#1 लालची सास की कहानी | Saas Bahu Hindi Story
रेखा जी अभी अभी अपने पति मुकुल जी के लिये कॉफी बना कर किचन से निकली हीं थीं कि सामने से लता को आता देख कर उनका पारा चढ़ गया।
रेख जी: जब सारा काम हमें ही करना है तो तुम्हारा क्या काम है यहां तुम्हें पता नहीं है कि हमें सुबह उठते ही कॉफी पीने की आदत है।
लता: मांजी मैं आ ही रही थी लेकिन रवि को जल्दी ऑफिस जाना था उनके कपड़े प्रेस करने में टाईम लग गया।
रेखा जी: बस हर बात में बहाना पहले ही तैयार रहता है।
लता को शादी करके आये अभी केवल चार महीने ही हुए थे। यहां आकर उसे ऐसा लगने लगा था जैसे किसी जेल में आ गई है। उसे कहीं जाना हो तो परमीशन लेनी पड़ती थी। कोई गलती हो जाये तो पनिशमेंट मिलता था। सास ससुर और पति तीनों ही एक सुर में उसका विरोध करते थे।
कभी कभी तो मन करता कि यहां से भाग कर अपने पापा के घर चली जाये। लेकिन पापा हार्ट पेशेंट हैं यह सब उन्हें पता लग गया तो न जाने क्या अनर्थ हो जायेगा। यही सोच कर सब बर्दाशत करती रहती थी।
लता ने जल्दी जल्दी सबके लिये नाश्ता बनाया उसके बाद रवि को टिफिन पैक करके दे रही थी। तभी रवि ने आवाज दी –
रवि: लता क्या कर रही हों इतना टाईम नहीं है मेरे पास कार चला के नहीं जाना है मेट्रो में कितना समय लगता है तुम्हें पता है। जरा सा लेट पहुंचो तो ऑफिस में सुनना पड़ता है।
रवि की एक एक बात इस बात की ओर इशारा था कि उसके पिता ने कार नहीं दी थी। लेकिन वह अब सब सुन लेती है। पिता को कैसे बताये कि जिन्हें आपने उसका जीवनसाथी चुना था। वह पैसों का लालची है।
एक दिन शाम को रवि घर आया तो उसने अपने पापा से बात की
रवि: अब मुझसे नौकरी नहीं होती वो आपके पुराने दोस्त शर्मा जी मोटर पार्ट बनाते हैं मैं चाहता हूं कि उसकी सप्लाई शुरू करूं।
पापा: लेकिन बेटा उसके लिये तो कम से कम दस लाख रुपये चहिये होंगे वो कहां से आयेंगे।
रवि: वही सोच रहा हूं।
तभी लता चाय बना कर लाती है।
रवि: लता तुम अपने पापा से कुछ पैसे उधार ला सकती हों?
लता का सब्र जबाब दे चुका था। रोज रोज के तानों से दुःखी होकर, उसने जबाब दिया।
लता: रवि, मेरे पिता के भरोसे मत रहना उन्होंने मेरी शादी करके अपना फर्ज पूरा कर दिया। अगर आपको नौकरी करने में दिक्कत है तो मुझे जॉब करने दो। दोंनो मिल कर कमायेंगे।
यह सुनकर रवि का पारा चढ़ गया।
रवि: क्या बकवास कर रही हों ज्यादा जुबान चलने लगी है।
लता: रवि मैं बहुत बर्दाशत कर चुकी हूं। इसलिये मैंने जॉब करने का फैसला किया है।
रवि: नहीं हमारे घर में यह सब नहीं होता तुम्हें जॉब करनी है तो अपने घर चली जाओ।
लता: मुझे पता था आप यही कहेंगे। मैंने वकील से बात कर ली है मैं जल्द ही तलाक ले लूंगी।
यह सुनकर रवि और उसके पिता के हाथ पांव फूल गये।
तभी रेखा जी वहां आ गईं।
