बुआ जी का घर | Kahani with Moral for Kids

Kahani with Moral for Kids
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Kahani with Moral for Kids : नेहा आज बहुत खुश थी। गर्मीयों की छुट्ट्यिां पड़ गईं थीं और वह अपनी बुआ के घर रहने जा रही थी। बुआ जी का घर किसी महल से कम नहीं था।

पूरे शहर में उनकी सबसे बड़ी आलीशान कोठी थी। फूफाजी पुराने रजवाड़े खानदान से थे। उनके जाने के बाद बुआ जी ने ही सब कुछ सम्हाल रखा था। बहुत बड़ा परिवार था। लेकिन अपनी कोई सन्तान नहीं थी।

बुआ जी को वहां सब मांजी कहकर पुकारते थे। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसी बात थी। कि हर इन्सान उनके सामने सर झुका कर खड़ा रहता था। पैसे का जरा भी घमंड नहीं था। लेकिन अनुशासन की पक्की थीं। उपर से जितनी कठोर थीं। अंदर से उनका हृदय उतना ही कोमल था।

नेहा अपने पिता जी के साथ बुआ जी के घर पहुंची। पहले भी कई बार आ चुकी थी। लेकिन इस बार रहने का मौका मिला था। वहां पहुंचते ही पिताजी ने अपने बड़ी बहन के पांव छुए।

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उनसे बातचीत की तभी बुआ जी ने कहा – ‘‘नेहा तू कितनी बड़ी हो गई इधर आ मेरे पास।’’

नेहा उनके पास पहुंच गई उन्हें चेहरे पे इतना तेज था। कि नेहा उन्हें एक टक उन्हें देख रही थी।

पिताजी नेहा को छोड़ कर चले जाते हैं। बुआ जी नेहा को उसका कमरा दिखाती हैं। अपनी नौकरानी को नेहा के लिये सारी बातें समझाती हैं।

शाम के समय बुआ जी नेहा से कहती हैं – ‘‘बेटा मैं अपनी एक सहेली से मिलने जा रही हूं तू चल तुझे भी घुमा लाती हूं।’’

नेहा फटाफट तैयार हो गई। बाहर निकले तो पता लगा कि अपनी गाड़ी से नहीं रिक्शे से जायेंगे क्योंकि उस भीड़भाड़ वाली जगह पर गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं है।

बुआ जी ने रिक्शा रुकवाया और रिक्शे वाले से बोली – ‘‘छोटे बाजार में धर्मशाला के पास जाना है तीस रुपये दूंगी।’’

रिक्शे वाला बोला – ‘‘वहां तो बहुत भीड़ रहती है बहुत देर जाम में खड़े रहना पड़ता है। पचास से कम नहीं लूंगा।’’

यह सुनकर बुआ जी एकदम गुस्से में बोली – ‘‘तुम लोगों ने लूट मचा रखी है। चालीस से एक रुपया ज्याद नहीं दूंगी और रास्ते से मुझे मिठाई लेनी है। पहले से बोल रही हूं बाद में चिकचिक मत करियो।’’

रिक्शे वाला बुआ जी को मना नहीं कर पाया और बुआ जी के साथ नेहा भी रिक्शे में बैठ गई। दोंनो अपनी मंजिल की ओर चल दीं।

आगे जाने पर एक बड़ी सी मिठाई की दुकान के पास उन्होंने रिक्शा रुकवा दिया। नेहा को साथ में लेकर मिठाई की दुकान में पहुंच गईं। कई मिठाइयों को देख कर उन्होंने एक मंहगी सी मिठाई पैक करवाई एक किलो एक जगह और ढाई सौ ग्राम एक जगह। फिर रिक्शे में आकर बैठ गईं।

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ढाई सौ ग्राम वाला पैकेट रिक्शे वाले को देते हुए बोली – ‘‘ले ये मैं तेरे लिये लाई हूं।’’

रिक्शे वाला कुछ नहीं बोला चुपचाप मिठाई का थैला हेंडिल पर लटका कर चल दिया। कुछ ही देर में रिक्शा बड़े बजार पहुंच जाता है। बुआ जी चालीस रुपये देकर चल देती हैं।

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नेहा उनसे पूछती है – ‘‘बुआ जी एक तरफ तो आप दस रुपये कम कर रही थीं और दूसरी ओर आपने डेड़ सौ रुपये की मिठाई उसे पकड़ा दी।’’

बुआ जी ने हस कर जबाब दिया – ‘‘अगर मैं उसे ज्यादा पैसे देती तो वो हर किसी से वही रेट मांगता। किसी के पास इतने पैसे न हों तो वो बेचारा पैदल ही जायेगा। रही बात मिठाई की तो जब हम अपने लिये मिठाई लेते हैं तो इन लोगों का भी तो मन होता होगा मिठाई खाने का लेकिन ये कभी उस दुकान से मिठाई नहीं ले पाते होंगे। इसलिये मैंने उसे मिठाई दी।’’

