Moral Story of Rich and Poor Child : रमाकांत जी घर की पार्किंग से कार निकाल रहे थे तभी केशव की मम्मी श्वेता ने जल्दी से कहा
श्वेता: केशव चलो जल्दी से कार में बैठो, बेटा धूप बहुत तेज है।
केशव: ठीक है मम्मी मुझे तो आपसे भी ज्यादा जल्दी है। पापा को कभी कभी तो टाईम मिलता है कहीं घुमाने का।
तीनों कार में बैठ कर घूमने के लिये चल देते हैं। कार्यक्रम पहले से तय था। पहले वॉटर पार्क जायेंगे। फिर बाहर अच्छे से रेस्टोरेन्ट में खाना खायेंगे। उसके बाद शाम को मूवी देखेंगे।
तीनों वाटर पार्क पहुंच जाते हैं। टिकट ऑनलाईन बुक थे। इसलिये ज्यादा परेशानी नहीं हुई उसके बाद कपड़े चेंज करके पानी में उतर गये। कई तरह की राईड केशव और पापा ने की। श्वेता को डर लगता था। इसलिये वे दूर से ही आनन्द ले रही थीं।
उसके बाद तीनो पानी के बड़े से मैदान में जा गये जहां उपर से बारिश की तरह पानी गिराया जा रहा था। तेज म्यूजिक बज रहा था। सब डांस कर रहे थे।
तीनों घंटो भीगते रहे।
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श्वेता: अब हमें चलना चाहिये। केशव बहुत देर से भीग रहा है। कहीं जुकाम न हो जाये।
रमाकांत जी: हां बेटा तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही हैं। जल्दी चलो।
तीनों चेंजिग रूम से कपड़े चेंज करके बाहर आ जाते हैं। तब तक दोपहर के तीन बज चुके थे। बहुत भूख लग रही थी। वे जल्दी से कार की ओर बढ़ जाते हैं। कार में बैठकर रेस्टोरेन्ट की ओर चल देते हैं।
रास्ते में कार एक जगह जाम में फस जाती है। कार की विंडो से केशव बाहर की ओर देख रहा था। वहां उसे कुछ बच्चे सड़क के किनारे बैठे दिखाई दिये। शायद भीख मांग रहे थे। केशव ने ध्यान से देखा तो पता चला पास ही में एक बर्गर, चाट बेचने वाला ठेला लगाये खड़ा था।
केशव ध्यान से उन बच्चों को देख रहा था। उसने देखा एक उसकी ही उम्र का बच्चा जिसकी गोद में एक छोटी सी बच्ची थी।
वह बार बार उस बच्ची को अपने साथ बैठे बच्चे की गोद में देकर उस ठेली वाले के पास जाकर खड़ा हो जाता और चाट खा रहे लोगों से पैसे मांगने लगता। लेकिन सब उसे भगा देते थे।
गर्मी में धूप में नंगे पैर वह तपती हुई जमीन पर एक पैर उपर करता फिर दूसरा पैर उपर करता इस तरह पैर बदल बदल कर पैरों को जलने से बचा रहा था।
कुछ देर बाद वह वापस आता। उस बच्ची को वापस गोद में लेता। शायद वो उसकी बहन थी। फिर उसे बहलाता। लेकिन बच्ची रो रो कर मचल रही थी। किसी तरह उसे शान्त करके वह फिर से वहीं जाकर खड़ा हो जाता।
केशव को उस लड़के पर बहुत तरस आ रहा था। वह उसकी मदद करना चाहता था। लेकिन उसकी मम्मी श्वेता गरीबों से नफरत करती थी। पापा बहुत समझदार थे। वह बहुत दयालु भी थे लेकिन मम्मी किसी को एक भी रुपया भीख में नहीं देती थीं।
केशव ने गेयर पर हाथ रखे पापा के हाथ पर हाथ रख उन्हें इशारा किया। रमाकांत जी भी बाहर देखने लगे। कुछ ही देर में उन्हें सब समझ आ गया। तभी उन्हें एक उपाय सूझा।
रमाकांत जी: भई श्वेता। लगता है रेस्टोरेंट तक पहुंचते पहुंचते तो खाना भी खत्म हो जायेगा और हम भूखे रह जायेंगे। ऐसा करते हैं यहीं ठेले पर कुछ खा लेते हैं।
