Holi Story in Hindi : नीरज की मम्मी आरती किचन में काम कर रहीं थीं। तभी नीरज भागता हुआ आया – ‘‘मम्मी देखो न।’’
आरती ने प्यार से नीरज की ओर देखा और कहा – ‘‘बेटा मुझे काम करने दे तू बाहर जाकर खेल ले।’’
लेकिन नीरज नहीं माना और मोबाईल लेकर मम्मी के पीछे पड़ गया – ‘‘मम्मी देखों न प्लीज।’’
आरती ने बेटे के हाथ में मोबाईल देख कर कहा – ‘‘तुझे कई बार मना किया है न मोबाईल पर रील्स देखने के लिये।’’
नीरज ने जिद पकड़ते हुए कहा – ‘‘मम्मी एक बार देखो तो सही। सब लोग होली पर वृन्दावन जा रहे हैं। कितनी भीड़ है। हम कब जायेंगे?’’
आरती ने मोबाईल हाथ में लेकर देखा इंस्टाग्राम पर कई रील्स थीं वृन्दावन की। कुछ समय काम भूल कर आरती भी रील्स देखने लगीं। सब लोग रंगों में सराबोर, बांके बिहारी मन्दिर हो या मदन मोहन मन्दिर सब जगह भक्त नाच गा रहे थे। पूरा मन्दिर लोगों से भरा हुआ था।
आरती ने मोबाईल नीरज को देते हुए कहा – ‘‘बेटा तेरे पापा को बोला तो था, लेकिन वो कह रहे थे बहुत भीड़ है। ऐसे में हम कैसे दर्शन कर पायेंगे। घंटों लाईन में लगना पड़ रहा है तब नम्बर आ रहा है और छोटे बच्चों को लेकर तो जाना नामुमकिन है।
नीरज गुस्सा होते हुए बोला – ‘‘बस सारी दुनिया वृन्दावन जा सकती है। हमारे लिये ही भीड़ है। यहां इस फ्लेट में बैठ कर बॉलकानी से होली देखते रहो।’’
नीरज गुस्सा होकर चला गया। शाम को प्रशांत घर आये तो आरती ने उनसे बात की लेकिन प्रशांत ने साफ मना कर दिया – ‘‘आरती समझा करो वो तो बच्चा है। तुम तो समझदार हो इतनी भीड़ में मैं तुम्हें और नीरज को कैसे सम्हालूंगा।’’
यह सुनकर आरती ने कहा – ‘‘अब बच्चा इतनी जिद कर रहा है तो एक काम करते हैं वृन्दावन चलते हैं। कोशिश करेंगे अगर दर्शन नहीं कर पाये तो बाहर से ही प्रणाम करके वापस आ आजायेंगे। बच्चे का मन बहल जायेगा।’’
प्रशांत ने कहा – ‘‘ठीक है लेकिन वहां जाकर जिद पर मत अड़ जाना की लाईन में लगना ही है। घंटों नीरज को को गोद में लेकर खड़े रहना मुझसे नहीं हो पायेगा।’’
होली से दो दिन पहले प्रशांत, नीरज और आरती को लेकर वृन्दावन के लिये निकल जाते हैं। तभी आरती कहती है – ‘‘अपनी गाड़ी से नहीं जायेंगे। पता नहीं वहां पार्किग की जगह मिले भी या नहीं और फिर गाड़ी में पूरा रंग लग जायेगा।’’
प्रशांत जी को बात समझ आ जाती है। तीनों मथुरा के लिये रोडवेज की बस पकड़ लेते हैं। मथुरा से वृन्दावन जाने के लिये आटो लेकर वृन्दावन पहुंच जाते हैं।
लेकिन वहां पहुंच कर जब भीड़ देखते हैं तो उनके हाथ-पांव फूल जाते हैं। इतनी भीड़ श्रीबांके बिहारी मन्दिर पहुंचना तो दूर उनकी आस-पास की गलियों में पहुंचना भी नामुमकिन हो जाता है।
सैंकड़ो लोगों की भीड़ से गलियां पटी पड़ी थीं। इस भीड़ को देख कर आरती ने कहा – ‘‘अब क्या होगा यहां तो मन्दिर तक पहुंचना मुश्किल है।’’
प्रशांत जी ने कहा – ‘‘मैंने तो पहले ही कहा था। होली पर आने का कोई फायदा नहीं है।’’
नीरज ने पापा से कहा – ‘‘पापा आप लाईन में तो लगो। कान्हा जी अन्दर से बुला लेंगे।’’
नीरज की बात सुनकर प्रशांत ने कहा – ‘‘बेटा मैं लाईन में नहीं लग सकता। इतनी भीड़ में।’’
बहुत देर तक इंतजार करने के बाद तीनों वापस जाने की सोच रहे थे। वे थक हार कर एक मकान के बाहर बने चबेतरे पर बैठ जाते हैं।
नीरज आगे जाने की जिद कर रहा था। आरती और प्रशांत उसे समझा रहे थे। तभी उनके पास एक छोटा सा बच्चा आता है।
बच्चा प्रशांत से कहता है। आपको बांके बिहारी के दर्शन करने हैं। यह सुनकर आरती ने पूछा – ‘‘बेटा क्या तुम यहां किसी को जानते हो जो हमें दर्शन करा दे।’’
