Desi Kahani Moral Story : एक गांव में एक लड़की रहती थी। उसका नाम बिन्दिया था। उसके माता पिता का देहान्त हो चुका था।
बिन्दिया अपने चाचा चाची के साथ रहती थी। चाचा खेत पर काम करने चले जाते थे। चाची दिन भर छोटी सी बच्ची से काम करवाती थी।
बिन्दिया का बहुत मन था पढ़ने का लेकिन उसके चाचा चाची उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे कि कहीं पढ़ लिख कर वह कहीं चली न जाये उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी।
एक दिन बिन्दिया घर का काम निबटा कर घर के बाहर खेलते बच्चों को देख रही थी। तभी बच्चे उसे साथ में खेलने के लिये बोलने लगे।
बिन्दिया: नहीं मेरी चाची मुझे बहुत मारेगी अभी वो सो रहीं हैं इसीलिये मैं यहां बैठी हूं।
बिन्दिया उदास बैठी थी। तभी गांव के सरपंच की पत्नी राधा वहां से गुजरी। राधा, बिन्दिया के माता पिता को अच्छे से जानती थी।
राधा: बेटी इतनी उदास क्यों बैठी हो क्या बात है तबियत ठीक नहीं है क्या?
बिन्दिया: नहीं चाची सब ठीक है। आप जाओ अगर चाची ने आपसे बात करते देख लिया तो बहुत मारेगी।
राधा: बेटी मैं किसी से नहीं डरती तू चिन्ता मत कर बता क्या बात है।
बिन्दिया राधा चाची को सारी बात बता देती है। अगले दिन गांव में पंचायत बैठती है और बिन्दिया के परिवार को बुलाया जाता है।
सरपंच: क्यों रे बद्री तुझे और तेरी बीबी को शर्म नहीं आती इसी छोटी सी अनाथ बच्ची पर जुल्म करते हुए।
बद्री: नहीं सरपंच जी आपको किसी ने गलत खबर दी है हम तो इसे बहुत प्यार से पालते हैं।
सरपंच: झूठ बोला तो गांव से तेरा हुक्का पानी बंद करवा दूंगा। तूने इसे अभी तक स्कूल क्यों नहीं भेजा और तू इसे बच्चों के साथ खेलने भी नहीं देता।
बद्री: मालिक इसका ही मन पढ़ाई में नहीं लगता।
सरपंच: झूठ बोल रहा है आज से पंचायत फैसला करती है कि इसे पूरे गांव में कोई भी सहारा नहीं देगा। कोई इसे सामान नहीं बेचेगा। कोई भी इनके परिवार से मतलब रखेगा तो उसका भी हुक्का पानी बंद समझो।
गांव वाला: वो तो ठीक है लेकिन अब इस बच्ची का क्या होगा ये तो और जुल्म करेगा इस पर।
सरपंच: हमने फैसला किया है कि इसे मेरी पत्नी राधा पालेगी। यह हमारे घर में रहेगी और स्कूल जायेगी।
पूरी पंचायत में यह सुनकर तालियां बजने लगती हैं। बद्री गिड़गिड़ा कर माफी मांगता रहता है लेकिन पंचायत अपने फैसले पर अटल रहती है।
उसी दिन राधा आकर बिन्दिया को ले जाती है। बिन्दिया के घर में आने से सरपंच के घर में रौनक आ जाती है। दरअसल राधा के कोई सन्तान नहीं थी। बिन्दिया को बेटी के रूप में पाकर राधा बहुत खुश होती है।
कुछ ही दिनों में बिन्दिया स्कूल जाने लगती है। वह मन लगा कर पढ़ाई करने लगती है।
इधर बिन्दिया के चाचा चाची को गांव छोड़ना पड़ता है। वे दोंनो शहर में जाकर मजदूरी करने लगते हैं।
धीरे धीरे समय बीत जाता है। एक दिन बिन्दिया आकर राधा के गले लग जाती है।
राधा: क्या बात है इतनी खुश क्यों है?
