गृहस्थी की चाभी | Hindi Saas Bahu kahani

Hindi Saas Bahu kahani
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Hindi Saas Bahu kahani : बिमला जी के घुटनों में तकलीफ रहती थी। जिसके कारण वो चल फिर नहीं पाती थीं। घर में उनके अलावा उनका बेटा सतीश, बहु रूपा और एक पौतीआयशा थी।

सतीश की शादी को छः साल हो चुके थे। पिछले पांच साल तक बिमला जी ही पूरा घर संभालती थीं। घर का एक एक सामान वो खुद मंगवाती थीं। बहु बेटे भी कभी उनके काम में दखल नहीं देते थे।

बिमला जी पूरे रौब के साथ घर में रहती थीं। सतीश और रूपा पर पूरा कंट्रोल रखती थीं। कहां जाना है? आज घर में क्या बनेगा? घर में कितना राशन आयेगा? साथ ही सतीश की सारी सैलरी का हिसाब भी वे अपने पास ही रखती थीं।

शुरू शुरू में रूपा को इससे बड़ी तकलीफ होती थी, लेकिन जब सतीश ने समझाया – ‘‘मां की बात का बुरा नहीं माना करो। पापा के टाईम से सारा घर वो ही संभालती आ रही हैं। अब वो अपना वर्चस्व खोना नहीं चाहती, तो हम ऐसे ही चलने देते हैं।’’

धीरे धीरे रूपा भी इसी रंग में रंग गई अब उसे अपनी सास से कोई प्रोब्लम नहीं थी। वह किचन का काम संभालती उसमें भी बिमला जी अपनी पसंद का खाना बनवाती थीं।

कुछ दिन बाद रूपा अपने आपको फ्री मानने लगी, कि सारी जिम्मेदारी तो मांजी उठा ही रहीं हैं।

लेकिन अभी एक साल पहले उनकी अचानक तबियत खराब हो गई एक महीने तक बिस्तर पर पड़ी रहीं।

अगला महीना शुरू हुआ तो हर बार की तरह सतीश अपनी सैलरी लेकर मां के पास गया।

बिमला जी ने बहु को बुला कर कहा – ‘‘अब यह तुम रखो मुझसे अब कुछ नहीं हो पायेगा। इस घर की बागडोर तुम ही संभालो।’’

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यह सुनकर रूपा बोली – ‘‘नहीं मांजी सब कुछ आप ही संभालेंगी। अब बैठे बैठे बस काम बताती जाईये हम करते जायेंगे। जैसे पहले करते थे।’’

यह सुनकर सतीश को बहुत आश्चर्य हुआ कि कुछ साल पहले तो यह घर की बागडोर संभालने के लिये उससे झगड़ रही थी अचानक इसे क्या हो गया?

बिमला जी बोली – ‘‘लेकिन बहु कल मुझे कुछ हो गया तब भी तो तुम ही संभालोंगी।’’

रूपा ने जबाब दिया – ‘‘नहीं मांजी आपको कुछ नहीं होगा। आप ही संभाल रही हैं आप ही संभालोंगी।’’

उस दिन से बिमला जी का स्वभाव बदल गया। उन्हें बहु के रूप में बेटी नजर आने लगी। पहले वो सारा कुछ अपने हाथ में इसलिये रखना चाहती थीं। कि कहीं मेरे बेटे बहु मेरे उपर जुल्म न करने लगें कहीं बेटा आंखे न बदल ले। कहीं मुझे घर से न निकाल दें।

रूपा पहले की तरह ही मांजी की पसंद की सब्जी बनाती थी। घर का सामान वो खुद लेने जाती लेकिन आकर एक एक पैसे का हिसाब अपनी सास को देती और बाकी बचे पैसे भी उन्हें दे देती थी।

एक दिन रूपा अपने पीहर गई थी। सतीश अपने ऑफिस जा चुका था। शाम को दोंनो वापस आ गये। तब बिमला जी ने दोंनो को अपने कमरे में बुलाया – ‘‘बेटा मैंने आज वकील को बुला कर अपनी वसीयत कर दी है। यह घर तेरे नाम कर दिया है और ये तिजोरी की चाबी, जेवर, रुपये पैसे सब मैं बहु को देना चाहती हूं।’’

