आशियाना भाग 3 | Angry Family with Love Story

Angry Family with Love Story
Angry Family with Love Story

Angry Family with Love Story : रचना के पिता दीनानाथ जी बेटी के आने से बहुत खुश थे। एक दिन गांव के प्रधान शंकरलाल जी उन्हें देखने आये – ‘‘मास्टर जी कैसे हो आप। अब तबियत कैसी है।’’

दीनानाथ जी ने कहा – ‘‘प्रधान जी आपने सभी समय पर गाड़ी भेज कर बहुत मदद कर दी। वरना पता नहीं क्या हो जाता।’’

शंकरलाल जी ने कहा – ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो। तुम और मैं बचपन के दोस्त हैं। कभी भी कोई भी जरूरत हो तो बता देना।ं’’

दीनानाथ जी ने कहा – ‘‘भाई घर का माहौल तो तुम देख ही रहे हो। मेरी पत्नी और बेटी दोंनो बहुत परेशान हैं। मैं अब चाहता हूं, कि रचना के किसी तरह हाथ पीले कर दूं। अब मुझे अपना भरोसा नहीं है। पता नहीं कब क्या हो जाये?’’

शंकरलाल जी शांति से उनकी बात सुन रहे थे। कुछ देर चुप रहने के बाद वे बोले – ‘‘भाई अगर तू बुरा न मानें तो एक बात कहूं। मेरा छोटा बेटा विनीत। शहर से पढ़ कर आया है। अब मेरा सारा काम देखता है। उसने शहर में रहने की बजाय अपने बड़े भाई के साथ खेत और मंडी दोंनो संभाल लिये हैं। क्यों न हम इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें।’’

दीनानाथ जी यह सुनकर बहुत खुश हुए, लेकिन अगले ही पल उन्होंने कहा – ‘‘भाई मेरा तुम्हारा क्या मुकाबला। मैं एक छोटा सा अध्यापक मेरी हैसियत तुम्हारे जितनी नहीं है।’’

शंकरलाल जी ने कहा – ‘‘तू बस हां कर दे चिंता मत कर हमें दान दहेज नहीं चाहिये। बस एक संस्कारी बहु मिल जाये और कुछ नहीं चाहिये।’’

कुछ ही देर में शांति जी चाय नाश्ता ले आईं। शंकरलाल जी ने कहा – ‘‘भाभी जी अब तो मिठाई का प्रबन्ध कीजिये। मैं अपने छोटे बेटे के लिये आपकी बेटी का हाथ मांग रहा हूं। एक बार सब मिल लें। लड़का-लड़की एक दूसरे को देख लें। फिर आप मिठाई खिलाना।’’

शांति जी ने प्रश्न भरी नजरों से दीनानाथ जी की ओर देखा वे बोले – ‘‘अरे तुम चिंता मत करो मैं तुम्हें सब कुछ बता दूंगा।’’

चाय पीकर शंकर लाल जी चले गये, तब दीनानाथ जीने कहा – ‘‘रचना कहां है?’’

शांति जी ने बताया – ‘‘वो अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने गई है। आप बताईये ये रिश्ते की बात कहां से आ गई।’’

‘‘शांति जी आप तो जानती हों मुझे एक अटैक पड़ चुका है। सब ठीक है लेकिन अब मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहता हूं। रचना की शादी हो जाये तो मन से एक बोझ उतर जायेगा।’’ दीनानाथ जी की बात सुनकर शांति जी की आंखें भर आईं।

तभी रचना कमरे में आई और पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोली – ‘‘ओहो पापा अब मैं आप पर बोझ बन गई हूं। जिसे आप उतार कर फैंकना चाहते हैं।’’

‘‘नहीं बेटी ऐसी बात नहीं है। इनके पुराने मित्र शंकरलाल जी आये थे। वे अपने छोटे बेटे के लिये तेरा हाथ मांग रहे थे। वे चाहते हैं कि दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाये।।’’ शांति जी ने कहा।

रचना यह सुनकर हिल गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। वह अभी तक इसी कश्माकश में थी, कि कैसे सचिन के बारे में बात करे। लेकिन यहां तो कुछ और ही चल रहा था।

रचना उठ कर अपने कमरे में चली गई। वह बहुत बैचेन हो गई थी, न तो पापा को वह कुछ बता सकती थी। न चुप रह सकती थी।

शाम को सब खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहे थे। रचना छत पर चली गई उसने सचिन को फोन किया और सारी बात बता दी।

सचिन ने रचना से कहा – ‘‘रचना ये क्या कह रही हों, मैं आ रहा हूं तुमसे मिलने तुम्हारे मम्मी पापा से बात करने।’’

रचना ने कहा – ‘‘नहीं सचिन यहां मत आना पापा अभी भी बेड रेस्ट पर हैं। मैं उन्हें किसी तरह मना लूंगी। जब तक मैं न कहूं यहां मत आना।

‘‘लेकिन रचना एक बात याद रखना। मैं तुम्हारे बगैर मर जाउंगा। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। मुझे छोड़ने के बारे में सोचना भी मत।’’ सचिन की बात सुनकर रचना परेशान हो गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

कुछ देर वह छत पर टहलती रही। शांति जी रचना को ढूंढती हुई छत पर आ गईं – ‘‘अरे तू यहां अकेले में क्या कर रही है। चल नीचे सोने चलते हैं।’’