रेखा जी: देख लिया बहु को सिर पर चढ़ाने का नतीजा। निकाल दे इसको घर से बाहर।
लता: ठीक है मैं पुलिस को फोन कर देती हूं आप मेरा सारा सामान और दहेज वापस कर दीजिये साथ ही हर महीने अपने पति की कमाई का आधा हिस्सा मैं कोट से ले लूंगी, इस मकान में भी मेरा हिस्सा है आधा मकान मेरे नाम कर दीजिये।
रेखा जी: सुनो ये क्या कह रही है।
मुकुल जी: बेटी ऐसी बातें क्यों कर रही है। आज के बाद हम तुझसे कभी कुछ नहीं कहेंगे तू अपने कमरे में जा।
लता: नहीं पापा जी बहुत बर्दाशत कर चुकी मैं। अब मुझसे ये दिन भर के ताने बर्दाशत नहीं होते, आप लोग इतने लालची होंगे ये मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
रेखा जी: इसके बाप को फोन करके बुलाईये, इसके मुंह लगने से अच्छा है उनसे डायरेक्ट बात करते हैं।
लता: मांजी मेरे पिता हार्ट पेशेंट हैं अगर इस बात को सुन कर उन्हें कुछ हो गया, तो इसके जिम्मेदार आप लोग होंगे।
रवि: ये तुम्हें क्या हो गया? आज से पहले तो तुमने कभी ऐसी बात नहीं की।
लता: मैं आज तक आपके और मम्मी, पापा जी के हर ताने को बर्दाशत करती रही बीस लाख रुपये मेरे पापा ने शादी में खर्च किये फिर भी आपको कार चाहिये, बिजेनस करने के लिये पैसा चाहिये।
लता ने उसी समय अपना सामान पैक किया और घर छोड़ दिया। जाने से पहले उसने अपने सास-ससुर और पति तीनों को कहा –
लता: अगर मेरे पापा को आपने कुछ बताया तो मैं आपको अरेस्ट करा दूंगी। तलाक का नोटिस आपको मिल जायेगा चुपचाप साईन कर देना।
लता वहां से निकल कर अपनी एक सहेली के फ्लेट में पहुंच गई।
एक दिन पहले उसी ने उसे हक के साथ अपना आत्मसम्मान बचाने के लिये समझाया था।
लता: कोमल मैं आ तो गई हूं। लेकिन अब आगे क्या होगा?
कोमल: चिंता मत कर मैंने बात कर ली है मेरे ऑफिस में जगह खाली है कल से तू जॉब करेगी और मेरे साथ रहेगी।
एक महीने तक जॉब करने के बाद लता एक दिन अपने घर जाती है और पिताजी को सारी बात बताती है। उसकी बात सुनकर उसके पिता कहते हैं –
पिता: बेटा मुझे तूने क्यों नहीं बताया?
लता: पापा आपने मेरे लिये बहुत कुछ किया है। अब मैं आपको परेशान करना नहीं चाहती थी।
पिता: बेटी मैं इतना कमजोर नहीं हूं। तू चिन्ता मत कर घर आजा।
लता: नहीं पापा मुझे कुछ समय दीजिये अपने पैरों पर खड़ा होने दीजिये अपनी एक पहचान बनाने दीजिये।
कुछ ही महीने केस चलने के बाद रवि और लता का तलाक हो गया। रवि को पूरा दहेज और तीस लाख रुपये देने पड़े साथ ही हर महीने अपनी सैलरी का एक हिस्सा वह कोर्ट में जमा करवाता था।
#2 सास बहु की कहानी (Saas Bahu ki Kahani)
एक गॉव में मधु अपने बेटे के साथ रहती थी। एक दिन उसके बेटे सुनील ने अपनी मॉं को खबर दी।
सुनील: माँ आपको एक खुशखबरी सुनानी थी।
मधु: बेटा क्या बात है?
