सास बहु की लड़ाई | Saas Bahu ki Ladai Kahani

Saas Bahu ki Ladai Kahani
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Saas Bahu ki Ladai Kahani : अविनाश तुम कब मेरी बात सुनोगे? आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूॅं … काव्या ने गुस्से में अविनाश से कहा …. अविनाश बिना कुछ बिना बोले घर से बाहर निकल गया। अब ऐसा हर दिन होता है।

काव्या अपनी सास सुलोचना जी की बहुत इज्जत करती थी। लेकिन सुलोचना जी हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं।

आज भी वही काव्या ने सुबह जल्दी उठ कर नाश्ता बनाया … अविनाश को सूजी का हलवा बहुत पसंद था इसलिये उसने नाश्ते के साथ हलवा भी बना कर सभी को परोस दिया।

उसके ससुर रमेश जी ने सुलोचना जी को टोकते  हुए कहा … ये क्या फिजूलखर्ची है सुबह सुबह देसी घी का हलवा … सुलोचना जी ने काव्या को डाटते हुए पूछा … क्यों बहु ये देसी घी क्या तेरे मायके से आया है … मांजी वो इन्हें हलवा बहुत पसंद है इसलिये थोड़ा सा बनाया है … यह कहकर काव्या अविनाश की तरफ देख रही थी … शायद वो कुछ बोलें … तभी सुलोचना जी ने कहा … मैं सब जानती हूॅं मेरे बेटे का बहाना करके खुद खाने का मन होगा … अविनाश चुपचाप नाश्ता करते रहे … काव्या की आंखों से आंसू छलक गये … इससे ज्यादा बुरा तब लगा जब अविनाश बिना हलवा खाये ही ऑफिस के लिये चल दिये।

काव्या घर का काम समेटने में लग गई … इधर सुलोचना जी बाहर ड्राईंग रूम में बैठ कर बड़बड़ाती रहीं।

काम करके काव्या अपने कमरे में जाकर रोने लगी … कितने नाजों से पाला था उसे उसके पापा ने … उसे आज भी याद है एक बार उसने गाजर के हलवा बनाने के लिये कहा था लेकिन मॉं ने सूजी का हलवा बना दिया था … पापा को जब यह पता लगा तो वे तुरंत बाजार गये वहां से ढेर सारा गाजर का हलवा लाये थे … और उस दिन बिना कहे दो तीन दिन में गाजर का हलवा बनने लगा … आज उसे सूजी के हलवे के लिये कितनी बातें सुनाई जा रही हैं … उसे गुस्सा सास ससुर पर नहीं अविनाश पर था जो कि कुछ नहीं बोल पाये।

शाम को जब उसने अविनाश से शिकायत की तो वो बस इतना ही बोले … इस घर में केवल मॉं की पसंद का खाना बनता है … आगे से मेरी पसंद का कुछ मत बनाना।

काव्या ने अविनाश से बात करनी बंद कर दी … आखिर क्या कसूर था काव्या का … यही कि वह अविनाश से बहुत प्यार करती है।

इसी तरह कुछ दिन बीत गये।

एक दिन काव्या ने सुलोचना जी से कहा … मांजी मैं अपने घर जाना चाहती हूॅं कुछ दिन के लिये … अगर आप कहें तो आज ही चली जाउं। कई दिन पहले मॉं का फोन आया था … कह रहीं थीं … पापा की तबियत ठीक नहीं है।

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सुलोचना जी … वहां जब भी जाती है एक सप्ताह से वापस नहीं आती … घर का काम कौन करेगा … तेरे ससुर और मेरा बेटा शाम को थक हार कर घर आयेंगे … यहां उन्हें खाना भी नसीब नहीं होगा … मुझे तो चक्कर आ रहे हैं। मैं खाना नहीं बना सकती। जाना है तो एक दिन के लिये चली जा।

