बेसहारा – भाग – 8 | Prernadayak Kahani

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Prernadayak Kahani : अगले दिन करूणा सोकर उठी। वह अपने बिस्तर पर बैठी थी। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। तभी शोभा उसके कमरे में आती है –

‘‘कैसी है करूणा क्या हुआ सिर पकड़े क्यों बैठी है।’’

करूण ने शोभा से कहा – ‘‘कुछ नहीं सिर में बहुत दर्द हो रहा है।’’

शोभा फटाफट गई और उसके लिये एक टेबलेट ले आई उसे गर्म पानी से टेबलेट दी जिसे करूणा ने बिना कुछ पूछे खा लिया।

शोभा बोली – ‘‘करूणा तू आराम कर अभी मेड आ जायेगी घर का काम करने के लिये मुझे हॉस्पिटल जाना होगा। मैं तुझे बताना भूल गई हम दोंनो ने नौकरी छोड़ कर अपना हॉस्पिटल खोल लिया है। इसी कारण मैं दो साल से तुझसे मिल नहीं पाई।’’

करूण ने खुश होते हुए कहा – ‘‘बहुत अच्छा किया शोभा तेरी तरक्की देख कर मुझे बहुत खुशी मिलती है। वैसे भी मेरी जिन्दगी में अब बचा ही क्या है। अच्छा किया जो तू मुझसे मिलने नहीं आई।

मेरी सास का व्यवहार बहुत खराब है। वो तेरी बेज्जती करती तो मुझसे बर्दाशत नहीं होता।’’

शोभा बोली – ‘‘बहन जो हुआ उसे भूल जा और नये सिरे से जिन्दगी शुरू कर। लेकिन अभी तू बस आराम कर ज्यादा मत सोच। भगवान ने तुझे बचा लिया। मैं लेट हो रही हूं। तुझसे शाम को मिलती हूं और हां घर का कोई काम मत करना बस आराम कर।’’

कुछ ही देर में मेड आ गई। शोभा ने उसे कुछ समझाया और वो चली गई। मेड करूणा के पास आई और बोली – ‘‘मेडम आपको कुछ भी चाहिये हो तो मुझे आवाज दे देना।’’

यह कहकर वह अपने काम में लग गई करूणा फिर से सोने की कोशिश करने लगी।

इधर शोभा हॉस्पिटल पहुंच कर मरीजों को देखने में व्यस्त हो गई। दोपहर को शोभा और करन दोंनो लंच करने बैठे तो शोभा ने कहा – ‘‘करन हमें करूणा के बारे में कुछ सोचना होगा।’’

यह सुनकर करन ने कहा – ‘‘देखो शोभा तुम बहुत जल्दबाजी कर रही हों तुम समझो उसने अभी छः महीने पहले अपने पति की मोत देखी है उसके बाद पिछले छः महीने में ये सब झेला है।

मुझे लगता है वो डिप्रेशन में चली गई। इसलिये उसे किसी नई बात के लिये राजी करना सही नहीं होगा। कम से कम दो-तीन महीने उसे उस डिप्रेशन से बाहर निकलने दो। अभी पन्द्रह बीस दिन उसे घर पर आराम करने दो फिर उसे कभी-कभी हॉस्पिटल ले आना। जिससे उसका मन बहल जाये।

लेकिन यह याद रखना। हॉस्पिटल, डॉक्टर, मरीज, ऑपरेशन को देखते ही उसे अपने पति की मौत याद आ जायेगी। इसलिये सब कुछ धीरे धीरे करना।’’

शोभा ने कहा – ‘‘हां तुम सही कह रहे हो इस सबसे उभरने में उसे काफी समय लग जायेगा।’’

करन ने शोभा की हां में हां मिलाते हुए कहा – ‘‘फिलहाल एक काम करो उसे एक सप्ताह आराम करने दो, फिर उसे शॉपिंग पर ले जाना उसे उसकी पसंद के कपड़े वगैरहा की शॉपिंग कराना। उसे अच्छा लगेगा।’’