श्वेता: आप भी कमाल करते हो। ये लोग कितने गंदे होते हैं इनके हाथ का खाना कैसे खा सकते हैं। कुछ देर की बात है अभी जाम खुल जायेगा।
केशव: मम्मी कुछ नहीं होता। ये लोग भी अच्छे होते हैं। ऐसे तो मैं इतने बड़े स्कूल में पढ़ता हूं। उसकी केंटीन में कई बार खाने में कॉकरोच निकल चुका है।
श्वेता: अच्छा पहले क्यों नहीं बताया मैं कल ही प्रिंसीपल से शिकायत करती हूं।
रमाकांत जी: चलो न थोड़ा सा खा लेते हैं। मैं गाड़ी साईड में लगाता हूं।
श्वेता के जबाब का इंतजार किये बगैर उन्होंने गाड़ी साईड में लगा दी और तीनों चाट खाने पहुंच गये।
चाट वाले को बनाने के लिये बोल दिया। तभी वह लड़का फिर से उनके पास आ गया।
केशव: तुम्हारा क्या नाम है? क्या चाहिये तुमको?
छोटू: भैया नाम तो मेरा राजा है पर सब छोटू कहकर बुलाते हैं। मैं और मेरी बहन वो जो उसके पास है दोंनो भूखे हैं।
श्वेता: केशव मैंने मना किया है न ऐसे लोगों से बात मत किया करो।
रमाकांत जी: ओ हो श्वेता बच्चा है तुम भी कमाल करती हों। भैया इसके लिये भी एक चाट का पत्ता लगा दो। लेकिन तुम्हारी बहन तो बहुत छोटी है। वह यह सब नहीं खा पायेगी।
छोटू: साहब चाट रहने दीजिये कुछ पैसे दे दीजिये उसके लिये दूध ले लूंगा। बोतल मेरे पास है।
रमाकांत जी: लेकिन यहां तो कोई दुकान नहीं है।
छोटू: साहब वो सड़क के उस पार सामने की गली में है।
रमाकांत जी ने उसे बीस रुपये दिये वो बीस रुपये लेकर उस बच्चे के पास गया जिसने उसकी बहन को गोद में ले रखा था। उससे बोतल लेकर तेजी से सड़क पार करने लगा। बिना अपनी जान की परवाह किये वह दूसरी ओर पहुंच गया। वहां एक चाय वाला चाय बना रहा था। उससे दस रुपये का दूध बोतल में डलवा लिया।
फिर बोतल को हिलाता हुआ जिससे चीनी मिल जाये वह अपनी बहन के पास आया और उसे अपनी गोद में लेकर दूध पिलाने लगा।
इधर चाट भी बन कर तैयार थी। रमाकांत जी, श्वेता और केशव तीनों चाट खा रहे थे। फिर रमाकांत जी ने चाट वाले से एक पत्ता और बनवा लिया।
अपनी चाट खत्म करके वो पत्ता लेकर छोटू के पास पहुंच गये।
रमाकांत जी का इशारा पाकर केशव ने उस लड़के से कहा –
केशव: भाई अपनी बहन को इसे दे दो और तुम चाट खा लो, तुम भी तो भूखे होगे।
छोटू ने अपने साथ वाले लड़के से कहा –
छोटू: चल आधा तू खा ले। भैया मेरी बहन को संभालने के चक्कर में ये भी भीख नहीं मांग पाया। आधा ये खालेगा और आधा मैं।
रमाकांत जी: बहुत नेक विचार हैं तुम्हारे ये पूरा इसे दे दो मैं तुम्हारे लिये दूसरा पत्ता बनवाता हूं।
श्वेता दूर चाट वाले के पास खड़ी चाट खाते हुए दोंनो को गुस्से से देख रही थी।
रमाकांत जी एक और चाट का पत्ता बनवा लाये –
रमाकांज जी: ला अपनी बहन को मुझे दे। इसे हम संभालते हैं। तू भी खा ले।
केशव और रमाकांत जी उसकी बहन को दूध पिलाने लगे।
चाट खाकर छोटू बोला
छोटू: साहब आप बहुत अच्छे हैं आपने मुझे बीस रुपये दिये इससे तो शाम के दूध का भी इंतजाम हो जायेगा। आपका बहुत शुक्रिया।
केशव: लेकिन छोटू कल क्या होगा?