काव्या मन मार कर एक दिन के लिये पीहर पहुंच जाती है। वहां पहुंच कर उसे और भी आश्चर्य होता है … भाभी मम्मी पापा कहां गये … काव्या ने घबरा कर पूछा … उन दोंनो का घर में मन कहां लगता है … तीर्थ पर गये हैं … न जाने कब आयेंगे … वैसे तुम कितने दिनों के लिये आई हों … क्योंकि मुझे भी अपने पीहर जाना है … संगीता भाभी का यह व्यवहार देख कर काव्या चौंक गई … क्या ये वही भाभी हैं जो उनसे बहुत स्नेह जताती थीं … काव्या सोफे पर बैठी सोच रही थी … अच्छा वो जो भैया ने मकान के पेपर साईन करा लिये थे … मैंने अपना हिस्सा छोड़ दिया था … शायद उसी साईन के लिये मेरे से प्यार जताया जा रहा था।

काव्या उठ कर खड़ी हो गई … भाभी मुझे कुछ काम याद आ गया मैं फिर आउंगी … कह कर वह तेजी से घर से बाहर निकल गई … पीछे से गेट बंद होने की आवाज से वह समझ गई कि उसके जाने से भाभी को कोई खास फर्क नहीं पड़ा।

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भारी कदमों से चलते हुए वह मन्दिर पहुंच गई … क्योंकि शाम से पहले यदि ससुराल जाती तो … सुलोचना जी उससे कई सवाल करतीं …. मन्दिर में जाकर उसने भगवान के दर्शन किये … बस न कुछ मांगा न कुछ बोला … भगवान के चरणों में शीश नवा कर वह बाहर आकर बैठ गई … तभी सामने के पेड़ के नीचे उसे अपने माता पिता बैठे दिखाई दिये।

काव्या भाग कर उनके पास पहुंची … काव्या को देख कर उसकी मॉं रोने लगी … बेटी तू यहां कैसे ? पापा ने पूछा … वो छोड़िये ये बताईये आप यहां कैसे आप तो तीर्थ यात्रा पर गये थे … काव्या के सब्र का बांध टूट गया उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे … बेटी तेरी भाभी ने तुझसे झूठ बोला है … बिजनेस में पैसा लगाने के लिये तेरे भैया ने मकान अपने नाम करा लिया मकान के कागज गिरवीं रख कर साहुकार से कर्ज ले लिया … उसके बाद हम बोझ बन गये हमें घर से निकाल दिया।

पापा अब क्या होगा? … काव्या ने रोते हुए पूछा … बेटी तू चिन्ता मत कर हम कहीं वृद्धा आश्रम में चले जायेंगे … तू अपनी ससुराल जा … वहां किसी को यह बात मत बताना।

अपने मॉं बाप को इस हाल में देख कर वह उन्हें अपने साथ ले जाना चाहती थी … लेकिन जहां उसकी कद्र नहीं है वहां मॉं बाप की क्या इज्जत होती … भारी मन से काव्या ससुराल की ओर चल दी … आज उसे अपने लड़की होने पर अफसोस हो रहा है … काश वो अपने माता पिता के लिये कुछ कर पाती।

घर आकर उसने बहुत मुश्किल से घर का काम निबटाया … उसके बाद अपने कमरे में जाकर गुमसुम बैठ गई … उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे … अविनाश अपने ऑफिस के काम में लगे हुए थे … जब वे सोने आये तो काव्या से पूछ बैठे … क्या बात है आज फिर मॉं की कोई बात बुरी लग गई जो आंसू बह रही हों … काव्या अपने को रोक नहीं पाई और उसने रो रोकर सारी बात अविनाश को बता दी … क्या मॉं पिताजी को यहां ले आऐं … वे इस उम्र में कहां जायेगे।

अविनाश ने कोई जबाब नहीं दिया और करवट लेकर सो गये … इस बात से काव्या को बहुत गुस्सा आया … आज से मैं भी इनके मॉं बाप की सेवा नहीं करूंगी … देखती हूं कौन इनकी सेवा करेगा।

