बंटी की घर वापसी | Poor Boy Story

Poor Boy Story

Poor Boy Story : बंटी अभी अन्दर पानी पीने गया ही था, कि ढाबे का मालिक सरदार फूलसिंह चिल्ला पड़ा – ‘‘कहां मर गया बंटी देख नहीं रहा ग्राहकों के आने का टाईम हो रहा है। जल्दी से टेबल पर कपड़ा मार।’’

सुबह पांच बजे से बंटी काम कर रहा था। एक मिनट की भी फुर्सत नहीं मिल रही थी। दोपहर की गर्मी में अभी उसने सारी टेबल साफ की थीं, लेकिन तेज हवा से मिट्टी उड़ कर बार बार टेबल पर आ रही थी। बंटी जल्दी से पानी पीकर बाहर आया और कपड़ा लेकर जल्दी से टेबल साफ करने लगा।

आज उसने नाश्ता भी नहीं किया था। नाश्ता उसे तभी मिलता था। जब ढाबे पर रात को खाना बच जाता था। लेकिन ग्राहक ज्यादा होने के कारण खाना बचा ही नहीं। बंटी का भूख के मारे बुरा हाल था। लेकिन फूलसिंह तो जैसे उसकी जान का दुश्मन था। वह जल्दी जल्दी सफाई कर रहा था।

तभी सामने के ऑफिस में लंच का समय हो गया। थोड़ी देर में पूरा ढाबा ग्राहकों से भर गया। बंटी और उसके साथ दूसरे नौकर भाग-भाग कर ऑडर ले रहे थे। सफाई कर रहे थे।

इधर सरदार फूलसिंह चिल्ला-चिल्ला कर काम करवा रहा था। अपने नौकरों से उसे कोई मतलब नहीं था। उसे बस गल्ले में आ रहे पैसों से मतलब था।

बंटी का असली नाम कोई नहीं जानता था। सब उसे छोटू कहकर बुलाते थे। लंच टाईम के बाद भी करीब चार बजे तक ढाबे पर कोई न कोई आता रहा।

साफ सफाई के बाद फूलसिंह ने देखा कि थोड़ा खाना बचा है तो वह बोला – ‘‘चलो तुम लोग भी जल्दी से खाना खा लो फिर शाम के खाने की तैयारी करो और सुन विक्रम इनमें से किसी को भी पनीर की सब्जी मत दियो। रात को इसे चला देंगे।’’

विक्रम जो वहां खाना बनाता था। वह बोला – ‘‘मालिक कल की सब्जी है शाम तक तो खराब हो जायेगी।’’

तब फूलसिंह बोला – ‘‘अच्छा चल दे दे इन्हें थोड़ी सी सब्जी’’

बंटी और उसके साथ के लड़के एक टेबल पर बैठ कर खाना खाने लगे। ढाबे का मालिक अंदर जाकर सो गया। खाना खाने के बाद बंटी बैठ कर अपने पिछले दिनों के बारे में सोचने लगा।

बंटी एक गांव में रहता था। उसके माता पिता खेत में मजदूरी करते थे। वह दिन भर अपने साथ के बच्चों के साथ खेलता रहता था। न कोई चिन्ता, न कोई फिक्र।

कम में गुजारा हो जाता था। शहर से उसके पिता का दोस्त गांव गया और बोला – ‘‘अरे शहर में इतने काम के रोज चार सौ रुपये मिलते हैं। तुम्हारा बेटा भी अच्छे से पढ़ सकेगा वहां बड़े सरकारी स्कूल में मुफ्त में पढ़ाई होती है। इसके जितने बच्चे इंग्लिश में बात करते हैं।’’

बंटी के भविष्य की चिन्ता उन्हें गांव से शहर ले आई। एक बिल्डिंग में बंटी के माता पिता काम करने लगे। वहीं पास ही में एक छोटी से झुग्गी में रहने लगे। बंटी से उसके पिता ने कहा – ‘‘बस बेटा कुछ दिन की बात है थोड़े पैसे इकट्ठे हो जायें फिर तेरा दाखिला स्कूल में करवा दूंगा।’’

