दादी का प्यार | Grandmother Moral Story Hindi

Grandmother Moral Story Hindi
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Grandmother Moral Story Hindi : ‘‘मोहित जरा इधर आ’’ मोहित की दादी ने उसे पुकारा। दादी की आवाज सुनकर मोहित दौड़ कर उनके पास गया।

‘‘हां दादी जी क्या बात है?’’

दादी ने कहा – ‘‘अरे मेरा चश्मा नहीं मिल रहा जरा ढूंढ दे’’

यह सुनकर मोहित बोला – ‘‘दादी चश्मे का क्या करोंगी।’’

दादी ने अपना फटा हआ ब्लाउज दिखाते हुए कहा – ‘‘बेटा यह देख कितना फट गया है। इसे सिलना है। बिना चश्मे के दिख नहीं रहा।’’

दादी हाथ में फटा हुआ ब्लाउज लिये बैठी थीं।

मोहित ने अपनी दादी से कहा – ‘‘दादी यह तो बहुत पुराना है यह तो घिस घिस कर फट गया है। इसे छोड़ो मैं मम्मी से कह दूंगा वे आपको नया सिलवा कर दे देंगी।’’

दादी की आंखो में एक उदासी सी छा गई वो बोली – ‘‘नहीं बेटा अपनी मम्मी से कुछ मत कहना नहीं तो मुझे दस बातें सुना देगी। मैं इसी से काम चला लूंगी।’’

मोहित चुपचाप चश्मा ढूंढने लगा पीछे की खिड़की में चश्मे की डिब्बी मिल गई जो कि पर्दे के पीछे छिप गई थी। मोहित ने चश्मा दादी को दिया और वो सुई में धागा डाल कर फटे हुए ब्लाउज को सिलने लगीं।

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मोहित को यह सब बहुत बुरा लग रहा था। मम्मी हर महीने एक नई साड़ी खरीदती थीं। जब मन चाहें नये गहने खरीदती थीं और दादी फटे कपड़े में थेकली लगा कर काम चला रहीं थीं।

शाम को जब मोहित के पापा राकेश आये तो उसने पापा को सारी बात बतायी – ‘‘पापा दादी के पास एक भी नई साड़ी या ब्लाउज नहीं है। वो अपने पुराने ब्लाउज को सिल रही थीं पहले भी कई बार सिल चुकी हैं लेकिन वह कहीं न कहीं से फट जाता है। आप उन्हें नयी साड़ी ब्लाउज दिलवा दीजिये।’’

राकेश जी ने अपनी पत्नी सुधा से बात की – ‘‘सुनों मां के लिये एक साड़ी ब्लाउज ला देना। मोहित ने उन्हें फटे कपड़े सिलते देखा है।’’

सुधा गुस्सा होते हुए बोली – ‘‘तुम्हारी मां तो जानबूझ कर बच्चे को दिखाने के लिये ये सब करती हैं। कि देखो मुझे कितना परेशान किया जा रहा है। तुम्हारा मन करे तो पूरा घर लुटा दो उन पर मुझे क्या मतलब।’’

राकेश ने बोला – ‘‘अरे तुम तो बात बात में नाराज हो जाती हों। एक साड़ी ब्लाउज में क्या हो जायेगा। वैसे भी अगर फटा ब्लाउज पहन कर वो किसी के सामने आ गईं तो हमारी ही बेज्जती होगी।’’

अगले दिन राकेश अपनी मां के लिये एक साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा ले आये और अपनी मां का पुराना ब्लाउज लेकर दर्जी को सिलने के लिये दे आये। दो दिन बाद मोहित के हाथ से साड़ी ब्लाउज मां के कमरे में भिजवा दिया।

मोहित खुशी खुशी दादी को कपड़े देने पहुंच गया। दादी को इसकी कोई खुशी नहीं थी। वो बोली – ‘‘कितना अच्छा होता अगर मेरा बेटा या बहु कोई इसे अपने हाथों से देता। यहां घर के नौकरों को भी अपने हाथ से कपड़े और इनाम देते हैं।’’

मोहित बोला – ‘‘कोई बात नहीं दादी आप इसे पहन कर दिखाओ मैं पापा का मोबाईल लाकर आपकी एक फोटो लेता हूं। आप इसमें बहुत सुन्दर दिखोंगी।’’

दादी ने साड़ी निकाली तो देखा वह एक सस्ती सी सूती साड़ी थी। एक बार तो उनका मन किया कि इसे वापस कर दे। लेकिन अपने पांच साल के पोते के चेहरे पर जो खुशी थी। उसकी खातिर उन्होंने वो लेकर रख ली।

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मोहित जिद करने लगा – ‘‘दादी पहन कर दिखाओ न।’’

‘‘बेटा कर नहा कर पहनूंगी नया कपड़ा नहा कर पहनना चाहिये।’’

मोहित कुछ देर दादी के पास खेलता रहा फिर उनके पास ही सो गया।

कुछ देर में सुधा मोहित को लेने आई – ‘‘मांजी इस बार तो ये आपके लिये साड़ी ले आये लेकिन आगे से कोई फरमाईश मत करना हम आपको रख रहे हैं यही काफी है। छोटे बच्चे का सहारा लेकर हमें परेशान मत कीजियेगा।’’