शोभा मान जाती है। शाम को शोभा कुछ फल लेकर करूणा के पास पहुंचती है। शोभा कहती है – ‘‘करूणा कैसा बीता दिन कोई परेशानी तो नहीं हुई। ये कुछ फल हैं मैं तेरे लिये लाई हूं। इन्हें फ्रिज में रखवा रही हूं। खाती रहना कभी ऐसे ही पड़े रहें। तू बहुत कमजोर हो गई है।’’

करूणा ने शोभा को देख कर मुस्कुराते हुए कहा – ‘‘तू मेरा कितना ध्यान रखती है। वैसे मैं सोच रही थी कब तक तुझ पर बोझ बनी रहूंगी। मुझे कोई काम मिल जाता तो।’’

यह सुनकर शोभा ने कहा -‘‘तू मेरी बहन है ये घर तेरा है। फिलहाल आराम कर। रही बात काम की तो वो सब बाद में पहले अपनी शक्ल देख कितनी कमजोर हो गई है। अगर तू काम करना चाहती है तो पहले खा पी कर सेहत बना फिर देखेंगे।’’

यह सुनकर करूणा थोड़ा मुस्कुराई – ‘‘चलो मेडम के चेहरे पर हसी तो आई’’ यह कहकर शोभा हस पड़ी।

इसी तरह समय बीत रहा था। करूणा को आये दो महीने बीत चुके थे। इस बीच शोभा उसे कई बार बाहर घुमाने ले जाती थी। कभी-कभी हॉस्पिटल ले जाती थी। करूणा अब बहुत बदल गई थी। वह अब हसने लगी थी।

शोभा की देखभाल से उसने अपनी सेहत को वापस पा लिया था। इसी बीच करूणा बार-बार शोभा से काम के लिये कहती, लेकिन शोभा कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती थी।

इसी बीच करूणा करन से भी काफी घुल मिल जाती है। करन करूणा से साली साहिबा कहकर थोड़ा मजाक कर लेता था। जिसका जबाब करूणा उसे जीजाजी कहकर देती थी। इसी तरह समय बीत रहा था।

तीन महीने बीत जाने पर एक दिन करूणा ने शोभा से पूछा – ‘‘शोभा देख मैं अब और बोझ नहीं बन सकती या तो तू मुझे कहीं काम पर लगवा दे या मैं कहीं और जाकर काम ढूंढती हूं।’’

शोभा बोली – ‘‘तू एक काम कर कल से मेरे साथ हॉस्पिटल चल।’’

शोभा करूणा को हॉस्पिटल ले जाकर अपने केबिन में बिठा देती है। फिर करूणा शोभा के साथ-साथ मरीज देखने जाती है। करूणा धीरे धीरे काम समझ रही थी। पन्द्रह दिन में करूणा सब कुछ समझ जाती है।

शोभा उसे हॉस्पिटल की इंचार्ज बना देती है। वह अच्छी तरह सफाई का ध्यान रखती है। स्टाफ पर नजर रखती है। किसी मरीज को कोई परेशानी न हो उसका ध्यान रखती है। हॉस्पिटल में कपड़े धुल कर आते हैं उनका ध्यान रखती है। कुछ ही दिनों में पूरे हॉस्पिटल का काम संभाल लेती है।

इससे शोभा का काम आधा रह जाता है। वह अब केवल मरीजों पर ध्यान देती है। हॉस्पिटल में कोई भी समस्या होती तो शोभा, करूणा से पूछो यह कहकर उसे करूणा के पास भेज देती थी।

करन का काम भी काफी हल्का हो गया था। करूणा पूरा हॉस्पिटल अच्छे से संभाल लेती है।

एक दिन शोभा की तबियत खराब हो जाती है। वह हॉस्पिटल में बेहोश हो जाती है। शोभा का चेकअप होता है तो पता लगता है कि वो प्रेग्नेन्ट है। यह सुनकर करन और करूणा बहुत खुश होते हैं।

करूणा अब हॉस्पिटल के काम के साथ साथ शोभा का भी ध्यान रखने लगती है। वह शोभा की डाईट का बहुत अच्छे से ध्यान रखती थी। करूणा का साथ पाकर शोभा बहुत खुश थी। एक तरफ करूणा पूरा हॉस्पिटल संभाल रही थी, दूसरी ओर शोभा का अच्छे से ध्यान रखती थी।

शेष आगे …

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