समझदार बहु – भाग 6

Samajhdar Bahu Bhag 6
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अगले दिन संजना जब काम कर रही थी। तब अविनाश जी का फोन आता है।

अविनाश जी: संजना आज एक क्लाइंट के साथ मिटिंग थी। क्या तुम मेरे साथ चल सकती हों। मैं तुम्हें घर से ले लूंगा।

संजना: सर बात ये है कि अगर आप बार बार मेरे घर आयेंगे तो मेरे सास-ससुर और मौहल्ले वाले पता नहीं क्या सोचेंगे। मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती लेकिन आप जानतें हैं एक विधवा को समाज किस नजर से देखता है। अगर आप चाहें तो मैं रिजाईन कर सकती हूं।

अविनाश जी: मुझे माफ करना संजना मैं समझ सकता हूं। तुम्हें रिजाईन करने की जरूरत नहीं हम लोग सारा काम ऑनलाईन निबटा लेंगे।

इसी तरह कुछ दिन बीत गये। एक दिन सरला जी ने संजना से पूछा –

सरला जी: बेटी बहुत दिनों से अविनाश नहीं आये।

संजना: मांजी मैंने उन्हें यहां आने के लिये मना कर दिया।

सरला जी: लेकिन क्यों?

संजना: मांजी मुझे बहुत सोच कर चलना होगा। उनका बार बार यहां आना कल कोई उंगली उठाने लगे तो क्या होगा।

सरला जी: लगता है बेटी उस दिन की बात तूने दिल से लगा ली हमारा वो मतलब नहीं था हम तो बस तेरा मन टटोल रहे थे।

संजना: नहीं मांजी वो बात नहीं है। हमें समाज में रहना है तो सब कुछ सोच के चलना पड़ेगा।

सरला जी: लेकिन बेटी उन्हें बुरा लग जायेगा।

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संजना: मांजी मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर उन्हें बुरा लगेगा तो ये उनकी प्रोब्लम है। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा मेरी नौकरी चली जायेगी।

सरला जी चुप रह जाती हैं। इसी तरह समय बीतने लगता है।

एक दिन मधुसूदन जी ने संजना के पिता जगदीश जी को फोन किया।

मधुसूदन जी: जगदीश जी कैसे हैं?

जगदीश जी: समधी जी मैं बहुत बढ़िया हूं आप बताईये आप कैसे हैं?

मधूदन जी: मैं तो ठीक हूं समधी जी लेकिन आपसे संजना के बारे में बात करनी थी। मैं चाहता हूं कि आप उसे समझायें। वह दुनिया से अलग होकर केवल हम दोंनो के बारे में सोचती रहती है। जहां तक कि अब उसने अपनी नौकरी भी दांव पर लगा दी।

हमारा क्या है। राजेश के जाने से आधे तो हम पहले ही टूट चुके हैं। अब जितने दिन भी जिन्दगी के बचे हैं किसी तरह काट लेंगे। लेकिन इसके सामने तो पूरी जिन्दगी पड़ी है।

कल आप और हम नहीं होंगे तो इसका साथ देने के लिये कोई तो होना चाहिये।

मधूसूदन जी ने सारी बात समझाते हुए अविनाश के बारे में भी बता दिया।

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जगदीश जी: आप चिन्ता न करें भाई साहब मैं संजना से बात करूंगा।

सभी मिल कर संजना को समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन संजना अपने फैसले पर अटल रहती है।

संजना: आप सबकी बात सही है लेकिन मैंने भी राजेश से कुछ वादा किया था। वो मैं किसी भी हाल में नहीं तोड़ सकती।

इसी तरह कुछ दिन और बीत जाते हैं। सरला जी और मधुसूदन जी बहुत दुःखी रहने लगते हैं। एक दिन दोंनो चुपचाप घर छोड़कर जाने का फैसला करते हैं।

दोंनो एक दिन चुपचाप रात को एक बैग में अपने कपड़े लेकर घर से निकल जाते हैं। घर से बहुत दूर मधुसूदन जी ने एक वृद्धा आश्रम में बात कर रखी थी। दोंनो उसी के लिये रवाना हो जाते हैं।

घर से बाहर निकल कर सरला जी पलट कर एक बार अपने घर की ओर देखती हैं। उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

सरला जी: क्या दिन देखने पड़ रहे हैं।

मधुसूदन जी: चुपचाप निकल चलो हमें अपनी बेटी के भविष्य के लिये कष्ट उठाने ही होंगे। इसीलिये मैं अपने बैंक के कार्ड, घर के कागज, अपना फोन सब छोड़ दिया, जिससे वो हमें ढूंढ न सके।

दोंनो रात की ट्रेन पकड़ कर एक अन्जान शहर के वृद्धा आश्रम में पहुंच जाते हैं।

सुबह जब संजना अपने सास ससुर को चाय देने जाती है तो वहां उसे एक खत मिलता है।

बेटी संजना हमें माफ कर देना हम घर छोड़ कर जा रहे हैं। हमें ढूंढने की कोशिश मत करना। जिन्दगी में आगे बढ़ जाना अब तुम्हारे उपर कोई बोझ नहीं है। हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।

यह पढ़ कर संजना के होश उड़ जाते हैं। वह निढाल होकर जमीन पर गिर जाती है। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

संजना: ये आपने क्या किया। राजेश की तरह आप भी मुझसे मुंह फेर कर चले गये। मेरे तो जीने का मकसद ही खत्म हो गया।

संजना बहुत देर तक बैठ कर रोती रहती है।

कुछ देर बाद जगदीश जी वहां आते हैं।

संजना: पापा आपको सब पता था, ये लोग जाने वाले हैं। आप मुझे बता सकते थे, मैं उन्हें रोक लेती।

जगदीश जी: नहीं बेटा मुझे कुछ नहीं पता था। अभी एक घंटे पहले ही मधुसूदन जी ने फोन पर बताया वे स्टेशन के बूथ से बोल रहे थे। उन्होंने ही मुझे यहां तुम्हें सम्हालने के लिये भेजा है।

संजना जीवन के उस दोहराहे पर खड़ी थी। जहां से एक सड़क उसे नई जिन्दगी की ओर ले जा रही थी और दूसरी उसे अपने सास ससुर को ढूंढने के लिये मजबूर कर रही थी।

संजना इसी कशमोश में फसी थी कि क्या करे? कहां जाये?

शेष आगे …

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Image Source : Playground

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