गांव की चौपाल | Story of Poor Boy

Story of Poor Boy
Advertisements

Story of Poor Boy : शाम का समय था। गांव की चौपाल पर बहुत से लोग इकट्ठा थे। चौपाल पर सरपंच जी अन्य पंचों के साथ बैठे बंसी काका का इंतजार कर रहे थे।

सरपंच हरदयाल ने खेड़ होकर कहा – ‘‘क्यों रे हरिया तूने बताया नहीं था। बंसी को पंचायत में आने के लिये।

हरिया घबरा गया – ‘‘मालिक मैंने तो उसे कल ही बता दिया था, और वह कह भी रहा था आने के लिये लेकिन न जाने अब तक क्यों नहीं आया।’’

सरपंच ने कहा – ‘‘जा दौड़ के उसके घर और आने में आनाकानी करे तो लट्ठ बजा दियो।’’

हरिया जाने के लिये तैयार हो रहा था तभी दूर से बंसी काका अपने लड़के श्याम के साथ आते दिखाई दिये।

आते ही सरपंच ने पूछा – ‘‘क्यों रे बंसी कल हरिया ने तुझे बताया न था कि चौपाल पर आना है फिर क्यों नहीं आया।’’

बंसी काका हाथ जोड़ कर खड़े हो गये – ‘‘सरपंच जी माफ कर दीजिये सुबह खेत में पानी लगाने गया था। वहां एक बाड़ टूटी हुई थी। उसे सही करने में समय का पता नहीं चला। आगे से ऐसी गलती दुबारा नहीं होगी।’’

यह सुनकर एक पंच ने कहा – ‘‘चलो सरपचं जी पंचायत की कार्यवाही आगे बढ़ाते हैं, वैसे भी काफी देर हो चुकी है।’’

बंसी काका सर झुकाये खड़े थे। फिर सरपंच ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘सुन बंसी तेरे लड़के श्याम ने कल स्कूल में कुंवरपाल के लड़के से लड़ाई की। उसके बाद कुंवरपाल के खेत में इसने अपनी बकरियां छोड़ दीं। इसकी सारी फसल खराब हो गई।’’

बंसी काका चुपचाप सर झुकाये खड़े रहे। लेकिन श्याम ले जबाब दिया – ‘‘सरपंच जी झगड़ा इसके लड़के ने शुरू किया था। इसके लड़के ने मुझसे कहा कि तू गरीब भिखारी स्कूल में क्या कर रहा है जाकर बकरी चरा।’’

सरपंच ने कुंवरपाल से कहा – ‘‘कुंवरपाल तेरा लड़का कहां है। बुला उसे पूछते हैं।’’

कुंवरपाल बोला – ‘‘सरपंच जी मेरा लड़के को इसने मारा है वह तो उठ भी नहीं पा रहा है।’’

Advertisements

सरपंच ने गुस्से में कहा – ‘‘क्यों रे श्याम इतनी सी बात पर इतना मारा कि वह खड़ा भी नहीं हो पा रहा है।’’

अब बंसी काका के सब्र का बांध टूट गया उन्होंने कहा – ‘‘सरपंच एक तरफ की बात सुनकर भड़क रहे हो। इसका लड़का अभी भी स्कूल में है। झूठ बोल रहा है। उल्टा इसके लड़के ने दूसरे लड़कों के साथ मिलकर श्याम को पीटा है। देखो।’’

बंसी काका ने श्याम की कमीज उतार कर दिखाया पीठ पर चोट के निशान थे।

यह सुनकर कुंवरपाल के पसीने छूट गये वो तपक से बोला – ‘‘यह झूठ बोल रहा है मेरा लड़का घर पर पड़ा है। इसने शाम को बकरी छोड़ी मेरे खेत में इसे हर्जाना तो देना ही पड़ेगा।’’

सरपंच बोला  – ‘‘झूठ कौन बोल रहा है इसके लिये हम बैठे हैं। बुला अपने लड़के को घर से देखें किसे ज्यादा चोट लगी है।’’

