सागर: शलिनी मैं बहुत आगे निकल चुका हूं, तुम्हारे साथ रहता था तो मुझे लगता था, कि मेरी दुनिया तुम्हारे से शुरू है और तुम्हीं पर खत्म हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। अब समझ आ गया कि अगर कोई आपका साथ छोड़ दे तो उसके बगैर जीने की आदत डाल लेनी चाहिये।
शालिनी: लेकिन सागर गलती तो किसी से भी हो सकती है तुम इसके लिये मुझे माफ तो कर ही सकते हो।
सागर: शालिनी वा सागर अब मर गया, जो हर बात को भुला कर चल देता था। मुझे तुम्हारा पता नहीं लेकिन मेरी जिन्दगी में कोई और आ चुका है। अंजली नाम है उसका और हम बहुत जल्द शादी करने वाले हैं।
शालिनी सागर को बहुत देर तक समझाती रही लेकिन वह नहीं माना। हार कर शालिनी वापस आने लगी।
सागर: शालिनी हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं मैं कभी तुम्हारी लाईफ में इन्टरफेयर नहीं करूंगा। लेकिन अगर इस अन्जान शहर में तुम्हें कभी भी मेरी जरूरत हो तो बस एक फोन कर देना।
शालिनी बिना जबाब दिये एक फीकी सी मुस्कुराहट के साथ केबिन से बाहर निकल गई।
घर पहुंच कर शालिनी अपने बेड पर लेट कर बहुत देर तक रोती रही। आज उसे वही महसूस हो रहा था जो कभी उसने सागर को महसूस करवाया था।
शालिनी का मन कर रहा था कि सब कुछ छोड़ कर कहीं चली जाय, या मर जाये वैसे भी जिन्दगी में कुछ बचा नहीं था।
लेकिन अपने मम्मी, पापा की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी। इसलिये वह मरने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी।
शालिनी अगले दिन ऑफिस गई। उसका मन काम में नहीं लग रहा था लेकिन काम तो करना ही था। इसलिये वह काम में मन लगाने लगी। अब वह एक मशीन की तरह बन कर रह गई थी। ऑफिस में न किसी से बोलना न किसी बात पर हसना। काम, काम और सिर्फ काम।
आज संडे था। शालिनी देर तक सोती रही फिर उठ कर एक कप कॉफी बना कर बेड पर बैठ कर काफी पी रही थी। तभी डोर बेल बजी। शालिनी ने गेट खोला तो देखा सामने सागर खड़ा था।
सागर: अंदर आने के लिये नहीं कहोंगी।
शालिनी: हाँ हाँ क्यों नहीं।
सागर अन्दर आ गया। उसने पूरे फ्लेट का मुआयना किया। सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा था।
सागर: शालिनी ये मेरी शादी का कार्ड है। इस शहर में मैं केवल तुम्हें अच्छे से जानता हूं। इसलिये पहला कार्ड तुम्हें देने चला आया। मैं जानता हूं यह सब तुम्हारे लिये मुश्किल होगा।
शालिनी: सागर मुझे बहुत खुशी है कि तुम सब कुछ छोड़ कर आगे बढ़ गये, लेकिन मैं शादी में आ नहीं सकूंगी। मुझसे वो सब देखा नहीं जायेगा।
सागर: ठीक शालिनी मैं यह कार्ड छोड़े जा रहा हूं। मैं तुम्हें फोर्स करने का हक खो चुका हूं। तुम्हारा मन हो तो आ जाना।
सागर की शादी का दिन था। शालिनी अपने को रोक नहीं पाई और तैयार होकर शादी में पहुंच गई।
सागर और अंजली दोंनो स्टेज पर खड़े थे दोंनो के हाथों में जयमाला थी।
सागर ने शालिनी को देखा। शालिनी बहुत उदास थी। वह किसी तरह अपने आप को रोके थी। सागर के हाथ कांपने लगे। अंजली उसे देख रही थी। सागर बार-बार शालिनी की ओर देख रहा था।
अंजली: क्या यही शालिनी है।
सागर: हां, लेकिन तुम चिंता मत करो।
अंजली: सागर अभी भी टाईम है, अगर तुम चाहो तो जाकर उसका हाथ थाम लो।
सागर: नहीं अंजली सब इंतजार कर रहे हैं। वो मेरा पास्ट थी।
अंजली: लेकिन आज वो तुम्हारे वर्तमान में खड़ी है। जाओ उसे माफ करके अपना लो।
सागर: अंजली ये तुम क्या कह रही हों?
अंजली: मैं सही कह रही हूं सागर। दिल की गहराईयों से तुम अभी भी उससे बंधे हुए हो, मेरी, इस समाज की परवाह किये बगैर अपने दिल की आवाज सुनो। ऐसा न हो आज की एक गलती, जीवन भर तुम्हें पछताने पर मजबूर कर दे।
सागर: लेकिन तुम्हारा क्या होगा?
अंजलीः मैं तुम दोनों की दोस्त बन कर रहूंगी, और कोई न कोई मुझे मिल ही जायेगा।
सभी लोग हैरान थे कि अचानक जय माला के समय ये दोंनो क्या बात कर रहे हैं।
अंजली ने इशारे से शालिनी को बुलाया और जय माला उसके हाथ में पकड़ा कर बोली –
अंजली: संभालो अपने सागर को।
शालिनी की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने अंजली को गले लगा लिया।
अंजली: जल्दी करो। इससे पहले कि हमारे रिश्तेदार कुछ समझे जयमाला डाल दो।
शालिनी ने सागर के गले में जयमाला डाल दी। सागर ने भी जयमाला डाल दी। दोंनो गले लग गये।
अंजली: बस बाकी शादी के बाद।
जयमाला के बाद अंजली शालिनी को ले गई और दुल्हन की तरह उसका श्रंगार किया।
शालिनी: अंजली मैं तुम्हारा अहसान जिन्दगी भर नहीं भूलूंगी।
अंजली: शालिनी मैंने कोई एहसान नहीं किया। तुम दोंनो को मिलना ही था।
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