सुनील: माँ मुझे शहर में नोकरी मिल गई है।
मधु: यह तो बहुत खुशी की बात है बेटा लेकिन तू अकेला शहर में कैसे रहेगा।
सुनील: माँ तुम चिंता मत करो। मैं शहर जाकर सब ठीक कर लूंगा उसके बाद तुम्हें भी शहर बुला लूंगा।
यह सुनकर मधु उदास हो गई।
मधु: बेटा तू मुझे छोड़ कर चला जायेगा तो मैं किसके सहारे रहूंगी यहां।
सुनील: माँ चिंता मत करो थोड़े से पैसे जोड़ कर आपको वहीं बुला लूंगा।
कुछ दिन बाद सुनील शहर चला जाता है। वहां वह नौकरी करने लगता है। हर सप्ताह वह मॉं से मिलने गॉव आता था और कुछ पैसे घर खर्च को दे जाता था।
इसी तरह कुछ दिन बीत गये। एक दिन मधु के घर एक पति पत्नि आये।
पति: बहन जी हमने आपके लड़के को देखा है। हम अपनी बेटी आशा की शादी उससे करना चाहते हें।
पत्नि: बहन हमारी बेटी बहुत सुन्दर है और हम आपको बहुत सारा दहेज देंगे। हमारे पास बहुत पैसा है।
मधु: बहन जी पैसे और दहेज की बात न कीजिये हम देहज नहीं लेंगे और आप इतने पैसे वाले हैं लेकिन हम तो बहुत गरीब हैं हमारी आपकी कैसे निभ पायेगी।
यह सुनकर पति ने जबाब दिया।
पति: बहन जी आप चिन्ता मत करें यहां आने से पहले हमने आपके बारे में सब पता कर लिया है। हमें आपका लड़का बहुत पसंद है।
सुनील से बात करके दोंनो लड़की देखने जाते हैं। लड़की उन्हें पसंद आ जाती है। इसके बाद दोंनो की शादी हो जाती है।
शादी के बाद आशा बहु बन के घर आ जाती है।
कुछ दिन गॉव में रहने के बाद सुनील अपने काम पर जाने लगता है।
आशा: मैं इस गॉव में नहीं रह सकती मुझे भी शहर ले चलो।
सुनील: तुम कुछ दिन मॉं के साथ रहो। फिर मैं तुम दोंनो को शहर ले जाउंगा।
आशा: मैं इस गरीबी में नहीं रह सकती। पता नहीं पापा ने क्या देख कर मेरी शादी यहां कर दी। या तो मुझे शहर ले चलो या फिर मैं अपने पापा के घर जा रही हूॅं।
मधु: बेटा तू बहु को लेकर चला जा। मेरी चिंता मत कर।
सुनील: नहीं मॉं ऐसा करते हैं हम सब साथ में शहर चलते हैं।
तीनों शहर में रहने लगते हैं।
आशा का व्यवहार धीरे धीरे बदल जाता है। वह हर समय सास से छुटकारा पाने के बारे में सोचती थी।
एक दिन मधु सुनील से बात कर रही थी। तभी वहां आशा आ जाती है।
आशा: हॉं मांजी आप भड़का लीजिये इन्हें मेरे खिलाफ जब से ये शहर में आये हैं न तो मुझे कहीं घुमाने लग गये न ही मेरे साथ ढंग से बात करते हैं और यह सब आपके कारण हो रहा है।
सुनील: आशा ये किस तरह बात कर रही हों तुम मेरी मॉं से क्या कमी रह गई मेरे प्यार में बस मैं केवल इसलिये कहीं नहीं जा पाता क्योंकि मेरे पास टाईम नहीं है वरना माँ तो हमेशा मुझसे तुम्हें कहीं ले जाने की बात करती हैं। इसलिये मेरी मॉं पर छूटे आरोप लगाना बंद करो।
यह सुनकर आशा और गुस्से में आ गई।
मधु: बेटी गुस्सा मत कर मैं इससे बात करती हूं। सुनील तू आज ही बहु को कहीं घुमाने ले जा और जो वो कहे उसकी हर बात माना कर।
आशा: रहने दीजिये मांजी आप ही इन्हें भड़काती हैं और मेरे सामने भली बनने का नाटक कर रहीं हैं। मुझे अब कहीं नहीं जाना और जाना भी होगा तो आपसे पूछने की जरूरत नहीं है।
यह कहकर वह कमरे में चली जाती है। उसकी इस बात से मधु बहुत दुखी होती है उसके अरमानों पर पानी फिर जाता है। इधर सुनील भी बहुत दुखी होता है।
अगले दिन से आशा ने दोंनो के लिये खाना बनाना बंद कर दिया और सुनील के जाने के बाद अपने पिता के घर चली जाती। घर का सारा काम मधु करती और जब सुनील के आने का समय होता तो उससे एक घंटे पहले आशा आ जाती थी।
इस बात का सुनील को जरा भी पता नहीं था।
एक दिन आशा अपने साथ एक आदमी को लेकर घर आई।
आशा: मांजी ये प्रकाश जी हैं। ये बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा पर ले जाते हैं। एक महीने की यात्रा है जिसमें सारे तीर्थ कराते हैं। बहुत कम खर्च में। मैंने पैसे जमा करा दिये हैं आप शाम को ही इनके साथ चली जाना।
मधु: लेकिन बेटी एक बार सुनील से तो पूछ लेने दे?