रोते रोते काव्या सो गई दो तीन दिन बीत जाने पर उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी … एक दिन वह सब्जी लेने के बहाने उसी मन्दिर में पहुंची … लेकिन उसके माता पिता वहां नहीं थे … पंडित जी यहां मेरे माता पिता उस पेड़ के नीचे बैठे थे कई दिन से उनका कुछ पता है … तुम्हारा नाम काव्या है क्या? … पंडित जी के मुंह से अपना सुनकर काव्या ने पूछा … जी हॉं लेकिन आपको कैसे पता … तुम्हारे माता पिता ने यह पता दिया था और कहा था वे अब यहां रहते हैं।

काव्या ने पता देखा वह यहां से कुछ दूर का था … काव्या ने मन्दिर के बाहर निकल कर आटो रिक्शा किया और उस पते पर पहुंच गई … दरवाजा खटखटाया तो एक लड़की निकल कर आई … यहां का पता मुझे पंडित जी ने दिया है … काव्या बोली … आप काव्या दीदी हो … अन्दर आ जाओ … काव्या को कुछ समझ नहीं आया … वह अन्दर गई तो देखा उसके माता पिता सोफे पर बैठे थे।

काव्या उन्हें देख कर रोने लगी … बेटी अब क्यों रो रही है तेरे कारण हमें यह मकान मिल गया … काव्या आश्चर्य से उनका चेहरा देखने लगी … लेकिन मॉं आप यहां कैसे और ये लड़की कौन है।

तब उसकी मॉं ने कहा … बेटी तुझे याद है तेरी शादी के बाद तेरी सास ने ४० लाख की डिमांड की थी … दामाद जी को बिजनेस खोलना था इसलिये … तेरे पिता ने उनकी डिमांड पूरी कर दी थी जिससे कि तू सुखी रहे … जब तू हमसे मिल कर गई उसके अगले दिन दामाद जी आये … उन्होंने तेरे पापा के पैसे लौटा दिये … क्योंकि उन्होंने कोई बिजनेस शुरू नहीं किया था … तेरे पापा ने मना भी किया लेकिन वे नहीं माने … उसके बाद उन्होंने प्रोपर्टी डीलर से मिल कर दो दिन में यह मकान खरीद दिया … साथ ५ लाख रुपये बच गये … इससे उन्होंने ये लड़की नौकरी पर रखवा दी जो हमारी केयर करेगी।

लेकिन मॉं उन्होंने मुझे तो कुछ नहीं बताया काव्या की आंखों से आंसू बह रहे थे … वह रोते हुए वहां से अपने घर आ गई … घर आकर वह सोच रही थी … अविनाश ने कभी उसके लिये आवाज नहीं उठाई … लेकिन मेरे माता पिता के लिये इतना करने कर दिया जो कि कोई सगा बेटा भी नहीं कर सकता।

रात को उसने अविनाश से पूछा … आपने ऐसा क्यों किया अगर मांजी को पता लग गया तो क्या होगा … अविनाश का जबाब सुनकर काव्या रोने लगी अविनाश ने कहा … जैसे तुम्हारे लिये ये माता पिता हैं वैसे ही मेरे लिये भी तो वो माता पिता हैं … मैंने पैसे लेते समय ही सोच लिया था कि एक दिन ब्याज के साथ सारे पैसे लौटा दूंगा … लेकिन जब बिजनेस शुरू नहीं हो पाया तो … मैं इन पैसों को अपने पास रख कर सही समय आने का इंतजार कर रहा था … अगर मैं तुम्हारे माता पिता को अपने घर ले आता … तो उनका आत्मसम्मान हर दिन उन्हें धिक्कारता … बेटी के घर वे रहना पसंद नहीं करते … वे अपमानित न हों इसलिये मैंने ये सब किया।

अविनाश मुझे माफ कर दो … आज तक मैं तुम्हें गलत समझती रही … तभी पीछे खड़ी सुलोचना जी बोली … बेटी वह पैसा हमने उधार लिया था … वह तुम्हारे पिता की अमानत थी … मैंने और अविनाश ने पहले ही फैसला किया था कि ब्याज के साथ तुम्हारे पैसे लौटा देंगे … चल अब सो जा … सुबह नाश्ता टाईम पर नहीं बना तो अच्छा नहीं होगा … उनकी बात सुनकर काव्या अविनाश और सुलोचना जी जोर से हसने लगे।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.