बेसहारा – भाग – 16 | Sad Life Story in Hindi

Sad Life Story in Hindi
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Sad Life Story in Hindi : करूणा और सुबोध दोंनो नये शहर में जाकर प्रोपर्टी डीलर से मिलते हैं। वह उन्हें कई फ्लेट दिखाता है। जिनमें से एक उन्हें पसंद आ जाता है। दोंनो उसे एडवांस देकर वापस आ जाते हैं।

अगले दिन दोंनो फ्लेट खाली करके सारा सामान लेकर नये फ्लेट में पहुंच जाते हैं। दोंनो के पास बहुत कम सामान था। इसलिये उन्हें शिफ्ट होने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।

नई जगह आकर करूणा को बहुत अच्छा लग रहा था। अगले दिन जाकर दोंनो ने अपने अपने हॉस्पिटल में जाकर नौकरी ज्वाईन कर ली।

करूणा शाम को घर पहुंची तो सुबोध वहां नहीं था। वह सुबोध का इंतजार करने लगी। सुबोध को फोन किया तो उसने कहा कुछ काम है थोड़ी देर हो जायेगी।

शाम को जब सुबोध आया तो करूणा ने पूछा – ‘‘इतनी देर कहां लगा दी।’’

सुबोध ने कहा – ‘‘कुछ नहीं बस तुम्हारे लिये कुछ खरीदारी कर रहा था। ये देखो।’’

यह कहकर सुबोध ने एक पैकेट पकड़ा दिया। करूणा ने देखा तो वह एक ज्वैलरी सेट था। बहुत सुन्दर सेट था।

करूणा ने कहा – ‘‘सुबोध इसकी क्या जरूरत थी। अभी हमें बचत करके चलना चाहिये।

सुबोध ने उसे समझाते हुए कहा – ‘‘तुम्हारी बात ठीक है लेकिन शादी पर तुम्हें कोई गिफ्ट भी तो देना चाहिये था। अब जरा पहन कर दिखाओ।’’

करूणा ज्वैलरी पहन कर सुबोध के सामने आती है। सुबोध उसे देखता ही रहा जाता है।

करूणा ज्वैलरी उतार कर बोलती है – ‘‘सुबोध मेरे पास भी ज्वैलरी है और ये भी आ गई इसे घर पर रखना ठीक नहीं है। हम एक लॉकर लेकर उसमें रख देते हैं।

सुबोध कहता है – ‘‘ठीक है कुछ दिन में लॉकर ले लेंगे। अभी यहीं सम्हाल कर रख लो।’’

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यह सुनकर करूणा ज्वैलरी को अपनी ज्वैलरी के साथ रख देती है, और फिर रसोई के काम में लग जाती है।

इसी तरह समय बीत रहा था। करूणा, सुबोध का साथ पाकर बहुत खुश थी। सुबोध उसे बहुत खुश रखता था।

जिन्दगी से उसकी जो शिकायतें थी। वह अब दूर हो चुकी थीं।

शादी के छः महीने सब कुछ ठीक चलता रहा। उसके बाद एक दिन करूणा ने सुबोध से कहा – ‘‘सुबोध क्या बात है अब तुम बहुत देर से घर आते हो?’’

यह सुनकर सुबोध बोला – ‘‘हॉस्पिटल में काम ज्यादा है। ड्यूटी है करनी तो पड़ेगी ही।’’

सुबोध और करूणा के बीच दूरियां बढ़ती जा रहीं थीं। छुट्टी वाले दिन भी सुबोध काम का बोल कर हॉस्पिटल चला जाता था।

सुबोध के बदलते व्यवहार से करूणा परेशान रहने लगी थी। उसने कई बार सुबोध से पूछा लेकिन सुबोध ने कुछ भी नहीं बताया।

करूणा को सुबोध की चिन्ता रहने लगी थी। एक दिन वह शाम के समय सुबोध के हॉस्पिटल पहुंच जाती है। करूणा ने सोचा चलो आज रेस्टोरेन्ट में डिनर करेंगे।

वहां जाकर उसने रिशेप्शन पर पता किया तो पता चला कि सुबोध तो घर चला गया। फिर उसने पूछा – ‘‘मेडम आपके हॉस्पिटल में काम बहुत ज्यादा हैं मेरे पति मतलब सुबोध जी बहुत देर से घर आते हैं।’’

यह सुनकर रिशेप्शन पर बैठी मेडम ने कहा – ‘‘नहीं यहां सबके काम के घंटे फिक्स हैं हमारे पास शिफ्ट में काम होता है। ड्यूटी टाईम के बाद किसी को नहीं रोका जाता।’’

यह सुनकर करूणा दिल धक से बैठ जाता है। हे भगवान सुबोध मेरे से झूठ बोल कर घर से गायब रहता है। वह मुझसे बचने की कोशिश् कर रहा है।

इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंच जाती है।

कुछ देर बाद सुबोध आ जाता है। करूणा उससे पूछती है तो वह वही हॉस्पिटल का बहाना बना देता है।

करूणा उससे कहती है – ‘‘मैं आज हॉस्पिटल गई थी। वहां तो कोई ओवरटाईम नहीं होता फिर तुम देर रात तक कहां रहते हो।’’