तभी रूपा बोली – ‘‘मांजी इसकी क्या जरूरत है। आप ही संभालिये ये सब।’’

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बिमला जी बोली – ‘‘बेटा मुझे तुम दोंनो पर भरोसा नहीं था। जैसा कि आजकल हो रहा है। बुर्जुगों के साथ बुरा सुलूक किया जा रहा है मैं उससे डर गई थी। लेकिन अब मुझे तुम दोंनो पर विश्वास है। इसलिये मैं ये सब तुम्हें सौंप देना चाहती हूं।’’

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अगले दिन से रूपा सब कुछ संभालने लगी। बिमला जी निशचिंत होकर अपने कमरे में बैठी रहती थीं।

लेकिन उन्हें यह देख कर और भी आश्चर्य हुआ कि उनकी बहु आज भी उनकी पसंद का खाना उनसे पूछ कर बनाती है। अगर दोंनो कपड़े खरीदने जाते हैं तो पहले साड़ी अपनी सास के लिये लेती थी।

रूपा को अब तक आदत पड़ चुकी थी। कि वह सारा काम मांजी से पूछ कर करे।

दो महीने बाद बिमला जी का देहान्त हो गया। घर में रोना पिटना मचा था। तेरह दिन तक मेहमानों का तांता लगा रहा। तेरहवीं के बाद सभी धीरे धीरे विदा हो गये। सतीश अपने ऑफिस चले जाते रूपा और उसकी बेटी दोंनो घर में अकेले रह जाते।

लेकिन रूपा को कुछ भी ध्यान नहीं रहता। वह कुछ भी काम करने से पहले जहां तक कि खाना बनाने से पहले भी मांजी के कमरे में पहुंच जाती उनसे पूछने। खाली पलंग को देख कर उसकी आंखों से आंसू बहने लगते।

एक दिन वो उस कमरे की सफाई कर रही थी। तभी उसे एक खत मिला। उसने खत पड़ा तो उसके ही नाम था। उसमें लिखा था।

‘‘बहु मैं जानती हूं। तू मेरे जाने के बाद भी मेरे कमरे में मुझसे पूछने आयेगी कि मांजी क्या बनेगा। क्योंकि तुझे मेरी आदत पड़ गई है और आदतें इतनी जल्दी नहीं बदलती। लेकिन बेटी अब अपनी गृहस्थी संभालना सीख ले। अपने तरीके से अपनी गृहस्थी चला। हमारा समय और था। तुम्हारा समय और है। अपनी पसंद का खाना, बाहर घूमना, अपनी पसंद के कपड़े खरीदना ये सब तुझे अकेले ही करना होगा।

मेरी बातों से कभी तेरा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर देना। मुझे पता है जब तक मैं थी। तू बेफिक्र थी। लेकिन अब तेरे सर पर छत नहीं है। तुझे ही छत बनना पड़ेगा। जिसके नीचे तेरा पति और तेरी बेटी सुरक्षित रहें और बेफिक्र रहें। मुझे पता है यह तू अच्छे से कर पायेगी।

तेरी मां बिमला’’

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खत पढ़ कर रूपा बहुत देर तक रोती रही – ‘‘नहीं मांजी मुझसे यह सब नहीं होगा। मुझे वाकई ऐसा ही लग रहा है जैसे मेरे सिर पर छत नहीं है और मैं खुले आसमान के नीचे हूं। जहां बारिश, आंधी तूफान सब आयेगा।’’

खत को कई बार पढ़ने के बाद रूपा ने उसे सहज कर रख लिया। कुछ ही दिनों में वह एक मां की तरह पूरा घर संभालने लगी। जब भी उसे कोई परेशानी होती वह उस खत को निकाल कर पढ़ती और दृढ़ता से डट कर हर मुश्किल का सामना करती।

रूपा को हर समय लगता था कि बिमला जी अब भी उसके साथ खड़ी हैं।

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