कुंवरपाल कुछ नर्म पड़ते हुए बोला – ‘‘अब इतनी सी बात के लिये लड़के को बुलाने की क्या जरूरत है। हमें बस फसल का हर्जाना दिलवा दो।’’

सरपंच ने समझते हुए कहा – ‘‘हां तो बंसी ये बता चल बच्चों का झगड़ा था। चोटे तेरे बेटे को भी आई उसके बेटे को भी। लेकिन फसल खराब करने की क्या जरूरत थी।’’

बंसी काका ने कहा – ‘‘वाह सरपंच जी अच्छा न्याय है। मेरे बेटे को पीट दिया अपना बेटा छिपा दिया और अब फसल का झूठा आरोप लगा रहे हो। कल बकरी मैं चरा रहा था। यह तो स्कूल से आने के बाद चल भी नहीं पा रहा था।’’

यह सुनकर कुंवरपाल बोला – ‘‘हां तो इसी ने अपने बेटे का बदला लेने के लिये बकरी घुसाई होंगी मेरे खेत में।’’

यह सुनकर सरपंच बोला – ‘‘बंसी हर्जाना तो तुझे देना होगा आखिर फसल खराब हुई है।’’

तभी श्याम बोला – ‘‘तुम सब पैसे वाले चोर हो न इसकी फसल खराब हुई है, न इसके लड़के को कोई चोट लगी है। सब हमारी जमीन हड़पने के हथकंडे हैं।’’

बंसी काका ने उसे डाटते हुए बोला – ‘‘चुप हो जा नालायक क्या जरूरत थी उससे उलझने की तेरे ही कारण यहां खड़ा हूं।’’

बंसी काका ने सरपंच की ओर देखते हुए बोला – ‘‘मालिक लड़के को नहीं बुला सकते पर चल कर खेत तो देख ही सकते हो। वहां जाकर देखो तो इसकी फसल पहले की तरह लहलहा रही है।’’

कुंवरपाल बोला – ‘‘क्यों झूठ बोल रहा है बंसी सारी फसल खराब हो गई। मेरे आदमी अब तक तो उसे खेत से हटा भी चुके होंगे।’’

श्याम ने कहा – ‘‘बापू इनसे न्याय की उम्मीद करना बेकार है चलो मेरे साथ और हां सरपंच जो करना है कर लो हम एक पैसा नहीं देंगे।’’

Advertisements

श्याम जबरदस्ती बंसी काका को घर ले आता है। श्याम अपनी मां सुन्दरी और पिता बंसी काका के साथ गांव छोड़ देता है। वह उन्हें लेकर शहर आ जाता है।

बंसी काका ने कहा – ‘‘बेटा यहां क्या करेंगे हम तो कुछ जानते नहीं हैं। खेती के अलावा हमें कुछ नहीं आता।’’

यह सुनकर श्याम ने कहा – ‘‘चिंता मत करो बापू मैं और तुम मिलकर यहां बहुत पैसा कमायेंगे।’’

वे तीनो सड़क के किनारे सो जाते हैं। कुछ दिनों में श्याम को गाड़ी साफ करने का काम मिल जाता है और उसके पिता को मजदूरी करने का काम मिल जाता है। वे एक झोपड़ी का भी इंतजाम कर लेते हैं।

एक दिन श्याम गाड़ी साफ करके शाम को घर वापस जा रहा था। तभी उसे एक बुर्जुग मिले जो सड़क के किनारे बैठे थे। श्याम ने पूछा – ‘‘बाबा क्या बात है कुछ परेशान हो?’’