छोटू: भैया भगवान ने जैसे आज आपको भेज दिया वैसे ही कल किसी और को भेज देंगे।
छोटू की बात सुनकर केशव गहरी सोच में डूब गया। उसे उनके कल की चिंता सता रही थी। रमाकांत जी ये सब देख कर बोले –
रमाकांत जी: तुम्हारा कोई नहीं है। माता पिता कहां हैं तुम्हारे?
छोटू: साहब अभी तो कोई नहीं है। मेरे पिता हमें छोड़ कर चले गये। एक साल पहले मां मर गई।
केशव: पापा आज की पार्टी केंसिल करके हम इनकी मदद कर सकते हैं क्या?
रमाकांत जी को अपने बेटे पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था। तभी वहां श्वेता आ गई। रमाकांत जी ने उसे सारी बात बताई पहले तो वह नहीं मानी लेकिन पति और बेटे की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा।
रमाकांत जी दोंनो बच्चों और उस छोटी सी बच्ची को कार में बिठा कर मार्किट पहुंच गये। वहां उन्हें नये कपड़े दिलवाये। चप्पले दिलवाईं।
तभी उन्हें कुछ याद आया। उन्होंने अपने एक मित्र को फोन किया उससे बात करने के बाद उन्होंने बहुत खुशी जताते हुए कहा –
रमाकांत जी: बेटा मैंने इनके रहने खाने का इंतजाम एक एनजीओ में कर दिया है। वो इनका बहुत ख्याल रखेंगे इन्हें पढ़ायेंगे।
केशव: लेकिन वहां तो बहुत खर्चा लगेगा।
रमाकांत जी: नहीं बेटा वे सरकार से मदद लेते हैं। फिर कुछ लोग दान भी कर जाते हैं। अभी वे लोग आ रहे हैं इन्हें लेने और कल मेरे साथ चलना हम भी दस हजार रुपये उनके कार्यालय में जमा करा देंगे।
श्वेता: इसकी क्या जरूरत है। फालतू पैसा लुटा रहे हो।
रमाकांत जी: तुम नहीं समझोंगी। अगर मेरा बेटा बस पार्टी में जाता वहां की सीख अपनाता तो बड़े होकर ये भी बस पार्टी ही करता। आज इसने पार्टी के पैसे एक नेक जगह खर्च करवाये। किसी की मदद की। इससे बड़ी खुशी नहीं हो सकती।
कुछ ही देर में गाड़ी आ गई।
रमाकांत जी: बेटा चिन्ता मत करना वहां तुम बहुत अच्छे से रहोगे। हम तुमसे मिलने आते रहेंगे।
यह देख कर छोटू की आंखो से आंसू बह रहे थे। उसने रमाकांत जी के पैर छू लिये।
छोटू: साहब आप भगवान हो। मेरी बहन की जिन्दगी आपने बचा ली। यह दिन पर दिन कमजोर होती जा रही थी।
रमाकांत जी: मैंने सब इंतजाम कर दिया है। वहां तुम्हारा पूरा चैकअप होगा। पोष्टिक खाना और दूध मिलेगा।
तीनों गाड़ी में बैठ कर चले गये।
श्वेता: मुझे माफ कर दो मैं गरीबो से नफरत करती थी। लेकिन मेरे बेटे और आपने ने मेरी आंखे खोल दी। आज से मैं भी सबकी मदद के लिये तैया रहूंगी।
रमाकांत जी: ये तो बहुत खुशी की बात है। चलो अब खाना तो हो गया, क्यों न आईस्क्रीम खाई जाये।
यह सुनकर तीनों हसने लगे।
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Image Source : playground
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