आशा: नहीं मांजी वो आपको जाने नहीं देंगे और ऐसा मौका आपको दुबारा नहीं मिलेगा।
मधु आशा की बातों में आकर शाम को उस आदमी के साथ चली जाती है।
शाम को जब सुनील आता है तो वह मॉं को न पाकर पूछता है।
तब आशा कहती है।
आशा: मांजी तो तीर्थ यात्रा पर चली गईं उनके गॉव से एक आदमी आया था वो उन्हें अपने साथ ले गया।
सुनील बहुत परेशान हो गया।
वह कुछ दिन माँ का इंतजार करता रहा लेकिन मॉं नहीं आई उसके बाद वह गॉव गया मॉं के बारे में पता करने लेकिन मॉं का कहीं भी पता नहीं चला।
आशा: बहुत खुश रहने लगी। उसके रास्ते का कांटा हमेशा के लिये निकल गया था।
इधर वह आदमी मधु को बहुत दूर ले जाकर एक रेलवे स्टेशन पर बैठा कर चला जाता है। मधु को कुछ पता नहीं होता जब वह सुबह देखती है तो वहां कोई नहीं था। मधु घबरा जाती है। वह रास्ता ढूंढने लगती है लेकिन उसे कहीं कुछ समझ नहीं आता।
इधर सुनील अपनी माँ के लिये बहुत परेशान रहने लगा। वह बीमार पड़ गया।
आशा ने जब यह सब देखा तो वह एक दिन अपने पिताजी के पास गई।
आशा: पापा जिस आदमी को आपने भेजा था उससे पता करो मेरी सास कहां है। उनके बिना तो ये बीमार पड़ गये।
पिता: बेटी तेरी सास को छोड़ने के बाद वह आदमी वापस आ रहा था उसका एक्सीडेंट हो गया वह मर गया। और तब से मैं भी बीमार पड़ा हूॅं। बेटी हमें ऐसा नहीं करना चाहिये था।
यह सुनकर आशा रोने लगती है। इधर मॉं के गम में सुनील की बीमारी बढ़ जाती है। उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं रहती।
सुनील एक दिन आशा से कहता है।
सुनील: आशा तुम मुझे गॉव ले चलो मैं अपने प्राण अपने घर में त्यागना चाहता हूॅं। मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर दो।
यह सुनकर आशा रोने लगती है और सुनील को गॉव ले जाती है। जब वे अपने घर पहुंचते हैं आशा घर में जाती है तो देखती है मधु घर में खाना बना रही थी।
यह देख कर वह अचम्भे में आ जाती है। सुनील अपनी मॉं को देख कर रोने लगता है। मधु सुनील की हालत देख कर उसे सहारा देकर बैठाती है।
सुनील: माँ तुम यहां कैसे? मैंने तुम्हें कहां कहां नहीं ढूंढा।
मधु: बेटा बहु ने जिस आदमी के साथ मुझे तीर्थ यात्रा पर भेजा था वह धोखा देकर भाग गया। मैं भटकते भटकते किसी तरह गॉव पहुंच गई मुझे लगा मेरा शहर में आना बहु को पसंद नहीं था। इसलिये यहीं मैं मेहनत मजदूरी करके अपना गुजर बसर करने लगी। लेकिन तूने अपनी ये हालत कैसे बना रखी है।
आशा: मांजी मुझे माफ कर दीजिये। आपसे पीछा छुड़ाने के चक्कर में मैं अपनी ही गृहस्थी में आग लगा बैठी इनका ये हाल है कि डॉक्टर ने जबाब दे दिया। यह सब मेरे पिता ने करवाया था वे भी बहुत बीमार हैं और वह आदमी एक्सीडेंट में मर गया। जिसे मेरे पिता ने भेजा था।
सुनील: अब तुम यहां से चली जाओ मैं अपनी मॉं के चरणों में मरना चाहता हूॅं मुझे चैन से मरने दो।
मधु: नहीं बेटा अब तू क्यों चिंता करता है मैं तुझे मरने नहीं दूंगी और बहु को माफ कर दे इसे अपने किये की सजा मिल गई।
