चांदी की पायल | Poor Girl Demand Story

Poor Girl Demand Story
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Poor Girl Demand Story : गांव से नये नये शहर आये। रामबहादुर और मीना काम ढूंढ रहे थे। रामबहादुर के गांव का दोस्त हरिया उसे काम दिलवा देता है।

मजदूरी का काम मिलने से रामबहादुर बहुत खुश था। इधर मीना ने सड़क के किनारे पटरी पर एक छोटा सा तम्बु बना कर उसमें अपनी गृहस्थी जमा ली थी।

एक नन्ही सी बेटी कंचन जो कि अभी बस छः साल की थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। नई जगह इतनी भीड़ ये सब देख कर वह डर रही थी। मीना ने कंचन को अपनी गोद में बिठाया और कहा – ‘‘बेटा डरो नहीं हम शहर में आये हैं यहां बहुत पैसा कमायेंगे तुझे अच्छे से पढ़ायेंगे।’’

यह सुनकर कंचन ने पूछा – ‘‘मां हमारा गांव में इतना बड़ा मकान था। उसे छोड़ कर यहां छोटे से पन्नी के मकान में क्यों आ गये। यहां हमारा घर नहीं है, तो अपने गांव चलो।

कंचन की बातों का मीना के पास कोई जबाब नहीं था। वह उसे समझाते हुए कहती है – ‘‘बेटी चिंता मत कर तेरे बाबा बहुत मेहनत कर रहे हैं। एक दिन शहर में भी हमारा अपना घर होगा।’’

शाम को रामबहादूर वापस आया। उसे जो मजदूरी से पैसे मिले थे उनसे वह खाना बनाने का सामान ले आया। मीना ने वहीं पास में चूल्हा बना कर खाना तैयार किया फिर तीनों खाकर अपनी छोटे से तम्बू में जाकर सोने लगे।

मीना ने रामबहादुर से कंचन की बात की। रामबहादुर ने कहा अगर सही से काम मिलता रहा और कुछ पैसे बच गये तो किराये पर एक छोटा सा कमरा ले लेंगे।

अगले दिन रामबहादुर काम पर चला जाता है। मीना, कंचन को लेकर काम ढूंढने निकलती है। अपने तम्बू को बंद करके दोंनो मां बेटी पास ही के गली में पहुंच जाती है। मीना कई घरों में झाड़ू-पौंछे के काम के लिये कहती है। लेकिन उसे कहीं भी काम नहीं मिलता।

इसी तरह एक सप्ताह बीत जाता है। रामबहादुर की कमाई से किसी तरह एक टाईम का खाना बन जाता था। एक दिन मीना और कंचन काम ढूंढने जा रहे थे। एक दुकान के आगे कंचन रुक जाती है। वह एक सुनार की दुकान थी। वहां सामने शीशे के शोकेस में एक सुन्दर सी चांदी की पायल रखीं थीं। जिसे देख कर कंचन रुक जाती है।

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कंचन कहती है – ‘‘मां ये मुझे चाहिये। ये छम छम करती पायल पहननी है।’’

मीना उसे समझाती है – ‘‘बेटा ये तो बहुत मंहगी होगी। हमारे पास खाने के भी पैसे नहीं हैं ये कहां से ले पायेंगे।’’

लेकिन कंचन गुस्सा हो जाती है। वह जिद करने लगती है। मीना उसे किसी तरह समझा कर वापस ले आती है। शाम को कंचन बिना खाना खाये सो जाती है। मीना, रामबहादुर को सारी बात बताती है।

रामबहादुर कहता है – ‘‘तू चिन्ता मत कर यहीं पास बाजार में नकली पायल मिलती है। मैं कल ले आउंगा। उसे क्या पता लगेगा चांदी की है या नहीं।’’

अगले दिन रामबहादुर शाम को पायल लेकर घर आता है। कंचन बहुत खुश हो जाती है। दो दिन बाद मीना के साथ कंचन वापस उसी दुकान के आगे से गुजरती है।

वहां उसे वही चांदी की पायल दिखती है। कंचन दोंनो पायल को मिलाने लगती है। उस चांदी की पायल के सामने अपनी पायल उसे फीकी नजर आती है। कंचन अपनी मां से कहती है – ‘‘मां तुमने मुझे नकली पायल लाकर दी असली देखो कितनी चमक रही है।’’

मीना ने समझाया – ‘‘बेटी ये पुरानी हो गई वो नई है।  इसलिये ऐसा लग रहा है।’’

लेकिन कंचन को मीना की बात पर विश्वास नहीं होता वह फिर से गुस्सा होकर घर आ जाती है।

शाम के समय रामबहादुर घर वापस आता हैं। रामबहादुर कहता है – ‘‘सुन मुझे एक जगह काम मिल गया और रहने की जगह भी। साथ ही मेरे सेठ के घर में मैंने तेरे लिये भी बात कर ली है। उनके ही घर में रहेंगे और काम करेंगे।’’

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मीना, कंचन के सो जाने के बाद रामबहादुर को सारी बात बताती है। रामबहादुर कहता है – ‘‘चल देखते हैं पहले ये काम तो हो जाये।’’

अगले दिन तीनों सेठ के घर पहुंच जाते हैं। रामबहादुर से के कारखाने में काम करता था और मीना सेठ के घर में काम करने लगी थी।

एक दिन कंचन बाहर बरामदे में बैठी थी। मीना झाड़ू-पौंछा लगा रही थी।

तभी सेठ जी की बेटी वहां आई। कंचन ने देखा उसने वही चांदी की पायल पहन रखी थी। उसे देख कर कंचन जोर जोर से रोने लगी।

कंचन का रोना सुनकर मीना दौड़ कर उसके पास आई। सेठ, सेठानी, रामबहादुर भी वहीं आ गये। मीना ने कंचन को किसी तरह चुप कराया फिर रोने का कारण पूछा तो कंचन ने कहा – ‘‘इसने वो पायल पहन ली जिसे मैंने दुकान में देखा था अब मैं क्या पहनूंगी।’’

सेठ जी ने पूछा, तो रामबहादुर ने सारी बात बता दी। यह सुनकर सेठ जी ने कहा – ‘‘बच्चे सबके एक जैसे होते हैं। चल मैं इसके लिये तुझे पायल दिला देता हूं। थोड़े थोड़े पैसे मजदूरी में से कटवा लेना।’’

शाम को वापस आते समय सेठ जी ने कंचन के लिये पायल खरीद ली।

रामबहादुर ने कंचन को पायल दी, तो वह बहुत खुश हुई। अगले सात महीने तक मीना और रामबहादुर अपनी मजदूरी में से थोड़े-थोड़े पैसे कटवाते रहे।

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Image Source : playground

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