बहुत खुश थे। अपनी सुन्दर पर बहुत घमंड में रहते थे। उन्हें देख कर सभी उनकी तारीफ करते थे।

इन्हीं पौधों के बीच एक तिनका उग आया था। जब वह तिनका थोड़ा सा बड़ा हुआ तो उसे वहां के पौधे और पेड़ चिढ़ाने लगे। एक पौधे ने कहा – ‘‘तुम न तो सुन्दर फूलों से सज सकते हो। न ही तुम्हारे से कोई फल निकल सकता है। इसलिये तुम किसी काम के नहीं हो फिर यहां क्यों खड़े हो।’’

यह सुनकर तिनका बोला – ‘‘मुझे भी प्रकृति ने कुछ सोच कर बनाया होगा।’’ किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिये।’’

लेकिन सभी पेड़ और पौधे मिल कर उसका मजाक उड़ाते रहते थे। उनकी बातों से बेखबर तिनका अपनी मस्ती में झूमता रहता था। उसकी जड़ें जमीन में बहुत मजबूत थीं लेकिन उसका उपर का भाग थोड़ा सा ही निकला हुआ था। वह मजे से लहलहाता रहता।

कुछ दिन बाद दोंनो माली तन्ख्वाह कम मिलने से काम छोड़ कर चले गये। इधर पेड़ों का भी फलों का सीजन चला गया था। देखभाल न होने से फूलों के पौधे मुरझाने लगते हैं।

लेकिन तिनका अपनी शान से खड़ा रहता है। उसे न देखभाल की जरूरत थी। न पानी की।

एक दिन बहुत तेज बारिश, तेज आंधी-तूफान आने लगता है। उस बगीचे में लगे बड़े बड़े कई पेड़ गिर जाते हैं। इसी तरह फूलों के पौधे अधिक पानी की मार सहन नहीं कर पाते और झुक जाते हैं।

झुके हुए पौधों पर जब तेज पानी पड़ता है तो कई की डालियां टूट जाती हैं। रात भर यही सिलसिला चलता रहता है।

सुबह जब आंधी तूफान रुकता है। तो सभी अपने हालात पर रो रहे थे। तभी एक गिरे हुए पेड़ ने कहा – ‘‘देखो हम अपनी अकड़ में जिस जिनके का मजाक उड़ाते थे वो तो पहले की तरह खड़ा लहलहा रहा है। क्योंकि वह उपर कम है और उसकी जड़ें अन्दर तक हैं।’’

दूसरे पौधे भी बहुत शर्मिन्दा हुए उन्होंने तिनके से माफी मांगी। यह सुनकर तिनका बोला – ‘‘कभी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिये। शायद भगवान ने तुम्हें दण्ड दिया है। अब तो मैं भी तुम्हारे लिये कुछ नहीं कर सकता। लेकिन मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि तुम फिर से जीवित हो जाओ।’’

कुछ दिन बाद सेठ जी ने  नये माली रख लिये उन्होंने पौधों को ठीक से लगा दिया। लेकिन पेड़ों को लकड़ी वालों को बेच दिया। वे उन्हें काट कर ले गये।

यह देख कर तिनके को बहुत दुःख हुआ। लेकिन इस सब में उस छोटे से तिनके पर न तो सेठ जी का ध्यान गया न माली का। तिनका अपनी मस्ती में लहलहा रहा था।

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