उसके बाद सास बहु ने दिन रात सुनील की सेवा की उसे खुश रखने की कोशिश की मॉं का प्यार पाकर सुनील कुछ ही दिनों में बिल्कुल ठीक हो गया।
सुनील: मॉं मैं शहर नहीं जाना चाहता यहीं कुछ काम कर लूंगा। शहर की चकाचौंध में सब धुंधला नजर आता है यहां तक कि रिश्ते भी।
कुछ दिन बाद आशा के पिता जी घर आये और मधु के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगे।
पिता: बहनजी मैं अपनी बेटी को सुखी देखना चाहता था। लेकिन ये भूल गया एक माँ को उसके बेटे से अलग कर जो अपराध कर रहा हूं उससे मेरी बेटी का संसार कभी सुखी नहीं रह सकता।
मधु: मैंने आप सभी को माफ कर दिया।
इसके बाद आशा बिल्कुल बदल गई वह अपनी सास की सेवा करने लगी। सुनील उसके व्यवहार से बहुत खुश रहने लगा।
#3 Sas Bahu ki Kahani
मोहन अपनी मॉ सावित्री के साथ एक गॉव में रहता था। मोहन के पिता का देहांत हो चुका था। सावित्री गॉव के घरों में काम करने जाती थी। उसी से दोंनो की गुजर बसर होती थी।
एक दिन मोहन ने अपनी मॉं से कहा ‘‘मॉं तुम इतनी मेहनत करती हों मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता मैं अपनी पढ़ाई छोड़ कर कुछ काम ढूंढ लेता हूं’’
यह सुन कर सावित्री रोने लगी उसने कहा ‘‘बेटा कुछ दिनों की बात है तू पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी करने लगेगा तो मुझे काम करने की जरूरत नहीं पढ़ेगी फिर मैं तेरी शादी कर दूंगी बहू के आने पर मुझे आराम ही करना है तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।’’
मोहन मॉं को बहुत समझाता है लेकिन सावित्री उसकी बात नहीं मानती उसे उम्मीद थी कि मोहन पढ़ लिख कर बढ़ा आदमी बन जायेगा।
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इसी तरह कुछ साल बीत गये मोहन की पढ़ाई पूरी हो गई उसे नौकरी भी मिल गई। एक दिन मोहन घर आया और उसने अपनी मॉं से कहा
‘‘मॉं अब मैं तुम्हें अब काम पर जाने की कोई जरूरत नहीं है। मेरी बहुत अच्छी नौकरी लग गई है अब तुम आराम करो’’
सावित्री उसकी बात मान कर काम छोड़ देती है। कुछ दिन बाद मोहन के लिए एक बड़े घर से रिश्ता आया। सावित्री बहुत खुश हुई उसने खुशी खुशी मोहन का विवाह कर दिया। अपनी नई बहु रेखा को पाकर सावित्री बहुत खुश हुई। वह अपनी बहु को कोई काम नहीं करने देती सारा काम स्वयं करती। रेखा सारा दिन बैठी रहती। एक दिन मोहन ने अपनी मॉं से कहा ‘‘मॉं तुम रेखा से भी कुछ काम करवाया करो इस उम्र में तुम काम करती हों और रेखा बैठी रहती है’’
यह सुन कर रेखा ने कहा ‘‘मैंने तो मांजी से कई बात कहा है काम करने के लिए लेकिन ये सब अपने आप करना चाहती हैं’’
मोहन के कहने पर रेखा अगले दिन से सावित्री के साथ घर के काम करने लगी कुछ दिन बाद सावित्री की तबियत खराब रहने लगी अब सारा काम रेखा को करना पड़ता था।
