Nanad Aur Bhabhi Hindi Kahani : रचना आज बहुत खुश थी क्योंकि उसके पति रविन्द्र से आज उसने बड़े दिनों के बाद एक बात मनवा ही ली थी। वह अपने भाई किशन के घर कुछ दिन के लिये जाना चाहती थी। लेकिन रविन्द्र हर बार मना कर देते थे। आज रचना ने सुबह जल्दि उठ कर रविन्द्र के लिये नाशता बनाया उसके बाद उनका लंच पैक कर दिया।
ऑफिस जाने से पहले रविन्द्र ने रचना से बात की –
रविन्द्र: रचना एक बार फिर से सोच लो क्या वहां जाकर रहना सही रहेगा।
रचना: आप भी पुरानी बात लेकर बैठ गये उसके लिये भैया ने माफी मांग तो ली थी। अब वो इतने प्यार से बुला रहे हैं तो हमें भी सब कुछ भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिये।
रविन्द्र: ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन मैं वो सब नहीं भूल सकता।
रचना: ठीक है इस बार जाने दीजिये यदि मुझे अच्छा नहीं लगा तो आगे वे वे अपने रास्ते मैं अपने रास्ते।
रविन्द्र ऑफिस के लिये निकल जाते हैं। रचना अपने कपड़े पैक करके टैक्सी का इंतजार करने लगती है।
रचना अपने भाई किशन के घर पहुंच जाती है। वहां पहुंचते ही उसने रविन्द्र को फोन पर सकुशल पहुंचने की सूचना दी।
रचना का भाई किशन उसकी पत्नि राधा और उनका बेटा प्रतीक तीनों ने रचना का स्वागत किया।
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किशन: दीदी कब से आपको फोन कर रहा था। आपने भी कितना समय लगा दिया आने में। क्या आपने अभी तक मुझे माफ नहीं किया।
रचना: नहीं भाई बस घर का काम ही खत्म नहीं होता अब भी बड़ी मुश्किल से फुर्सत मिली है और हॉं पीछे जो हुआ मैं भूल चुकी हूं तू भी भूल जा।
राधा: दीदी हम तो आपसे नजरे भी नहीं मिला पा रहे थे। फिर इन्होंने ही आपको फोन किया। आपने आने के लिये हॉं की तभी हमारी जान में जान आई।
रचना: अरे भाभी आप भी क्या सब लेकर बैठ गईं। आप तो बस एक कप गर्मागर्म चाय पिला दो।
राधा चाय बनाने चली जाती है।
प्रतीक: बुआ जी आप कितने दिनों तक रहेंगी।
किशन: चुप बदमाश यह मेरी बहन का घर है जब तक मन करेगा रहेगी। चल भाग यहां से।
रचना: अरे बच्चे को क्यों डांट रहा है। बेटा में एक सप्ताह तेरे साथ ही हूं। तू मुझे अपना कमरा नहीं दिखायेगा।
रचना प्रतीक को लेकर उसके कमरे में चली जाती है।
कुछ देर बाद राधा चाय बना कर लाती है।
राधा: आप दीदी से कैसे बात करेंगे मुझे तो डर लग रहा है। कहीं मना कर दिया तो क्या होगा।
किशन: तू चुप रह मैं कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगा बस अभी इस बारे में दीदी से बात मत करना।
इधर रविन्द्र ऑफिस पहुंचे तो उनके दोस्त अमर ने पूछा।
अमर: क्या बात है यार इतना उदास क्यों है।
रविन्द्र: यार क्या बताउं रचना अपने भाई के घर गई है। तुझे तो पता है यह वही भाई है जो अपनी शादी में दहेज में कार मांग रहा था। मैंने इसे समझाया तो इसने कहा ‘‘मेरी हेसियत और तुम्हारी हैसियत में कितना फर्क है। यह कार मेरी हेसियत के आगे कुछ भी नहीं है। तुम मुझे मत समझाओ वो तो पिताजी ने तुम्हें पसंद कर लिया वरना तुमसे कहीं ज्यादा पैसे वाला लड़का मैं अपनी बहन के लिये देखता’’
सभी मेहमानों के सामने उसने मेरी बेज्जती की मैं और रचना उसी समय शादी में से वापस आ गये। आज तीन साल बाद वह कई दिन रचना को फोन कर माफी मांग रहा था। रचना ने उसे माफ भी कर दिया।
अमर: कोई बात नहीं तू चिन्ता मत कर शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो गया होगा।
रविन्द्र: नहीं यह जरूर उसकी कोई चाल होगी। बिना मतलब वह किसी से बात भी नहीं करता।
इधर अगले दिन किशन ने रचना से बात की।
किशन: दीदी मेरे व्यापार में बहुत घाटा चल रहा है। इसलिये हम वो पुराना पुश्तेनी मकान बेचना चाह रहे हैं। आप बस इन पेपर पर साईन कर दीजिये।
रचना: लेकिन वहां तो मॉं रहती हैं।
किशन: वो मॉं तो वृद्धा आश्रम चली गईं
रचना: क्या तूने मॉं को वृद्धा आश्रम भेज दिया।
किशन: हॉं यह मकान मैं अपनी पत्नि के नाम करना चाहता हूॅं। आप बस इन पेपर पर साईन कर दीजिये।
रचना: नहीं यह नहीं हो सकता तुझे वृद्धा आश्रम से मॉं को घर लाना होगा। उनके मरने के बाद ही यह मकान बिक सकेगा।
किशन: मैं इतने दिनों से तरी खुशामत कर रहा था ताकि तू अपना हिस्सा छोड़ दे और तू नखरे दिखा रही है।
रचना: मेरे पति ठीक ही कहते थे, मुझे उनकी बात मान कर यहां आना ही नहीं चाहिये था।
यह कहकर रचना घर से बाहर निकल कर सीधे पुलिस स्टेशन पहुंच जाती है। वहां वह सारी बात बता देती है। वह रविन्द्र को भी फोन करके वहीं बुला लेती है।
पुलिस किशन को पकड़ लेती है।
रचना: देखा अपनी बदमाशी का नतीजा अब तू रहेगा और तेरे कर्मों की सजा तेरे बच्चे को भी मलेगी।
रविन्द्र: रचना इसे माफ कर केस वापिस ले लो।
रविन्द्र के बहुत समझाने पर वह मान जाती है।
किशन: जीजाजी मुझे माफ कर दीजिये। मैंने आपका बहुत अपमान किया है।
रविन्द्र: ठीक है लेकिन पहले अपनी मॉं को वृद्धा आश्रम से लाकर अपने साथ रखो।
इसके बाद सभी जाकर मॉं को ले आते हैं। और खुशी खुशी रहने लगते हैं।
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