यह सुनकर बच्चा मुस्कुराते हुए कहता है। मेरे साथ आ जाओ में दर्शन करा दूंगा।
लेकिन उसकी बात सुनकर प्रशांत कहते हैं – ‘‘ऐसे कैसे किसी के भी साथ चल दें तुम्हें पता है ऐसे ही लूटपाट हो जाती है।’’
यह सुनकर आरती कहती है – ‘‘चलो न चलते हैं इतनी भीड़ में कौन लूट लेगा। देख कर तो आते हैं।’’
नीरज भी जाने की जिद करने लगता है। उनकी बातें सुनकर प्रशांत तैयार हो जाते हैं और चल देते हैं। तभी वह बच्चा उनसे कहता है – ‘‘कान्हा जी के लिये रंग लाये हो नहीं तो सामने से ले लो।’’
यह सुनकर उन्हें ध्यान आया कि यहां आ तो गये लेकिन गुलाल तो लिया ही नहीं प्रशांत ने चुपचाप आरती से कहा – ‘‘देखा मैंने कहा था न जरूर इसकी कमीशन होगी इस दुकान पर गुलाल खरीदने को कह रहा है। अभी आगे देखो कितने पैसे खर्च करवायेगा।’’
आरती ने आंखे दिखाते हुए गुलाल खरीदने के लिये इशारा किया। प्रशांत बिना कुछ बोले गुलाल खरीदने चले गये।
कुछ देर बाद वे तीनों बच्चे के पीछे पीछे चलने लगे। बच्चा गलियों से बाहर निकल कर यमुना जी के पास एक पेड़ के नीचे ले गया। वहां जाकर वह उन्हें पेड़ के पीछे की तरफ ले गया।
यह देख कर प्रशांत ने कहा – ‘‘देखो यहां आस पास कोई भी नहीं है। मैंने कहा था। पर तुम नहीं मानी अब जरा सावधान रहना।’’
बच्चो पेड़ के पीछे ले जाकर बोला – ‘‘लो खेल लो होली बांके बिहारी जी से।’’
आरती और प्रशांत देख कर दंग रह गये। पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बांके बिहारी जी की एक तस्वीर रखी थी। यह देख कर आरती ने कहा – ‘‘बेटा तुमने तो कहा था मन्दिर ले जाओगे। यह कहां ले आये हमें तो मन्दिर जाना था।’’
तब उस बच्चे ने कहा – ‘‘आप पहले इन्हें गुलाल लगाओ फिर आंखे बंद करके यहां बैठ जाओ। बस जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही करो।’’
आरती नीरज को गोदी में बिठा कर प्रशांत जी के साथ नीचे बैठ जाती है। दोंनो अपनी आंखे बंद कर लेते हैं। तभी वे क्या देखते हैं कि तीनों बांके बिहारी जी के मन्दिर में श्री बांके बिहारी जी के सामने खड़े हैं।
मन्दिर में बहुत कम लोग हैं। पुजारी जी सबको गुलाल लगा रहे हैं। आरती और प्रशांत एक दूसरे को देख रहे थे। फिर उन दोंनो ने बांके बिहारी जी के चरणों में माथा टेका। दोंनो को गुलाल लगाया गया। इसी बीच नीरज का हाथ उनसे छूट गया। आरती नीरज नीरज आवाज देने लगी।
तभी दोंनो की आंख खुल गई। उन्होंने देखा उनके चेहरे पर वही गुलाल लग रहा था। पास ही नीरज पास में खड़ा था। वह पूरा रंगो में सराबोर था। आरती ने जल्दी से उसे गोद में उठा लिया और पूछा – ‘‘बेटा तुम्हें यह रंग किसने लगाया।’’
नीरज बोला आप दोंनो आंखे बंद करके बैठे थे – ‘‘तभी कान्हा जी आये और मेरे साथ होली खेलने लगे। मैंने आपको बहुत आवाज दी पर आपने सुना ही नहीं।’’
आरती ने पूछा – ‘‘तू सच कह रहा है। सच में कान्हा जी आये थे।’’
प्रशांत और आरती ने चारों ओर देखा लेकिन वह बच्चा कहीं नहीं था।
प्रशांत और आरती की आंखों से आंसू बह रहे थे। प्रशांत ने बोला – ‘‘कान्हा जी मन्दिर छोड़ कर खुद हमारे साथ होली खेलने आ गये।’’
आरती और प्रशांत ने उस तस्वीर के सामने माथा टेका। बहुत देर तक तीनों ंवहीं बैठ कर उस बच्चे का इंतजार करते रहे। फिर वे उस तस्वीर को लेकर अपने घर आ गये।
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Image Source : Playground
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