कुछ दिन बाद रेखा का स्वभाव बदलने लगा। वह अब सावित्री से बात नहीं करती थी। एक दिन सावित्री ने पूछा ‘‘बहु क्या बात है तू मेरे से बात नहीं करती’’ तब रेखा ने कहा ‘‘आपको पता है मैं कितने बड़े घर से आई हू° और कितनी पढ़ी लिखी हूं तुम लोगो ने मुझे नौकरानी बना दिया’’
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यह सुन कर सावित्री ने कहा ‘‘बहु कुछ दिन की बात है मैं ठीक हो जाउंगी उसके बाद मैं सारा काम कर लूंगी लेकिन अभी तो मैं बिस्तर से उठ भी नहीं पा रही हूं’’
तब रेखा बोली ‘‘हॉं हॉं यह सब बहाने मैं खूब समझती हूं मैंने काम करना शुरू किया तो आपने सारा काम मेरे उपर डाल दिया’’ यह कह कर रेखा अपने कमरे में चली गई उस दिन उसने खाना भी नहीं बनाया।
शाम को जब मोहन घर आया तब रेखा ने कहा ‘‘सुनो जी मैं इतना काम नहीं कर सकती इसलिए मैं अपने पिता के घर जा रही हूं तुम्हें अपनी मॉं की सेवा करनी है तो करो मुझसे यह सब नहीं होगा’’
यह सुन कर मोहन गुस्से में बोला ‘‘मैंने शादी अपनी मॉं को आराम देने के लिए की थी। अगर तुम घर का काम नहीं करोंगी तो मॉं इस बीमारी मैं कैसे काम करेगी’’
यह सुन कर रेखा गुस्से में अपन घर जाने के लिए चल दी तभी सावित्री ने उसे रोका और कहा ‘‘बहु इस घर को छोड़ कर मत जाओ मैं सारा काम कर लूंगी’’
रेखा फिर भी नहीं मानती और अपने पिता के घर चली जाती है। उसके जाने के बाद सावित्री रोती रहती है। मोहन कहता है ‘‘मॉं तुम क्यों रो रही हो उसका गुस्सा कम होगा तो वह आ जायेगी’’
यह सुन कर सावित्री कहती है ‘‘बेटा तू अभी उसे लेकर आ और जब तक वह नहीं आये तू भी उसके साथ रहना’’
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मोहन कहता है ‘‘मॉं मैं तुम्हें इस हाल मैं छोड़ कर केसे जा सकता हू°’’ लेकिन सावित्री कहती है ‘‘तुझे मेरी कसम नहीं तो मैं अन्न जल त्याग दूंगी और मर जाउंगी’’
सावित्री की जिद के आगे मोहन हार जाता है और रेखा को लेने उसके घर पहुंच जाता है।
वह रेखा को बहुत मनाता है लेकिन वह नहीं मानती। रेखा उससे कहती है ‘‘हम अलग घर लेकर रहते हैं तुम अपनी मॉं को हर महीने कुछ पैसे भेज देना’’
मोहन बेमन से उसकी बात मान लेता है और रेखा के साथ अलग मकान में रहने लगता है।
उधर सावित्री अकेली रह जाती है। वह अकेले में बैठी बैठी अपने मोहन को याद करके रोती रहती थी।
एक दिन सावित्री के घर पर कोई दरवाजा खटखटाता है सावित्री दरवाजा खोलती है तो देखती है सामने रेखा का भाई राजेश अपनी पत्नी के साथ खड़ा था वे दोंनो अन्दर आकर सावित्री से पूछते हैं ‘‘मांजी दीदी कहां है सावित्री उसे सारी बात बता देती है’’ यह सुन कर राजेश कहता है ‘‘मांजी मैं सोच भी नहीं सकता था मेरी बहन ऐसा करेगी मैं तो अपनी पत्नी के साथ शहर में रहता हूं आज दीदी से मिलने का मन हुआ तो यहां चला आया और इतनी बड़ी बात मेरे माता पिता ने भी मुझे नहीं बताई’’ यह कह कर वह चला जाता है।