सुबोध यह सुनकर हक्का बक्का रह जाता है – ‘‘करूणा ऐसा कुछ नहीं है वो लड़की अभी नई आई है मुझे नहीं जानती। मैं डॉक्टर के साथ रहता हूं।’’

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किसी तरह करूणा को समझा कर सुबोध शांत करता है। लेकिन करूणा के मन में शांति नहीं थी। वह रात भर जाग कर यही सब सोचती रहती है।

दोंनो धीरे धीरे एक अजनबी की तरह रहने लगते हैं अब न सुबोध उससे ज्यादा बात करता था। न उसकी ओर ध्यान देता था।

करूणा को ये बात समझ नहीं आ रही थी, कि अचानक सुबोध का व्यवहार बदल क्यों गया है।

एक दिन सुबोध हॉस्पिटल चला गया। करूणा का मन हॉस्पिटल जाने का नहीं था। वह घर पर ही थी।

कुछ देर बाद घंटी बजी, एक पोस्टमेन सामने खड़ा था। उसने करूणा को एक चिट्ठी दी।

चिट्ठी सुबोध के नाम थी। करूणा ने चिट्ठी टेबल पर रख दी और रसोई के काम में लग गई।

जब दोपहर को वह खाना खाने बैठी तो सामने चिट्ठी देख कर उसने सोचा सुबोध को कोई नहीं है, फिर यह चिट्ठी किसने भेजी।

करूणा ने चिट्ठी खोल कर पढ़ना शुरू किया। चिट्ठी पढ़ते पढ़ते करूणा की आंखो से आंसू आ गये पूरी चिट्ठी पढ़ कर वह सकते में आ गई थी।

यह चिट्ठी किसी कोमल की थी। सुबोध की पत्नी कोमल और उसने लिखा था। कि आप पिछले आठ महीने से गांव नहीं आये। दोंनो बच्चे आपको बहुत याद करते हैं। एक बार आकर मिल जाईये।

एक बार फिर करूणा के साथ धोखा हो चुका था।

करूणा की आंखों के सामने अपनी पिछली जिन्दगी फिर से दिखने लगी। इस दुनिया में एक भी इंसान ऐसा नहीं है। जिस पर वह विश्वास कर सके। हर इंसान ने उसे धोखा दिया है।

वह यही सब सोच रही थी। कि अब आगे क्या करेगी। किसके लिये जिये इस धोखे बाज की बेरुखी की वजह भी समझ आ गई थी। अपनी पत्नी से मन भर गया तो उसने करूणा को फसा लिया अब उससे मन भर गया, तो किसी और को फसाने की तैयारी कर रहा होगा।

करूणा बहुत देर तक पलंग पर लेटी हुई रोती रही। उसने घर छोड़ने का फैसला किया। वह अपने बैग में सामान रखने लगी, तो उसने देखा उसकी अलमारी में न तो उसकी ज्वैलरी है न सुबोध ने जो दी थी वह। करूणा ने अपना पैसा भी सुबोध को दे दिया था। शादी की तैयारियों के समय वह बचा हुआ पैसा भी अलमारी में नहीं था।

करूणा समझ चुकी थी, कि उसके मान-सम्मान के साथ-साथ उसकी ज्वैलरी, उसके पैसों को भी लूटा जा चुका है। बस किसी भी दिन सुबोध उसे छोड़ कर भाग जाने वाला था। ऐसी जगह जिसके बारे में उसे कभी पता नहीं लग पायेगा।

आज अगर यह चिट्ठी उसके हाथ नहीं लगती तो उसे कभी इस सच्चाई का पता नहीं लगता।

करूणा ने वह चिट्ठी टेबल पर रख दी और सब कुछ छोड़ कर घर से चल दी।

इधर शोभा को करूणा के बारे में कुछ पता लग गया था, कि उसने सुबोध से शादी कर ली और यह शहर छोड़ दिया। शोभा के सवालों के जाबाब तो उसे नहीं मिले थे। लेकिन वह खुश थी कि करूणा को एक जीवन साथी मिल गया। वह जहां भी रहे खुश रहे।

शोभा सुबह अखबार पढ़ रही थी। तभी उसकी नजर एक खबर पर पड़ी। फोटो देख कर शोभा डर गई। यह करूणा की फोटो थी। करूणा ने नदी में कूद कर जान दे दी थी। यह फोटो उसकी पहचान के लिये छापी गई थी।

शोभा तुरंत गाड़ी लेकर वहां के पुलिस स्टेशन पहुंच गई। उसने करूणा के बारे में पता किया।

पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे लाश की शिनाख्त करने के लिये चलने को कहा। शोभा ने वहां जाकर देखा लाश करूणा की ही थी। वह करूणा से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी।

पुलिस ने बताया कि करूणा के हाथ में पॉलीथिन बंधी थी, जिसमें एक खत था जो शोभा के नाम था।

उसमें लिखा था – ‘‘शोभा मुझे माफ कर दे। मैंने तेरा साथ छोड़ दिया।’’

उसके बाद खत में करूणा ने सब कुछ लिख दिया जो आज तक उसके साथ हुआ था।

खत की आखिरी लाईन में करूणा ने लिखा था – ‘‘मैं बेसहारा थी और बेसहारा ही इस दुनिया से जा रही हूं। तेरे एहसानों का कर्ज रह गया मुझ पर।’’

समाप्त

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Image Source : Playground

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