बंटी भी बहुत खुश था, पिता का वह दोस्त रोज घर आ जाता था। शाम को बंटी के पिता उसके साथ जाने लगे। उसने उन्हें शराब पिलाना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में बंटी के पिता को शराब की ऐसी लत लगी कि उसने काम पर जाना छोड़ दिया। अब वह दिन भर शराब पीकर पड़ा रहता।

बंटी की मां मजदूरी करके लाती, तब कहीं चूल्हा जलता। बंटी की मां घर में क्लेश करती। वह चाहती थी, कि सब छोड़ कर गांव चलते हैं। बंटी के भविष्य का भी वास्ता देकर शराब छोड़ने के लिये कहती लेकिन बंटी के पिता पर कोई असर नहीं होता।

एक दिन बंटी बाहर खेल रहा था। तभी उसने जोर से चीख सुनी। बंटी जल्दी से भाग कर गया तो देखा बंटी के पिता ने उसकी मां को बुरी तरह मारा है। मां बेहोश पड़ी थी। पड़ोंसियों की मदद से उसे अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

यह खबर सुनते ही बंटी का बाप भाग गया। बंटी अब अकेला रह गया। कुछ ही दिनों में पता लगा उसके पिता को पुलिस ने पकड़ लिया। बंटी की झुग्गी पर भी किसी ने कब्जा कर लिया।

बंटी भटकते भटकते इस ढाबे पर पहुंच गया। तब से वह ढाबे पर नौकरी कर रहा है।

बंटी की आंखों से आंसू बह रहे थे। न वे लोग शहर आते न ये सब होता। यही सोच कर बंटी रो रहा था। कुछ ही देर में फूलसिंह आ गया और चिल्लाने लगा।

बंटी और उसके साथ के दूसरे नौकर जल्दी से उठ कर शाम के खाने की तैयारी में लग गये।

इसी तरह समय बीत रहा था। एक दिन फूलसिंह के ढाबे पर कुछ अफसर आये छोटे बच्चों से काम करवाने के कारण उसे पकड़ कर ले गये साथ में बंटी और उसके साथ के दो नौकरों को भी पकड़ लिया गया।

बंटी से थानेदार ने पूछा – ‘‘लड़के तेरा गांव कहां है? तेरे मां-बाप कहां हैं?’’

बंटी उन्हें सारी बात बता देता है। यह सुनकर थानेदार किसी से फोन पर बात करता है। फिर बंटी को एक एन.जी.ओ. की मदद से अनाथ आश्रम भेज दिया जाता है।

बंटी अब अनाथ आश्रम में रहता है। वहां भी उसे काम करना पड़ता था। इसके साथ बड़े लड़के उसे मारते भी थे। सब सहकर भी बंटी कुछ नहीं बोलता था। बस उसे समय पर खाना मिल जाता था।

एक दिन बंटी के अनाथ आश्रम में एक थानेदार आया। उसने बंटी से बात की। वह बंटी को अपने साथ ले गया। बंटी के पिता की सजा पूरी होने वाली थी। उन्होंने बहुत मेहनत से जेल में काम किया जिससे उनकी आगे की सजा माफ हो गई।

थानेदार को उनसे हमदर्दी हो गई थी। उनके पछतावे को देखते हुए उसने बंटी को ढूंढने का वादा किया।

आज बंटी को देख कर उसके पिता उससे लिपट कर बहुत रोये। उन्हें देखकर बंटी भी रोने लगा।

जेल में किये काम के पैसे लेकर। बंटी के पिता ने वापस गांव जाने का फैसला किया। बंटी अपनी मां को खोकर और कुछ कड़वी यादों को लेकर अपने पिता के साथ वापस अपने गांव आ गया।

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