कुछ दिन बाद रेखा अपने पिता के घर जाती है। वहां उसे राजेश और उसकी पत्नि मिलते हैं। रेखा अपने भाई भाभी को देख कर बहुत खुश होती है और कहती है ‘‘भैया आप कब आये मुझसे मिलने क्यों नहीं आये और मॉं पिता जी कहां हैं’’
तब राजेश ने कहा ‘‘मेरी पत्नि मॉं पिता जी के साथ नहीं रहना चाहती थी इसलिए मैंने उन दोंनो को घर से निकाल दिया और तू भी अब कभी यहां मत आना’’
यह सुन कर रेखा के होश उड़ जाते हैं वह रोने लगती है और कहती है ‘‘भैया आप मुझे इतना प्यार करते थे अब कैसी बातें कर रहे हो और इस उम्र में मां पिताजी कहां जायेंगे आप उनके साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं’’
तब राजेश कहा है ‘‘जब तूने अपनी सास के साथ ऐसा कर सकती है तो मैं क्यों नहीं कर सकता मैं भी तो तेरा भाई हूं’’
यह सुन कर रेखा को अपने किये पर बहुत पछतावा होता है वह भाग कर अपने घर पहुंच जाती है और मोहन के पैरों में गिर जाती है मोहन के पूछने पर वह सारी बात उसे बता देती है और कहती है ‘‘मुझे माफ कर दो और मांजी के पास ले चलो मैं उनसे माफी मांग लूंगी मेरे किये की सजा मेरे माता पिता को भी भुगतनी पड़ रही है जाने वे किस हाल में होंगे’’
मोहन रेखा को लेकर अपने घर पहुंच जाता है। घर में घुसते ही रेखा सावित्री के पैरों में गिर जाती है और अपने किये व्यवहार के लिए माफी मांगती है।
तभी दूसरे कमरे से राजेश अपनी पत्नि और माता पिता के साथ बाहर आता है। उन्हें देख कर रेखा रोने लगती है। तब राजेश उसे बताता है ‘‘उसने माता पिता को छुपा दिया था। ताकी तुझे तेरी गलती का अहसास हो सके राजेश के माता पिता भी सावित्री से माफी मांगते हैं।
इस तरह मोहन रेखा और सावित्री तीनों खुशी खुशी रहने लगते हैं।
#4 लालची बहु की कहानी (Lalchi Bahu ki Kahani)
रामवती दूध बेचने का काम करती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो चुका था। उसका एक बेटा था रवि। रवि अपनी मॉं से बहुत प्यार करता था। एक दिन उसकी मॉं ने कहा
रामवती: बेटा मैं तेरी शादी करना चाहती हूं। तू तो महीनों शहर में रहता है मैं चाहती हूं तू शादी कर ले।
रवि: ठीक है मॉं लेकिन मेरी एक शर्त है। मेरी पत्नि यहीं रहकर तुम्हारी सेवा करेगी।
रमावती: अच्छा ठीक है देखा जायेगा।
रमावती एक सुन्दर सी लड़की ढूंढ लेती है। दोंनो की शादी हो जाती है। कंचन बहु बनकर उनके घर आ जाती है।
शादी के एक सप्ताह बाद रवि शहर जाने लगता है तो कंचन उससे जिद करती है, कि वह उसे भी अपने साथ ले जाये।
रवि: नहीं कंचन मैंने मॉं से वादा किया था कि तुम मॉं की सेवा करोंगी। मैं तुमसे मिलने हर सप्ताह आता रहूंगा।
रवि शहर चला जाता है। रमावती अगले दिन अपनी बहुत कंचन से कहती है –
रमावती: बहु ये दूध ले जा और बेच आ।
कंचन: लेकिन मांजी मुझे तो दूध बेचने के बारे में कुछ भी नहीं पता है।
रमावती उसे सब कुछ समझा कर दूध बेचने भेज देती हैं
गॉव में कंचन आवाज लगा कर दूध बेच रही थी। दोपहर तक उसका केवल आधा ही दूध बिक पता है।
