एक छोटी सी पोटली | Maa Durga Ki Kahani in Hindi

Maa Durga Ki Kahani in Hindi
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Maa Durga Ki Kahani in Hindi : एक गॉव में एक सेठ जी की सोने चांदी के गहनों की दुकान थी। सेठ जी के दो बेटे थे किशन और पारस। सेठ जी का बड़ा बेटा किशन सारा व्यापार संभालता था।

वहीं पारस मॉं भगवती का बड़ा भक्त था। वह सीधे स्वभाव का था। उसकी व्यापार में रुचि नहीं थी।

एक दिन सेठ जी और किशन को शहर जाना पड़ा। इसलिए उन्होंने पारस को दुकान संभालने की जिम्मेदारी दी।  उनके जाने के कुछ देर बाद दुकान पर एक बुढ़िया माई आई और पारस से कहा ‘‘बेटा मेरी बेटी बहुत बीमार है। मेरे पास यह अंगूठी है। इसे तुम खरीद लो’’

तब पारस ने कुछ रुपये निकाल कर बुढ़िया माई को दिये और कहा ‘‘इन पैसों से उसका इलाज करवाईये अगर ज्यादा पैसों की आवश्यकता हो तो मुझे बता देना।’’ इस तरह उसने बिना अगूंठी खरीदे उन्हें रुपये दे दिये।

शाम को जब सेठ जी और किशन वापस आये तो पारस ने उन्हें सारी बात बता दी। तब सेठ जी ने कहा।

‘‘अरे मूर्ख यही तो हमारा धंधा है। गॉव वाले परेशानी में हमें गहने बेच जाते हैं। जिन्हें हम कम दामों पर खरीद कर उन्हें ज्यादा कीमत पर शहर में बेच कर देते हैं। यदि तू कुछ दिन और दुकान पर बैठा तो हमें कंगाल बना देगा। कल से दुकान पर मत आना’’

यह कहकर सेठ जी ने पारस को दुकान से निकाल दिया।

रात को घर पर भी उसे खूब डॉंट पड़ी। घर पर किशन की पत्नि ने पारस से कहा ‘‘आप कमाते तो कुछ हो नहीं और जो भी दुकान में कमाई होनी थी उसे भी लुटा दिया।’’

यह सुनकर पारस और उसकी पत्नि राधा को बहुत बुरा लगा। तब पारस ने कहा ‘‘भाभी हमारे पास किसी चीज की कमीं नहीं है। मॉं भगवती के आशीर्वाद से सब कुछ है। हमें तो और ज्यादा लोगों की मदद करनी चाहिए’’

तभी किशन ने कहा ‘‘जब तुम मेहनत से पैसा कमाओ तो उसे गरीबों पर लुटा देना पर हमारे पैसे पर तुम्हारा कोई हक नहीं इस घर में खाना मिल जाता है। यही तुम्हारे लिए काफी है।’’

राधा को यह बात बहुत बुरी लगी। दोनों की आंखो में आंसू आ गये।

अगले दिन पारस गॉव में कहीं जा रहा था। तभी उसे वहीं बुढ़िया माई मिली  उन्हें देख कर पारस ने उनसे पूछा मॉंजी आपकी बेटी कैसी है। तब उन्होंने कहा

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‘‘बेटा तेरी वजह से मेरी बेटी की जान बच गई’’ पारस बहुत खुश हुआ।

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तब बुढ़िया माई ने कहा ‘‘बेटा मेरी मदद करने की वजह से तुझे काफी कुछ सुनना पड़ा।’’ तब पारस ने कहा ‘‘माजी यह सब आपको कैसे पता?’’

बुढ़िया माई ने कहा ‘‘मुझे सब पता है इसी कारण तेरे पिता और भाई ने तुझे दुकान से हटा दिया। पर तू चिन्ता न कर कल से नवरात्रे आरम्भ हो रहे हैं तुम दोंनो पति पत्नि एक लांेग के जोड़े से मॉं दुर्गा के नवरात्री के व्रत करो और साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करो इसके पूरे होते ही तुम्हारे सारे बिगड़े काम बन जायेंगे।’’

पारस व राधा ने ऐसा ही किया। उन्होंने नवरात्रों के व्रत आरंभ कर दिये बिना अन्न ग्रहण किये केवल लोंगे के जोड़े से व्रत करने लगे। साथ ही प्रति दिन दुर्गासप्तशती का पाठ करते।

एक दिन पारस व राधा मन्दिर में बैठ कर दुर्गासप्तशती का पाठ कर रहे थे। तभी एक छोटी सी कन्या उनके पास आई और कहने लगी

‘‘आप मुझे जानते हो’’ पारस ने कहा ‘‘नहीं बेटी मैं तुम्हें नहीं जानता’’

तब उस कन्या ने कहा ‘‘मैं वहीं हूं जिसकी आपने पैसे देकर जान बचाई थी’’ पारस ने मॉंजी के बारे में पूछा तो उसने बताया ‘‘वे घर पर हैं। में तो दुर्गासप्तशती सुनने आपके पास आई हूं।’’

पारस और राधा को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक छोटी सी कन्या दुर्गासप्तशती सुनने आई है। पारस ने दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जब पाठ पूरा हुआ तो वह कन्या एक पोटली पारस को देकर जाने लगी। पारस ने मना किया पर वह नहीं मानी उसके जाने के बाद पारस ने देखा तो उस पोटली में ज्वार थे।

पारस ने उसे रख लिया। अगले दिन भी यही हुआ  वह कन्या आई और दुर्गासप्तशती का एक अध्याय सुना उसके बाद एक छोटी सी पोटली देकर चली गई।

इसी तरह आठ दिन बीत गये। आठवें दिन जब दुर्गा सप्तशती का पाठ पूरा हुआ। तो वह कन्या पोटली देकर जाने लगी। पारस ने कहा बेटी तुम्हारा घर कहां है। हम तुमसे मिलने आयेंगे। तब उस कन्या ने कहा तुम दोंनो कल यहीं आ जाना मैं यहीं मिलूंगी।

नवरात्री के नौवे दिन पारस व राधा ने मॉं का प्रसाद बनाया मन्दिर जाकर पूजन किया। पूजन करने के बाद दोंनो उस कन्या को ढूंढने लगे पर वह कहीं दिखाई नहीं दी।

कुछ समय बाद वे दोंने मॉं भगवती की मूर्ति के सामने खड़े होकर मॉं का ध्यान करने लगे। तभी उन्हें मॉं भगवती की मूर्ति मैं वही बुढ़िया माई दिखाई दीं और कुछ देर बाद वे रूप बदल कर उसी छोटी सी कन्या के रूप में दिखने लगीं।

यह देख कर पारस और राधा की आंखों से आंसू बहने लगे। वे मॉं के चरणों में बैठ गये। सबने उनके रोने का कारण पूछा तो दोंनो ने बताया मॉं स्वयं उनकी मदद के लिए आई थी। हर दिन कन्या के रूप में दुर्गा सप्तशती सुनती थी। और हम उन्हें पहचान भी नहीं सके। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ मन्दिर में मॉं के जयकारे लगने लगे।

पारस और राधा जब घर आये और अपने कमरे में गये। तो देखा जो पोटलियों मॉं ने उन्हें दी थी। उनके सभी ज्वार सोने के बन गये। और वे जितना उन्हें निकालते वे उतना ही भर जाती थीं। घर वालों को जब पता लगा तो सबने उनसे माफी मांगी।

मॉं के आशीर्वाद से पारस ने सोने का व्यापार शुरू किया और दिन रात मॉं की भक्ति करने लगा।

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