बुआ जी की आधी बात समझ में आई आधी नहीं आई। नेहा उनके साथ घर के अंदर चली गई। टूटा फूटा घर था। आंगन में एक टूटी हुई सी चारपाई पड़ी थी। बुआ जी ने आवाज दी तो अंदर से बुआ जी की उम्र की एक महिला आई। पुरानी सी सूती साड़ी पहने। बुआ जी को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। बुआ जी ने उसे गले से लगा लिया।

नेहा ने उन्हें नमस्कार किया। बुआ जी ने नेहा का परिचय दिया और बोली – ‘‘कैसे ही बहन बहुत दिन से सोच रही थी तुझसे मिलने के लिये लेकिन समय नहीं मिल पाया।’’

तभी उनकी बहु चाय बना लाई साथ में बिस्कुट थे।

बुआ जी बातें कर रहीं थी। फिर अचानक बोली – ‘‘नेहा ये मेरी बचपन की सहेली है। हम दोंनो साथ पढ़ा करते थे। बाकी सहेलियां तो छूट गईं। बस हम दोंनो की शादी एक ही शहर में हो गई।’’

यह कहकर दोंनो सहेलियां हसने लगीं। कुछ देर बैठ कर बुआ जी वापस चल दीं। बाहर आकर फिर रिक्शा किया और घर आ गईं।

घर आकर बुआ जी ने नेहा से पूछा – ‘‘क्या हुआ कुछ समझ नहीं आया न। सुन ये मेरी बचपन की सहेली है। इसे मैं कभी अपने घर नहीं बुलाती यहां सब ठाठ बाट देखेगी तो कल मुझसे बात करने में, मुझसे मिलने में उसे झिझक होगी। मैं हम दोंनो के बीच में पैसा नहीं आने देती, तू भी हमेशा ऐसी ही रहना। कितनी भी बड़ी बन जाये लेकिन अपने पुराने लोगों को कभी घमंड मत दिखाना।’’

नेहा बुआ जी से बहुत प्रभावित हुई। इतना सब कुछ होते हुए भी। घर में इतने नौकर चाकर, तीन बड़ी गाड़ियां। इतना बड़ा परिवार। महल जैसी कोठी। लेकिन कितनी सादा, कितनी सरल थीं बुआ जी।

शाम को वे अपनी नौकरानी पर चिल्ला रहीं थीं। मैं दौड़ कर उनके पास गई तो देखा वे उसे बुरी तरह डाट रहीं थीं। मुझे देख कर बोली – ‘‘देख इसकी बेटी तेज बुखार में तड़प रही है और ये उसे छोड़ कर यहां काम पर चली आई। तेरी बेटी को कुछ हो गया तो हमें पाप चढ़ा दियो। चल मेरे साथ।’’

बुआ जी उसके साथ चली गईं। नेहा रात को सो गई सुबह जब उसकी आंख खुली तो पता चला बुआ जी रात भर उसकी बेटी के साथ रहीं उसे शहर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अब वह ठीक है। दोपहर को बुआ जी आईं और नहा धोकर, सोने चली गईं।

दूसरों के लिये इतना प्यार, इतनी हमदर्दी भरी थी बुआ जी में तभी सब चुपचाप उनकी डाट सुन लेते थे। वो एक मां की तरह सबको डाटती थीं। सब उनकी डाट खाकर भी वहां नौकरी करते रहते थे। क्योंकि उन्हें पता था। इस डाट के पीछे कितनी ममता, कितना प्यार छिपा हुआ है।

नेहा एक महीने तक बुआ जी के घर रही। एक महीने बाद पिताजी उसे लेने आये। बुआ जी ने ढेरों उपहार नेहा को दिये।

जाते समय नेहा ने बुआ जी से कहा – ‘‘बुआ जी इस एक महीने ने मेरी जिन्दगी बदल दी। यहां आने से पहले मैं छोटे बड़े में फर्क करती थी। लेकिन आपको देख कर मुझे पता लगा कि मैं और मेरे जैसे कितने लोग अपने घमंड में रहते हैं। मैं वादा तो नहीं करती लेकिन आपके जैसा बनने की कोशिश करूंगी।’’

यह सुनकर बुआ जी बहुत खुश हुईं और बोली – ‘‘मुझे बहुत खुशी हुई अगली बार आयेगी तो मुझे बताना तूने जो मुझसे सीखा उसे कैसे अपने जीवन में उतारा।’’

नेहा अपने घर वापस आ गई। इस एक महीने में उसका जीवन बदल चुका था।

Image Source : Playground

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.