दोपहर को वह एक पेड़ के नीचे बैठ जाती है। कुछ देर बाद शाम के समय घर वापस आ हाती है।
कंचन: मांजी मेरा तो आधा ही दूध बिका है।
रमावती: कोई बात नहीं कल मेरे साथ चलना लगता है गॉव वाले तुझे जानते नहीं हैं इसलिये तुझसे कोई दूध नहीं लेता।
उस दिन से अगले दस दिन तक हर दिन कंचन दूध लेकर जाती लेकिन उसका दूध बिक नहीं पाता था। इससे दुःखी होकर एक दिन उसने अपनी सास से कहा –
कंचन: मांजी आप दूध बेचने चली जाया करो मैं घर का काम कर लिया करूंगी।
अगले दिन रमावती दूध बेचने गई दोपहर से पहले ही उसका सारा दूध बिक गया।
दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ रमावती का सारा दूध बिक गया।
रमावती: बहु ऐसा कैसे होता है मैं जाती हूं तो सारा दूध बिक जाता है।
कंचन: मांजी आपको लगता है कि मैं दूध लेकर बेचने नहीं जाती तो गॉव वालों से पूछ लो मैं पूरे गॉव का चक्कर लगा कर थक जाती हूं फिर एक पेड़ के नीचे बैठ जाती हूं।
रमावती को कुछ गड़बड़ लगती है। वह अगले दिन दूध बेचने जाती है।
रमावती: बहन श्यामा एक बात बताओ तुम तो हमसे इतने सालों से दूध ले रही हों। फिर जब मेरी बहु दूध बेचने आई तो आपने उससे दूध क्यों नहीं लिया।
श्यामा: बहन तुम्हारी बहु बहुत अकड़ में रहती है। वह दूध के दाम भी ज्यादा लेती है और नाप में भी कम दूध देती है। इसी लिये पूरा गॉव उसका दूध नहीं लेता।
रमावती घर आकर कंचन से पूछती है तो वो कहती है –
कंचन: देखो मांजी सब गॉव वाले झूठ बोलते हैं। आपको दूध बेचना है तो आप बेचो मैं तो ऐसे झूठे लोगों को दूध बेचने नहीं जाउंगी।
रमावती: ठीक है कल से मैं दूध बेचने जाउंगी।
कुछ दिन बाद रवि घर आता है। अगले दिन वह गॉव में घूमने जाता है। तो गॉव वाले उसे सारी बात बताते हैं। रवि गुस्से में घर आता है।
रवि: कंचन सभी गॉव वाले तुम्हारी बुराई कर रहे हैं।
रमावती: अरे बेटा कोई बात नहीं मैंने ही बहु से दूध के दाम बढ़ाने के लिये कहा था यही बात गॉव वालों को बुरा लग गया।
कंचन: नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल मॉं ने ही गॉव की औरतों के सामने मेरी बुराई की है इसलिये वे मेुझे गलत समझते हैं। मुझे शहर ले चलिये।
रवि: मेरी मॉं कभी किसी की बुराई नहीं कर सकती। मॉं क्या बात है।
तब रमावती ने सारी बात बताई।
रवि: सच सच बता क्या बात है। नहीं तो मैं शहर से कभी वापस नहीं आउंगा।
कंचन: जी वो मैं दूध में से पैसे बचा कर आपके साथ शहर जाना चाहती थी। यहां मैं नहीं रहना चाहती।
रमावती: बेटा तू बहु को ले जा। नहीं तो यह फिर कुछ कर देगी।
रवि: मॉं मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकता। मैं अब अपनी खेती संभालूंगा। मैं अब शहर नहीं जाउंगा। कंचन दूध बेचेगी मैं खेती करूंगा। आप अब बस आराम करो।
कंचन: लेकिन गॉव वाले मुझसे दूध नहीं लेंगे।
रवि: हम दोंनो साथ चलेंगे दूध बेचने।
अगले दिन से रवि और कंचन दूध बेचने जाने लगते हैं।
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