‘‘बहु मैंने तुमसे कोई साड़ी नहीं मांगी थी। ले जाओ अपनी साड़ी मैं जैसे तैसे काम चला लूंगी।’’

इस बात को सुनकर सुधा को और गुस्सा आ गया – ‘‘पहले तो आप नाटक करती हैं। अब नखरे दिखा रही हैं। अब ये साड़ी वापस ले जाउंगी तो घर में क्लेश हो जायेगा। आप ही रखिये इसे।’’

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सुधा के जाने के बाद दादी रोने लगी। एक समय था जब उनके पति, मोहित के दादा जिन्दा थे। तब हमेशा बनारसी साड़ी पहनती थीं। सज संवर कर रहती थीं। घर का सारा काम नौकर चाकर करते थे। उनके मरते ही सारा व्यापार राकेश के हाथों में चला गया, तब से उनके बुरे दिन शुरू हो गये।

अगले दिन मोहित की जिद पर दादी ने नई साड़ी पहनी। जिसे पहनने का उनका बिल्कुल मन नहीं था। उसके बाद दादी मोहित को लेकर मन्दिर गईं।

वहां से दादी वापस आ रहीं थी। तभी उनकी बचपन की सहेली। आभा मिल गई।

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आभा बोली – ‘‘कैसी है बहन आज तो नई साड़ी में बड़ी अच्छी लग रही है।’’

दादी आभा के साथ मन्दिर की सीढ़ियों पर बैठ गईं। मोहित पास ही में खेल रहा था। दादी ने कल की सारी बात आभा को बता दी। यह सुनकर आभा बोली – ‘‘तू तो बेकार घर गृहस्थी में पड़ी है। इतनी बेज्जती कराने से अच्छा है मेरे साथ चल मैं वृद्धा आश्रम में रहती हूं। पूरे मान सम्मान के साथ। वहां सभी का आदर सम्मान होता है। हर महीने कोई न कोई आकर कपड़े, खाने का सामान, दवाईयां देकर चला जाता है। हमारे जैसे बहुत से लोग हैं। वहीं चल।’’

दादी बोली – ‘‘बात तो तेरी सही है क्या वो लोग मुझे रख लेंगे?’’

‘‘हां हां क्यों नहीं मैं बात कर लूंगी तू कल आ जाना जगह तो तूने देखी ही है।’’

मोहित सारी बातें सुन रहा था। आभा जी के जाने के बाद वह बोला – ‘‘दादी क्या तुम मुझे छोड़ कर चली जाओंगी।’’

दादी बोली – ‘‘बेटा मैं यहीं पास ही में तो हूं। जब तेरा मन करे अपने मम्मी पापा के साथ मुझसे मिलने आ जाना।’’

अगले दिन जब मोहित स्कूल गया था तो दादी ने सुधा को बुलाया और सारी बात बता दी। सुधा बोली -‘‘जैसी आपकी इच्छा।’’

दादी अपना सामान लेकर वृद्धा आश्रम पहुंच गईं। दोपहर को जब मोहित आया तो दादी अपने कमरे में नहीं थीं। उसने अपनी मम्मी से पूछा तो वो बोली – ‘‘तेरी दादी अपनी मर्जी से गई हैं।’’

शाम को जब राकेश आया तो सुधा ने उसे सारी बात बता दी। लेकिन मां के जाने से उन्हें भी कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन मोहित बहुत उदास रहने लगा।

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कई दिन बीत गये मोहित न ढंग से खाना खाता था, न खेलता था। एक दिन वह दादी से मिलने की जिद करने लगा। हार कर राकेश और सुधा, मोहित को लेकर दादी से मिलने पहुंचे।

दादी से मिल कर मोहित बहुत खुश हुआ। फिर वह दादी के साथ मैनेजर के कमरे में गया। राकेश और सुधा भी पीछे पीछे पहुंच गये। वह मैनेजर से बोला – ‘‘क्या मैं भी यहां अपनी दादी के साथ रह सकता हूं।’’

मैनेजर बोला – ‘‘नहीं बेटा यहां वही रहते हैं जिन्हें उनके घर वाले निकाल देते हैं।’’

तब मोहित बोला – ‘‘तो फिर आप मेरे मम्मी पापा को रख लीजिये। दादी को मैं अपने साथ ले जाता हूं। वैसे भी बड़े होकर मैं इन्हें घर से निकाल दूंगा। क्योंकी ये मेरी दादी को अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं।’’

यह सुनकर राकेश और सुधा को गहरा धक्का लगा। राकेश अपनी मां के पैरों में गिर पड़ा – ‘‘मां मुझे माफ कर दो। मेरे बेटे ने मेरी आंखे खोल दी।’’

सुधा भी अपनी सास से माफी मांगने लगी।

राकेश अपनी मां को घर ले आये। सुधा उनकी जी जान से सेवा करने लगी। मोहित ने यह सब देखा तो वह बहुत खुश रहने लगा।

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