बिन्दिया: मां मुझे कॉलेज में दाखिला मिल गया अब मैं इंजिनियर बन पाउंगी।
सरपंच और राधा बहुत खुश होते हैं। कुछ ही दिनों में बिन्दिया शहर पहुंच जाती है वहां वह मन लगा कर पढ़ाई करने लगती है।
पढ़ाई पूरी होने पर उसे डिग्री मिल जाती है। कुछ ही दिनों में उसे एक कंपनी में नौकरी मिल जाती है। राधा को एक बिल्डिंग बनाने का प्रोजेक्ट मिलता है।
एक दिन बिन्दिया बिल्डिंग की साईट पर देखभाल कर रही थी। तभी पीछे से किसी ने उसे पुकारा
औरत: मेडम मेरे पति बीमार रहते हैं। उनकी देखभाल के लिये मैंने एक दिन की छुट्टी ली थी। यहां मेरी जगह किसी और को रख लिया। हम भूखे मर जायेंगे। मैं आगे से छुट्टी नहीं करूंगी।
बिन्दिया पलट कर देखती है तो वह बूढ़ी औरत को पहचान जाती है। यह उसकी चाची थी।
उसी समय चाची बिन्दिया के पैरों में गिर जाती है। मालकिन मुझे काम से मत निकालो मेरा पति मर जायेगा हम भूखे मर जायेंगे।
बिन्दिया उन्हें उठाती है।
बिन्दिया: कहां हैं तुम्हारे पति मुझे उनके पास ले चलो।
चाची बिन्दिया को लेकर पास ही में बने एक झोपड़े में ले जाती है।
बिन्दिया: क्या हुआ इन्हें?
चाची: अरे उठो देखो इंजिनियर साहिबा आई हैं। बहुत अच्छी हैं ये मालकिन मजदूरी करते करते बहुत सी मिट्टी इनके फेफड़ों में चली गई जिससे इनके फेफड़े खराब हो गये।
चाचा: अरे ये क्यों नहीं कहती हमारे कर्मों की सजा मिल रही है। हमने एक अनाथ छोटी सी बच्ची जो मेरे बड़े भाई की आखिरी निशानी थी। उस पर बहुत जुल्म किये उसी की सजा हमें मिल रही है।
गांव खेत मकान सब छूट गया। अब तो बस मौत का इंतजार है।
यह कहकर दोंनो रोने लगे।
बिन्दिया: चाचाजी आपने मुझे पहचाना नहीं मैं वही छोटी सी बच्ची बिन्दिया हूं। चलो मैं आपका इलाज करवाउंगी। आज से आप मेरे साथ मेरे घर में रहेंगे।
चाचा: बेटी तू बड़े दिल वाली है तूने हमें माफ कर लिया लेकिन हम इस लायक नहीं हैं हमें हमारे हाल पर छोड़ दे।
चाची: बेटी हम किस मुंह से तेरे साथ चलें जब तुझे हमारी जरूरत थी तब हमने तुझ पर जुल्म किये।
बिन्दिया: चाची अगर वह सब नहीं होता तो शायद आज में इंजिनियर न बन पाती जो होता है अच्छे के लिये होता है।
बिन्दिया उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई। चाचा का इलाज करवाया। फिर एक दिन दोंनो को लेकर बिन्दिया गांव पहुंची।
सरपंच: अरे बद्री बेटी ये तुझे कहां मिल गया।
बिन्दिया: पिताजी ये बहुत बुरे हालात में थे। बहुत बीमार थे। अब ठीक हैं इन्हें इस गांव में रहने दीजिये इनका सारा खर्चा मैं उठाउंगी।
राधा: देखा बद्री जिस बेटी की तुमने कभी कद्र नहीं की वही तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बन गई।
चाचा चाची कुछ नहीं बोले बस हाथ जोड़ कर रोते रहे।
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