‘‘मां मुझे नींद नहीं आ रही है। आप जाओ मैं थोड़ी देर में आती हूं।’’ रचना ने मां को टालते हुए कहा।

शांति जी ने उसका चेहरा पढ़ लिया था, वो बोली – ‘‘क्या बात है तू बहुत परेशान लग रही है। ऐसा लग रहा है जैसे रो रही थी। सब ठीक तो है न, कहीं शादी की बात से तो परेशान नहीं है। मैं जानती हूं शंकरलाल जी के परिवार को बहुत अच्छा परिवार है। वे लोग तुझे बहुत खुश रखेंगे।’’

रचना ने झुंझलाते हुए कहा – ‘‘मां वो बात नहीं है, लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं।’’

शांति जी ने उसे समझाते हुए कहा – ‘‘मैं जानती हूं। अभी तेरी पढ़ाई चल रही है, लेकिन तू चिंता मत कर तेरे पापा ने उनसे बात कर ली है। शादी के बाद भी तू अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है।’’

रचना ने अपनी मां को छत पर पड़ी चारपाई पर बिठाया और बोली – ‘‘मां एक बात आपको बतानी थी। पापा से मत कहियेगा। कॉलेज मैं मुझे एक लड़के से प्यार हो गया। वह बहुत अच्छा है। मैं उसी से शादी करना चाहती हूं।’’

चटाक! एक जोरदार चांटा पड़ा रचना के गाल पर। ‘‘खामोश तुझे इसी लिये शहर भेजा था, कि तू पढ़ाई करने के बजाये इश्क लड़ाये। जानती नहीं यहां गांव में यह सब नहीं चलता। हे भगवान अब मैं तेरे पापा से क्या कहूंगी। वो तो ये सब बर्दाशत नहीं कर पायेंगे।’’ शांति जी बोले जा रही थीं।

रचना चुपचाप सब सुन रही थी। ये तो होना ही था। उसे पता था। अचानक यह सब होगा इसका अनुमान उसे नहीं था, लेकिन अब और कोई चारा नहीं था।

रचना ने कहा – ‘‘मां एक बार आप दोंनो सचिन से मिल लो बहुत अच्छा लड़का है।’’

शांति जी की आंखों से भी आंसू बह रहे थे। उन्होंने रचना को चांटा तो मार दिया था। लेकिन उनका मन अंदर ही अंदर उन्हें कचोट रहा था। आज पहली बार उन्होंने अपनी लाडली बेटी को चांटा मारा था।

‘‘रचना ये तूने क्या कर दिया। हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। हमारा समाज ये सब बर्दाशत नहीं करेगा। तेरे पिता का जो जीना मुश्किल हो जायेगा। बेटा मेरी बात मान भूल जा उसे। अपने पिता का कहना मान कर चुपचाप शादी कर ले।’’

रचना ने कहा – ‘‘मां तुम नहीं जानती वो मेरे बगैर नहीं रह सकता। वो मर जायेगा। उसके पिता के पास करोड़ों की संपत्ति है लेकिन वह सब कुछ छोड़ कर मेरे साथ आने के लिये तैयार है। मैं भी उसके बगैर मर जाउंगी।’’

बेटी की बातें सुनकर शांति जी का कलेजा कांप गया। हे भगवान ये सब क्या हो गया। इससे तो अच्छा इसे शहर भेजते ही नहीं। अब इसके पिता से कैसे बात करूं।

यही सब बड़बड़ाती हुई शांति जी नीचे आ गईं। उन्होंने कमरे में झांक कर देखा दीनानाथ जी चैन से सो रहे थे। उनके चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था। जैसे उन्हें अब कोई परेशानी नहीं है।

शांति जी नीचे चटाई बिछा कर सोने की कोशिश करने लगीं। कुछ देर बाद रचना नीचे आई और दूसरे कमरे में सोने चली गई।

शांति जी सारी रात रोती रहीं। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि अब क्या करें। इधर रचना भी गहरी सोच में डूब गई। सोचते सोचते उसे पता नहीं कब नींद आ गई। सुबह फोन की घंटी से उसकी आंख खुली।

दूसरी तरफ फोन पर सचिन था – ‘‘रचना क्या हुआ सब ठीक है। तुम कैसी हो?’’

रचना ने कहा – ‘‘सचिन मैंने हिम्मत करके मां को सब कुछ बता तो दिया है। लेकिन वे बहुत गुस्सा हैं। तुम सब्र रखो मेरे लिये सब कुछ बहुत मुश्किल है।’’

रचना ने किसी तरह सचिन को समझा कर फोन रख दिया। वह कमरे से बाहर आई तो शांति जी किचन में चाय बना रहीं थी। रचना पापा के पास जाकर बैठ गई।

दीनानाथ जी ने उसे देखा और कहा – ‘‘बेटा क्या बात है बहुत परेशान लग रही है?’’

रचना कुछ बोलती इससे पहले ही शांति जी ट्रे में तीन कप चाय लेकर आईं – ‘‘आप किसकी की चिंता मत कीजिये सब ठीक हैं। आप बस अपनी सेहत की चिंता कीजिये।’’

यह कहकर उन्होंने चाय की ट्रे पलंग पर ही रख दी। सबने अपने अपने कप उठा लिये और चाय पीने लगे।

शेष आगे …

आशियाना भाग 1 आशियाना भाग 2
आशियाना भाग 3आशियाना भाग 4