बुर्जुग ने कहा – ‘‘बेटा कुछ लोग मेरा बैग छीन कर भाग गये। मेरे पास घर जाने के भी पैसे नहीं हैं।’’

श्याम कहता है – ‘‘बाबा कहां जाना है आपको।’’

बुर्जुग उससे कहते हैं – ‘‘बेटा मुझे बस से जाना है सौ रुपये लगेंगे।’’

श्याम ये सुनकर उन्हों अपने पूरे दिन की कमाई सौ रुपये दे देता है।’’

बुर्जुग उससे कहते हैं – ‘‘बेटा ये तो तुम्हारी पूरे दिन की कमाई थी। अब तुम क्या करोगे’’

श्याम की आंखों में आंसू आ जाते हैं वो बोला – ‘‘बाबा घर न होने का दर्द हम जानते हैं गरीबी के कारण हमें अपना गांव, खेत और घर सब छोड़ना पड़ा। यहां शहर की एक गंदी सी झोपड़ी में रहते हैं। इसलिये मेरे खाने से ज्यादा जरूरी आपका घर पहुंचना है।’’

उसकी बातें सुनकर उस बुर्जुग ने कहा -‘‘बेटा कल इसी समय मुझे यहीं मिलना, आना जरूर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।’’

श्याम ने कहा – ‘‘बाबा सौ रुपये के लिये आप यहां तक आयेंगे। कोई जरूरत नहीं हैं। वैसे तो मैं दिन भर यहीं पास के सिग्नल पर गाड़ी साफ करता हूं। लेकिन आपकी मदद मैं इसलिये नहीं कर रहा कि मुझे आपसे ये वापस चाहिये। कल फिर मेहनत कर लेंगे।’’

तब उस बुर्जुग ने कहा – ‘‘बेटा ये पैसे तो मैं तुम्हें वापस नहीं करूंगा पर एक बार मेरे कहने से मिलना जरूर।’’

अगले दिन शाम को श्याम उसी रास्ते से गुजरा। तभी उसे कल की बात याद आ गई। वह कुछ देर वहां रुका पर उसे लगा वो तो सब भूल गये होंगे।

तभी वहां एक कार आकर रुकी। आलीशान गाड़ी उसकी पिछली सीट पर वही बुर्जुग बैठे थे – ‘‘बेटा मैं तुमसे मिलने आ गया। आ जाओ गाड़ी में बैठ जाओ।’’

श्याम गाड़ी में बैठ जाता है और पूछता है – ‘‘बाबा कल तो आप सौ रुपये मांग रहे थे। आज आप गाड़ी में।’’

बुर्जुग ने कहा – ‘‘बेटा कल भी गाड़ी से आया था। लेकिन यहां भीड़ बहुत रहती है। इसलिये मैंने गाड़ी से उतर कर उसे वापिस भेज दिया। तभी किसी चोर ने मुझे गाड़ी से उतरते देख लिया और उसने मेरा बैग छीन लिया। मेरे सारे पैसे उसी बैग में थे।’’

आगे बुर्जुग ने कहा – ‘‘मुझे अपने घर ले चलो। मैं तुम्हारे माता पिता से मिलना चाहता हूं।’’

श्याम उन्हें अपने घर के पास ले गया। फिर वो अपने माता पिता को वहीं ले आया।

बुर्जुग ने कहा – ‘‘आपका बेटे का दिल बहुत बड़ा है। इसने मेरी मदद की थी खुद भूखे रहकर।’’

वे बुर्जुग तीनों को अपने आलीशान बंगले में ले गये। श्याम के माता पिता को उन्होंने घर की देखभाल का जिम्मा सौंप दिया और श्याम का दाखिला स्कूल में करा दिया।

कुछ दिन बाद बुर्जुग उन तीनों को लेकर उनके गांव पहुंच गये। वहां उन्होंने उनका घर और खेत जिस पर सरपंच ने कब्जा कर रखा था। उसे छुड़ा दिया। गांव में एक अदमी को उनके घर और खेत की जिम्मदारी का काम दे दिया।

गांव वाले हैरान थे, कि गरीब बंसी काका और उनका बेटा श्याम इतने अमीर कैसे हो गये। उसके बाद बंसी काका अपनी पत्नी और श्याम के साथ महीने में एक बार अपने गांव जाने लगे। कभी कभी वो बुर्जुग भी उनके साथ होते।

शिक्षा: अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है।

अन्य कहानियाँ

खजाने की चाबीपैसे का घमंड
पानी की प्यासगरीब की दोस्ती
मेरे पापा को छोड़ दोबेटी की जिद्द
नीलम की मौसी

Image Source : Playground

Advertisements